Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

रोगप्रतिरोधकता है क्या?

बहुत ही साधारण शब्दों में कहे तो शरीर की रोग पैदा करने वाले हानिकारक कीटाणुओं को कोशिकाओं के अंदर प्रवेश ना करने देने की क्षमता को ही रोगप्रतिरोधकता कहते हैं।

रोगप्रतिरोधकता कितने प्रकार की होती है?

यह मुख्यतः दो प्रकार की होती है

  1. जन्मजात रोगप्रतिरोधकता
  2. उपार्जित रोगप्रतिरोधकता

जन्मजात रोगप्रतिरोधकता किसी भी जीव में जन्म के समय से ही विद्यमान होती है जबकि उपार्जित रोगप्रतिरोधकता जन्म के बाद हासिल की जाती है। जन्मजात रोगप्रतिरोधकता के काम ना करने की स्थिति में उपार्जित रोगप्रतिरोधकता अपना काम करने लगती है।

उपार्जित रोगप्रतिरोधकता भी दो प्रकार की होती है

  1. प्राकृतिक
  2. कृत्रिम

प्राकृतिक उपार्जित रोगप्रतिरोधकता भी दो प्रकार की होती है

  1. पैसिव और
  2. एक्टिव

▪️पैसिव प्राकृतिक उपार्जित रोगप्रतिरोधकता गर्भावस्था के दौरान माँ से भ्रूण में प्लेसेंटा के द्वारा स्थानांतरित की जाती है। इसमें मुख्यतः IgG का ट्रांसफर होता है और जन्म के तुरंत बाद के दूध में IgA एंटीबॉडीज का ट्रांसफर होता है। जबकि एक्टिव प्राकृतिक उपार्जित रोगप्रतिरोधकता में रोग पैदा करने वाले किसी रोगकारक के सम्पर्क में आने के बाद शरीर में उसकी इम्यूनोलॉजिकल मेमोरी रह जाती है।

अब बात करते हैं कृत्रिम उपार्जित रोगप्रतिरोधकता की। यह भी दो तरह की होती है

  1. पैसिव और
  2. एक्टिव

▪️पैसिव कृत्रिम उपार्जित रोगप्रतिरोधकता एंटीबाडी ट्रांसफर से प्राप्त की जाती है। जबकि एक्टिव कृत्रिम उपार्जित रोगप्रतिरोधकता प्राप्त करने के लिए वैक्सीन का सहारा लिया जाता है।

रोगप्रतिरोधकता का काम है रोगाणुओं से लड़ना और रोगप्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है सन्तुलित पोषण। शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने में मुख्य भूमिका निभाते हैं प्रोटीन, विटामिन्स और मिनरल्स जो हमें मिलते हैं उस सात्विक भोजन से जिसे प्रकृति ने हमें इसी उद्देश्य से प्रदान किया है।

आज हम बात करेंगे उन्हीं 15 खाद्य पदार्थों की जो शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता का विकास करने में सहायक हैं। ये खाद्य पदार्थ हैं

