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विश्व के समस्त सनातनियों
को छठ महापर्व की अनंत
शुभकामनाएं💐

ॐ सूर्याय नमः💐

छठ महापर्व में जगत की आत्मा
कहे जाने वाले भगवान सूर्यदेव
की आराधना होती है।

सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्।।

इस पर्व में सूर्य भगवान की शक्ति
छठी मैया की पूजा की जाती है।

अधिकांश महिलाएं ही अपने
पति तथा पुत्रों एवं परिवार के
कल्याण के लिए छठ व्रत
करती हैं।

आस्थावान पुरुष भी पत्नी के साथ
इस व्रत को संपन्न करते हैं।

यह महापर्व चार चरणों में संपन्न
की जाती है।
इस पर्व में पबित्रता का विशेष
ध्यान रखा जाता है।

प्रथम चरण “नहाय खाय” आज से
आज संपन्न होगा।💐

“नहाय खाय” में व्रती जन चावल,
चने की दाल,तथा लौकी की सब्जी
से व्रत का पारण करते हैं।

द्वितीय चरण “खरना” कल संपन्न
होगा।💐

“खरना” में व्रती जन सूर्य भगवान की
आराधना करते हैं तथा घी चुपड़ी रोटी
और गुड़ की खीर से संध्या काल में
पारण करते हैं।

तृतीय चरण खरना के दूसरे दिन
संपन्न होती है।

समस्त ऋतु फल तथा घी में बने
“ठेकुआ” को भगवान सूर्य को
अर्पण किया जाता।

इसमें बांस के बने सूप का अत्यधिक
महत्व होता है।

इसी सूप में सभी सामग्री को रखा
जाता है।

सभी व्रती जन संध्या काल में नदी,
तालाब,पोखरे पर सपरिवार जाते हैं।

घाट को स्वच्छ कर स्नान कर के
अस्त होते हुए सूर्य भगवान को
अर्घ्य देते हैं।

सभी सामग्री को सूप में रखकर
सूर्य भगवान को अर्पण करते हैं।

व्रती जन अपनी सामर्थ्य के अनुसार
देर तक जल में खड़े रहकर सूर्य
भगवान की आराधना करते हैं।

सूर्यास्त के पूर्व ही समस्त प्रक्रिया
संपन्न की जाती है।

आज के दिन व्रती निर्जला निराहार
रह कर व्रत करते हैं।

कई व्रती अपनी सुविधानुसार घाट
पर ही रात भर रहते हैं।

व्रत का चौथा चरण चौथे दिन प्रातः
उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर संपन्न
होती है।

ततपश्चात व्रती पारण कर व्रत का
समापन करते हैं।

यह पर्व बिहार के देवस्थान “देव”
(औरंगाबाद) से डेढ़ लाख वर्ष
पूर्व आरम्भ हुआ था तथा जहां
जहां बिहारियों ने प्रवास किया
वहां वहां इस पर्व का प्रचलन
हुआ।

देवस्थान “देव” में सूर्य भगवान
का पौराणिक मंदिर है।

यह पहला मंदिर है जो पश्चिम
मुखी है।

कोणार्क एवं अन्य सूर्य मंदिरों
से भी यह अत्यंत पुरातन मंदिर है।

ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्।।

अनादि_काल से #ब्रह्माण्ड

में #अनहद_नाद”ॐ”गूँज
रहा है !!!💐

NASA के वैज्ञानिकों ने अनेक
रिसर्च के बाद डीप स्पेस में यंत्रों
द्वारा सूर्य में हर क्षण होने वाली
एक ध्वनि को रिकॉर्ड किया।

उस ध्वनि को सुना तो वैज्ञानिक
भी चकित रह गए,क्योंकि यह
ध्वनि कुछ और नहीं बल्कि
भारतीय संस्कृति की वैदिक
ध्वनि “ॐ” थी।💐

सुनने में बिलकुल वैसी,
जैसे हम “ॐ” बोलते हैं।

इस मंत्र का गुणगान वेदों
में भी किया गया है।

आश्चर्य इस बात का था कि
जो गहन ध्वनि मनुष्य अपने
कानों से नहीं सुन सकता,
उसको ऋषियों ने कैसे सुना।

सामान्य व्यक्ति 20 मेगा हर्ट्स
से 20,000 मेगा हर्ट्स की
ध्वनियों को ही सुन सकता है।

