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वैदिकसनातनगुरूत्वाकर्षण_सिद्धान्त

न्यूटनऔरगुरुत्वाकर्षण:

वेद और वैदिक आर्य ग्रन्थों में गुरूत्वाकर्षण के नियम को समझाने के लिये पर्याप्त सूत्र हैं। परन्तु वेदों के इस “गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त” को आज “न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम (Newton’s Law Of Gravitation ) के नाम से पढ़ाया जा रहा है,जबकि सत्य यह है कि न्यूटन के जन्म से भी पहले हमारे वेदों में इसका उल्लेख है और वेदों के बाद कालांतर में अन्य लगभग 8-15 आचार्यों ने “गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त” का स्पष्ट वर्णन ग्रंथों में किया है इसलिए “गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त” का नाम “न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम (Newton’s Law Of Gravitation ) ना होकर “वेदों का गुरुत्वाकर्षण का नियम ( Veda’s Law Of Gravitation ) होना चाहिए ।

अनेकों प्रमाण हैं कि हमारे ऋषियों ने जो बात पहले ही वेदों में कही थी उसके सामने ये Newton कितना ठहरते हैं। न्यूटन जी ने जो #गतिकेनियम बताए हैं वह भी #भास्कराचार्य_जी से कॉपी किये हुए हैं।

प्रारम्भ वेद से करते हैं और उसके बाद आचार्यों का वर्णन करते हैं:

1● ऋग्वेद में गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का वर्णन :-

▶ यदा ते हर्य्यता हरी वावृधाते दिवेदिवे ।
आदित्ते विश्वा भुवनानि येमिरे ।। ( ऋ० अ० ६/ अ० १ / व० ६ / म० ३ )
अर्थात :- सब लोकों का सूर्य्य के साथ आकर्षण और सूर्य्य आदि लोकों का परमेश्वर के साथ आकर्षण है । इन्द्र जो वायु , इसमें ईश्वर के रचे आकर्षण, प्रकाश और बल आदि बड़े गुण हैं । उनसे सब लोकों का दिन दिन और क्षण क्षण के प्रति धारण, आकर्षण और प्रकाश होता है । इस हेतु से सब लोक अपनी अपनी कक्षा में चलते रहते हैं, इधर उधर विचल भी नहीं सकते ।
Note :- स्पष्ट है कि इस मन्त्र में कहा है खगोलीय पिंडों (celestial body) जैसे पृथ्वी ,चंद्रमा ग्रह आदि आकर्षण में रहते हैं तथा आकर्षण के कारण ही अपनी नियत कशा में गति करते हैं और आकर्षण के कारण ही वे अपनी कक्षाओं का उल्लंघन नहीं पाते अर्थात वे आकर्षण के अधीन गति करते हैं

▶ यदा सूर्य्यममुं दिवि शुक्रं ज्योतिरधारयः ।
आदित्ते विश्वा भुवनानी येमिरे ।।३।। ( ऋ० अ० ६/ अ० १ / व० ६ / म० ५ )

अर्थ- हे परमेश्वर ! जब उन सूर्य्यादि लोकों को आपने रचा और आपके ही प्रकाश से प्रकाशित हो रहे हैं और आप अपने सामर्थ्य से उनका धारण कर रहे हैं , इसी कारण सूर्य और पृथ्वी आदि लोकों और अपने स्वरूप को धारण कर रहे हैं । इन सूर्य्य आदि लोकों का सब लोकों के साथ आकर्षण से धारण होता है ।

इस मन्त्र में भी है खगोलीय पिंडों (celestial body) जैसे पृथ्वी , चंद्रमा , ग्रह आदि को आकर्षण के अधीन माना है।

2● उपनिषद में गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का वर्णन
बृहत् जाबाल उपनिषद् में गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त को आधारशक्ति नाम से कहा गया है ।
इसके दो भाग किये गये हैं :-

(१) ऊर्ध्वशक्ति या ऊर्ध्वग :- ऊपर की ओर खिंचकर जाना । जैसे अग्नि का ऊपर की ओर जाना ।

(२) अधःशक्ति या निम्नग :- नीचे की ओर खिंचकर जाना । जैसे जल का नीचे की ओर जाना या पत्थर आदि का नीचे आना ।

आर्ष ग्रन्थों से प्रमाण देते हैं , यह बृहत् उपनिषद् के सूत्र हैं :-

अग्नीषोमात्मकं जगत् । ( बृ० उप० २.४ )
आधारशक्त्यावधृतः कालाग्निरयम् ऊर्ध्वगः । तथैव निम्नगः सोमः । ( बृ० उप० २.८ )

अर्थ – सारा संसार अग्नि और सोम का समन्वय है । अग्नि की ऊर्ध्वगति है और सोम की अधोःशक्ति । इन दोनो शक्तियों के आकर्षण से ही संसार रुका हुआ है ।

3● ऋषि पिप्पलाद ने प्रश्न उपनिषद् गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का वर्णन किया है :-
पायूपस्थे – अपानम् । ( प्रश्न उप० ३.४ )
पृथिव्यां या देवता सैषा पुरुषस्यापानमवष्टभ्य० । ( प्रश्न उप० ३.८ )
तथा पृथिव्याम् अभिमानिनी या देवता … सैषा पुरुषस्य अपानवृत्तिम् आकृष्य…. अपकर्षेन अनुग्रहं कुर्वती वर्तते । अन्यथा हि शरीरं गुरुत्वात् पतेत् सावकाशे वा उद्गच्छेत् । ( शांकर भाष्य, प्रश्न० ३.८ )

