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: 18 दिन के युद्ध ने,
द्रोपदी की उम्र को
80 वर्ष जैसा कर दिया था…

शारीरिक रूप से भी
और मानसिक रूप से भी

शहर में चारों तरफ़
विधवाओं का बाहुल्य था..

पुरुष इक्का-दुक्का ही दिखाई पड़ता था

अनाथ बच्चे घूमते दिखाई पड़ते थे और उन सबकी वह महारानी
द्रौपदी हस्तिनापुर के महल में
निश्चेष्ट बैठी हुई शून्य को निहार रही थी ।

तभी,

श्रीकृष्ण
कक्ष में दाखिल होते हैं

द्रौपदी
कृष्ण को देखते ही
दौड़कर उनसे लिपट जाती है …
कृष्ण उसके सिर को सहलाते रहते हैं और रोने देते हैं

थोड़ी देर में,
उसे खुद से अलग करके
समीप के पलंग पर बैठा देते हैं ।

द्रोपदी : यह क्या हो गया सखा ??

ऐसा तो मैंने नहीं सोचा था ।

कृष्ण : नियति बहुत क्रूर होती है पांचाली..
वह हमारे सोचने के अनुरूप नहीं चलती !

वह हमारे कर्मों को
परिणामों में बदल देती है..

तुम प्रतिशोध लेना चाहती थी और, तुम सफल हुई, द्रौपदी !

तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हुआ… सिर्फ दुर्योधन और दुशासन ही नहीं,
सारे कौरव समाप्त हो गए

तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए !

द्रोपदी: सखा,
तुम मेरे घावों को सहलाने आए हो या उन पर नमक छिड़कने के लिए ?

कृष्ण : नहीं द्रौपदी,
मैं तो तुम्हें वास्तविकता से अवगत कराने के लिए आया हूँ
हमारे कर्मों के परिणाम को
हम, दूर तक नहीं देख पाते हैं और जब वे समक्ष होते हैं..
तो, हमारे हाथ में कुछ नहीं रहता।

द्रोपदी : तो क्या,
इस युद्ध के लिए पूर्ण रूप से मैं ही उत्तरदायी हूँ कृष्ण ?

कृष्ण : नहीं, द्रौपदी
तुम स्वयं को इतना महत्वपूर्ण मत समझो…

लेकिन,

तुम अपने कर्मों में थोड़ी सी दूरदर्शिता रखती तो, स्वयं इतना कष्ट कभी नहीं पाती।

द्रोपदी : मैं क्या कर सकती थी कृष्ण ?

तुम बहुत कुछ कर सकती थी

कृष्ण:- जब तुम्हारा स्वयंवर हुआ…
तब तुम कर्ण को अपमानित नहीं करती और उसे प्रतियोगिता में भाग लेने का एक अवसर देती
तो, शायद परिणाम
कुछ और होते !

इसके बाद जब कुंती ने तुम्हें पाँच पतियों की पत्नी बनने का आदेश दिया…
तब तुम उसे स्वीकार नहीं करती तो भी, परिणाम कुछ और होते ।

और

उसके बाद
तुमने अपने महल में दुर्योधन को अपमानित किया…
कि अंधों के पुत्र अंधे होते हैं।

वह नहीं कहती तो, तुम्हारा चीर हरण नहीं होता…

तब भी शायद, परिस्थितियाँ कुछ और होती ।

हमारे शब्द भी
हमारे कर्म होते हैं द्रोपदी…

और, हमें

अपने हर शब्द को बोलने से पहले तोलना बहुत ज़रूरी होता है…
अन्यथा,
उसके दुष्परिणाम सिर्फ़ स्वयं को ही नहीं… अपने पूरे परिवेश को दुखी करते रहते हैं ।

संसार में केवल मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है…
जिसका
“ज़हर”
उसके
“दाँतों” में नहीं,
“शब्दों ” में है…

इसलिए शब्दों का प्रयोग सोच समझकर करें।

ऐसे शब्द का प्रयोग कीजिये जिससे,
किसी की भावना को ठेस ना पहुँचे।
: स्त्री को क्यों नहीं समझ पाता है पुरुष?

हजारों वर्ष पहले, जब वेदों का बोलबाला था, भारतीय समाज में स्त्री-पुरुष के बीच भेदभाव नहीं बरता जाता था। इसके फलवरूप समाज के सभी कार्यकलापों में दोनों की समान भागीदारी होती थी। पुराणों के अनुसार जनक की राजसभा में महापंडित याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी नामक विदुषी के बीच अध्यात्म-विषय पर कई दिनों तक चले शास्त्रार्थ का उल्लेख है। याज्ञवल्क्य द्वारा उठाए गए दार्शनिक प्रश्नों का उत्तर देने में विदुषी मैत्रेयी समर्थ हुईं।

लेकिन जीवन के कुछ बारीक मसलों को लेकर मैत्रेयी द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देने में असमर्थ होकर याज्ञवल्क्य डगमगाए। अंत में उन्हें हार माननी पड़ी। स्पष्ट है कि नारियों की महिमा उस युग में उन्नत दशा में थी।

एक पुरुष की पहुंच के बाहर की बारीक संवेदनाओं का अनुभव एक स्त्री कर सकती है। पुरुष अपनी बुद्धि से संचालित है जबकि नारी अपनी आंतरिक संवेदनाओं से संचालित होती है।

बुद्धि बाहर से संचित की जाती है। बुद्धि जिस स्तर पर प्राप्त होती है, वह उसी स्तर पर काम करती है। लेकिन आंतरिक संवेदना बाहरी मैल से अछूती रहने के कारण पवित्र है, यही नहीं, बुद्धि की तुलना में श्रेष्ठ भी है। इसलिए नारी संवेदना के स्तर पर पुरुष की अपेक्षा उन्नत होती है।

फिर नारी जिस सम्मान की अधिकारिणी है, उसे वह आदर-सम्मान देने से समाज क्यों मुकरता है?

प्रत्येक जमाने में पुरुष शरीर के गठन की दृष्टि से नारी की तुलना में अधिक बलवान रहा है। किसी देश में बाहरी शक्तियों का आक्रमण होने पर विदेशी सेना वहां की नारियों को ही अपना पहला लक्ष्य बनाती है। ऐसे मौकों पर शारीरिक दृष्टि से अबला नारियों की रक्षा करने का दायित्व पुरुषों पर होता था। इससे फायदा उठाकर नारी को घर की चारदीवारी के अंदर बंद रखने की प्रथा तभी से शुरू हुई।

पुरुष को प्रमुखता देते हुए समाज के नियम बनाए गए। अधिकार का स्वाद चखने के बाद पुरुष-वर्ग नारी को बंद रखने की इस प्रथा को बदलने के लिए राजी नहीं हुआ। पुरुष-प्रधान समाज ने ऐसे विधि-विधान बनाए जिनके तहत नारी को उसके जन्म से पहले ही उसके न्यायोचित अधिकारों से वंचित रखा गया। भारत में ही नहीं, विश्व के प्राय: सभी देशों में पुरुषों को प्राथमिकता देने के जो कुचक्र रचे गए नारी इनकी शिकार बनी। कुछ एशियाई देशों में ऐसे कानून बनाए गए थे जिनके मुताबिक पुरुष का वध किये जाने पर अपराधी को मृत्युदंड देने का विधान था, लेकिन नारी की हत्या करने पर वह गुनाह नहीं माना जाता था।

स्त्री के खिलाफ पुरुषों ने नियम क्यों बनाए?
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इसलिए नहीं कि उसने स्त्री को अपनी तुलना में निम्न स्तर का समझ रखा था, बल्कि स्त्री उसकी तुलना में श्रेष्ठ है इस सत्य को समझने से उत्पन्न डर के कारण ही उसने ऐसे नियमों का निर्माण किया।

किसी बुद्धिमान पुरुष को और कोई नौकरी नहीं मिली, एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का काम ही मिला। एक दिन उसने कक्षा में बालक-बालिकाओं से पूछा, ‘पता है, पृथ्वी का वजन कितना है?’ गृह-कार्य के रूप में यह प्रश्न पूछा गया था।

बच्चों ने माता-पिता से पूछ कर उन्हें तंग किया। कुछ अभिभावकों को उत्तर मालूम नहीं था। शेष माता-पिता ने अपने-अपने अंदाज से मोटामोटी कोई संख्या बताई।

अगले दिन कक्षा में छात्रों ने प्रश्न के अलग-अलग उत्तर दिए‘ सारे ही उत्तर गलत हैं’ कहते हुए उस बुद्धिमान शिक्षक ने ब्लैक बोर्ड पर कई अंकों वाली एक संख्या लिखकर बताया, ‘यही सही जवाब है।’

‘सर, मेरा एक डाउट है…’ एक बच्ची उठ खड़ी हुई। ‘आपने जो संख्या बताई है, वह गणना पृथ्वी पर रहने वाले लोगों को मिलाकर है या उन्हें छोडक़र?’

बुद्धिमान शिक्षक निरुत्तर था, उसने सिर झुका लिया।

स्त्री को समझने में नाकाम रहा है पुरुष

चाहे कितना बड़ा अक्लमंद हो, ऐसी कुछ बातें पृथ्वी पर मौजूद हैं जिन्हें समझना संभव नहीं है, ऐसी बातों में प्रमुख है, नारी।

विश्व के कई विषयों का वैज्ञानिक विश्लेषण करके समझने में पुरुष समर्थ था। लेकिन उसके लिए पास में ही रहने वाली नारी की बारीक संवेदनाओं को समझना संभव नहीं हुआ। जो चीज अबूझ होती है, उसके प्रति डर पैदा होना स्वाभाविक है। इसी भय के कारण पुरुष ने नारी को अपनी नजर ऊंची करने का भी अधिकार नहीं दिया, उसे दूसरे दर्जे का बनाए रखा। इसमें पुरुष का शारीरिक बल काम आया। फिर अपने बुद्धि-बल से उसने ऐसा कुचक्र रचा जिसके प्रभाव में पडक़र नारी को सदा पुरुष की छत्रछाया में रहना पड़ा।

नारियों ने साहस के साथ उठकर इस स्थिति को रोकने का कोई प्रयत्न किया? नहीं!

सक्रिय जीवन जीना बंद करके, पुरुष के साये में सुविधाजनक जीवन जीने के लिए वे भी तैयार हो गईं। किंतु यही सत्य है कि स्त्री के सामने पुरुष या पुरुष के सामने स्त्री निम्न नहीं है। स्त्री और पुरुष को अलग करके देखने की कोई जरूरत नहीं है। दोनों के बिना परिवार, समाज, दुनिया कुछ भी पूर्ण नहीं होगा।
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रोजगार प्राप्ति का बेहद शक्तिशाली उपाय

हर व्यक्ति की अपने जीवन में कामना होती है की उसे अच्छी नौकरी मिले या उसका रोज़गार उसका कारोबार श्रेष्ठ हो । कभी-कभी पर्याप्त योग्यता होने, सब कुछ ठीक होने , लिखित परीक्षा, इंटरव्यू अच्छा होने के बाद भी कुछ ऐसी अड़चने आ जाती हैं, जिससे नौकरी मिलते-मिलते रह जाती है। या अच्छी नौकरी नहीं मिलती है । ज्योतिषियों के अनुसार ये सब कुण्डली के ग्रहों के कारण होता है, जिससे आपके बनते काम बनते बनते बिगड़ जाते है , आपकी नौकरी , रोज़गार में कोई ना कोई दिक्कते आ जाती है । लेकिन कुछ उपायों को पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ चुपचाप करके हम अपनी नौकरी की राह में आने वाली सभी अड़चनों को निश्चय ही दूर कर सकते

तीन सौ ग्राम काले उड़द का आटा लेकर, बिना छाने इसको गूंथकर खमीर उठा लें। तत्पश्चात् इसकी एक-एक रोटी तैयार करके मामूली-सी आंच पर सेंक लें, ताकि इसकी आसानी से गोलियां बन सकें। इस रोटी में से एक चौथाई भाग तोड़कर काले रंग के कपड़े में बांध लें, शेष पौन रोटी की 101 छोटी-छोटी गोलियां बनाकर, किसी ऐसे जलाशय के पास जायें, जिसमें मछलियां हों। जलाशय में एक-एक कर सारी गोलियां मछलियों को खिला दें। अब कपड़े में बंधी रोटी को मछलियों को दिखाते हुए एक साथ पानी में प्रवाहित कर दें। इस प्रकार 40 दिनों तक नियमित रूप से यह क्रिया करें। इससे बेरोजगारी अवश्य दूर होगी तथा कोई नौकरी, व्यापार अथवा उदर-पूर्ति के लिए कुछ न कुछ व्यवस्था जरूर हो जायेगी

हमारा प्रयास सबका कल्याण

जय श्री कृष्णा
: आपको पत्ता गोभी कैसे पसंद है ? सलाद में , सूप में या सब्जी में ? आइये जानते है इसके बारे में ……

