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प्राणायाम के नियम, लाभ एवं महत्व
श्वास-पश्वास की गति को यथाशक्ति अनुसार नियंत्रित करना प्राणायाम कहलाता है। प्राणायाम के चार प्रकार है :-
बाह्यवृति
आभ्यन्तरवृति
स्तम्भवृत्ति
बाह्याभ्यन्तर विषयाक्षेपि
बाह्यवृति प्राणायाम

विधि :

सुख आसन सिद्वासन वा पद्मासन में विधिपूर्वक बैठकर श्वास को एक ही बार में यथाशक्ति बहार निकाल दीजिए।
बाहर निकालकर मूल बंध,उड्डीयान बांध व जालन्धर बांध लगाकर श्वास को यथाशक्ति बहार रोककर रखे।
जब श्वास लेने की जरुरत हो तो बंधो को हटाकर धीरे धीरे स्वास ले।
भीतर ले कर उसे बिना रोके पुनः पूर्ववत् श्वसन क्रिया कीजिये। इसे 3 से लेकर 21 बार कर सकते हैं।
लाभ: यह प्रणायाम हानीकारक नहीं है। जठरागनी प्रदीप्त होती है।उदर रोगो में लाभप्रद है।

आभ्यन्तरवृति प्रणायाम
विधि:
ध्यानात्मक आसन में बैठकर श्वास को बहार निकालकर पून: जितना भर सकते हैं, अन्दर भर लीजिये। छाती ऊपर उभरी हुई तथा पेट का निचे वाला भाग भीतर सिकुड़ा हुवा होगा। श्वास अंदर भर कर जालंधर बंध व् मूलबन्ध लगाए।
यथाशक्ति श्वास को अंदर रोककर रखिये। जब छोड़ने की इच्छा हो तब जालंधर बन्ध को हटाकर धीरे-धीरे श्वास को बाहर निकाल दीजिये।
लाभ: दमा के रोगियो के एवं फेफड़ा सम्बन्धि के लिये अत्यंत लाभदाई है।शरीर में शक्ति,कान्ति की वृद्धि करता है।

स्तम्भवृत्ति प्राणायाम
विधि: इसमें श्वास को जहा का तह रोकना पड़ता है। अपने शक्ति अनुसार रोक कर बाहर निकाल दीजिये। वापस सामान्य होने पर जहाँ का तहाँ रोकिए।

बाह्याभ्यन्तर विषयाक्षेपी
विधि :जब श्वास भीतर से बाहर आये, तब बाहर ही कुछ-कुछ रोकता रहे और जब बाहर से भीतर जाये तब उसको भीतर ही थोड़ा-थोड़ा रोकता रहे.स्त्रियाँ भी इसी प्रकार योगाभ्यास कर सकते है।

प्राणायाम की सम्पूर्ण प्रक्रियाए : प्रत्येक प्राणायाम का अपना एक विशेष महत्व है,सभी प्राणायामों का वयक्ति प्रतिदिन अभ्यास नहीं कर सकता। इस पूरी प्रक्रिया में लगभद २० मिनिट का समय लगता है।
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प्राणायाम के लाभ अनंत हैं
जो करे सो पाये

आदि शंकराचार्य श्वेताश्वतर उपनिषद पर अपने भाष्य में कहते हैं, “प्राणायाम के द्वारा जिस मन का मैल धुल गया है वही मन ब्रह्म में स्थिर होता है।
इसलिए शास्त्रों में प्राणायाम के विषय में उल्लेख है।

स्वामी विवेकानंद इस विषय में अपना मत व्यक्त करते हैं, “इस प्राणायाम में सिद्ध होने पर हमारे लिए मानो अनंत शक्ति का द्वार खुल जाता है।

मान लो, किसी व्यक्ति की समझ में यह प्राण का विषय पूरी तरह आ गया और वह उस पर विजय प्राप्त करने में भी कृतकार्य हो गया , तो फिर संसार में ऐसी कौन-सी शक्ति है, जो उसके अधिकार में न आए? उसकी आज्ञा से चन्द्र-सूर्य अपनी जगह से हिलने लगते हैं,

क्षुद्रतम परमाणु से वृहत्तम सूर्य तक सभी उसके वशीभूत हो जाते हैं, क्योंकि उसने प्राण को जीत लिया है। प्रकृति को वशीभूत करने की शक्ति प्राप्त करना ही प्राणायाम की साधना का लक्ष्य है।
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