इतनी ही हमारे कान की
श्रवण शक्ति है।

उससे नीचे या उससे ऊपर
की ध्वनि को सुनना संभव
ही नहीं है।

इंद्रियों की एक सीमा है,
उससे कम या ज्यादा में
वे कोई जानकारी नहीं
दे सकतीं।

वैज्ञानिकों का आश्चर्य असल
में समाधि की उच्च अवस्था
का चमत्कार था जिसमें ऋषियों
ने वह ध्वनि सुनी,अनुभव की
और वेदों के हर मंत्र से पहले
उसे लिखा और ‘महामंत्र’
बताया।

ऋषि कहते हैं,यह ॐ की
ध्वनि परमात्मा तक पहुंचने
का माध्यम है।

यह उसका नाम है।

महर्षि पतंजलि कहते हैं,
‘तस्य वाचकः प्रणव’💐

अर्थात परमात्मा
का नाम प्रणव है।

प्रणव अर्थात ‘ॐ’।

प्रश्न उठता है कि सूर्य में
ये ही यह ध्वनि क्यों हो
रही है ?

इसका उत्तर गीता
में दिया गया है।💐

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन
से कहते हैं- जो योग का
ज्ञान मैंने तुझे दिया,यह
मैंने आदिकाल में सूर्य
को दिया था।

देखा जाए तो तभी से
सूर्य नित्य-निरंतर केवल
‘ॐ’ का ही जाप करता
हुआ अनादिकाल से
चमक रहा है।💐

यह जाप सूर्य ही नहीं,
संपूर्ण ब्रह्मांड कर रहा है।

ऋषियों ने कहा था यह ध्वनि
ध्यान में अनुभव की जा सकती
है,लेकिन कानों से सुनी नहीं जा
सकती।

इसी ध्वनि को शिव की शक्ति
या उनके डमरू से निकली हुई
प्रथम ध्वनि कहा जाता है,यही
अनहद नाद है।

ब्रह्मांड में ही नहीं,यह ध्वनि
हमारी चेतना की अंतरतम
गहराइयों में भी गूंज रही है।

जब हम ‘ॐ’ का जाप करते हैं,
तब सबसे पहले मन विचारों से
खाली होता है।

उसके बाद भी जब ये जाप
चलता रहता है,तब साधक
के जाप की फ्रीक्वेंसी उस
ब्रह्मांड में गूंजती ‘ॐ’ की
ध्वनि की फ्रीक्वेंसी के
समान हो जाती है।

उस समय साधक ध्यान की
गहराइयों में चला जाता है।

इस अवस्था को वननेस
या समाधि या अद्वैत कहा
जाता है।

इस अवस्था में मन,
चेतना के साथ लीन
हो जाता है।💐💐💐

विकर्तनो विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो रविः।
लोक प्रकाशकः श्री माँल्लोक चक्षुर्मुहेश्वरः॥
लोकसाक्षी त्रिलोकेशः कर्ता हर्ता तमिस्रहा।
तपनस्तापनश्चैव शुचिः सप्ताश्ववाहनः॥
गभस्तिहस्तो ब्रह्मा च सर्वदेवनमस्कृतः।
एकविंशतिरित्येष स्तव इष्टः सदा रवेः॥

‘विकर्तन,विवस्वान,मार्तण्ड,भास्कर,रवि,
लोकप्रकाशक,श्रीमान,लोकचक्षु,महेश्वर,
लोकसाक्षी,त्रिलोकेश,कर्ता,हर्त्ता,तमिस्राहा,
तपन,तापन,शुचि,सप्ताश्ववाहन,गभस्तिहस्त,
ब्रह्मा और सर्वदेव नमस्कृत-
इस प्रकार इक्कीस नामों का यह स्तोत्र
भगवान सूर्य को सदा प्रिय है।’
(ब्रह्म पुराण : 31.31-33)

यह शरीर को निरोग बनाने वाला,
धन की वृद्धि करने वाला और यश
फैलाने वाला स्तोत्रराज है।

इसकी तीनों लोकों में प्रसिद्धि है।
जो सूर्य के उदय और अस्तकाल में
दोनों संध्याओं के समय इस स्तोत्र के
द्वारा भगवान सूर्य की स्तुति करता है,
वह सब पापों से मुक्त हो जाता है।

भगवान सूर्य के सान्निध्य में एक बार
भी इसका जप करने से मानसिक,वाचिक,
शारीरिक तथा कर्मजनित सब पाप नष्ट हो
जाते हैं।

अतः यत्नपूर्वक संपूर्ण अभिलक्षित फलों
को देने वाले भगवान सूर्य का इस स्तोत्र के
द्वारा स्तवन करना चाहिए।

जयति पुण्यसनातन संस्कृति💐
जयति पुण्यभूमि भारत💐

सदा सर्वदा सुमंगल💐
हर हर महादेव💐
ॐ सूर्याय नमः💐
जय भवानी💐
जय श्री राम💐

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