Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

हवन कैसे किया जाय

हवन से मंत्रों में जान आ जाती है और उनकी शक्ति बढ़ जाती है। अत: साधना के पथ पर चलने वालों को बीच-बीच में हवन करते रहना चाहिए। नियमित हवन कराने के लिए योग्य पंडित का हर जगह मिलना कठिन होता है। दूसरी बड़ी समस्या यह भी है कि आधुनिक जीवन शैली में कामकाजी लोगों के लिए नियमित विधिवत हवन के लिए पूरे दिन का समय निकाल पाना बेहद कठिन है। ऐसे लोगों के लिए शास्त्र में संक्षिप्त हवन विधि का प्रावधान किया गया है। बिना ज्यादा तामझाम के बाजार से तैयार हवन पात्र (लोहे का) लेकर घर में ही मुश्किल से आधे घंटे में इस विधि से हवन करना संभव है। मौजूदा जीवनशैली में यही सर्वश्रेष्ठ तरीका है और मैंने इसे अत्यंत कारगर पाया है।

इस तरह करें तैयारी घर में पहले किसी स्थान को धो-पोंछकर साफ कर लें। फिर पूर्व या उत्तर दिशा (भौतिक कार्य के लिए पूर्व और आध्यात्मिक लक्ष्य के लिए उत्तर श्रेष्ठ) की ओर मुंह कर बैठ जाएं। सामने हवन कुंड रखें। आम की लकड़ी मिल सके तो बेहतर नहीं तो अन्य लकड़ी से भी काम चलाया जा सकता है। वैसे अलग-अलग कामना एवं मंत्रों के लिए अलग-अलग लकड़ी एवं हवन सामग्री का प्रावधान है लेकिन उसके न मिलने पर आपातकाल में इससे भी काम चला सकते हैं। बाजार में तैयार हवन सामग्री उपलब्ध है। न मिलने पर खुद भी कामचलाऊ तरीके से तैयार कर सकते हैं। इसके लिए काला तिल, चावल, चीनी, जौ एवं घी को मिलाकर सामग्री तैयार कर किसी साफ पात्र में रख लें। सामग्री में आवश्यकतानुसार और प्रयोग भी किया जा सकता है। इस पर विद्वानों को आपत्ति हो सकती है लेकिन मुझे यह काफी फायदा पहुंचाने वाला लगा है। इसके साथ ही एक साफ पात्र में घी, दूसरे साफ पात्र में जल एवं घी देने के लिए सुरुप (न मिले तो साफ बड़े चम्मच से भी काम चला सकते हैं) लेकर बैठें। इसके बाद निम्न कार्य करें।

1-हवन कुंड में तीन छोटी लकड़ी से अपनी ओर नोंक वाला त्रिकोण बनाएं। उसे—अस्त्राय फट– कहते हुए तर्जनी व मध्यमा से घेरें।

2-फिर मु_ी बंद कर तर्जनी उंगली निकाल कर — हूं फट—मंत्र पढ़ें।

3-इसके बाद लकड़ी डालकर कर्पूर व धूप देकर— ह्रीं सांग सांग सायुध सवाहन सपरिवार –जिस मंत्र से हवन करना हो उसे पढ़कर– नम:– कहें।

4-आग जलाकर— ह्रीं क्रव्यादेभ्यो: हूं फट- कहते हुए तीली या उससे लकड़ी का टुकड़ा जलाकर हवन कुंड से किनारे नैऋत्य कोण में फेंकें।

5-तदन्तर — रं अग्नि अग्नेयै वह्नि चैतन्याय स्वाहा — मंत्र से आग में थोड़ा घी डालें।

6-फिर हवन कुंड को स्पर्श करते हुए — ह्रीं अग्नेयै स्वेष्ट देवता नामापि — मंत्र पढ़ें।