  • पत्तागोभी को कही बंद गोभी कहा जाता है, कहीं करमल्ला कहा जाता है। इसकी प्रकृति ठंडी होती है.
  • पत्‍ता गोभी में दूध के बराबर कैल्शियम पाया जाता है जो हड्डियों को मजबूत करता है। गोभी का बीच उत्‍तेजक, पाचन शक्ति को बढ़ाने वाला और पेट के कीड़ों को नष्‍ट करने वाला है।
  • पेट दर्द के लिए गोभी बहुत फायदेमंद है। पेट दर्द होने पर गोभी की जड़, पत्‍ती, तना फल और फूल को चावल के पानी में पकाकर सुबह-शाम लेने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।
  • गोभी खाने से खून साफ होता है।
  • गोभी का रस पीने से खून की खराबी दूर होती है और खून साफ होता है।
  • हड्डियों का दर्द दूर करने के लिए गोभी के रस को गाजर के रस में बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से हड्डियों का दर्द दूर होता है।
  • पीलिया के लिए भी गोभी का रस बहुत फायदेमंद है। गाजर और गोभी का रस मिलाकर पीने से पीलिया ठीक होता है।
  • बवासीर होने पर जंगली गोभी का रस निकालकर, उसमें काली मिर्च और मिश्री मिलाकर पीने से बवासीर के मस्‍सों से खून निकलना बंद हो जाता है।
  • खून की उल्‍टी होने पर गोभी का सेवन करने से फायदा होता है। गोभी की सब्‍जी या कच्‍ची गोभी खाने से खून की उल्टियां होना बंद हो जाती हैं।
  • पेशाब में जलन होने पर गोभी का काढ़ा बनाकर रोगी को पिलाइए। इससे तुरंत आराम मिलता है।
  • गले में सूजन होने पर गोभी के पत्‍तों का रस निकालकर दो चम्‍मच पानी मिलाकर खाने से फायदा होता है।
  • पायरिया : पत्तागोभी के कच्चे पत्ते 50 ग्राम नित्य खाने से पायरिया व दाँतों के अन्य रोगों में लाभ होता है।
  • पत्तागोभी में सेल्युलोस नामक तत्व मौजूद होता है, जो हमें स्वस्थ रखने में सहायक है। यह तत्व शरीर से कोलेस्ट्रोल की मात्रा को दूर करता है। इसे मधुमेह के रोगियों के लिए विशेष लाभकारी माना जाता है। यह खांसी, पित्त व रक्त विकार में भी लाभकारी है।
    बाल गिरना : पत्तागोभी के 50 ग्राम पत्ते प्रतिदिन खाने से गिरे हुए बाल उग आते हैं।
  • घाव : इसका रस पीने से घाव ठीक होते हैं। इसके रस का आधा गिलास 5 बार पानी मिलाकर पीना चाहिए। घाव पर इसके रस की पट्टी बाँधें।
  • बंदगोभी में ऐसे तत्‍व होते है जो कैंसर की रोकथाम करने और उसे होने से बचाने में मदद करता है। इसमें डिनडॉलीमेथेन ( डीआईएम ), सिनीग्रिन, ल्‍यूपेल, सल्‍फोरेन और इंडोल – 3 – कार्बीनॉल ( 13 सी) जैसे लाभदायक तत्‍व होते है। ये सभी कैंसर से बचाव करने में सहायक होते है।सुबह खाली पेट पत्तागोभी का कम से कम आधा कप रस रोजाना पीने से आरम्भिक अवस्था में कैंसर, बड़ी आंत का प्रवाह (बहना) ठीक हो जाता है।
  • पत्‍ता गोभी, शरीर में इम्‍यूनिटी सिस्‍टम को स्‍ट्रांग बनाती है। इसमें विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है जिससे बॉडी का इम्‍यूनिटी सिस्‍टम काफी मजबूत हो जाता है।
  • यह अमीनो एसिड में सबसे समृद्ध होता है जो सूजन आदि को कम करता है।
  • पत्‍ता गोभी के सेवन से मोतियाबिंद का खतरा कम होता है। इसके लगातार सेवन से बॉडी में बीटा केराटिन बढ़ जाता है जिससे आंखे सही रहती है।
  • हाल ही में हुए शोध से पता चला है कि पत्‍ता गोभी के सेवन से अल्‍माइजर जैसी समस्‍याएं दूर हो जाती है। इसमें विटामिन के भरपूर मात्रा में पाया जाता है जिससे अल्‍माइजर की समस्‍या दूर हो जाती है।
  • पत्‍ता गोभी, पेप्टिक अल्‍सर के इलाज में सहायक होती है। इस रोग से पीडित व्‍यक्ति अगर वंदगोभी का नियमित सेवन करें तो उसे आराम मिल सकता है क्‍योंकि इसमें ग्‍लूटामाइन होता है जो अल्‍सर विरोधी होता है।
  • इसके सेवन से वजन को भी कम किया जा सकता है। एक कप पकाई वंदगोभी में सिर्फ 33 कैलोरी होती है जो वजन नहीं बढ़ने देती। वंदगोभी का सूप शरीर को ऊर्जा देता है लेकिन वसा की मात्रा का घटा देता है।
  • पत्‍ता गोभी में काफी ज्‍यादा मात्रा में एंटी – ऑक्‍सीडेंट होते है जो स्‍कीन की सही देखभाल करने के लिए पर्याप्‍त होते है।
  • पत्‍ता गोभी में लैक्टिक एसिड काफी मात्रा में होती है जो मांसपेशियों के चोटिल होने और उसे रिकवर करने में काफी सहायक होती है।
  • इसमे बहुत ज्‍यादा रेशा होता है जिसकी वजह से पाचन क्रिया अच्‍छे से होती है और पेट दरुस्‍त रहता है। इस वजह से कब्‍ज की समस्‍या कभी नहीं हो पाती।
  • नींद की कमी, पथरी और मूत्र की रुकावट में पत्तागोभी लाभदायक है, इसकी सब्जी घी से छौंक लगाकर बनानी चाहिए।
  • अनिद्रा में पत्तागोभी की सब्जी तथा रात को सोने से एक घंटा पहले 5 चम्मच रस पीने से खूब नींद आती है।
  • सल्फर, क्लोरीन तथा आयोडीन साथ में मिल कर आँतों और आमाशय की म्यूकस परत को साफ करने में मदद करते हैं। इसके लिए कच्चे पत्तागोभी को नमक लगा कर खाना चाहिए।
  • छाले, घाव, फोड़े-फुंसी तथा चकत्तों जैसी परेशानियों में पत्तागोभी के पत्तों की पट्टी लगाने से बहुत आराम मिलता है। इस काम के लिए पत्तागोभी की बाहरी मोटी पत्तियाँ बेहतर रहती हैं। पूरी साबुत पत्तियों को ही पट्टी की तरह काम में लेना चाहिए। इसकी पट्टी बनाने के लिए पत्तियों को गरम पानी से बहुत अच्छी तरह धोकर तौलिये से अच्छी तरह सुखा कर बेलन से बेलते हुए नरम कर लेना चाहिए। इसकी मोटी, उभरी हुई नसों को निकाल कर बेलने से यह नरम हो जाएगा। फिर इसे गरम करके घाव पर समान रूप से लगाना चाहिए। इन पत्तियों को सूती कपड़े में या मुलायम ऊनी कपड़े में डाल कर काम में ले सकते हैं। इससे पूरे दिन भर के लिए या रात भर सिकाई कर सकते हैं। जले हुए पत्तागोभी की राख भी त्वचा की बहुत सी बीमारियों में आराम पहुँचाता है।
  • पत्तागोभी का रस पेट में गैस कर सकता है जिसके कारण बदहजमी हो सकती है। इसलिए सलाह दी जाती है कि पत्तागोभी के रस में थोड़ी सी गाजर का रस मिला कर पीना चाहिए। इससे पेट में गैस या अन्य समस्याएँ नहीं होंगी। पका हुआ पत्तागोभी या पत्तागोभी की सब्जी खाने से भी यदि तकलीफ हो तो इसमे थोड़ी हींग मिला कर पकाएँ। कच्चा खाने से यह जल्दी हजम होती है।
  • जर्मन पद्धति के अनुसार पत्तागोभी को काटकर उसमें नमक लगाकर उसे खट्टा होने के लिए रख दिया जाता है। इस विधि से तैयार पत्तागोभी को ‘सोर क्राउट’ के नाम से जाना जाता है। ‘सोर क्राउट’ में प्रचुर मात्रा में विटामिन पाए जाते है। हृदय रोगों को दूर करने के लिए सोर क्राउट का प्रयोग काफी लाभदायक है।
    : गोखरू पुरुषो और महिलाओ के रोगो के लिए रामबाण औषिधि।

गोखरू भारत में सभी प्रदेशों में पाये जाने वाला पौधा है। यह जमीन पर फैलने वाला पौधा होता है, जो हर जगह पाया जाता है। वर्षा के आरम्भ में ही यह पौधा जंगलों, खेतों के आसपास के उग आता है। गोखरू छोटा और बड़ा दो प्रकार का होता है लेकिन इसके गुणों में समानता होती है। गोखरू की शाखाएं लगभग 90 सेंटीमीटर लंबी होती है जिसमें पत्ते चने के समान होते हैं। हर पत्ती 4 से 7 जोड़ों में पाए जाते हैं। इसकी टहनियों पर रोयें और जगह-जगह पर गाठें होती हैं।

गोखरू के फूल पीले रंग के होते है जो सर्दी के मौसम में उगते हैं। इसके कांटे छूरे की तरह तेज होते हैं इसलिए इसे गौक्षुर कहा जाता है। इसके बीजों से सुगंधित तेल निकलता है। इसकी जड़ 10 से 15 सेंटीमीटर लम्बी होती है तथा यह मुलायम, रेशेदार, भूरे रंग की ईख की जड़ जैसी होती है। उत्तर भारत मे, हरियाणा, राजस्थान मे यह बहुत मिलता है। गोखरू का सारा पौधा ही औषधीय क्षमता रखता है । फल व जड़ अलग से भी प्रयुक्त होते हैं।

गोखरू की प्रकृति गर्म होती है। यह शरीर में ताकत देने वाला, नाभि के नीचे के भाग की सूजन को कम करने वाला, वीर्य की वृद्धि करने वाला, वल्य रसायन, भूख को तेज करने वाला होता है, कमजोर पुरुषों व महिलाओं के लिए एक टॉनिक भी है। यह स्वादिष्ट होता है। यह पेशाब से सम्बंधित परेशानी तथा पेशाब करने पर होने वाले जलन को दूर करने वाला, पथरी को नष्ट करने वाला, जलन को शान्त करने वाला, प्रमेह (वीर्य विकार), श्वांस, खांसी, हृदय रोग, बवासीर तथा त्रिदोष (वात, कफ और पित्त) को नष्ट करने वाला होता है। तथा यह मासिकधर्म को चालू करता है। यह दशमूलारिष्ट में प्रयुक्त होने वाला एक द्रव्य भी है । यह नपुंसकता तथा निवारण तथा बार-बार होने वाले गर्भपात में भी सफलता से प्रयुक्त होता है ।

गोखरू सभी प्रकार के गुर्दें के रोगों को ठीक करने में प्रभावशाली औषधि है। यह औषधि मूत्र की मात्रा को बढ़ाकर पथरी को कुछ ही हफ्तों में टुकड़े-टुकड़े करके बाहर निकाल देती है।

गोखरू का फल बड़ा और छोटा दो प्रकार का होता है। । दोनों के फूल पीले और सफेद रंग के होते हैं। गोखरू के पत्ते भी सफेद होते हैं। गोखरू के फल के चारों कोनों पर एक-एक कांटा होता है। छोटे गोखरू का पेड़ छत्तेदार होता है। गोखरू के पत्ते चने के पत्तों के समान होते हैं। इसके फल में 6 कांटे पाये जाते हैं। कहीं कहीं लोग इसके बीजों का आटा बनाकर खाते हैं।

वैद्यक में इन्हें शीतल, मधुर, पुष्ट, रसायन, दीपन और काश, वायु, अर्श और ब्रणनाशक कहा है।

यह शीतवीर्य, मुत्रविरेचक, बस्तिशोधक, अग्निदीपक, वृष्य, तथा पुष्टिकारक होता है। विभिन्न विकारो मे वैद्यवर्ग द्वारा इसको प्रयोग किया जाता है। मुत्रकृच्छ, सोजाक, अश्मरी, बस्तिशोथ, वृक्कविकार, प्रमेह, नपुंसकता, ओवेरियन रोग, वीर्य क्षीणता मे इसका प्रयोग किया जाता है।

गर्भाशय को शुद्ध करता है तथा वन्ध्यत्व को मिटाता है । इस प्रकार यह प्रजनन अंगों के लिए एक प्रकार की शोधक, बलवर्धक औषधि है ।

यह ब्लैडर व गुर्दे की पथरी का नाश करता है तथा मूत्रावरोध को दूर करता है । मूत्र मार्ग से बड़ी से बड़ी पथरी को तोड़कर निकाल बाहर करता है ।

इसका प्रयोग कैसे करे ।

इसके फल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम, दिन में 2 या 3 बार । पंचांग क्क्वाथ- 50 से 100 मिली लीटर ।

पथरी रोग में गोक्षुर के फलों का चूर्ण शहद के साथ 3 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम दिया जाता है । मूत्र के साथ यदि रक्त स्राव भी हो तो गोक्षुर चूर्ण को दूध में उबाल कर मिश्री के साथ पिलाते हैं ।

सुजाक रोग (गनोरिया) में गोक्षुर को घंटे पानी में भिगोकर और उसे अच्छी तरह छानकर दिन में चार बार 5-5 ग्राम की मात्रा में देते हैं । किसी भी कारण से यदि पेशाब की जलन हो तो गोखरु के फल और पत्तों का रस 20 से 50 मिलीलीटर दिन में दो-तीन बार पिलाने से वह तुरंत मिटती है । प्रमेह शुक्रमेह में गोखरू चूर्ण को 5 से 6 ग्राम मिश्री के साथ दो बार देते हैं । तुरंत लाभ मिलता है ।

मूत्र रोग संबंधी सभी शिकायतों यथा प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब का रुक-रुक कर आना, पेशाब का अपने आप निकलना (युरीनरी इनकाण्टीनेन्स), नपुंसकता, मूत्राशय की पुरानी सूजन आदि में गोखरू 10 ग्राम, जल 150 ग्राम, दूध 250 ग्राम को पकाकर आधा रह जाने पर छानकर नित्य पिलाने से मूत्र मार्ग की सारी विकृतियाँ दूर होती हैं । प्रदर में, अतिरिक्त स्राव में, स्री जनन अंगों के सामान्य संक्रमणों में गोखरू एक प्रति संक्रामक का काम करता है । स्री रोगों के लिए 15 ग्राम चूर्ण नित्य घी व मिश्री के साथ देते हैं । गोक्षरू मूत्र पिण्ड को उत्तेजना देता है, वेदना नाशक और बलदायक है । इसका सीधा असर मूत्रेन्द्रिय की श्लेष्म त्वचा पर पड़ता है ।

गोक्षुर चूर्ण प्रोस्टेट बढ़ने से मूत्र मार्ग में आए अवरोध को मिटाता है, उस स्थान विशेष में रक्त संचय को रोकती तथा यूरेथ्रा के द्वारों को उत्तेजित कर मूत्र को निकाल बाहर करता है । बहुसंख्य व्यक्तियों में गोक्षुर के प्रयोग के बाद ऑपरेशन की आवश्यकता नहीं रह जाती । इसे योग के रूप न देकर अकेले अनुपान भेद के माध्यम से ही दिया जाए, यही उचित है, ऐसा वैज्ञानिकों का व सारे अध्ययनों का अभिमत है ।

