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मित्रों,अगर कोई व्यक्ति परिश्रमी एवम पुरुषार्थी तो है, किन्तु उसमें आत्मविश्वास तथा आत्मनिर्भरता की भावना का अभाव है, तो भी उसका पुरुषार्थ व्यर्थ चला जाता है, व्यक्ति अपने आपको दीन-हीन नहीं बल्कि शक्तिशाली समझें, वह महसूस तथा विश्वास करें कि बीज रूप में मेरे भीतर सारी शक्तियाँ विद्यमान है।

हमें अहसास हो कि मैं सब कुछ कर सकता हूँ, जो अन्य सफल व्यक्तियों ने किया है, विश्वास करो कि हम संसार के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति है, वास्तव में सबके भीतर परमात्मा ने एक जैसी शक्ति दी है, आत्मविश्वासी व्यक्ति अपने आप पर विश्वास करता है और सफलता के मार्ग में आने वाली कठिनाईयों को पार कर लेता है।

लेकिन परावलम्बी व्यक्ति आत्मविश्वास के अभाव में हर कदम पर झिझकता है, सज्जनों! सफलता के मार्ग में अवरोध तो आते ही हैं, हमारे आत्मविश्वास पूर्वक डटे रहने से हमारे अन्य सहयोगी भी साथ आ जाते हैं, और सहयोग मिलने लगता है, जो व्यक्ति लक्ष्य की प्राप्ती तक बिना रूके निरन्तर चलते रहते हैं, चाहे कछुआ की भांति धीरे-धीरे ही क्यों न हो, सफल अवश्य हो जाते हैं।

जिन्हें अपने ध्येय, लक्ष्य के प्रति लगन है, निष्ठा है, उसके मार्ग में ऐसा कौनसा अवरोध हो सकता है? जो उसे रोक सके, लेकिन आज का सोया हुआ कल बदल गया, या चार दिन परिश्रम करने के बाद पानी के बुलबुले की भांति लक्ष्य देने के बाद कुछ दिन लक्ष्य के प्रति समर्पण दिखाने के बाद फिर आराम करने लग गये, तो खरगोश और कछुए की कहानी की भांति, असफलता ही हाथ लगेगी।

लक्ष्य के प्रति समर्पित व्यक्ति का सूत्र होता है, कोई छुट्टी नहीं, किसी से कोई अपेक्षा नहीं, कोई भेदभाव नहीं, किसी से कोई शिकायत नहीं, ऐसे व्यक्तियों को जमाना याद रखता है, जैसे वन-वन भटककर और घास की रोटी तक खाने वाले हमारे महापराक्रमी वीर महाराणा प्रताप ने कभी हिम्मत नहीं हारी और अन्त तक निरन्तर चलते रहे और इतिहास बन गयें, अमर हो गयें।

नकारात्मक सोच अर्थात् निराशा, भय, सन्देह, उद्विगनता, अविश्वास के भाव, घुटन भरी सोच, याद रखिये चिन्ता और चिता एक ही सिक्के के दो पहलू की तरह हैं, जो व्यक्ति की जीवनी शक्ति एवं कार्यक्षमता को घटाते-घटाते समाप्त कर देती है, मेरे भाई-बहनों आप अतीत या भविष्य को लेकर चिन्तित न हों, बल्कि स्वस्थ चिन्तन करें।

चिन्ता में व्यक्ति अतीत की असफलताओं, गलतियों, अपमान, दु:ख आदि अप्रिय प्रसंगों को याद करते हुयें केवल यही सोचता है कि एसा क्यों हुआ? कैसे हो गया? आगे अब क्या होगा? कैसे होगा? चिन्ता से वयक्ति केवल परेशान होता है, उसकी शारीरिक मानसिक और आत्मिक स्थिति अत्यन्त दील दुर्बल हो जाती है, जो बीत गयीं सो बात गयीं।

तकदीर का शिकवा कौन करे, जो तीर कमान से निकल गया, उस तीर का पीछा कौन करे, स्वस्थ चिन्तन से समस्या का हल निकलता है, मस्तिष्क की ऊर्जा सक्रिय दिशा में तेजी से काम करती है, चिन्तामुक्त होने का रामबाण उपाय है व्यस्त रहें, और हमारे बुजुर्गों की जो कहावत है- “व्यस्त रहें, मस्त रहें उस कहावत को चरितार्थ करें।

अचित्य चिन्तन से मुक्त होकर श्रेष्ठ विचारों से ऊँचाई की पराकाष्ठा पर पहुँचा जा सकता है, याद रखिये की मानसिक सन्तुलन प्रसन्नता के अधीन रहा करता है, सफलता पाने के लिए प्रसन्नता की उतनी ही आवश्यकता है, जितनी शरीर यात्रा के लिये जीवन की, अप्रसन्न व्यक्ति एक प्रकार से निर्जीव सा ही होता है, उसे विषाद और निराशा का क्षय रोग लग जाता है।

इस प्रकार के नम्र स्वभाव वाला व्यक्ति बनें, नम्रता से सफलता के महान पथ पर चलने में सुगमता होती है, अत: प्रसन्न रहने की आदत डालें, मुस्कुरायें, अपना सुख तथा दूसरों का दु:ख आपस में बाँटे, मुस्कुराने से स्वभाव या आसपास का वातावरण महकने लगता है, आशा का और उमंग का संचार होता है, सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, इसलिये प्रसन्नता से किया गया कार्य सम्पूर्णता की गारंटी माना गया है।