7-इसके बाद पढ़ें—- ह्रीं सपरिवार स्वेष्ट रूपाग्नेयै नम:।

8-तदन्तर घी से चार आहुतियां दें और जल में बचे घी को देते हुए निम्न चार मंत्र पढ़ें——-

अग्नि में— ह्रीं भू स्वाहा ———– इदं भू (पानी में)

अग्नि में— ह्रीं भुव: स्वाहा ——— इदं भुव: (पानी में)

अग्नि में— ह्रीं स्व: स्वाहा ———- इदं स्व: (पानी में)

अग्नि में— ह्रीं भूर्भुव:स्व: स्वाहा—— इदं भूर्भुव: स्व: (पानी में)

9-तदन्तर मूल मंत्र से हवन शुरू करने हुए जितनी आहुतियां देनी है दें।

10-मूल मंत्र से हवन के बाद पुन: निम्न मंत्रों से आहुतियां दें———–

अग्नि में— ह्रीं भू स्वाहा ———– इदं भू (पानी में)

अग्नि में— ह्रीं भुव: स्वाहा ——— इदं भुव: (पानी में)

अग्नि में— ह्रीं स्व: स्वाहा ———- इदं स्व: (पानी में)

अग्नि में— ह्रीं भूर्भुव:स्व: स्वाहा—— इदं भूर्भुव: स्व: (पानी में)

11-अंत में सुपारी या गोला से पूर्णाहुति के लिए मंत्र पढ़ें——

ह्रीं यज्ञपतये पूर्णो भवतु यज्ञो मे ह्रीस्यन्तु यज्ञ देवता फलानि सम्यग्यच्छन्तु सिद्धिं दत्वा प्रसीद मे स्वाहा क्रौं वौषट।

यज्ञ करने वाले सरवा में यज्ञ की राख लगाकर रख दें।

12-ह्रीं क्रीं सर्व स्वस्ति करो भव—– मंत्र से तिलक करें।

13–अंत में—–

ह्रीं यज्ञ यज्ञपतिम् गच्छ यज्ञं गच्छ हुताशन स्वांग योनिं गच्छ यज्ञेत पूरयास्मान मनोरथान अग्नेयै क्षमस्व। इसके बाद जल वाले पात्र को उलट कर रख दें।

नोट- हवन कुंड की अग्नि के पूरी तरह शांत होने के बाद बची सामग्री को समेट कर किसी नदीं, जलाशय या आज के परिप्रेक्ष्य में भूमि में गड्ढा खोदकर डालकर ढंक दें। यदि इसकी राख को खेतों में डाला जाए तो निश्चय ही उसकी उर्वरा शक्ति में भारी बढ़ोतरी होगी।
🕉हवन चिकित्सा 🕉

