अलौकिक शक्तियों के स्वामी थे बाबा नीम करौली!!!!!!
संत-महात्मा भारत जैसे राष्ट्र की धरोहर होते हैं। इन्हीं अध्यात्मिक गुरुओं के कारण भारत आदिकाल से धर्म गुरु के रूप में विश्वगुरु बनकर विख्यात रहा है। वर्तमान युग में भी अनेक संत, ज्ञानी, योगी और प्रवचनकर्ता अपने कार्यों और चमत्कारों से विश्व को चमत्कृत करते रहे हैं परंतु बाबा नीम करौली जी की बात ही अलग थी।
आइए जानते हैं इनके बारे में –
बाबा ने किसी प्रकार का बाह्य आडम्बर नहीं अपनाया, जिससे लोग उन्हें साधु बाबा मानकर उनका आदर करते। उनके माथे पर न त्रिपुण्ड लगा होता न गले में जनेऊ या कंठ माला और न देह पर साधुओं के से वस्त्र ही। जन समुदाय के बीच में आने पर आरंभ में आप केवल एक धोती से निर्वाह करते रहे, बाद में आपने एक कम्बल और ले लिया।
अन्य लोगों की क्या कहें, साधक स्तर के साधु आपको सेठ समझने लगते पर आपके नंगे पैरों को देख भ्रमित हो जाते। कभी उनके आश्रम में ही कोई नवागन्तुक उन्हीं से बाबा के बारे में पूछने लगता और वह कहते, यहां बाबा-वाबा नहीं है, जाओ हनुमान जी के दर्शन करो। वह किसी को भी प्रभावित करना नहीं चाहते थे। इस कारण आप में किसी प्रकार का बनावटीपन नहीं दिखाई दिया। वे जिससे भी मिलते सहज और सरल भाव से।
ईश्वरीय अवतारों में एक अनोखा संयोग बनता है। वे शरीर तो किसी मानव, पशु या अन्य जीव का धारण करते हैं, लेकिन उस शरीर में जो भावना, ऊर्जा, चेतना या आत्मा रहती है, वह पूरी तरह दैवीय रहती है। उनके आगमन और विदा लेने का भी एक विशिष्ट तरीका था। वह अचानक ही मानो प्रकट हो जाते थे और विदा लेकर अचानक चल देते थे और लोगों को पीछे आने को मना करते थे। चाहे वाहन से भी पीछा करो तो 100 गज की दूरी से अचानक किसी मोड़ पर विलुप्त हो जाते थे। कहा जाता है कि उन्होंने हनुमान जी की उपासना की थी और अनेक चामत्कारिक सिद्धियां प्राप्त की थीं।
कुछ भक्तों का कहना है कि बाबा जी ने आकाश तत्त्व को जीत लिया था इसलिए वह पलक झपकते ही कहीं पर भी, किसी भी जगह उपस्थित हो सकते थे। साथ ही वह धरती के किसी भी तत्त्व या प्रभाव के प्रति अनासक्त थे। जैसे स्वच्छन्द वायु किसी भी वस्तु से प्रभावित नहीं होती वैसे ही बाबा भी वस्तु या वातावरण से पूर्णत: अप्रभावित रहते थे, किन्तु इस अनासक्त भाव में रहते हुए भी वह दीन-दुखियों के लिए सहयोग करने में पीछे नहीं रहते थे।
महाराज जी लखनऊ में अपने एक भक्त के यहां ठहरे थे और वहां भक्तों का जमघट लगा था। घर का सेवक भी एक रुपया टेंट में रखकर उनके दर्शनों के लिए वहां पहुंचा। जब उसने प्रणाम किया तो महाराज जी ने कहा अपनी कमर में खोसकर मेरे लिए रुपया लाया है। उसने हामी भरी। महाराज जी ने कहा तो मुझे देता क्यों नहीं? उसने रुपया निकालकर दिया और महाराज जी ने उसे प्रेमपूर्वक ग्रहण किया और बाद में अपने भक्तों से कहा इसका एक रुपया, आपके बीस हजार से अधिक मूल्यवान है।
एक अंधेरी रात में एक भक्त महाराज जी के साथ जंगल में थे। उसने कहा कि महाराज जी मुझे ईश्वर दिखलाएं। महाराज जी ने उससे कहा जरा मेरा पेट मलो। वह भक्त पेट मलने लगा। उसे प्रतीत होने लगा कि पेट बराबर बढ़ता ही जा रहा है। अंत में उसे पेट पहाड़ सा प्रतीत होने लगा। महाराज जी खर्राटे भी भरने लगे। उनके खर्राटे के स्वर सिंहनाद के समान थे। उस भक्त का कहना है कि यह क्रीड़ा मात्र थी परन्तु यदि उनकी कोई परीक्षा लेना चाहे तो वह ऐसा कुछ नहीं दिखाते हैं।
मन्दिर की प्रतिष्ठा के साथ गांव में हर वर्ष वैशाख शुल्क पक्ष की त्रयोदशी पर एक माह का मेला आयोजित करने की व्यवस्थता कर दी। महाराज जी ने घोषणा कि दुकानों में कोई ताला नहीं लगाएगा। क्योंकि मेले मे चोरी नहीं होगी जो आज तक यथावत है।
एक दिन बाबा गंगा स्नान के लिए अपनी गुफा से बाहर निकले ही थे कि उन्हें सामने लगभग दो सौ मीटर दूर रेल की पटरी पर फर्रुखाबाद की तरफ जाती हुई एक गाड़ी दिखाई दी। बाबा के साथ हर एकादशी और पूर्णमासी को गोपाल नामक एक बहेलिया और एक मुसलमान गंगा-स्नान के लिए जाया करते थे। यह बाबा की मौज थी कि उन्हें उस गाड़ी पर बैठकर जाने की इच्छा हुई।
फिर क्या था, चलती गाड़ी एकाएक रुक गई और तब तक रुकी रहीजब तक कि बाबा अपने परिचरों के साथ उसमें सवार नहीं हो लिए। उनके बैठते ही गाड़ी चल पड़ी। चालक के लिए भी यह सब रहस्य बन कर रह गया। बाबा की इस लीला स्मृति में ग्रामवासियों के आग्रह पर भारत सरकार ने नीब करौरी ग्राम के इस स्थान पर अब लछमन दास पुरी रेलवे स्टेशन बना दिया है।
जिस स्थान पर बाबा वास कर रहे थे वहां के लिए विदित था कि पूर्व में किसी संत के श्राप से यह भूमि जलविहीन हो गई है। यहां बाबा ने ग्रामवासियों को जल के लिए तरसते हुए देखा। एक बार नि:सन्तान दुखी वैश्य ने बाबा के आगे दुखड़ा रोया कि उसने मेरे कोई संतान नहीं है, बाबा ने उसे हंसते हुए कहा कि श्री हनुमान जी के मन्दिर के आगे कुआं खुदवा दे, तेरे लड़का हो जाएगा।
परन्तु जब कुआं खोदा गया तो पानी खारा निकला, तब बाबा जी ने कहा कि कुछ बोरे चीनी के डलवा दो सदा के लिए मीठा हो जाएगा। ऐसा ही किया गया आज भी उस कुएं का जल मीठा है।