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🖖🖐️त्रिदोष सिद्धाँत।।

वात , पीत और कफ को समझना
🌺
दोस्तो ये एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जिसे कुछ उदाहरण से समझाना चाहता हुँ।🌺

मेरे पास एक चिप्स का पैकेट है ।🍟
मान लीजिए lays कपनी का है।
ये वात का अच्छा उदाहरण है।
पैकेट में जितना चिप्स नही है उतना हवा भरा है । जिस भोजन में हवा भरा हो वो वात को बढ़ाएगा। हवा मतलब ही है वात।
चीप्स को आप हाँथ में रखिये।
ये एकदम हल्की है।
हल्के भोजन वात को बढ़ाएंगे। हल्का सरीर है तो इसका मतलब वात ज्यादा है सरीर में। चीप्स को छूने से रुखा लगता है। रूखापन मतलब है वात। सरीर पर वात का प्रभाव होने से ये रूखा हो जाता है। स्वभाव में भी रूखापन आ जाता है। चीप्स को छूने पर वो खुरदरा मालूम पड़ता है । सरीर का कोई अंग में खुरदरापन नज़र आये या रूखा नज़र आये तो वो वात है। बादाम रूखा है तो इसमे वात है। इसको रात को पानी में गिला कर दीजियेगा तो वात निकल जायेगा। रूखापन मतलब चिपचिपा नही होना। अगर कुछ चिपचिपा है तो वहां वात नही होगा।
चीप्स को खाते समय आवाज आती है । के कर कर की आवाज भी वात की एक खूबी है। सरीर में जब वात बढ़ जाने पर आवाज आती है। खासकर जहां सरीर के जोड़ हैं वहां पर। आवाज वात का स्वभाव है। जो ज्यादा बोलता है उसको वात का प्रकोप होगा। बात बात पर चिल्लाने वाले लोगो को वात का रोग ज्यादा होगा।
पर कोई आवाज पैदा कैसे होती है? दो बातें जरूरी है। पहली है गति दूसरा है कंपन।। तो आवाज आ रही है इसका मतलब गति भी है और कंपन भी। ये गति करने वाले सभी काम वात को बढ़ाते हैं। पैर सरीर में सबसे ज्यादा गति करता है इसलिए इसमे सबसे ज्यादा वात की बिमॉरी होता है। सरीर में जो हिस्सा ज्यादा कंपन करेगा उसमे भी वात दोष जल्दी होगा। जैसे कि हृदय और फेफड़े।
गति का मतलब है एक जगह स्थिर नही रहना। चंचलता वात का गुण है।

अब पित पर विचार करते हैं। पित मतलब है आग। आग तेज हो तो खाना जल्दी पक जाता है। सरीर में पित्त बढ़ा हुआ है तो कहना जल्दी पच जाता है। सरीर में गर्मी पित के कारण है। ज्यादा गर्मी होने पर व्यक्ति ठंडा पानी पीना चाहता है। बाल जल्दी पकाना भी पित का काम है।
आग एक जगह छुपता नही है । वो अपना रूप सबको दिखाता है। पित प्रकृति के लोग भी show ऑफ ज्यादा करते है। खुद को एक्सपोज़ करते है। सरीर के दिखाने वाले अंग पर जैसे त्वचा आंख के रोग भी पित के रोग हैं।
आग बहुत तेज़ हो तो पत्थर भी लावा बनकरपिघल जाते है और बहने लगते हैं। उसी प्रकार सरीर से कोई लिक्विड ज्यादा निकलने लगे तो ये आग या पित बढ़ा होने का संकेत है। ज्यादा पीरियड होना या पाइल्स होना डिसेंट्री होना सब गर्मी के बढ़ने से है। जब लोहा या कोई धातु को ज्यादा गर्म करियेगा तो उससे कई तरह के रंग लाल नीला नारंगी दिखने लगते हैं। पित से सरीर के रंग दिखते हैं। और गंध का आना भी पित का लक्षण है। विशेष कर मांस जलने के गंध पित बढ़े होने की निसानी है। खट्टा या कड़वा खाना भी जलन उतपन्न करता है इसलिए ये भी पित को बढ़ाता है।

अब जो गुण इन दोनों मतलब वात में या पित में न हो वो कफ में होगा।
वात मतलब हल्का है तो कफ मतलब भारी है। भारी भोजन में कफ है।
वात सुख या रुखा है तो कफ गिला है।
वात चंचल है। कफ स्थिर है। कफ जिनका बढ़ जाता है वो हिलना डुलना पसंद नही करेंगे। एक जगह फिक्स हो जाएंगे।
कफ चिपचिपा होता है। खांसी के समय जो बलगम निकलता है वो कफ का उदाहरण है।
पित गर्म है कफ ठंडा है।
वात गैस है पित लिक्विड है कफ ठोश है।
कफ गोरापन है ।
वात का सरीर हल्का है पित का मध्यम और कफ का भारी।

तो चीप्स आग और कफ के उदहारण के द्वारा आप त्रिदोष को जानिये।

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