इसका सेवन आप दवा के रूप में या सब्जी के रूप में भी कर सकते हैं। गोखरू के फल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 या 3 बार सेवन कर सकते हैं। इसका काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर तक सेवन कर सकते हैं। गोखरू की सब्जी तबियत को नर्म करती है, शरीर में खून की वृद्धि करती है और उसके दोषों को दूर करती है। यह पेशाब की रुकावट को दूर करती है तथा मासिकधर्म को शुरू करती है। सूजाक और पेशाब की जलन को दूर करने के लिए यह लाभकारी है।

आचार्य चरक ने गोक्षुर को मूत्र विरेचन द्रव्यों में प्रधान मानते हुए लिखा है-गोक्षुर को मूत्रकृच्छानिलहराणाम् अर्थात् यह मूत्र कृच्छ (डिसयूरिया) विसर्जन के समय होने वाले कष्ट में उपयोगी एक महत्त्वपूर्ण औषधि है । आचार्य सुश्रुत ने लघुपंचकमूल, कण्टक पंचमूल गणों में गोखरू का उल्लेख किया है । अश्मरी भेदन (पथरी को तोड़ना, मूत्र मार्ग से ही बाहर निकाल देना) हेतु भी इसे उपयोगी माना है ।

श्री भाव मिश्र गोक्षुर को मूत्राशय का शोधन करने वाला, अश्मरी भेदक बताते हैं व लिखते हैं कि पेट के समस्त रोगों की गोखरू सर्वश्रेष्ठ दवा है । वनौषधि चन्द्रोदय के विद्वान् लेखक के अनुसार गोक्षरू मूत्र पिण्ड को उत्तेजना देता है, वेदना नाशक और बलदायक है ।

इसका सीधा असर मूत्रेन्द्रिय की श्लेष्म त्वचा पर पड़ता है । सुजाक रोग और वस्तिशोथ (पेल्विक इन्फ्लेमेशन) में भी गोखरू तुरंत अपना प्रभाव दिखाता है ।

श्री नादकर्णी अपने ग्रंथ मटेरिया मेडिका में लिखते हैं-गोक्षुर का सारा पौधा ही मूत्रल शोथ निवारक है । इसके मूत्रल गुण का कारण इसमें प्रचुर मात्रा में विद्यमान नाइट्रेट और उत्त्पत तेल है । इसके काण्ड में कषाय कारक घटक होते हैं और ये मूत्र संस्थान की श्लेष्मा झिल्ली पर तीव्र प्रभाव डालते हैं ।

होम्योपैथी में श्री विलियम बोरिक का मत प्रामाणिक माना जाता है । विशेषकर वनौषधियों के विषय में वे लिखते हैं कि मूत्र मार्ग में अवरोध, वीर्यपात, प्रोस्टेट ग्रंथि की सूजन व अन्य यौन रोगों में गोखरू का टिंक्चर 10 से 20 बूंद दिन में तीन बार देने से तुरंत लाभ होता है ।

सावधानी :

गोखरू का अधिक मात्रा में सेवन ठण्डे स्वभाव के व्यक्तियों के लिए हानिकारक हो सकता है। गोखरू का अधिक मात्रा का सेवन करने से प्लीहा और गुर्दों को हानि पहुंचती है और कफजन्य रोगों की वृद्धि होती है।

गोखरू की सब्जी का अधिक मात्रा में सेवन प्लीहा (तिल्ली) के लिए हानिकारक हो सकता है। : ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की तेज और उष्ण किरणें पृथ्वी का सारा जलीय अंश और चिकनाई सोख लेती है, पृथ्वी का तापमान एकदम बढ़ जाता है और सब जगह ताप ही ताप अनुभव होता है, इस ऋतु में शरीर को स्वस्थ बलशाली और सुडौल बनाये रखने के लिये स्निगता (चिकनाई) और सौम्यता की आवश्यकता होती है, शरीर के रस, रक्त आदि धातु क्षीण होने लगते हैं, प्यास अधिक लगती है, बहुत अधिक जल पीने से आँतों में पाया जाने वाला अम्ल जल में घुल कर कम हो जाता है, इससे जीवाणुओं का संक्रमण शीघ्र होता है और वमन (उल्टी), अतिसार (दस्त) तथा पेचिश आदि रोगों का आक्रमण होने की सम्भावना रहती है।

इस ऋतु में हल्का, मधुर रस युक्त शीतल और तरल पदार्थों का सेवन अधिक मात्र में करना चाहिये, जल को उबाल कर ठण्डा करके पीना चाहिये, चीनी, घी व मठ्ठे का सेवन करना चाहिये, पुराने जौ, सब्जियों में चौलाई, करेला, बथुवा, परवल, पके टमाटर, छिलके सहित आलू, कच्चे केले की सब्जी, प्याज, सफ़ेद पेठा, पुदीना, नींबू आदि,

दालों में छिलका रहित मूँग, अरहर और मसूर की दाल, फलों में तरबूज, मीठा खरबूजा, मीठा आम संतरा और अँगूर, हरी पतली ककड़ी, शहतूत, अनार, आँवले का मुरब्बा

सूखे मेवों में किशमिश, मुनक्का, चिरौंजी, बादाम (भिगोए हुये) आदि पथ्य होते हैं।

तरल पदार्थों में नीबूं की मीठी शिकंजी, कच्चे आम का पना, शरबत, मीठे दही की लस्सी, बेल का शरबत, मीठा पतला सत्तू, ठण्डाई, चन्दन, खसखस, गुलाब का शरबत, गन्ने, सेब और मीठे सन्तरे का रस, नारियल का पानी, मिश्री व घी मिला दूध, रायता जैसे पदार्थ लाभकारी हैं।

इस ऋतु में भोजन कम मात्रा में और खूब चबा-चबा कर खाना बहुत जरुरी है, ठण्डा होने के बाद फिर गर्म करके खाना, फ्रिज में देर तक रखे खाद्य पदार्थ का सेवन करना हानिकारक है, फ्रिज की अपेक्षा घड़े या सुराही में ठण्डा किया हुआ जल पीना चाहिये।

ग्रीष्म ऋतु में बाग़-बगीचों में भ्रमण करना स्वास्थवर्धक होता है, रात में ऐसे स्थानों में सोना चाहिये जहाँ वातावरण में ताज़ी हवा और चन्द्रमा की किरणों से ठण्डा हो, शरीर में चन्दन का लेप करना चाहिये और मोतियों के आभूषण पहनने चाहिये और सूती या सफ़ेद या हल्के रंग के वस्त्र पहनने चाहिये,

धूप में नहीं घूमना चाहिये, यदि जाना ही पड़े तो पैरों में अच्छे जूते पहन कर, सर ढक कर जाना चाहिये, घर से निकलते समय एक गिलास ठण्डा पानी अवश्य पी लेना चाहिये, एक साबूत प्याज साथ में रख लेना चाहिये, इन साधनों से लू नहीं लगती।

ग्रीष्म ऋतु में सूर्य नमस्कार, योगिक जौगिंग, सूक्ष्म व्यायाम, नाभि प्रदेश में प्रभाव डालने वाले, यकृत, प्लीहा, छोटी आँत को उत्तेजित करने वाले, जठराग्नि को प्रदीप्त करने वाले आसन जैसे धनुरासन, मत्स्यासन, शलभासन, वज्रासन, मर्कटासन, शवासन और सिद्धासन आदि और शीतली, सीत्कारी, चन्द्रवेधी, अनुलोम-विलोम भ्रामरी आदि प्राणायाम अत्यन्त लाभदायक हैं
🍁दर्द निवारक घरेलू औषधि है जायफल

🍂देशी औषधियों में जायफल काफी प्रसिद्ध है। यह गोलाकार, अण्डाकार और चिकना पीत वर्ण का होता है। यह जितने बड़े आकार का होता है, उतना अच्छा माना जाता है। यह भारत के हर गांव, शहर के पंसारी की दुकान पर मिल जाता है। इसके छिलके को ही जावित्री कहते हैं। जायफल का तेल अत्यन्त उत्तेजक है।स्नेहा समूह

🍂बच्चों को ठण्ड लग जाए तो जायफल को मां के दूध में घिसकर देने से बच्चों की ठण्ड दूर हो जाएगी।
🍃सर्दी-जुकाम से होने वाले सिरदर्द में दूध में जायफल घिसकर माथे पर लेप करने से आराम मिलता है।
🌼जायफल का चूर्ण सुबह-शाम लेने से पेटदर्द में लाभ होता है।
🌾जायफल को देशी घी में घिसकर पलकों पर लेप करने से अनिद्रा रोग दूर होता है।

🌷जायफल को पानी में घिसकर एक कप पानी में घोलकर पीने से जी मिचलाना बंद होता है।
💐ह्म्जायफल पानी में घिसकर आधा चम्मच लेप एक गिलास पानी में घोलकर गरारे और कुल्ले करने से मुंह के छाले मिटते हैं, बैठा हुआ गला खुल जाता है।
🍂एक ग्राम जायफल का चूर्ण, शहद में मिलाकर सुबह-शाम चाटने से पाचनशक्ति तेज होती है।
तुलसी की पत्ती के साथ जायफल के टुकड़े चबाने से हिचकी शीघ्र बंद हो जाती है।
💐बड़ी उम्र के स्त्री-पुरूषों को अतिसार होने पर एक ग्राम जायफल का चूर्ण आधा कप पानी के साथ सुबह-शाम लेने से लाभ होता है।
🥀एक गिलास दूध में आधा ग्राम जायफल का चूर्ण मिलाकर पीने से सर्दी-जुकाम तथा सर्दी से होने वाली बीमारियां दूर होती हैं।
🌸जायफल और आंवले का चूर्ण 1-1 ग्राम लोहे के बर्तन में 24 घण्टे भिगोकर बालों पर लेप करने से बाल काले और सुंदर होते हैं।
🌺सभी प्रकार के दर्द में जायफल को सरसों के तेल में मिलाकर मालिश से दर्द में आराम मिलता है।
🌼जायफल का चूर्ण लेने से कफ का शमन होता है।
: 🏵️नाभि का खिसकना

🌸- योग में नाड़ियों की संख्या बहत्तर हजार से ज्यादा बताई गई है और इसका मूल उदगम स्त्रोत नाभिस्थान है।स्नेहा समूह

  • 🌺आधुनिक जीवन-शैली इस प्रकार की है कि भाग-दौड़ के साथ तनाव-दबाव भरे प्रतिस्पर्धापूर्ण वातावरण में काम करते रहने से व्यक्ति का नाभि चक्र निरंतर क्षुब्ध बना रहता है। इससे नाभि अव्यवस्थित हो जाती है। इसके अलावा खेलने के दौरान उछलने-कूदने, असावधानी से दाएँ-बाएँ झुकने, दोनों हाथों से या एक हाथ से अचानक भारी बोझ उठाने, तेजी से सीढ़ियाँ चढ़ने-उतरने, सड़क पर चलते हुए गड्ढे, में अचानक पैर चले जाने या अन्य कारणों से किसी एक पैर पर भार पड़ने या झटका लगने से नाभि इधर-उधर हो जाती है। कुछ लोगों की नाभि अनेक कारणों से बचपन में ही विकारग्रस्त हो जाती है।

-🥀 प्रातः खाली पेट ज़मीन पर शवासन में लेतें . फिर अंगूठे के पोर से नाभि में स्पंदन को महसूस करे . अगर यह नाभि में ही है तो सही है . कई बार यह स्पंदन नाभि से थोड़ा हट कर महसूस होता है ; जिसे नाभि टलना या खिसकना कहते है .यह अनुभव है कि आमतौर पर पुरुषों की नाभि बाईं ओर तथा स्त्रियों की नाभि दाईं ओर टला करती है।

  • 🍂नाभि में लंबे समय तक अव्यवस्था चलती रहती है तो उदर विकार के अलावा व्यक्ति के दाँतों, नेत्रों व बालों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है। दाँतों की स्वाभाविक चमक कम होने लगती है। यदाकदा दाँतों में पीड़ा होने लगती है। नेत्रों की सुंदरता व ज्योति क्षीण होने लगती है। बाल असमय सफेद होने लगते हैं।आलस्य, थकान, चिड़चिड़ाहट, काम में मन न लगना, दुश्चिंता, निराशा, अकारण भय जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियों की उपस्थिति नाभि चक्र की अव्यवस्था की उपज होती है।स्नेहा समूह

-🌻 नाभि स्पंदन से रोग की पहचान का उल्लेख हमें हमारे आयुर्वेद व प्राकृतिक उपचार चिकित्सा पद्धतियों में मिल जाता है। परंतु इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि हम हमारी अमूल्य धरोहर को न संभाल सके। यदि नाभि का स्पंदन ऊपर की तरफ चल रहा है याने छाती की तरफ तो अग्न्याष्य खराब होने लगता है। इससे फेफड़ों पर गलत प्रभाव होता है। मधुमेह, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियाँ होने लगती हैं।

  • 🍂यदि यह स्पंदन नीचे की तरफ चली जाए तो पतले दस्त होने लगते हैं।

🍃- बाईं ओर खिसकने से शीतलता की कमी होने लगती है, सर्दी-जुकाम, खाँसी, कफजनित रोग जल्दी-जल्दी होते हैं।

  • 🌾दाहिनी तरफ हटने पर लीवर खराब होकर मंदाग्नि हो सकती है। पित्ताधिक्य, एसिड, जलन आदि की शिकायतें होने लगती हैं। इससे सूर्य चक्र निष्प्रभावी हो जाता है। गर्मी-सर्दी का संतुलन शरीर में बिगड़ जाता है। मंदाग्नि, अपच, अफरा जैसी बीमारियाँ होने लगती हैं।

-🌾 यदि नाभि पेट के ऊपर की तरफ आ जाए यानी रीढ़ के विपरीत, तो मोटापा हो जाता है। वायु विकार हो जाता है। यदि नाभि नीचे की ओर (रीढ़ की हड्डी की तरफ) चली जाए तो व्यक्ति कुछ भी खाए, वह दुबला होता चला जाएगा। नाभि के खिसकने से मानसिक एवंआध्यात्मिक क्षमताएँ कम हो जाती हैं।स्नेहा आयुर्वेद ग्रुप

🌸- नाभि को पाताल लोक भी कहा गया है। कहते हैं मृत्यु के बाद भी प्राण नाभि में छः मिनट तक रहते है।

💐- यदि नाभि ठीक मध्यमा स्तर के बीच में चलती है तब स्त्रियाँ गर्भधारण योग्य होती हैं। यदि यही मध्यमा स्तर से खिसककर नीचे रीढ़ की तरफ चली जाए तो ऐसी स्त्रियाँ गर्भ धारण नहीं कर सकतीं।

🍁- अकसर यदि नाभि बिलकुल नीचे रीढ़ की तरफ चली जाती है तो फैलोपियन ट्यूब नहीं खुलती और इस कारण स्त्रियाँ गर्भधारण नहीं कर सकतीं। कई वंध्या स्त्रियों पर प्रयोग कर नाभि को मध्यमा स्तर पर लाया गया। इससे वंध्या स्त्रियाँ भी गर्भधारण योग्य हो गईं। कुछ मामलों में उपचार वर्षों से चल रहा था एवं चिकित्सकों ने यह कह दिया था कि यह गर्भधारण नहीं कर सकती किन्तु नाभि-चिकित्सा के जानकारों ने इलाज किया।
🥀स्नेहा आयुर्वेद ग्रुप
-🌼 दोनों हथेलियों को आपस में मिलाएं। हथेली के बीच की रेखा मिलने के बाद जो उंगली छोटी हो यानी कि बाएं हाथ की उंगली छोटी है तो बायीं हाथ को कोहनी से ऊपर दाएं हाथ से पकड़ लें। इसके बाद बाएं हाथ की मुट्ठि को कसकर बंद कर हाथ को झटके से कंधे की ओर लाएं। ऐसा ८-१० बार करें। इससे नाभि सेट हो जाएगी।

-🍂 पादांगुष्ठनासास्पर्शासन उत्तानपादासन , नौकासन , कन्धरासन , चक्रासन , धनुरासन आदि योगासनों से नाभि सही जगह आ सकती है .

