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#अमृता

क्या ऐसा हो सकता है कि हम बारिश में भीगें लेकिन हमें जुकाम न हो… हम सर्दी में कैप लगाए बिना थोड़ी देर बाहर निकल जाएं तो भी हमें बुखार न हो…गर्मियों की दोपहर में अगर बाहर निकलना पड़े तो हमें लू न लगे…और कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी से भी बचे रहें…!

आयुर्वेद में मनुष्य की इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए कई जड़ी-बूटियों के बारे में बताया गया है… इनमें से सबसे असरदार गिलोय (Giloy) या अमृता (Amrita) को माना जाता है…आइए जानते हैं !!

“गिलोय क्या है”
गिलोय एक बेल है…ये आमतौर पर खाली मैदान, सड़क के किनारे, जंगल, पार्क, बाग-बगीचों, पेड़ों-झाड़ियों और दीवारों पर उगती है… गिलोय का वैज्ञानिक नाम ‘टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया’ (Tinospora Cordifolia) है। इसे,
अंग्रेजी में Giloy, Gilo, The Root Of Immortality
कन्नड़ में अमरदवल्ली
गुजराती में गालो
मराठी में गुलबेल
तेलुगू में गोधुची, तिप्प्तिगा
फारसी में गिलाई
तमिल में शिन्दिल्कोदी
आदि नामों से जाना जाता है…।

गिलोय की बेल बहुत तेजी से बढ़ती है.. गिलोय के पत्ते पान की तरह बड़े आकार के, चिकने और हरे रंग के होते हैं..अगर इसे पानी युक्त जगह पर लगाया जाए तो पत्तों का आकार बड़ा हो जाता है..।

गिलोय के फूल गर्मी के मौसम में निकलते हैं… ये छोटे गुच्छों में ही निकलते और बढ़ते हैं…गिलोय के फल मटर जैसे अण्डाकार, चिकने गुच्छों में लगते हैं… पकने के बाद इनका रंग लाल हो जाता है… गिलोय के बीजों का रंग सफेद होता है.. गिलोय को आसानी से घर में भी उगाया जा सकता है..।

आयुर्वेद में गिलोय का क्या महत्व है?
गिलोय की उत्पत्ति के संबंध में कहा जाता है कि, समुद्र मंथन के समय अमृत कलश छलकने से उसकी बूंदें जहां भी गिरीं, वहीं गिलोय या अमृता का पौधा निकल आया…आयुर्वेद में गिलोय को बहुत उपयोगी और गुणकारी बताया गया है..इसे अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी, गुर्च, मधुपर्जी, जीवन्तिका कई नामों से जाना जाता है..।

भारत के प्राचीन वैद्य आचार्य चरक को भारतीय औषधि विज्ञान का पिता (Indian Father Of Medicine) भी कहा जाता है। आचार्य चरक ने अपने ग्रंथ चरक संहिता (Charak Samhita) में गिलोय के गुणों का खूब वर्णन किया है…।
आचार्य चरक के अनुसार, गिलोय, वात दोष हरने वाली, त्रिदोष मिटाने वाली, खून को साफ करने वाली, रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ाने वाली, बुखार / ज्वर नाशक, खांसी मिटाने वाली प्राकृतिक औषधि है…।

आयुर्वेद के अनुसार, गिलोय का उपयोग टाइफाइड, मलेरिया, कालाजार, डेंगू, एलिफेंटिएसिस / फीलपांव या हाथीपांव, विषम ज्वर, उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया, धातु विकार, यकृत निष्क्रियता, तिल्ली बढ़ना, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, झाइयां, झुर्रियां, कुष्ठ रोग आदि के उपचार में किया जाता है…।

इसके अलावा, डायबिटीज के रोगियों के लिए ये शरीर में नेचुरल इंसुलिन के उत्पादन को बढ़ा देती है..इसे कई डॉक्टर इंडियन कुनैन (Indian Quinine) भी कहते हैं..।

गिलोय के जूस का नियमित सेवन करने से बुखार, फ्लू, डेंगू, मलेरिया, पेट में कीड़े होने की समस्या, रक्त में खराबी होना, लो ब्लड प्रेशर, हार्ट की बीमारियों, टीबी, मूत्र रोग, एलर्जी, पेट के रोग, डायबिटीज और स्किन की बीमारियों से राहत मिल सकती है। गिलोय से भूख भी बढ़ती है। गिलोय में ग्लूकोसाइड (Glucoside) , गिलोइन (Giloin), गिलोइनिन (Giloininand), गिलोस्टेराॅल तथा बर्बेरिन (Berberine) नामक एल्केलाइड पाये जाते हैं..।

गिलोय की बेल जिस पेड़ पर चढ़ती है उसी के गुणों को ग्रहण कर लेती है…इसीलिए नीम के पेड़ पर लगने वाली गिलोय को ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है.. ऐसी गिलोय को ”नीम गिलोय (Neem Giloy)” भी कहा जाता है..।
ऐसा भी कहा जाता है कि गिलोय जिस पेड़ पर उगती है, न तो उसे मरने देती है और न ही सेवन करने वाले को, शायद इसीलिए योग और आयुर्वेद के विद्वानों ने उसे अमृता कहा है…।

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