दुविधा, समस्या, विषम परिस्थितियां, यह सब अत्यधिक सोच-विचार करने पर विवश कर ही देते हैं। आशंकाओं, आशाओं, नकारात्मक तथा सकारात्मक विचारों की उठा-पटक बहुधा इनके प्रभाव में आकर अप्रत्याशित रूप में होने लगती है, जिस पर सहज रूप से नियंत्रण रख पाना बहुत कठिन हो जाता है। अत्यंत विकलता तथा विचलित मानसिक स्थिति, तनाव में कोई भी उचित निर्णय ले पाना कदाचित सरल नहीं रह जाता, निश्चित ही वह निर्णय यदि ऊहापोह की, जल्दबाज़ी की स्थिति में लिया जाये तो एक निष्पक्ष, अप्रभावित तथा सटीक होगा, कहना सम्भव नहीं है…क्रमशः..। एक शांत हृदय, एक शांत मस्तिष्क अधिक महत्वपूर्ण है..!!! प्रसन्न रहें!!
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