-🍃 15 से 25 मि .वायु मुद्रा करने से भी लाभ होता है .

-🥀 दो चम्मच पिसी सौंफ, ग़ुड में मिलाकर एक सप्ताह तक रोज खाने से नाभि का अपनी जगह से खिसकना रुक जाता है
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करो योग रहो निरोग

ॐ मित्रो फिटकरी के लाभ

फिटकरी लाल व सफेद दो प्रकार की होती है। दोनों के गुण लगभग समान ही होते हैं। सफेदव फिटकरी का ही अधिकतर प्रयोग किया जाता है। यह संकोचक अर्थात सिकुड़न पैदा करने वाली होती है। शरीर की त्वचा, नाक, आंखे, मूत्रांग और मलद्वार पर इसका स्थानिक (बाहृय) प्रयोग किया जाता है। रक्तस्राव (खून बहना), दस्त, कुकरखांसी तथा दमा में इसके आंतरिक सेवन से लाभ मिलता है।

दाढ़ी बनाने, बाल काटने के बाद फिटकरी रगडे़ या पानी में गीला कर दाढ़ी पर लगायें। इससे दाढ़ी की त्वचा सुन्दर और स्वस्थ होती है। जहां पर चींटिया व दीमक हो वहां पर सरसों का तेल लगाकर फिटकरी को डालने से चींटियां व दीमक वहां नहीं आती है।

फिटकरी के विभिन्न उपयोग :

संकोचन: फिटकरी सिकुड़न पैदा करने वाली होती है। त्वचा, नाक, आंख, मूत्रांग और मलदार पर इसका स्थानीय प्रयोग किया जाता है। रक्तस्राव (खून बहना), दस्त, कुकरखांसी तथा दमा में आंतरिक सेवन से लाभ मिलता है।
शराब का नशा: यदि किसी व्यक्ति ने शराब ज्यादा पी ली हो तो 6-ग्राम फिटकरी को पानी में घोलकर पिला दें। इससे शराब का नशा कम हो जाएगा।
बच्चों के रोग:
लगभग 800 मिलीग्राम भुनी हुई फिटकरी, 800 मिलीग्राम भुना हुआ सुहागा, 800 मिलीग्राम तूतिया, 800 मिलीग्राम कचिया और 10 ग्राम मिश्री को एक साथ अच्छी तरह से पीसकर शीशी में भरकर रख लें। इस चूर्ण को थोड़ी सा लेकर सलाई से आंखों में लगाने से आंख का माड़ा-फूली और आंखों से धुंधला दिखाई देना दूर हो जाता है।
लगभग 3-3 ग्राम फिटकरी, सेंधानमक और मिश्री को उबाले हुए पानी में मिलाकर शीशी में भर लें। इस रस को गर्मी की वजह से आई हुई आंख में डालने से बहुत लाभ होता है। यह रस आंखों की लाली भी दूर कर देता है।
भुनी हुई फिटकरी, पापरी कत्था, इलायची के दानों को एक साथ पीसकर मुंह के छालों में लगाने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।
लगभग 240 मिलीग्राम लाल फिटकरी को प्याज के रस में गर्म करके कान में डालने से कान का दर्द बंद हो जाता है।
गर्मी से आने वाली खांसी में कफ पककर सूख जाता है, कफ बाहर नहीं निकलता। ऐसी हालत में 120 मिलीग्राम भुनी हुई फिटकरी, 120 मिलीग्राम भुना सुहागा, शहद से चटायें या दूध के साथ पिलायें, इससे कफ ढीला होकर खांसी दूर हो जाएगी।
अगर कान में मवाद आये तो फिटकरी और माजूफल को पीसकर शहद में मिलाकर बत्ती बना लें। इस बत्ती को कान में रखने से आराम आता है।
1 ग्राम फिटकरी और 2 ग्राम कलसी (पृष्ठपर्णी) बिना पिसी हुई पोटली में बांध कर, पानी में भिगोकर आंखों पर लगाने से आंखों का लाल होना दूर होता है।
1 ग्राम लोध्र, 1 ग्राम भुनी हुई फिटकरी, आधा ग्राम अफीम और 4 ग्राम इमली की पत्तियों को लेकर और सबको पीसकर पोटली बना लें और पानी में भिगो-भिगो कर आंखों पर फेरे। इससे आंखों का दर्द कम हो जाता है। 2-2 ग्राम इमली की पत्तियां, हल्दी और फिटकरी को लेकर बारीक पीसकर, पोटली बनाकर और पानी में भिगोकर आंखों पर लगाने से और थोड़ा सा आंखों में डालने से आंखों का दर्द ठीक हो जाता है।
गले के रोग:
खाने का सोडा और खाने का नमक बराबर मात्रा में और थोड़ी सी पिसी हुई फिटकरी मिलाकर शीशी में रख लेते हैं। इस मिश्रण की एक चम्मच मात्रा एक गिलास गर्म पानी में घोल लेते हैं। इस पानी से सुबह उठते और रात को सोते समय अच्छी तरह गरारे करने चाहिए। इससे गले की खराश, टॉन्सिल की सूजन, मसूढ़ों की के रोग और गले में जमा कफ, गले की व्याधि व खांसी नहीं होती है।
लगभग 2-2 ग्राम भुनी हुई फिटकरी को 1-1 कप गर्म दूध से सुबह और शाम लें। इससे गले की गांठे दूर हो जाती हैं।
10 ग्राम फिटकरी को तवे पर भूनकर और पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से 2 ग्राम फिटकरी सुबह के समय चाय या गर्म पानी के साथ लें। यह प्रयोग दिन में चार बार करें। इससे गले की सूजन दूर हो जाती है।
गले के दर्द में भुनी हुई फिटकरी को ग्लिसरीन में मिलाकर गले में डालकर फुरैरी (कुल्ला) करें। इससे गले का दर्द ठीक हो जाता है।
जननांगों की खुजली: फिटकरी को गर्म पानी में मिलाकर जननांगों को धोने से जननांगों की खुजली में लाभ होता है।
टांसिल का बढ़ना:
टांसिल के बढ़ने पर गर्म पानी में चुटकी भर फिटकरी और इतनी ही मात्रा में नमक डालकर गरारे करें।
गर्म पानी में नमक या फिटकरी मिलाकर उस पानी को मुंह के अन्दर डालकर और सिर ऊंचा करके गरारे करने से गले की कुटकुटाहट, टान्सिल (गले में गांठ), कौआ बढ़ना, आदि रोगों में लाभ होता है।
5 ग्राम फिटकरी और 5 ग्राम नीलेथोथे को अच्छी तरह से पकाकर इसके अन्दर 25 ग्राम ग्लिसरीन मिलाकर रख लें। फिर साफ रूई और फुहेरी बनाकर इसे गले के अन्दर लगाने और लार टपकाने से टांसिलों की सूजन समाप्त हो जाती है।
घावों में रक्तस्राव (घाव से खून बहना):
घाव ताजा हो, चोट, खरोंच लगकर घाव हो गया हो, उससे रक्तस्राव हो। ऐसे घाव को फिटकरी के पानी से धोएं तथा घाव पर फिटकरी को पीसकर इसका पावडर छिड़कने, लगाने व बुरकने से रक्तस्राव (खून का बहना) बंद हो जाता है।
शरीर में कहीं से भी खून बह रहा हो तो एक ग्राम फिटकरी पीसकर 125 ग्राम दही और 250 मिलीलीटर पानी मिलाकर लस्सी बनाकर सेवन करना बहुत ही लाभकारी होता है।
खूनी बवासीर:
खूनी बवासीर हो और गुदा बाहर आती हो तो फिटकरी को पानी में घोलकर गुदा में पिचकारी देने से लाभ प्राप्त होता है। एक गिलास पानी में आधा चम्मच पिसी हुई फिटकरी मिलाकर प्रतिदिन गुदा को धोयें तथा साफ कपड़े को फिटकरी के पानी में भिगोकर गुदे पर रखें।
10 ग्राम फिटकरी को बारीक पीसकर इसके चूर्ण को 20 ग्राम मक्खन के साथ मिलाकर बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से सूखकर गिर जाते हैं। फिटकरी को पानी में घोलकर उस पानी से गुदा को धोने खूनी बवासीर में लाभ होता है।
भूनी फिटकरी और नीलाथोथा 10-10 ग्राम को पीसकर 80 ग्राम गाय के घी में मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम बवासीर के मस्सों पर लगायें। इससे मस्से सूखकर गिर जाते हैं।
सफेद फिटकरी 1 ग्राम की मात्रा में लेकर दही की मलाई के साथ 5 से 7 सप्ताह खाने से रक्तार्श (खूनी बवासीर) में खून का अधिक गिरना कम हो जाता है।
भूनी फिटकरी 10 ग्राम, रसोत 10 ग्राम और 20 ग्राम गेरू को पीस-कूट व छान लें। इसे लगभग 3-3 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से खूनी तथा बादी बवासीर में लाभ मिलता है।
घाव:
फिटकरी को तवे पर डालकर गर्म करके राख बना लें। इसे पीसकर घावों पर बुरकाएं इससे घाव ठीक हो जाएंगे। घावों को फिटकरी के घोल से धोएं व साफ करें।
2 ग्राम भुनी हुई फिटकरी, 2 ग्राम सिन्दूर और 4 ग्राम मुर्दासंग लेकर चूर्ण बना लें। 120 मिलीग्राम मोम और 30 ग्राम घी को मिलाकर धीमी आग पर पका लें। फिर नीचे उतारकर उसमें अन्य वस्तुओं का पिसा हुआ चूर्ण अच्छी तरह से मिला लें। इस तैयार मलहम को घाव पर लगाने से सभी प्रकार के घाव ठीक हो जाते हैं।
फिटकरी, सज्जीक्षार और मदार का दूध इन सबको मिलाकर और पीसकर लेप बना लें। इस लेप को घाव पर लगाने से जलन और दर्द दूर होता है।
भुनी हुई फिटकरी को छानकर घाव पर छिड़कने से घाव से सड़ा हुआ मांस बाहर निकल आता है और दर्द में आराम रहता है।
आग से जलने के कारण उत्पन्न हुए घाव को ठीक करने के लिए पुरानी फिटकरी को पीसकर दही में मिलाकर लेप करना चाहिए।
5 ग्राम फूली फिटकिरी का चूर्ण बनाकर देशी घी में मिला दें, फिर उसे घाव पर लगायें। इससे घाव ठीक हो जाता है।
किसी भी अंग से खून बहना: एक ग्राम फिटकरी पीसकर 125 ग्राम दही और 250 मिलीलीटर पानी मिलाकर लस्सी बनाकर पीने से कहीं से भी रक्तस्राव हो, बंद हो जाता है।
नकसीर (नाक से खून बहना):
गाय के कच्चे दूध में फिटकरी घोलकर सूंघने से नकसीर (नाक से खून आना) ठीक हो जाती है। यदि नकसीर बंद न हो तो फिटकरी को पानी में घोलकर उसमें कपड़ा भिगोकर मस्तक पर रखते हैं। 5-10 मिनट में रक्तबंद हो जाएगा। चौथाई चाय की चम्मच फिटकरी पानी में घोलकर प्रतिदिन तीन बार पीना चाहिए।
अगर नाक से लगातार खून बह रहा हो तो 30 ग्राम फिटकरी को 100 मिलीलीटर पानी में मिलाकर उस पानी में कोई कपड़ा भिगोकर माथे और नाक पर रखने से नाक से खून बहना रुक जाता है।
गाय के कच्चे दूध के अन्दर फिटकरी को मिलाकर सूंघने से नाक से खून बहना बंद हो जाता है।
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करो योग रहो निरोग

ग्रीन टी :

कब न पिएं…

बासी ग्रीन टी- लंबे समय तक ग्रीन टी रखे रहने से उसमें मौजूद विटामिन और उसके एटी-ऑक्सीडेंट गुण कम होने लगते हैं। इतना ही नहीं, एक सीमा के बाद इसमें बैक्टीरिया भी पलने
लगते हैं। इसलिए एक घंटे से पहले बनी ग्रीन टी क़तई न पिएं।

खाली पेट नहीं- सुबह ख़ाली पेट ग्रीन टी पीने से एसिडिटी की शिकायत हो सकती है। इसके बजाय सुबह खाली पेट एक गिलास गुनगुना सौंफ का पानी पीने की आदत डालें। इससे पाचन सुधरेगा और शरीर के अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकालने में मदद मिलेगी।