  1. हल्दी: हल्दी को सूजन कम करने की विशेषता के कारण ओस्टियोअर्थराइटिस और रह्यूमेटॉइड अर्थराइटिस के इलाज के लिए सदियों से उपयोग किया जा रहा है। आप सभी अब जान चुके हैं कि हल्दी के अंदर पाया जाने वाला कुरक्यूमिन शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता का विकास करने में सर्वोपरि है और यह एन्टीवायरल भी है।
  2. लहसुन: इसके अंदर पाया जाने वाला सल्फर युक्त कम्पाउंड एलिसिन कमाल का है। इसी के कारण आयुर्वेद में लहसुन को रोगप्रतिरोधक क्षमता बढाने वाला बताया गया है।
  3. अदरख: अदरख में पाया जाने वाला जिंजीरोल ही इसकी जान है। तीखा जरूर है मगर है बहुत कमाल का। गले की खिचखिच मिनटों में दूर कर देता है। इन्फ्लेमेशन कम करता है और कोलेस्ट्रॉल भी कम करता है।
  4. नींबू वर्गीय फल: निम्बू वर्गीय फलों में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है और यह विटामिन सी ही हमें रोगों से लड़ने की अनोखी शक्ति प्रदान करता हैं। विटामिन सी श्वेत रक्त कणिकाओं के बनने में सहायक होता है और यह श्वेत रक्त कणिकाएं ही रोगाणुओं से लड़कर हमें रोग से बचाती हैं। इन फलों में चकोतरा, संतरा, नींबू और मुसम्मी प्रमुख हैं।
  5. पपीता: पपीता भी विटामिन सी का अच्छा स्रोत है। इसके अलावा पपीते में पैपेन होता है जो डाइजेस्टिव एंजाइम है और एन्टीइन्फ्लामेट्री है।
  6. कीवी फ्रूट: कीवी में भी विटामिन सी के अलावा फोलिक एसिड, पोटैशियम, विटामिन के और विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
  7. ब्ल्यूबेरी: ब्ल्यूबेरी में एंथोसायनिन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो एन्टीऑक्सीडेंट होता है और श्वसन तंत्र के इम्यून डिफेंस सिस्टम को मजबूत करता है।
  8. शिमला मिर्च: शिमला मिर्च में संतरे के मुकाबले में तीन गुना विटामिन सी पाया जाता है। इसके अलावा इसमें बीटा कैरोटीन भी भरपूर होता है जो हमारे शरीर में जाकर विटामिन ए में बदल दिया जाता है। विटामिन ए हमारी आंखों की ज्योति के लिए भी परम् आवश्यक है।
  9. ब्राकोली: इसमें विटामिन ए, विटामिन सी और विटामिन ई के अलावा रेशा भी खूब होता है। बस आपको करना इतना है कि इसे या तो कच्चा ही खाइए या कम से कम पकाइए या फिर भाप में पकाइए।
  10. पालक: पालक में ना केवल विटामिन सी और आयरन प्रचुर मात्रा में होता है बल्कि इसके अंदर असंख्य एन्टीऑक्सीडेंट्स और बीटा कैरोटीन भी पाया जाता है और यह सभी रोगप्रतिरोधकता का विकास करने में सहायक हैं।
  11. शकरकंद: शकरकंद में बीटा कैरोटीन पाया जाता है जो शरीर में जाकर विटामिन ए में बदल जाता है और शरीर को रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है।
  12. बादाम: प्रोटीन के साथ साथ विटामिन ई का बेहतरीन स्रोत। चूंकि विटामिन ई वसा में घुलनशील विटामिन है इसलिए बादाम के साथ घी का प्रयोग विटामिन ई के अवशोषण को काफी हद तक बढा देता है।
  13. सूरजमुखी के बीज: इनमें फास्फोरस और मैग्नीशियम के अलावा विटामिन बी6 और विटामिन ई प्रचुर मात्रा में होता है। जिनके कारण रोगप्रतिरोधकता विकसित करने में यह बहुत अच्छी भूमिका निभाते हैं।
  14. योगार्ट: एक दिन हमने पहले भी बताया था कि इसके अंदर प्रोबायोटिक होते हैं अर्थात ऐसे लाभकारी बैक्टीरिया होते हैं जो अपनी संख्या बढाकर रोग पैदा करने वाले रोगाणुओं के लिए समस्या पैदा कर देते हैं और उन्हें पनपने नहीं देते। योगार्ट का नियमित सेवन रोगप्रतिरोधकता बनाए रखता है।
  15. डार्क चॉकलेट: डार्क चॉकलेट में पाया जाने वाला थियोब्रोमीन शरीर की कोशिकाओं को फ्री रेडिकल्स से बचाकर शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है।

उपरोक्त 15 खाद्य पदार्थों के अलावा कुछ जड़ी बूटियां भी शरीर की रोगप्रतिरोधकता क्षमता का विकास करती हैं जैसे गिलोय और कालमेघ। इनका जिक्र किसी अन्य पोस्ट में करेंगे।

और हाँ…. हमेशा की तरह… गौ माता से बेहतरीन सुरक्षा कौन प्रदान कर सकता है!!! पंचामृत का सेवन आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखेगा। इसलिए गाय के दूध, गाय के दूध की दही, गाय के दूध से बना घी, शहद और नारियल पानी से बने पंचामृत का नियमित सेवन करें। जय हो।

Recommended Articles

Leave A Comment