दोस्तों! प्रसन्न रहने के दो ही उपाय हैं- आवश्यकतायें कम करें तथा परिस्थितियों से तालमेल बिठायें, आप ऐसे सफल व्यक्ति या महामुरुष को अपना आदर्श बनायें जिन्होंने आदर्शों पर चलकर एवम् कठिनाईयों से लडक़र जीवन में सफलता पाई हो, इतिहास में ऐसे गौरवशाली चरित्र के बहुत उदाहरण हैं, उन्हें अपना आदर्श बनायें, ऐसे महापुरुष हमारे जीवन के लिए प्रकाश स्तम्भ हैं।

ऐसे महापुरुषों से हमें समस्याओं, अभावों, प्रतिकुलताओं में लडऩे का हौसला बढ़ता है, सत्प्रेरणा मिलती है, न कि किसी फिल्मी एक्टर, खिलाड़ी, विश्व सुन्दरी या गलत साधनों व तरीकों से मंजिल पर पहुँचने वाले नेता, अभिनेता या धनपतियों को अपना आदर्श बनायें, हमारे देश के महान् विचारक, श्रेष्ठ कर्मयोगी, श्रद्धेय श्री स्वामी विवेकानन्दजी ने युवावस्था में ही भारतीय संस्कृति को सम्पूर्ण विश्व में प्रतिष्ठित किया।

वातावरण एवम सत्संग का प्रभाव भी व्यक्ति पर पड़ता है, कुसंग या बुरी संगति में अच्छा व्यक्ति भी निकम्मा, अधर्मी, जुल्मी, नास्तिक या डरपोक बन सकता है, जबकि अच्छी संगति में सामान्य स्तर का मनुष्य भी श्रेष्ठ आचरण करने पर बाध्य हो जाता है, श्रेष्ठ संगती से मनुष्य की गति भी श्रेष्ठ दिशा की ओर हो जाती है, अत: सावधान रहें, याद रखिये, गंदे नाले में गंगा जल की सात्विकता नहीं रह जाती।

भाई-बहनों समझदारी इसी में है कि दुव्र्यसनी, हिंसक, व्यभिचारी, चोर प्रकृति, अशुद्ध भाषण करने वाले, कपटी, आलसी, प्रमादी, धन व समय का अपव्यय व दुरुपयोग करने वाले मित्रों की संगति न करें, सुदामाजी ने श्री कृष्ण से मित्रता की वे निहाल हो गये, तथा दुर्योधन ने शकुनि से मित्रता की थी परिणामस्वरुप सारे कौरव वंश का नाश हो गया, महापुरुषों की संगती श्रेष्ठ संगति है और संगति करने का माध्यम है, स्वाध्याय, श्रेष्ठ पुस्तकें पढ़ना।

सद्ग्रन्थों के अध्ययन से तत्काल प्रकाश, उल्लास और मार्गदर्शन मिलता है और विचारों में सकारात्मकता आती है, क्रोध और अहंकार करने वाले का समाज में कोई मित्र नहीं होता, पग-पग पर उसके विरोधी, दुश्मन, और आलोचक पैदा हो जाते हैं, क्रोध से अविवेक और अविवेक से उत्तेजना पैदा होती है, सम्पूर्ण मस्तिष्क अज्ञानता से भर जाता है और अज्ञान से क्रोधी व्यक्ति का पतन और अन्तत: सर्वनाश हो जाता है।

याद रखिये दिनभर में एक व्यक्ति जितना भोजन करता है उसकी सारी ऊर्जा एक बार के क्रोध से नष्ट हो जाती है, अहंकारी व्यक्ति अपने ही मद में चूर रहता है उसके लिए संसार में सीखने के सारे रास्ते बन्द हो जाते हैं, उसकी उन्नति असम्भव है, हमेशा अपने व्यवहार को सोम्य बनाकर रखें, विनम्रतापूर्वक विद्यार्थी भाव रखने वाले के सामने सारी प्रकृति और परिवार समाज सभी अपना रहस्य व सहयोग के द्वारा खोल देता है।

विनम्रता व शालीनता से माता-पिता, मित्र, गुरुजन सभी अपना सद्भाव भरा सहयोग और आशीर्वाद से हमारी झाोली भर देते हैं, जो सफलता का बहुत बड़ा कारण है, जो जीवन से प्यार करते हों वे आलस्य में समय न गंवायें, समय ही जीवन है, हम समय की कीमत चुकाकर ही सफल विद्यार्थी, कलाकार, संगीतकार, धनपति, आविष्कारक, किसी विषय का विशेषज्ञ हो सकते हैं।

जो समय को गप्पबाजी, आवारागर्दी आलस्य में गंवाता है वह सब कुछ गंवा देता है, जो समय को काटता है, टाईम पास करता है, टाईम उसे पास कर देता है, बीता हुआ समय कभी लौटकर नहीं आता, समय को संग्रह नहीं कर सकते, एक समय विशेष के साथ जो सम्भावनायें जुड़ी रहती है वह उसके साथ ही चली जाती है, इसलिये समय का नुकसान सबसे बड़ा नुकसान है, अत: समय का संयम बरतें, आज का काम कल पर न टालें।

काल करें सो आज कर, आज करें सो अब।
पल में प्रलय होयगा पगला करेगा कब।।

अपना प्रत्येक कार्य समय पर पूरा करें, रात्रि में शयन से पहले अपने समय की समीक्षा करें, सफलता की सिद्धि मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है, जो व्यक्ति अपने इस अधिकार की अपेक्षा करके जैसे तैसी जी लेने में ही सन्तोष मान लेते हैं, वे इस महा मूल्यवान मानव जीवन का अवमूल्यन कर एक ऐसे सुअवसर को खो देते हैं, जिसका दोबारा मिल सकना संदिग्ध है।

हर हर महादेव!
ओऊम् नम: शिवाय्

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