भोजन के तुरंत बाद- जल्दी वज़न घटाने के इच्छुक भोजन के तुरंत बाद ग्रीन टी पीते है, जबकि इससे पाचन और पोषक तत्वों के अवशोषण की प्रक्रिया प्रभावित होती है।

देर रात पीना- कैफीन के सेवन के बाद दिमाग़ सक्रिय होता है और नींद भाग जाती है। इसलिए देर रात या सोने से ठीक पहले ग्रीन टी का सेवन न करें।

दवाई के बाद नहीं- किसी भी तरह की दवा खाने के तुरंत बाद ग्रीन टी न पिएं।

उबालना नहीं है

उबलते पानी में ग्रीन टी कभी ना डालें। इससे एसिडिटी की समस्या हो सकती है। पहले पानी उबाल लें, फिर आंच से उतारकर उसमें ग्रीन टी की पत्तियां या टी बैग डालकर ढंक दें। दो मिनट बाद इसे छान लें या टी बैग अलग करें।

कब पिएं-

वज़न कम करे
एक्सरसाइज़ और वर्कआउट से भी अगर आपका वज़न कम नहीं हो रहा, तो आप दिन में ग्रीन टी पीना शुरू करें। ग्रीन टी एंटी-ऑक्सीडेंट्स होने की वजह से बॉडी के फैट को खत्म करती है। एक स्टडी के अनुसार, ग्रीन टी बॉडी के वज़न को स्थिर रखती है। ग्रीन टी से फैट ही नहीं, बल्कि मेटाबॉलिज्म भी स्ट्रॉन्ग रहता है और डाइजेस्टिव सिस्टम की परेशानियां भी खत्म होती हैं।

स्ट्रेस को कम करना

स्ट्रेस में चाय दवाई का काम करती है। चाय पीने से आपको आराम मिलता है। इसके अलावा, चाय की सूखी पत्तियों को तकिए के साइड में रखकर सोने से भी सिर दर्द कम होता है। सूखी चाय की पत्ती की महक माइंड को रिलैक्स करती है।

सनबर्न से बचने के लिए

चेहरे पर सनस्क्रीन लगाने पर भी सनबर्न की दिक्कत अगर खत्म नहीं होती तो आप नहाने के पानी में चाय की पत्ती डाल लें और तब नहाएं। इससे आपको सनबर्न से होने वाली जलन, खुजली आदि से राहत मिलेगी।

आंखों की सूजन को कम करने के लिए

चाय पत्ती आंखों की सूजन और थकान उतारने के लिए परफेक्ट उपाय है। इसके लिए आपको मशक्कत करने की ज़रूरत नहीं, बस दो टी बैग्स लीजिए और हल्के गर्म पानी में गीला करके 15 मिनट के लिए आंखों पर रखिए। इससे आपकी आंखों में होने वाली जलन और सूजन कम हो जाती है। चाय में प्राकृतिक एस्ट्रिजेंट होता है, जो आपकी आंखों की सूजन को कम करता है। टी बैग लगाने से डार्क सर्कल भी खत्म होते हैं।

एक्ने प्रॉब्लम को कम करना

चाय एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल, एंटी-ऑक्सीडेंट होने के कारण सूजन को कम करती है। चेहरे के मुहांसों को दूर करने के लिए ग्रीन टी परफेक्ट है। चेहरे से मुहांसे खत्म करने के लिए रात में सोने से पहले ग्रीन टी की पत्तियां चेहरे पर लगाएं। खुद को फिट रखने के लिए सुबह ग्रीन टी पिएं। इससे चेहरे पर प्राकृतिक चमक और सुंदरता बनी रहती है।

स्किन प्रोटेक्टर

ग्रीन टी स्किन के लिए बेहद ही फायदेमंद होती है। इससे आपकी स्किन टाइट रहती है। इसमें एंटी-एजिंग एलिमेंट्स भी होते हैं। ग्रीन टी में एंटी-ऑक्सीडेंट्स और एंटी-इन्फ्लामेंटरी एलिमेंट्स एक साथ होने की वजह से यह स्किन को प्रोटेक्ट करती है। ग्रीन टी से स्क्रब बनाने के लिए व्हाइट शुगर, थोड़ा पानी और ग्रीन टी को अच्छे से मिलाएं। यह मिश्रण आपकी स्किन को नरिश करने के साथ-साथ सॉफ्ट बनाएगा और स्किन के हाइड्रेशन लेवल को भी बनाए रखेगा।

बालों के लिए फायदेमंद

चाय बालों के लिए भी एक अच्छे कंडिशनर का काम करती है। यह बालों को नेचुरल तरीके से नरिश करती है। चाय पत्ती को उबाल कर ठंडा होने पर बालों में लगाएं। इसके अलावा, आप रोज़मेरी और सेज हरा (मेडिकल हर्बल) के साथ ब्लैक टी को उबालकर रात भर रखें और अगले दिन बालों में लगाएं। चाय बालों के लिए नेचुरल कंडिशनर है।

पैरों की दुर्गंध दूर करने के लिए

ग्रीन टी की महक स्ट्रॉन्ग और पावरफुल होती है। इसकी महक को आप पैरों की दुर्गंध दूर करने के लिए यूज़ कर सकते हैं। यूज़ की हुई चाय पत्ती को पानी में डाल दें और उसमें पैरों को 20 मिनट के लिए डालकर रखें। इससे चाय आपके पैरों के पसीने को सोख लेती है और स्मेल को खत्म करती है।

न्यूली मैरिड कपल के लिए

ग्लोइंग स्किन, हेल्दी लाइफ के अलावा ग्रीन टी आपकी मैरिड लाइफ में भी महक बिखेरती है। ग्रीन टी में कैफीन, जिनसेंग (साउथ एशियन और अमेरिकी पौधा) और थियेनाइन (केमिकिल) होता है, जो आपके सेक्शुअल हार्मोन्स को बढ़ाता है। खासकर महिलाओं के लिए ये काफी सही है। इसलिए अगर आपको भी मैरिड लाइफ हैप्पी चाहिए तो रोज़ ग्रीन टी पिएं।

मानसून में चाय का लुत्फ

मसाला चाय- मानसून के समय में मसाला चाय का अपना अलग ही मज़ा है। यह देसी चाय है, जो ज़्यादातर भारतीय पसंद करते हैं। इस चाय में इलायची, अदरक, पुदीना पत्ती और लौंग होती है। यह हेल्थ के लिए भी अच्छी होती है। सर्दी-जुकाम लगने पर इस चाय को खास तौर पर पिया जाता है
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: हमारी हर परम्परा के पीछे एक नहीं कई कारण छुपे होते हैं। हम अगर सावधानी से खोजें और सोचे तो भी हमें जो रहस्य मिलेंगे वो पूरे ना होकर अल्प ही होंगे ।

गंगा जी में अस्थि विसर्जन के लिए वेदों में नहीं लिखा है परंतु जो ग्रँथ 16 संस्कार और कर्मकांड के नियम बताते हैं जैसे अग्नि पुराण आदि उनमें हमें इस परम्परा का परिचय मिलता है।

गंगाजी में अस्थि विसर्जन के पीछे कई कारण है।

धार्मिक मान्यता – राजा भगीरथ के पूर्वज, राजा सगर के पुत्रों को ऋषि के अपमान के पाप , शाप से मृत्यु और देह के विधि सम्मत रूप से अंतिम संस्कार ना हो पाने के कारण मुक्ति नहीं मिली थी। गंगा जी का अवतरण ही धरती पर इनकी मुक्ति के लिए भगीरथ और उनके पूर्वजों की तपस्या के कारण हुआ था। गंगाजी के बस जल का स्पर्श इनके अवशेष रही भस्म से हुआ था और इन सबको मुक्ति मिल गयी थी। इसलिए गंगा जी को मुक्तदायनी कहा गया है और मुक्ति की इच्छा से ही गंगा जी में अस्थियां व चिता भस्म विसर्जित की जाती हैं।

गंगा जी को विष्णुपदी कहा गया है। कथा अनुसार वे ब्रह्मा जी के कमण्डल से निकल कर , विष्णुजी के चरणों को छू कर, शिवजी का अभिषेक करते हुए उनके आलम्बन से धरती पर कई पीढ़ियों की तपस्या के फलस्वरूप उतर कर आयी हैं। इसलिए वे परम् पवित्र है और उनकी असीम पवित्रता मनुष्य की कार्मिक अपवित्रता को नष्ट करने में समर्थ हैं।

आध्यात्मिक कारण –

देह कई प्रकार के कर्म दोषों और पाप का माध्यम जीवन में बन जाया करता है, देह से सम्बंधित दोषों से मुक्ति के लिए भी गंगा जी में देह के अंतिम अवशेषों को विसर्जित किया जाता है।

पंच महाभूतों से शरीर बनता है, हमने अपने उपयोग के लिए यह शरीर पंचमहाभूतों की ओर से धरोहर के रूप में मिला है तो अग्नि और जल संस्कार के माध्यम से पंचमहाभूतों को उनकी धरोहर वापस की जाती हैं।

मनोवैज्ञानिक कारण –

मृतक के परिजन अत्यंत सन्तप्त और मानसिक सदमे की स्थिति में प्रायः रहते हैं। गंगा जी तक की यात्रा और तीर्थ भूमि का वातावरण उन्हें इस सदमे और दुःख की स्थिति से उबरने में अत्यंत सहायता करता है । वे इस सत्य को भी देख व स्वीकार कर पाते हैं कि मृत्यु शाश्वत सत्य है और वे अकेले नहीं है जिनका प्रिय परिजन सदा के लिए खो गया है।

वैज्ञानिक कारण – एकमात्र नदी गंगा जी हैं जिनके जल में रोगाणुओं को तुरन्त नष्ट करने के विशिष्टता पायीं जाती हैं। अगर मृत्यु की संक्रामक रोग से भी हुई है तो पहले अग्नि संस्कार फिर गंगा जी का जल रोगाणुओं के प्रसार को रोक लेता है। साथ ही परिजन भी अस्थि विसर्जन के साथ गंगा स्नान कर लेते हैं तो उनका भी शुद्धिकरण हो जाता हैं और रोग के आगे बढ़ने की सम्भावना नगण्य हो जाती हैं।

व्यवहारिक कारण –

अस्थियां सबसे कठोर पदार्थों में से एक हैं। एक हड्डी को भूमि में पूरी तरह से नष्ट होने में भी सालों साल लग जाते हैं। अग्नि में भी सारी हड्डियां आसानी से नहीं जल पाती हैं, खोपड़ी की तो आमतौर पर बच ही जाती हैं। इन बची हुई अस्थियोँ का सही निस्तारण होना भी अनिवार्य है नहीं तो कुछ सालों में ही करोड़ों अस्थियों से हमारे श्मशान भर जाते । अस्थियों के निस्तारण का यह एक व्यवहारिक मार्ग है।

अस्थि का विगलन-

गंगा जी के जल में यह अनोखी ख़ूबी पायीं गई है की अत्यंत कठोर हड्डियां भी इस जल में बहुत जल्दी और आसानी से घुल जाती हैं। इस जल की रचना वैज्ञानिकों के लिए अभी तक भी शोध का विषय है।

कृषि –

गंगा जी के तराई वाली कृषि भूमि स्वतः अत्यंत उपजाऊ हुआ करती थीं। (नगरीय और कारखानों के प्रदूषण के गंगाजी में मिलने से पूर्व की स्थिति) यह भारत के सबसे अच्छे कृषि क्षेत्र में से एक रहा है क्योंकि अस्थियों से निकला फास्फोरस और केल्सियम उर्वरक का काम करते थे। यह एक प्रकार का पुनर्चक्रण भी था।

प्रकृति का संवर्धन-

अस्थियोँ के पुनर्चक्रण से हमारा पर्यावरण प्रदूषित नहीं हो पाता है। यहां हम प्रकृति का भी ख्याल रख रहे हैं।

कुछ वैज्ञानिक संभावनाओं के अनुसार गंगाजल में पारा अर्थात मर्करी विद्यमान होता है जिससे हड्डियों में से कैल्शियम और फॉस्फोरस पानी में घुल जाता है, जो जल-जंतुओं के लिए एक पौष्टिक आहार है। वैज्ञानिक दृष्टि से हड्डियों में गंधक (सल्फर) विद्यमान होता है, जो पारे के साथ मिलकर पारद का निर्माण करता है, इसके साथ-साथ ये दोनों मिलकर मरकरी सल्फाइड सॉल्ट का निर्माण करते हैं। हड्डि यों में बचा शेष कैल्शियम पानी को स्वच्छ रखने का काम करता है वहीं धार्मिक दृष्टिकोण से पारद शिव का प्रतीक है और गंधक शक्ति का प्रतीक है। सभी जीव अंतत: शिव और शक्ति में ही विलीन हो जाते हैं।

Post ~ Puraan Vidya
: मंगल और शनि दोनों ही पापी ग्रह है।दोनों ही एक दूसरे की राशि मे उच्च और नीच के होते है।

कई बार देखा गया है कि इनकी युति को गलत भी समझा जाता है,उसका क्या कारण है??

जब भी मंगल और शनि की युति किसी भी कुंडली मे देखी जाती है तो उस भाव सम्बंधित बीमारी जातक को मिलेगी,क्योंकि यहाँ मंगल और शनि आपस मे एक दूसरे को नीचा दिखते है क्योंकि दोनों शत्रु है।मंगल किसी रोग को रोकेगा तो शनि बढ़ाने की कोशिश करेगा,यदि शनि रोग को रोकेगा तो मंगल बढ़ाने की कोशिश करेगा,इसे ऐसा क्यों होता है??