एक वेबसाइट रिपोर्ट के अनुसार फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की। जिसमे उन्हें पता चला की हवन मुख्यतः आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नमक गैस उत्पन्न होती है जो की खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओ को मरती है तथा वातावरण को शुद्द करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला। गुड़ को जलने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।
(२) टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में ये पाया की यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है।
(३) हवन की मत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च करी की क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्द होता है और जीवाणु नाश होता है अथवा नही. उन्होंने ग्रंथो. में वर्णित हवन सामग्री जुटाई और जलने पर पाया की ये विषाणु नाश करती है। फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा की सिर्फ आम की लकड़ी १ किलो जलने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डाल कर जलायी गयी एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बॅक्टेरिया का स्तर ९४ % कम हो गया। यही नही. उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजुद जीवाणुओ का परीक्षण किया और पाया की कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के २४ घंटे बाद भी जीवाणुओ का स्तर सामान्य से ९६ प्रतिशत कम था। बार बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ की इस एक बार के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था। यह रिपोर्ट एथ्नोफार्माकोलोजी के शोध पत्र (resarch journal of Ethnopharmacology 2007) में भी दिसंबर २००७ में छप चुकी है। रिपोर्ट में लिखा गया की हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों फसलों को नुकसान पहुचाने वाले बैक्टीरिया का नाश होता है। जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है।
क्या हो हवन की समिधा (जलने वाली लकड़ी):-
समिधा के रूप में आम की लकड़ी सर्वमान्य है परन्तु अन्य समिधाएँ भी विभिन्न कार्यों हेतु प्रयुक्त होती हैं। सूर्य की समिधा मदार की, चन्द्रमा की पलाश की, मङ्गल की खैर की, बुध की चिड़चिडा की, बृहस्पति की पीपल की, शुक्र की गूलर की, शनि की शमी की, राहु दूर्वा की और केतु की कुशा की समिधा कही गई है।
मदार की समिधा रोग को नाश करती है, पलाश की सब कार्य सिद्ध करने वाली, पीपल की प्रजा (सन्तति) काम कराने वाली, गूलर की स्वर्ग देने वाली, शमी की पाप नाश करने वाली, दूर्वा की दीर्घायु देने वाली और कुशा की समिधा सभी मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है।
हव्य (आहुति देने योग्य द्रव्यों) के प्रकार
प्रत्येक ऋतु में आकाश में भिन्न-भिन्न प्रकार के वायुमण्डल रहते हैं। सर्दी, गर्मी, नमी, वायु का भारीपन, हलकापन, धूल, धुँआ, बर्फ आदि का भरा होना। विभिन्न प्रकार के कीटणुओं की उत्पत्ति, वृद्धि एवं समाप्ति का क्रम चलता रहता है। इसलिए कई बार वायुमण्डल स्वास्थ्यकर होता है। कई बार अस्वास्थ्यकर हो जाता है। इस प्रकार की विकृतियों को दूर करने और अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने के लिए हवन में ऐसी औषधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं, जो इस उद्देश्य को भली प्रकार पूरा कर सकती हैं।
होम द्रव्य
———— होम-द्रव्य अथवा हवन सामग्री वह जल सकने वाला पदार्थ है जिसे यज्ञ (हवन/होम) की अग्नि में मन्त्रों के साथ डाला जाता है।
(१) सुगन्धित : केशर, अगर, तगर, चन्दन, इलायची, जायफल, जावित्री छड़ीला कपूर कचरी बालछड़ पानड़ीआदि
(२) पुष्टिकारक : घृत, गुग्गुल ,सूखे फल, जौ, तिल, चावल शहद नारियल आदि
(३) मिष्ट – शक्कर, छूहारा, दाख आदि
(४) रोग नाशक -गिलोय, जायफल, सोमवल्ली ब्राह्मी तुलसी अगर तगर तिल इंद्रा जव आमला मालकांगनी हरताल तेजपत्र प्रियंगु केसर सफ़ेद चन्दन जटामांसी आदि
उपरोक्त चारों प्रकार की वस्तुएँ हवन में प्रयोग होनी चाहिए। अन्नों के हवन से मेघ-मालाएँ अधिक अन्न उपजाने वाली वर्षा करती हैं। सुगन्धित द्रव्यों से विचारों शुद्ध होते हैं, मिष्ट पदार्थ स्वास्थ्य को पुष्ट एवं शरीर को आरोग्य प्रदान करते हैं, इसलिए चारों प्रकार के पदार्थों को समान महत्व दिया जाना चाहिए। यदि अन्य वस्तुएँ उपलब्ध न हों, तो जो मिले उसी से अथवा केवल तिल, जौ, चावल से भी काम चल सकता है।
सामान्य हवन सामग्री
————————— तिल, जौं, सफेद चन्दन का चूरा , अगर , तगर , गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, तालीसपत्र , पानड़ी , लौंग , बड़ी इलायची , गोला , छुहारे नागर मौथा , इन्द्र जौ , कपूर कचरी , आँवला ,गिलोय, जायफल, ब्राह्मी।

Recommended Articles

Leave A Comment