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वेदों में कहा गया है मनुष्य का तन बहु भाग्य से मिलता है
जो मनुष्य शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है ऐसा क्या है इस मनुष्य शरीर में जिसके लिए स्वयं देवता भी तरसते हैं, जिन देवताओं की मनुष्य आज तक पूजा-अर्चना करता आया है वही देवता उसी मनुष्य की शरीर के लिए क्यों तरसते हैं ऐसा वेद पुराण शास्त्रों में क्यों कहा गया है इस मनुष्य शरीर की क्या विशेषता है ऐसा क्या है इसके लिए स्वयं देवता भी तरसते हैं,
तो जानते हैं मनुष्य की शरीर किन किन विशेषताओं और क्षमताओं से पूर्ण है परमात्मा की सबसे सुंदर कृति मनुष्य का शरीर ही है यह मनुष्य शरीर जिस को चलाने के लिए परमात्मा ने मन बुद्धि अहम जैसे सूक्ष्म इंद्रियों का निर्माण किया है और इन सूक्ष्म इंद्रियों को चलाने के लिए स्वयं आत्मा के रूप में खुद ही विद्वान हैं पहले पुराने समय में हमें सुनने को जानने को मिलता है की ऋषि मुनि तपस्या के दम पर कुछ भी कर सकते थे और करते भी थे मनुष्य की शरीर में अनुरूप में संख्या संघ प्रकार के जीव विद्वान हैं जिन्हें विज्ञान की भाषा में सैल भी कहते हैं कुछ सेल ऐसे हैं जो सिर्फ शरीर के लिए कार्य करते हैं और असंख्य सेल ऐसे हैं जो निष्क्रिय अवस्था में है जिस दिन या जिस महापुरुष के वे सेल सक्रिय अवस्था में आते हैं समस्त सृष्टि को अपने वश में कर लेते हैं शरीर पंच तत्वों से बना हुआ है और इन्हीं पंच तत्वों के द्वारा समस्त सृष्टि जगत का उत्पत्ति हुआ है जगत के सारे तत्व इस जगत के सारे गुण मनुष्य के शरीर में विद्यमान हैं लेकिन वह निष्क्रिय अवस्था में ही रहते हैं और उसी अवस्था में मनुष्य का जीवन गुजर भी जाता है और उसे कभी पता भी नहीं चलता है जिन महापुरुष ने अपनी क्षमताओं को जागृत किया या जिनके वे निष्क्रिय सेल सक्रिय हो गए वह समर्थ पुरुष समस्त सृष्टि के उत्पत्ति संचालन और विनाश का उत्तराधिकारी बन जाते हैं जिस मनुष्य शरीर में कोटि-कोटि प्रकार की असंख्या शक्तियां छोटी से बड़ी तक विद्यमान रहती है और यह मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार भी होता है पर अज्ञान के कारण हम उन शक्तियों का पता नहीं लगा पाते हैं और खजाने के मालिक होते हुए भी भिखारी बन संसार में भटकते रहते हैं इसके लिए करना क्या पड़ता है बस हमारी आत्मा को परमात्मा के साथ योग करा दिया जाए जब आत्मा और परमात्मा का योग होता है सो परमात्मा का वही रस वही आनंद वही शक्तियां जो हमारे शरीर में है वह धीरे-धीरे सकरी होने लगती हैं आत्मा हमारा पूर्ण रूप से शरीर के साथ एकाकार अवस्था में आ जाता है और यह शरीफ जो पकित के पांच तत्वों से बना हुआ है यह किसके साथ एकाकार हो जाता है जैसे हमारा मन हमारे शरीर को कंट्रोल करता है ठीक उसी प्रकार से हमारा शरीर इस प्रकृति को बाहरी रखी थी यानी सृष्टि को कंट्रोल करने योग्य बन जाता है शरीर में कोटि-कोटि प्रकार के आसन क्षेत्र हैं जिनके द्वारा ऊर्जा का आवागमन होता है ऐसे सोच में छिद्र भी हैं जो हमें नजर तो नहीं आते हैं पर वे हैं और अपना कार्य बखूबी करते हैं पर वे पूर्ण रूप से कार्य सभी कर पाते हैं जब हमारा शरीर और आत्मा पूर्ण रूप से एकाकार अवस्था में आ जाते हैं आत्मा का परमात्मा से योग शरीर का आत्मा से योग और शरीर का भक्ति से पूर्व हो जाना उस अवस्था को पाने के लिए देवता भी तरसते हैं जो मनुष्य शरीर हमें फ्री में मिला है असल में इसकी कीमत पूरे ब्रह्मांड में कोई चुका नहीं सकता है बड़े बड़े देवता भी व कीमत नहीं दे सकते हैं जो फ्री में हमें परमात्मा ने दे दिया है संसार का ऐसा कोई पप्पू नहीं है ऐसी कोई भी भी सिद्धि नहीं है ऐसी किसी प्रकार की कोई शक्ति नहीं है जो मनुष्य के शरीर में विद्यमान नहीं है बस हमें अपने अंदर विद्यमान इन शक्तियों को ढूंढने के लिए ऐसा कोई महापुरुष ढूंढना पड़ेगा जो हमें अपने ही विषय में बता दे हमारे सभी तत्वों का ज्ञान करवा दे ऐसे महापुरुष भी समर्थ होते हैं जिन्हें पूर्ण परमात्मा भी कहा जाता है

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