इसे एक उदाहरण द्वारा समझते है।मान लीजिए दो पड़ौसी आपसे में शत्रु है।जब भी जहाँ मिलेंगे वहीं पर तू तू मैं मैं शुरू कर देंगे।अर्थात लड़ना शुरू कर देंगे।दोनों के दिमाग गरम है दोनों अपने आप को ऊचां दिखाने की कोशिश करेंगे।उनकी इस कोशिश में नुकसान उनका होगा जहाँ वो लड़ रहे है,उसी तरह मंगल शनि भी एक भाव मे होने से उस भाव को तकलीफ देते है।ये भाव शरीर का कोई हिस्सा भी हो सकता है,जहाँ चोट लग जाये या कट छिल जाए,इसे हम इस युति का दैहिक गुण कहते है।अर्थात देह (शरीर) को मिलने वाली तकलीफ।जो भाव सम्बंधित बुरे फल भी दे सकता है।

मंगल और शनि की युति जिस कुंडली मे बनती है कहा जाता है कि जातक अपने कर्मो के प्रति सजग होगा।अनुशाषित होगा, और सभी कर्मो को समय पर करने वाला होगा,

मंगल कालपुरुष की कुण्डली में लग्नेश के साथ साथ अष्टमेश भी होता है लग्न के साथ उसमे अष्टम भाव के गुण भी मौजूद होंगे,मेष राशि दिमाग की राशि है एनर्जी की राशि है जबकि वृश्चिक राशि अष्टम भाव की राशि होने के कारण उसमे कुछ अलग करने की क्षमता होती है जो काम दिमागी सोच से किये जायें।

मंगल को मशीन माना जाता है शनि को कर्म,कार्य

जब तक इन दोनों का सामंजस्य नही होगा या सम्बन्ध नही होगा तब तक मशीन और कर्म का कार्य जातक नही कर पायेगा।क्योंकि शनि भी कर्म और आय का कारक ग्रह है।

जहाँ इन दोनों की युति होगी उस परिवार में मशीनरी का काम होता होगा।मंगल शनि के ये गुण भौतिक गुण कहलाते है।(materialstic)

जिसे दुनिया देखती है या जो दुनिया मे होता है।जिस भाव मे ये युति बनती है उस भाव के रिश्तों में जब उलझन बढ़ जाती है या परिवार के सदस्यों के बीच तकरार हो जाती है और वहाँ अलगाव की स्थिति पैदा हो जाती है।तब शनि और मंगल की युति परिवार में असर दिखाती है तब ये युति दैविक गुण (divine)ले लेती है।
: क्या आप जानते हैं गाय के यह 11 शुभ शकुन

गाय बेहद शांत और सौम्य पशु है। हिन्दू धर्म में यह पवित्र और पुजनीय मानी गई है। यहां तक कि ज्योतिष के कई बड़े शास्त्रों में गाय की विशेष महिमा बताई गई है। आइए जानें गाय के 11 शुभ शकुन…जो चौंकाने वाले हैं….

  1. ज्योतिष में गोधू‍लि का समय विवाह के लिए सर्वोत्तम माना गया है।
  2. यदि यात्रा के प्रारंभ में गाय सामने पड़ जाए अथवा अपने बछड़े को दूध पिलाती हुई सामने आ जाए तो यात्रा सफल होती है।
  3. जिस घर में गाय होती है, उसमें वास्तुदोष स्वत: ही समाप्त हो जाता है।
  4. जन्मपत्री में यदि शुक्र अपनी नीच राशि कन्या पर हो, शुक्र की दशा चल रही हो या शुक्र अशुभ भाव (6, 8, 12)- में स्‍थित हो तो प्रात:काल के भोजन में से एक रोटी सफेद रंग की गाय को खिलाने से शुक्र का नीचत्व एवं शुक्र संबंधी कुदोष स्वत: समाप्त हो जाता है।
  5. पितृदोष से मुक्ति- सूर्य, चंद्र, मंगल या शुक्र की युति राहु से हो तो पितृदोष होता है। यह भी मान्यता है कि सूर्य का संबंध पिता से एवं मंगल का संबंध रक्त से होने के कारण सूर्य यदि शनि, राहु या केतु के साथ स्थित हो या दृष्टि संबंध हो तथा मंगल की यु‍ति राहु या केतु से हो तो पितृदोष होता है। इस दोष से जीवन संघर्षमय बन जाता है। यदि पितृदोष हो तो गाय को प्रतिदिन या अमावस्या को रोटी, गुड़, चारा आदि खिलाने से पितृदोष समाप्त हो जाता है।
  6. किसी की जन्मपत्री में सूर्य नीच राशि तुला पर हो या अशुभ स्‍थिति में हो अथवा केतु के द्वारा परेशानियां आ रही हों तो गाय में सूर्य-केतु नाड़ी में होने के फलस्वरूप गाय की पूजा करनी चाहिए, दोष समाप्त होंगे।
  7. यदि रास्ते में जाते समय गोमाता आती हुई दिखाई दें तो उन्हें अपने दाहिने से जाने देना चाहिए, यात्रा सफल होगी।
  8. यदि बुरे स्वप्न दिखाई दें तो मनुष्य गोमाता का नाम ले, बुरे स्वप्न दिखने बंद हो जाएंगे।
  9. गाय के घी का एक नाम आयु भी है- ‘आयुर्वै घृतम्’। अत: गाय के दूध-घी से व्यक्ति दीर्घायु होता है। हस्तरेखा में आयुरेखा टूटी हुई हो तो गाय का घी काम में लें तथा गाय की पूजा करें।
  10. देशी गाय की पीठ पर जो ककुद् (कूबड़) होता है, वह ‘बृहस्पति’ है। अत: जन्म पत्रिका में यदि बृहस्पति अपनी नीच राशि मकर में हों या अशुभ स्थिति में हों तो देशी गाय के इस बृहस्पति भाग एवं शिवलिंगरूपी ककुद् के दर्शन करने चाहिए। गुड़ तथा चने की दाल रखकर गाय को रोटी भी दें।
  11. गोमाता के नेत्रों में प्रकाश स्वरूप भगवान सूर्य तथा ज्योत्स्ना के अधिष्ठाता चन्द्रदेव का निवास होता है। जन्मपत्री में सूर्य-चन्द्र कमजोर हो तो गोनेत्र के दर्शन करें, लाभ होगा।
    : राहु देगा बिजली की चमक बुध ग्रह हमारी बुद्धि का कारण है, लेकिन जो ज्ञान हमारी बुद्धि के बावजूद पैदा होता है उसका कारण राहु है। जैसे मान लो कि अकस्मात हमारे दिमाग में कोई विचार आया या आइडिया आया तो उसका कारण राहु है। राहु हमारी कल्पना शक्ति है तो बुध उसे साकार करने के लिए बुद्धि कौशल पैदा करता है। दोनों ही यदि कन्या राशि में हुए तो और भी बेहतर परिणाम देंगे।

कौन है राहु :-
मान लो, धरती स्थिर है तब उसके चारों ओर सूर्य का एक काल्पनिक परिभ्रमण-पथ बनता है। पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा का एक परिभ्रमण पथ है ही। ये दोनों परिभ्रमण-पथ एक-दूसरे को दो बिन्दुओं पर काटते हैं। एक पिंड की छाया दूसरे पिंडों पर पड़ने से ही सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण होते हैं।

दोनों ही समय पाया होगा कि सूर्य, चंद्र, पृथ्वी एवं सूर्य, चंद्र के परिभ्रमण-पथ पर कटने वाले दोनों बिन्दु लम्बवत हैं। इन्हीं बिन्दुओं के एक सीध में होने के फलस्वरूप खास अमावस्या के दिन सूर्य तथा खास पूर्णिमा की रात्रि को चंद्र आकाश से लुप्त हो जाता है। प्राचीन ज्योतिषियों ने इन बिन्दुओं को महत्वपूर्ण पाकर इन बिन्दुओं का नामकरण ‘राहु’ और ‘केतु’ कर दिया।

पुराणों के अनुसार :-
पुराणों के अनुसार राहु सूर्य से 10,000 योजन नीचे रहकर अंतरिक्ष में भ्रमणशील रहता है। कुण्डली में राहु-केतु परस्पर 6 राशि और 180 अंश की दूरी पर दृष्टिगोचर होते हैं जो सामान्यतः आमने-सामने की राशियों में स्थित प्रतीत होते हैं। इनकी दैनिक गति 3 कला और 11 विकला है। ज्योतिष के अनुसार 18 वर्ष 7 माह, 18 दिवस और 15 घटी, ये संपूर्ण राशियों में भ्रमण करने में लेते हैं।

ग्रह नहीं है ये :-
राहु ग्रह न होकर ग्रह की छाया है, हमारी धरती की छाया या धरती पर पड़ने वाली छाया। छाया का हमारे जीवन में बहुत असर होता है। कहते हैं कि रोज पीपल की छाया में सोने वाले को किसी भी प्रकार का रोग नहीं होता लेकिन यदि बबूल की छाया में सोते रहें तो दमा या चर्म रोग हो सकता है। इसी तरह ग्रहों की छाया का हमारे जीवन में असर होता है।

राहु का तेज होना :-
व्यक्ति दौलतमंद होगा। कल्पना शक्ति तेज होगी। रहस्यमय या धार्मिक बातों में रुचि लेगा। राहु के अच्छा होने से व्यक्ति में श्रेष्ठ साहित्यकार, दार्शनिक, वैज्ञानिक या फिर रहस्यमय विद्याओं के गुणों का विकास होता है। इसका दूसरा पक्ष यह कि इसके अच्छा होने से राजयोग भी फलित हो सकता है। आमतौर पर पुलिस या प्रशासन में इसके लोग ज्यादा होते हैं। सफल राजनेता होने के लिए भी राहु का उच्च होना आवश्यक है।

निचे का राहु : व्यक्ति बेईमान या धोखेबाज होगा। ऐसे व्यक्ति की तरक्की की शर्त नहीं होती। राहु का खराब होना अर्थात दिमाग की खराबियां होंगी, व्यर्थ के दुश्मन पैदा होंगे, सिर में चोट लग सकती है। व्यक्ति मद्यपान या वासना में ज्यादा रत रह सकता है।

साझेदारी के व्यापार

अक्सर हम साझेदारी अपने मित्रों या जान पहचान के लोगों के साथ करना पसन्द करते है.जिन पर हम भरोसा करते है.ओर जिन के साथ हमारे विचार मेल खाते है।ओर सभी की हिम्मत.मेहनत.ओर कठिन परिश्रम से साझेदारी के व्यापार में भी अच्छा धन कमा लेते है.ओर समाज में सम्मान के साथ जीते है।

जानते है ज्योतिष की दृष्टि से-साझेदारी के व्यापार करने के लिए कुंडली में कौन से ग्रह राशि भाव का विचार करे जिस से साझेदारी का व्यापार सफल रहे।

1-भाव- कुंडली में तृतीया भाव से साझेदारी के व्यापार का विचार किया जाता है.सहायक भाव सप्तम.एकादश भी इसमें अहम भूमिका निभाते है।तृतीयेश का सप्तम या एकादश से युति सम्बन्ध.दृष्टि सम्बन्ध साझेदारी के व्यापार में लाभ दिलाता है।साथ ही लगनेश भाग्येश से सम्बन्ध भी अच्छी साझेदारी के योग को देते है। वही तृत्येश का एकान्तर सम्बन्ध षष्ठ.अष्ठम.द्वादश.में जाना साझेदारी के व्यापार में साझेदारी का टूटना.विवाद तकरार व नुक़सान देता है।परन्तु अपवाद भी उत्पन्न करा देते है.तृत्येश का षष्ठेश अष्ठमेश द्वादशेश से युति दृष्टि परिवर्तन सम्बन्ध शुभ फल भी देते है।

2-ग्रह योग- कुंडली में शुभ अशुभ ग्रह से योग का निर्माण होता है जहाँ सूर्य बुध का साथ बेठना बुधादित्य योग बनाता है वही शनि चंद्र विष योग.जब तृतीया भाव में शुभ ग्रह साझेदारी को सफल बनाते है.अशुभ ग्रह के योग धन हानि आपसी तकरार देते है। तृत्यभाव में नीच ग्रह का होना शनि की दृष्टि अशुभ योग व्यापार में नुक़सान देते है.व साझेदारी भी ख़राब करते है।

3-राशि मैत्री- साझेदारी के व्यापार में जहाँ ग्रह योग शुभ अशुभ फल देते है.वही राशि मैत्री भी मुख्य भूमिका निभाती है.साझेदारी के व्यापार में राशिमैत्री से भी विचार करना चाहिए |

4-तत्व विचार- ग्रह राशि मैत्री की तरह हम तत्वों से भी विचार कर सकते है.जिसने अग्नितत्व.पृथ्वीतत्व.वायुतत्व.जलतत्व.आकाशतत्व का आपस में विरोधाभास होना अशुभ हो सकता है।

5-दशा विचार शुभ ग्रह की दशा हमें जहाँ धन भूमि वाहन मान-सम्मान मित्रों के साथ को देती है वही अशुभ ग्रह की दशा में हमें परेशनियाँ व नुक़सान उठाना पड़ता है.साझेदारी के व्यापार में किसी एक की शुभ ग्रह की दशा जहाँ व्यापार को लाभ दिलाती है वही दूसरे की अशुभ दशा अनेको परेशनियाँ व नुक़सान देती है जो व्यापार ओर साझेदारी को भी प्रभावित कर सकती है।