अर्थ – अपान वायु के द्वारा ही मल मूत्र नीचे आता है । पृथ्वी अपने आकर्षण शक्ति के द्वारा ही मनुष्य को रोके हुए है , अन्यथा वह आकाश में उड़ जाता ।

4● महर्षि पतञ्जली के व्याकरण महाभाष्य में गुरूत्वाकर्षण का सिद्धान्त :-

लोष्ठः क्षिप्तो बाहुवेगं गत्वा नैव तिर्यक् गच्छति नोर्ध्वमारोहति ।
पृथिवीविकारः पृथिवीमेव गच्छति आन्तर्यतः । ( महाभाष्य :- स्थानेन्तरतमः, १/१/४९ सूत्र पर )

अर्थ- पृथ्वी की आकर्षण शक्ति इस प्रकार की है कि यदि मिट्टी का ढेला ऊपर फेंका जाता है तो वह बहुवेग को पूरा करने पर, न टेढ़ा जाता है और न ऊपर चढ़ता है । वह पृथिवी का विकार ( गुण या अवगुण ) है, इसलिये पृथिवी पर ही आ जाता है ।

आप देख सकते हैं कि महर्षि पतंजलि ने पृथ्वी की आकर्षण शक्ति का वर्णन के साथ साथ किसी कण की गति पर आकर्षण शक्ति के प्रभाव का स्पस्ट वर्णन किया है ,जो न्यूटन के सेब गिराने के विश्लेषण से कही अधिक गहरा गहरा विश्लेषण है

5● भास्कराचार्य द्वितीय पूर्व ने अपने सिद्धान्तशिरोमणि में गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का वर्णन किया है :-
आकृष्टिशक्तिश्च महि तया यत्
खस्थं गुरूं स्वाभिमुखं स्वशक्त्या ।
आकृष्यते तत् पततीव भाति
समे समन्तात् क्व पतत्वियं खे ।। ( सिद्धान्त० भुवन० १६ )
अर्थ – पृथिवी में आकर्षण शक्ति है जिसके कारण वह ऊपर की भारी वस्तु को अपनी ओर खींच लेती है । वह वस्तु पृथिवी पर गिरती हुई सी लगती है । पृथिवी स्वयं सूर्य आदि के आकर्षण से रुकी हुई है,अतः वह निराधार आकाश में स्थित है तथा अपने स्थान से हटती नहीं है और न गिरती है । वह अपनी कील पर घूमती है।

भास्कराचार्य ने इस एक सूत्र में ही आधुनिक खगोल विज्ञान (Astronomy ) के सभी मूलभूत सिद्धांतों का वर्णन कर दिया है जिस तक यूरोप का कोई वैज्ञानिक उस समय तक कल्पना भी नहीं कर सका था

6● वराहमिहिर ने अपने ग्रन्थ पञ्चसिद्धान्तिका में गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का वर्णन किया है :-
पंचभमहाभूतमयस्तारा गण पंजरे महीगोलः ।
खेयस्कान्तान्तःस्थो लोह इवावस्थितो वृत्तः ।। ( पंच०पृ०३१ )

अर्थ – तारासमूहरूपी पंजर में गोल पृथिवी इसी प्रकार रुकी हुई है जैसे दो बड़े चुम्बकों के बीच में लोहा ।

यहाँ महर्षि वराहमिहिर पृथ्वी को आकर्षण शक्ति के साथ टिका हुआ बता रहे हैं और इसके साथ इस सूत्र में चुम्बक (magnet) का ज्ञान भी परिलक्षित हो रहा है

7● आचार्य श्रीपति ने अपने ग्रन्थ सिद्धान्तशेखर में गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का वर्णन किया है :-
उष्णत्वमर्कशिखिनोः शिशिरत्वमिन्दौ,.. निर्हतुरेवमवनेः स्थितिरन्तरिक्षे ।। ( सिद्धान्त० १५/२१ )
नभस्ययस्कान्तमहामणीनां मध्ये स्थितो लोहगुणो यथास्ते ।
आधारशून्यो पि तथैव सर्वधारो धरित्र्या ध्रुवमेव गोलः ।। ( सिद्धान्त० १५/२२ )

अर्थ – पृथ्वी की अन्तरिक्ष में स्थिति उसी प्रकार स्वाभाविक है जैसे सूर्य में गर्मी , चन्द्र में शीतलता और वायु में गतिशीलता ।
दो बड़े चुम्बकों के बीच में लोहे का गोला स्थिर रहता है, उसी प्रकार पृथिवी भी अपनी धुरी पर रुकी हुई है ।

यहाँ महर्षि वराहमिहिर पृथ्वी को आकर्षण शक्ति के साथ टिका हुआ बता रहे हैं और इसके साथ इस सूत्र में चुम्बक ( magnet ) और पृथ्वी के अपनी धुरी पर झुकाव का भी ज्ञान भी परिलक्षित हो रहा है

इस तरह आकर्षण और गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की उत्पत्ति वेदों से होना सिद्ध होती है।
“न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम” (Newton’s Law Of Gravitation ) वास्तव में “वेद का गुरुत्वाकर्षण का नियम ( Veda’s Law Of Gravitation ) होना चाहिए।

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