साझेदारी में राशि सम्बन्ध

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिस लग्न में व्यक्ति का जन्म होता है.उससे विभिन्न राशियों के अनुसार साझेदारी का फल मिलता है.अगर आप किसी से साझेदारी या दोस्ती करने जा रहे हैं तो यह देखिये कि क्या आपकी राशि से उस व्यक्ति की राशि में तालमेल बैठ रहा है इसके बाद ही साझेदारी का विचार करना चाहिए
साझेदार अगर समान राशि के हैं तो शुरू शुरू में तो लाभ होता है लेकिन जैसे जैसे वक्त गुजरता है आपस में प्रतियोगिता का माहौल बन जाता हैं जिसका परिणाम अंत में दोनों को नुकसान होता है.यह बात व्यापारिक या कारोबारी साझेदारी से लेकर पति पत्नी एवं मित्रता पर भी लागू होती है.वैवाहिक कुण्डली मिलान करते समय अगर वर और कन्या की राशि समान है तो यह बात समझ लेनी चाहिए कि वैवाहिक जीवन में आगे चलकर तू तू मैं मैं होनी वाली है यानी दोनों अपने आपको श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश करेंगे फलत: गृहस्थी कलहपूर्ण रहेगी.
आप जिससे मित्रता का हाथ मिलाने जा रहे हैं अगर उसका लग्न आपके लग्न से दूसरा है तो इस स्थिति में आपको लाभ होगा परंतु आपके साझेदार को नुकसान होगा, यानी इस रिश्ते में परस्पर मित्रता वाली बात नहीं रहेगी.वैवाहिक मामले में इस विषय पर विचार करें तो आप सुखी होंगे परंतु आपका जीवन साथी कष्ट में रहेगा. लग्न से तीसरी राशि वाला व्यक्ति बुरे वक्त में काम नहीं आता है यानी जब आप पर कठिन समय आएगा तो वह मदद के लिए आगे नहीं आएगा. हालांकि इस राशि वालों की दोस्ती फलती है और दोनों में घनिष्ठता रहती है.
जिस लग्न में आपका जन्म हुआ है उस लग्न से चौथी राशि वाले से आप साझेदारी करते हैं तो सुख के समय दोनों के बीच प्यार उमड़कर आएगा परंतु जब दु:ख का समय आएगा तो साझेदार मुंह फेर लेगा .इनके बीच साझेदारी सिर्फ स्वार्थवश हुआ करती है.अगर पति पत्नी की स्थिति इस प्रकार की बनती है तो विवाद और कलह का घर होगा.लग्न से पंचम राशि वालों के बीच जो साझेदारी या दोस्ती बनती है वह बहुत ही उत्तम मानी जाती है.इनकी दोस्ती में अपनत्व की भावना रहती है दोनों एक दूसरे के प्रति समर्पण भाव रखते हैं.जरूरत के समय एक दूसरे की हर तरह से सहायता करते हैं एवं सुझाव देते हैं.ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से लग्न से छठी राशि वालों से दोस्ती अच्छी नहीं होती है, इस साझेदारी से दोष लगता है.
आपका मित्र, साझेदार या जीवनसाथी आपकी लग्न से सप्तम राशि का है तो यह दोनों के लिए शुभ है.इस स्थिति में दोनों के अच्छे सम्बन्ध रहेंगे.साझेदार के भाग्य से आपकी उन्नति होगी.अष्टम राशि वालों से मित्रता भी दोषपूर्ण माना जाता है .नवम राशि वालों से मित्रगत सम्बन्ध शुभफलदायी और उत्तम होता है.आपको अपने साथी से सुख एवं अनुकूल सहयोग मिलता है.यह आपको उर्जावान रखता है व मान सम्मान दिलाता है.दशम राशि का साथी बहुत अधिक घनिष्ठता नहीं रखता है तो अहित भी नहीं करता है.आप इनसे जैसा वर्ताव करेंगे यह आपसे उसी प्रकार प्रस्तुत होंगे.एकादश राशि वाला व्यक्ति मित्रता के बहुत ही अच्छा होता इससे मित्रों को परस्पर लाभ होता है जबकि द्वादश राशि वालों के बीच मित्रता, साझेदारी एवं सम्बन्ध परेशानी और कष्टदायक होता है।
. : ग्रह कब नहीं देते शुभ फल और क्यों?

सूर्य
सूर्य का संबंध आत्मा से होता है। यदि आपकी आत्मा, आपका मन पवित्र है और आप किसी का दिल दुखाने वाला कार्य नहीं करते हैं तो सूर्यदेव आपसे प्रसन्न रहेंगे। लेकिन किसी का दिल दुखाने (कष्ट देने), किसी भी प्रकार का टैक्स चोरी करने एवं किसी भी जीव की आत्मा को ठेस पहुंचाने पर सूर्य अशुभ फल देता है। कुंडली में सूर्य चाहे जितनी मजबूत स्थिति में हो लेकिन यदि ऐसा कोई कार्य किया है, तो वह अपना शुभ प्रभाव नहीं दे पाता। सूर्य की प्रतिकूलता के कारण व्यक्ति की मान-प्रतिष्ठा में कमी आती है और उसे पिता की संपत्ति से बेदखल होना पड़ता है।

चंद्र
परिवार की स्त्रियों जैसे, मां, नानी, दादी, सास एवं इनके समान पद वाली स्त्रियों को कष्ट देने से चंद्र का बुरा प्रभाव प्राप्त होता है। किसी से द्वेषपूर्वक ली गई वस्तु के कारण चंद्रमा अशुभ फल देता है। चंद्रमा अशुभ हो तो व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान रहता है। उसके कार्यों में रुकावट आने लगती है और तरक्की रूक जाती है। जल घात की आशंका बढ़ जाती है। यहां तक कि व्यक्ति मानसिक रोगी भी हो सकता है।

मंगल
मंगल का संबंध भाई-बंधुओं और राजकाज से होता है। भाई से झगड़ा करने, भाई के साथ धोखा करने से मंगल अशुभ फल देता है। अपनी पत्नी के भाई का अपमान करने पर भी मंगल अशुभ फल देता है। मंगल की प्रतिकूलता के कारण व्यक्ति जीवन में कभी स्वयं की भूमि, भवन, संपत्ति नहीं बना पाता। जो संपत्ति संचय की होती है वह भी धीरे-धीरे हाथ से छूटने लगती है।

बुध
बहन, बेटी और बुआ को कष्ट देने, साली एवं मौसी को दुखी करने से बुध अशुभ फल देता है। किसी किन्नर को सताने से भी बुध नाराज हो जाता है और अशुभ फल देने लगता है। बुध की अशुभता के कारण व्यक्ति का बौद्धिक विकास रूक जाता है। शिक्षकों और विद्यार्थियों के लिए अशुभ बुध विकट स्थितियां पैदा कर सकता है।

गुरु
अपने पिता, दादा, नाना को कष्ट देने अथवा इनके समान सम्मानित व्यक्ति को कष्ट देने एवं साधु संतों को सताने से गुरु अशुभ फल देने लगता है। जीवन में मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा के कारक ग्रह बृहस्पति के रूठ जाने से जीवन अंधकारमय होने लगता है। व्यक्ति को गंभीर बीमारियां घेरने लगती है और उसका जीवन पल-प्रतिपल कष्टकारी होने लगता है। धन हानि होने लगती है और उसका अधिकांश पैसा रोग में लगने लगता है।

शुक्र
अपने जीवनसाथी को कष्ट देने, किसी भी प्रकार के गंदे वस्त्र पहनने, घर में गंदे एवं फटे पुराने वस्त्र रखने से शुक्र अशुभ फल देता है। चूंकि शुक्र भोग-विलास का कारक ग्रह है अतः शुक्र के अशुभ फलों के परिणामस्वरूप व्यक्ति गरीबी का सामना करता है। जीवन के समस्त भोग-विलास के साधन उससे दूर होने लगते हैं। लक्ष्मी रूठ जाती है। वैवाहिक जीवन में स्थिति विवाह विच्छेद तक पहुंच जाती है। शुक्र की अशुभता के कारण व्यक्ति अपने से निम्न कुल की स्त्रियों के साथ संबंध बनाता है।

शनि
ताऊ एवं चाचा से झगड़ा करने एवं किसी भी मेहनतकश व्यक्ति को कष्ट देने, अपशब्द कहने एवं इसी के साथ शराब, मांस खाने से शनि देव अशुभ फल देते हैं। कुछ लोग मकान एवं दुकान किराये से लेने के बाद खाली नहीं करते अथवा उसके बदले पैसा मांगते हैं तो शनि अशुभ फल देने लगता है। शनि के अशुभ फल के कारण व्यक्ति रोगों से घिर जाता है। उसकी संपत्ति छिन जाती है और वह वाहनों के कारण लगातार दुर्घटनाग्रस्त होने लगता है।

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मानसिक रोगों के ज्योतिषीय कारण :-

जन्मकुंडली में शरीर के सभी अंगों का विचार तथा उनमें होने वाले रोगों या विकारों का विचार भिन्न-भिन्न भावों से किया जाता है। रोग तथा शरीर के अंगों के लिये लग्न कुण्डली में मस्तिष्क का विचार प्रथम स्थान से, बुद्धि का विचार पंचम भाव से तथा मनःस्थिति का विचार चन्द्रमा से किया जाता है। इस के अतिरिक्त शनि, बुध, शुक्र तथा सूर्य का मानसिक स्थिति को सामान्य बनाये रखने में विशेष योगदान है। शरीर क्रिया विज्ञान के अनुसार मानव शरीर में मस्तिष्क एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है। यह शरीर का केन्द्रीय कार्यालय है, यहीं से सभी संदेश व आदेश प्रसारित होकर शरीर में बडे़ से लेकर सूक्षमातिसूक्ष्म अंगों तक को भेजे जाते हैं।

मानव मस्तिष्क को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है, एक वह जिसमें बुद्धि कार्य करती है, सोचने-विचारने, तर्क विश्लेषण और निर्णय करने की क्षमता इसी में है, इसी को अवचेतन मस्तिष्क कहते हैं। ज्योतिष मतानुसार इसका कारक ग्रह सूर्य है। विचारशील (अवचेतन) मस्तिष्क रात्रि में सो जाता है, विश्राम ले लेता है, अथवा कभी-कभी नशा या बेहोशी की दवा लेने से मूर्छाग्रस्त हो जाता है। अवचेतन मस्तिष्क के इसी भाग के विकार ग्रस्त होने से जातक मूर्ख, मंद बुद्धि और अनपढ़ अविकसित मस्तिष्क वाला व्यक्ति या तो सुख के साधन प्राप्त नहीं कर पाता, और यदि कमाता भी है तो, उसका समुचित उपयोग करके सुखी नहीं रह पाता। सभी वस्तुयें उसके लिये जान का जंजाल बन जाती हैं। एेसे जातक मंदबुद्धि तो कहलाते हैं, परंतु इनमें शरीर के लिये भूख, मल-त्याग, श्वास-प्रश्वास, रक्तसंचार, तथा पलकों का झपकना आदि क्रियायें सामान्य ढंग से होती हैं। मस्तिष्क की इस विकृति का शरीर के सामान्य क्रम संचालन पर बहुत ही कम असर पड़ता है। मस्तिष्क का दूसरा भाग वह है, जिसमें आदतें संग्रहित रहती हैं, और शरीर के क्रियाकलापों का निर्देश निर्धारण किया जाता है। हमारी नाड़ियों में रक्त बहता है, ह्रदय धड़कता है, फेफड़े श्वास-प्रश्वास क्रिया में संलग्न रहते हैं, मांसपेशीयां सिकुड़ती-फैलती हैं, पलकें झपकती-खुलती हैं, सोने-जागने का खाने-पीने और मल त्याग का क्रम स्वयं संचालित होता है। पर यह सब अनायास ही नहीं होता, इसके पीछे सक्रिय (चेतन) मस्तिष्क की शक्ति कार्य करती है, इसे ही हम “मन” कहते हैं। ज्योतिष मतानुसार इस मन का कारक ग्रह चंद्रमा है। उपरोक्त सभी शक्तियां मस्तिष्क (मन) के इसी भाग से मिलती हैं, उन्माद, आवेश आदि विकारों से ग्रसित भी यही होता है, डाक्टर इसी को निद्रित करके आप्रेशन करते हैं। किसी अंग विशेष में सुन्न करने की सूई लगाकर भी मस्तिष्क तक सूचना पहुँचाने वाले ज्ञान तन्तुओं को संज्ञाशून्य कर देते हैं, फलस्वरूप पीड़ा का अनुभव नहीं होता, और आप्रेशन कर लिया जाता है। पागलखानों में इसी चेतन मस्तिष्क का ही ईलाज होता है। अवचेतन की तो एक छोटी सी परत ही मानसिक अस्पतालों की पकड़ मे आई है, वे इसे प्रभावित करने में भी थोड़ा-बहुत सफल हुये हैं, किन्तु इसका अधिकांश भाग अभी भी डाक्टरों की समझ से परे है।

यदि हम ज्योतिष की दृिष्टि से विचार करें तो मस्तिष्क (अवचेतन मस्तिष्क) Subconscious Mind का कारक ग्रह सूर्य है। जन्मकुण्डली में सूर्य तथा प्रथम स्थान पीड़ित हो तो, उस जातक में किसी हद तक गहरी सोच का आभाव होता है, अथवा वह गम्भीर प्रकृति का होता है, तथा मन (चेतन मस्तिष्क) Conscious Mind का कारक ग्रह चन्द्रमा है। ऐसा जातक मनमुखी होता है, जो भी मन में आता है वैसा ही करने लगता है। मन में आता है तो, नाचने लगता है, मन करता है तो गाने लगता है, परंतु उस समय की जरूरत क्या है? इसकी उसे फिक्र नहीं होती। विचित्र बाते करना, किसी एक ओर ध्यान जाने पर उसी प्रकार के कार्य करने लगता है। यह सब मनमुखी जातक के लक्षण हैं, ऐसे जातक की कुंडली में चन्द्रमा तथा कुण्डली के चतुर्थ व पंचम भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है। इस के अलावा बुध विद्या देने वाला, गुरू ज्ञान देने वाला, तथा शनि वैराग्य देने वाले ग्रह हैं। किसी भी जातक की कुंडली में नवम् भाग्य का, तृतीय बल और पराक्रम का, एकादश लाभ का तथा सप्तम भाव वैवाहिक सुख के विचारणीय भाव होते हैं। यह सब ग्रहस्थितियाँ मन व मस्तिष्क पर किसी न किसी प्रकार से अपना प्रभाव ड़ालती हैं। आगे की पंक्तियों में मैं उन्माद (विक्षिप्त अवस्था) का कुंडली में कैसे विचार किया जाता है? यह बताऊँगा, जिससे ज्योतिष के विद्यार्थी लाभान्वित होंगे।

  1. कुण्डली (Horoscope) में पंचम, नवम, लग्न व लाभ स्थान में से किसी भी एक स्थान पर पापयुक्त सूर्य, मंगल, शनि, पापी बुध अथवा राहु-केतु के साथ क्षीण चन्द्रमा जो की मन (चेतन मस्तिष्क) Conscious Mind का कारक है, की स्थिति पंचम अर्थात् बुद्धि के स्थान पर होकर शिक्षा के मामले में अल्पबुद्धि (Unintelligent) बनाती है। यही चन्द्रमा यदि किसी पापग्रह से दृष्ट अथवा युक्त होकर लग्न में हो तो, गहरी समझ वाला नहीं होता, और यदि यह नवम में हो तो, बार-बार भाग्य में रूकावटें होने से जातक विक्षिप्त अवस्था में आ जाता है। यही चन्द्रमा एकादश मे होने पर अनेक प्रकार के आरोप तथा उलझनों के कारण उन्माद ग्रस्त हो सकता है।
  2. जन्मकुण्डली (Horoscope) में क्षीण चन्द्रमा और बुध का योग हो तो, जातक अल्पबुद्धि (Unintelligent) वाला होता है, इस योग में दो मुख्य तत्व क्षीण चन्द्रमा और बुध का योग अल्पबुद्धि (Unintlligent) बनाता है। चन्द्रमा जो की मन (चेतन मस्तिष्क) Conscious Mind का कारक है, यदि क्षीण होगा तो, वह जातक की सतत् सोच को दूषित करता है, तथा क्षीण बुध जो की बौद्धिक ज्ञान की कमी कर जातक को गहरी सोच वाला नहीं बनने देता। कुण्डली में यह सब विचार एक कुशल ज्योतिषी (Intelligent Astrologer) ही कर सकता है।
  3. कुण्डली (Horoscope) के व्यय भाव में शनि युक्त क्षीण चन्द्रमा हो तो, व्यय स्थान में राहु तथा पाप युक्त चन्द्रमा हो, और अष्ठम में शुभ ग्रह हों तो, यह दोनो योग क्षीण तथा पापयुक्त चन्द्रमा को उन्माद का कारण बताते हैं। व्यय जो की कुण्डली में सैक्स का स्थान है, वहाँ वैराग्य कारक शनि की स्थिति क्षीण चन्द्रमा के साथ हो तो, पति या पत्नी के साथ सैक्स में असंतोष के कारण दुःखी होकर मानसिक रोगी हो जाता है। राहु तथा पापयुक्त चन्द्रमा की स्थिति भी एेसा ही योग बनाती है, परंतु यहां अंतर इतना होता है कि राहु के कारण जातक या जातिका स्वयं ही कामरोग से पीड़ित होकर जीवनसाथी से विमुख हो जाता है। ज्योतिष के विद्वानों (Intelligent Astrologer) ने इस प्रकार के पागलपन या उन्माद के अनेक ज्योतिषीय योगों का वर्णन अपने ग्रन्थों में किया है, ज्योतिष के विद्यार्थीयों (Students Of Astrology) को ज्योतिष के प्रसिद्ध ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिए। इस प्रकार के योगों में मुख्य तत्व सूर्य अथवा चन्द्रमा अवश्य पीड़ित पाये जाते हैं। ज्योतिष के विद्यार्थीयों (Students Of Astrology) को विशेष ध्यान यह भी रखना चाहिए कि जातक की जनमकुंडली (Horoscope) में शनि के साथ सूर्य का सम्बंध होने से राज्याधिकारी के क्रोध से प्रमाद रोग का भय होता है, एवं वे दोनों ग्रह मंगल से युक्त हों तो, पित्तजन्य उन्माद का भय होता है।

ज्योतिषीय चिकित्सा (Madical Astrology) का नियम है कि, कालपुरुष के शरीर का कारक ग्रह सूर्य है, इस लिये सूर्य पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव दैहिक व्याधियाँ अर्थात् अधिभौतिक दुःख देता है। इस पर पाप प्रभाव मनुष्य को प्रेत, पितर आदि के द्वारा प्रदत्त व्याधियों के साथ-साथ पापी और क्रूर ग्रहों का उत्पीड़न, मानसिक व दीर्घकालिक व्याधियाें का जनक होता है। प्रेत-पितरों से जनित व्याधियों को असेव कहा जाता है। यह व्याधियाँ मनोचिकित्सक के कार्य क्षेत्र में आती हैं, ज्योतिषीय चिकित्सा (Madical Astrology) के द्वारा भी इसका उपचार सम्भव है, परंतु एलोपैथी चिकित्सा द्वारा 80 प्रतीशत रोगियों में मनोचिकित्सा असफल पाई गई है, इन रोगों का उपचार दो प्रकार से क्रमिक रूप से होता है। तंत्र और साथ-साथ आयुर्वैदिक औषधियों के द्वारा, प्रेतों या पितरों का प्रभाव पुच्छ भूत स्वरूप होता है। मुख्य 70 प्रतीशत प्रभाव को “क्लीं” मंत्र के सिद्ध तांत्रिक हटा देते हैं, और शेष 30 प्रतीशत का आयुर्वेदाचार्य अपने उपचार से ठीक कर देते हैं। इसमें इतना स्पष्ट है कि, इस प्रकार के रोगों के आरम्भ होने से पूर्व इनकी पहचान के लिये एकमात्र ज्योतिषीय चिकित्सा (Madical Astrology) ही कारगर सिद्ध हुई है। रोग आरम्भ होने के बाद सम्मोहन क्रिया Reiki या ईष्टमंत्र भी कारगक सिद्ध होते हैं, परंतु ध्यान रहे- प्रेत आवेशित व्यक्ति को स्वंय ईष्ट की पूजा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि आवेशित व्यक्ति की अपनी पूजा-अर्चना प्रेत को और भी शक्तिशाली बना देती है।

ग्रहों में चन्द्रमा मानसिक शक्ति से सम्बन्धित ग्रह है, चन्द्रमा और सूर्य मिलकर ही मंत्र साधक को संजीवनी शक्ति प्रदान करते हैं। संजीवनी साधना में सूर्य बीज “ह्रां” और चन्द्र बीज “वं” का समावेश होता है। स्वास्थ्य के लिये दोनों ग्रहों का पापी ग्रहों (राहु-केतु और शनि) के प्रभाव से बचा रहना आवश्यक है। मन के कारकत्व के अलावा चन्द्रमा को गले, छाती और ह्रदय का कारकत्व भी प्राप्त है। वृश्चिक राशि स्थित (नीच चन्द्रमा) का सम्बंध सूर्य से हो जैसे- सूर्य वृश्चिक राशि में या वृष राशि में तथा चन्द्रमा पर शनि और मंगल की पूर्ण दृष्टि हो तो, राजयक्ष्मा (tuberculosis) होने का पूरा भय रहता है।

यदि चन्द्रमा मंगल से सम्बंध बनाये या उस पर मंगल की सातवीं या आठवीं दृष्टि हो तो, जीवन में जीवन में अनेक दुर्घटनाओं का दुःख जातक को झेलना पड़ता है, ऐसे जातक को अनेक बीमारियां घेरे रहती हैं, उसका दाम्पत्य जीवन भी दुःख से भरा होता है। जातक को अनेक रूकावटों और अड़चनों का सामना अपने जीवन में करना पड़ता है। वराहमिहर ने एेसे जातक के लिये कहा है- चन्द के साथ यदि मंगल का संयोग हो जाये तो, जातक औरतों का व्यापारी होता है, या वे अपनी पत्नी के अन्य से सैक्स सम्बंधों के प्रति बेपरवाह होता है, घर के बर्तनों तक को बेच देता है, यह जातक अपनी माता के प्रति भी नीचता का व्यवहार करता है। चन्द्र-शनि का कुण्डली में साथ होना दुःख व विपत्ति का कारण बनता है, यह योग सन्यास या वैराग्य दायक भी होता है, परंतु यही योग वैराग्य होने पर दैव सानिध्य भी दिलाता है, अर्थात् जातक को अड़चनों में से गुजार कर वैरागी बना देता है, चन्द्र-शनि की युति हो, और मंगल की दृष्टि उन पर हो तो जातक राजयक्ष्मा रोग से पीड़ित होता है। एेसे जातक को सूखा रोग भी हो सकता है। छटे भाव में चंद्रमा पर रक्त सम्बंधी त्वचा रोग या पागलपन की बीमारी हो सकती है। ऐसे जातक को रति-जनित रोग सिफलिस या एड्स हो सकते हैं। यदि शनि-चन्द्र की युति सातवें भाव में हो तो, विवाह में बाधायें आती हैं, विवाह यदि होता भी है तो, दाम्पत्य जीवन दुःखमय होता है, न तो जीवन-साथी साथ ही रहता है, न ही संतान होती है, यदि विवाह सुख होता है तो वृद्ध या वृद्धा साथी से। यह योग सातवें भाव में कर्क या वृष राशि में होने पर निष्फल होता है, अर्थात् वृष या कर्क का चन्द्रमा जातक का बचाव कर देता है, इसके लिये मकर या वृश्चिक राशि लग्न में होनी चाहिए।

आठवें भाव का क्षीण चन्द्र यदि उच्च के शनि द्वारा देखा जाता हो, तो जातक को पागलपन या मिरगी का रोग होता है, शीण चन्द्र शनि के साथ हो, और उस पर मंगल की दृष्टि हो तो, जातक की मृत्यु बवासीर, पागलपन, आपरेशन या चोट के कारण होती है। चीरफाड़ का होना निश्चित है, या खुंखार जानवर के द्वारा भी मृत्यु हो सकती है। बारहवें भाव में चन्द्र-शनि की युति पागलपन का कारण बनती है। प्रायः मानसिक रोगों का कारक 5, 6, 8 या 12 भाव का चन्द्रमा शनि और मंगल के प्रभाव में आकर हो जाता है।

जन्मकुण्डली Horoscope में बुध का सम्बंध दांतों, श्वांसनली, फेफड़ों और कटि प्रदेश से है। बुध पर शनि और मंगल का प्रभाव निमोनिया (पसली चलने का रोग) श्वांस का रोग, बुध-मंगल की युति पर सूर्य और शनि का प्रभाव ज्वर और आंतों के रोग देता है। नजला-जुकाम भी बुध पर पापी ग्रहों के प्रभाव से होता है। बुध जब शनि क्षेत्रीय हो, या राहु के प्रभाव में हो, अर्थात् बुध पर पाप प्रभाव वाणी सम्बंधी रोग तथा हकलाहट देता है, बुध के पापी हो जाने पर बुद्धि जड़ हो जाती है। बुध पर क्रूर और पापी ग्रहों का प्रभाव जेल यात्रा करवा देता है। क्रूर एवं पापी ग्रहों का प्रभाव बुध पर होने से नपुंसकता या दिल के दौरे पड़ सकते हैं, शर्त यह है कि, बुध पर बृहस्पति की दृष्टि नहीं होनी चाहिए। ऐसा असर अधिक होता है, जब बुध तीसरे या छटे भाव में हो, और पाप प्रभाव इस पर पड़ रहा हो, मेष, कर्क या मकर लग्न वाले जातकों के लिये पाप प्रभाव वाला बुध अति दुःख दायक होता है। अपने शत्रु मंगल की राशियों (मेष व वृश्चिक) का पाप प्रभाव युक्त बुध क्रमशः मानसिक रोग और जननेन्द्रियों के रोग देने वाला होता है। पाप प्रभाव युक्त बुध यदि सिंह राशि में हो तो, टायफाईड जैसे रोग देता हेै। शनि से दृष्ट होने पर मकर-कुम्भ का बुध हकलाहट देता है। क्षीण चन्द्र और बुध की युति बांझपन देती है। मंगल के प्रभाव क्षेत्र में शनि की दृष्टि या युति बुध पर होने पर जब मंगल का प्रभाव बुध पर हो तो, हिस्टीरिया रोग हो सकता है, परंतु इसके लिये बुध पर राहु का प्रभाव भी होना चाहिए।

जन्मकुंडली Horoscope के लग्न, चौथे या पाँचवें भाव का बुध यदि मंगल और शनि के साथ हो तो, बांध्यत्व देता है। यदि बुध, शनि, मंगल की युति पर राहु का प्रभाव पड़े तो, गठियावात के रोग होते हैं। दाम्पत्य दुःख और अंग-भंग देने वाला हो सकता है, यदि यह ग्रह सातवें भाव में हो। आठवें भावस्थ पापी बुध चर्म और मानसिक रोग देता है।

बुध का सम्बंध बौद्धिकता से है, विज्ञानमय कोष से सम्बंधित पूर्वजन्मों के कर्मों का फल बुध से प्राप्त होता है। जब बुध नवम् भाव धनु राशि या गुरू से होता है, तो यह योग पितृऋण का परिचायक है। पिछली पीढ़ियों के पापकर्मों का फल वर्तमान पीढ़ी में इस ग्रहयोग से पता चलता है। इस का असर प्रायः जातक की वृद्धावस्था में दिखाई देता है। जब ग्रहजनित रोग परिलक्षित न हों, और जातक उलझनों परेशानियों में फंसा हो, तथा एेसे रोग सामने आ रहे हों, जो कुण्डली में दिखाई न देते हों, उस समय कुण्डली में पितृऋण की खोज करनी चाहिए। पितृऋण का सम्बंध पूर्वजों के पापों से होता है, ये पाप पूर्वजों से विरासत में प्राप्त होते है। इस विषय में साधारण ज्योतिषी या कम्प्यूटर की बनी कुण्डली कोई सहायता नहीं कर सकते। इसी लिये ज्योतिष के माध्यम से जातक को कोई लाभ नहीं हो पाता, और अधिकतर रोग अबाधित रह जाते हैं। पितृऋण बृहस्पति के कारकत्व में आते हैं, और इसका सम्बंध विज्ञानमय कोश से होता है। पूर्वजन्म या पितृऋण सम्बंधित दोषों को मिटाने की क्षमता केवल भगवान शिव में है, और उनके बताये उपाय पितृऋण से पूर्णतः छुटकारा दिला सकते है।
: यह प्रयोग केवल साइटिका. घुटनों का दर्द जिनके घुटनों की ग्रीस खत्म हो गयी हो सूजन हो या कार्टिलेज घीस गये हो या घुटनों को बदलने की सलाह दी जा रही है तो एक बार यह प्रयोग अवश्य अजमाये आप को निराश नही होना पड़ेगा।

आप को पंसारी के यहा से लाना है ।

(1) सहजन बीज 150 ग्राम
(2) निर्गुणडी 100 ग्राम
(3) अलसी 100 ग्राम
(4) सौठ 50 ग्राम
(5) छोटी पीपल 50 ग्राम
(6) लौंग 25 ग्राम
(7) काली मिर्च 25 ग्राम

ये सात प्रकार की औषधि लाकर कूट पीस कर बारीक पाउडर बना ले ओर रोजाना एक चम्मच यानी पाच सात ग्राम पाउडर सुबह उठते ही खाली पेट एक गिलास गुनगुने पानी से ऐसे ही रात को सोते समय लिजिये ओर एक महिना बाद प्रकृति का कमाल देखिए आपको घुटने बदलवाने की जरूरत नहीं पडेगी ।

https://youtu.be/6tM2oMiPM4Q
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