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।। नाथ संप्रदाय से जुड़े कुछ सत्य ।।

वर्तमान समय में कही “स्वयं घोषित नाथ योगी और उपासक”
नाथ संप्रदाय और उसके इतिहास के विषय में गलत प्रचार कर रहे है,
उसमे से कुछ तथ्य है जिन्हें हम गलत साबित कर रहे है.

१} नाथ संप्रदाय का प्रादुर्भाव “कलयुग” में होना X
-उत्तर- >
नाथ संप्रदाय शैव मत का सबसे प्राचीन और पहला संप्रदाय है,
जिसके मूल प्रवर्तक भगवान आदिनाथ शिव स्वयं है,
जिन्होंने प्रथम “भेख” धारण किया,
तत्पश्चात उन्होंने “महायोगी मत्स्येन्द्रनाथ” जी को
यह “भेख” प्रदान कर उन्हें संप्रदाय में दीक्षित किया,
और वचन दिया के जब वह गोरक्ष रूप में प्रगट होंगे
तब उनके शिष्य बनेगे,
और नोंवे नाथ गुरु गोरक्षनाथ जी है जो स्वयं शिव के ही अवतार है,
योग मार्ग के प्रचार और गुरु शिष्य परंपरा आगे बढाने
हेतु आदिनाथ शिव के ही स्वरुप गोरक्षनाथजी
मत्स्येन्द्रनाथजी से दीक्षित हुए.
इसका प्रमाण आरती में मिलता है,
“आदिनाथ नाती , मछिंदर पुता |
आरती उतारत गोरख अवधूता ||”
नाथ संप्रदाय “चारो युगों” में प्रगट रहा है,
और आगे आने वाले अनंत समय तक विद्यमान रहेगा,
नाथ संप्रदाय स्वयंभू और अखंड है,
इसकी स्थापना या शुरुवात किसी आचार्य या मनुष्य द्वारा न हो कर,
स्वयं देवाधिदेव महादेव आदिनाथ शिवजी ने योग मार्ग के प्रवर्तन हेतु
इसे प्रारंभ किया, और आगे चलकर स्वतः आदिनाथजी
गुरु गोरक्षनाथजी के रूप में प्रगट हो कर, इसका भूलोक में विस्तार किया,
बहुत लोगो को सही जानकारी नहीं होने के कारण भ्रमित हो जाते हैं सत्य तक नहीं पहुंच पाते हैं.
और काल्पनिक ग्रंथो और कथाओ के कारण प्राचीन परंपरा और ज्ञान से वंचित रह जाते है.

२} गोरक्षनाथ जी का गोबर से प्रागट्य X
-उत्तर->
भगवान आदिनाथ शिव ही गोरक्ष है,
शिव गुरु रूप में गोरक्ष है,
वह जन्म जरा, प्रागट्य और विलय से परे है.
कुछ लोगो ने षड्यंत्र कर “गोरक्ष” शब्द का गलत अर्थ निकला
और उन्हें गोबर से प्रगट हुआ बता कर अपना ज्ञान जाड़ने लगे है,
एक सामान्य ज्ञान की बात है,
की बारह साल तक कौन गोबर इकठ्ठा करता है?
जब की सत्य यह है,
भगवन आदिनाथ शिव स्वयं “गोरक्ष” रूप में अवतरित हो कर
योग मार्ग का ज्ञान प्रदान करते है,
सतयुग में गिरनार और परशुपुर (वर्तमान समय का पेशावर)
त्रेतायुग में गोरखपुर (गोरक्षपीठ)
द्वापरयुग में हरभुज (द्वारका के निकट)
और कलयुग में गोरख मढ़ी (सौराष्ट्र) तथा सिद्धाचल मृगस्थली (नेपाल)
में अपनी साधना द्वारा गुरु गोरक्षनाथ जी ने अनेको मुमुक्षु का उद्धार किया.

३} नव नारायण से नवनाथ का अवतार X
-उत्तर->
प्रथम हम मूल सम्प्रदाय द्वारा उपासित नवनाथो के नाम देखेंगे,
जो इस प्रकार है–

  1. ॐ कार आदिनाथ जी
    ( ॐ कार शिव ज्योति स्वरुप).
  2. उदयनाथ जी
    ( पार्वती-धरती स्वरुप)
  3. सत्यनाथ जी
    (ब्रह्माजी-जल स्वरुप)
  4. सन्तोषनाथ जी
    ( विष्णुजी – खड्ग खांडा तेज स्वरुप )
  5. अचल-अचम्भेनाथ जी
    ( शेष-वायु स्वरुप)
  6. गजबेली गज कंथड़नाथ जी
    ( गणेशजी -गजहस्ति स्वरुप )
  7. ज्ञान पारखी सिद्ध चौरंगीनाथ जी
    ( चन्द्रमा -अठारह भार वनस्पति स्वरुप)
  8. माया स्वरूपी दादा मत्स्येन्द्र नाथ जी
    ( मत्स्य-माया स्वरुप)
  9. श्री शंभूजती गुरु गोरक्षनाथ जी
    (शिव- बाल योगी स्वरुप)
    यही नवनाथ है जो आनादि काल से विराजमान हैं ।
    इसमें स्वयं भगवान आदिनारायण विष्णु जी
    “संतोषनाथ” जी के रूप में उपासित है.
    अब रहा सवाल “नव नारायण” का
    तोह यह प्रचालन जैनों द्वारा चलाया गया है
    जिसमें ९ नारायण, ९ बलभद्र और नव प्रतिनारायण (विरोधी)
    “तीर्थंकर” के समय अवतार लेते है, थ
    और दीक्षित हो कर निर्वाण जाते है- (सन्दर्भ – जैन आगम और शास्त्र)
    तोह यह बात साफ होती है के सनातन धर्म में “नव नारायण” का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता.
    यह जैन कथा है जिसे बिना कोई सम्बन्ध नाथ संप्रदाय से जोड़ा गया है.
    मूल नवनाथो के साथ ही ज्वालेंद्रनाथ जी, विचारनाथ जी (भर्तहरी),
    श्रुंगेरीनाथ जी(गोपीचंद), कानिफनाथ, चर्पटीनाथ जी,
    गहिनीनाथजी इत्यादिक नाथ सिद्ध भी संप्रदाय में उपासित है
    सम्पूर्ण भेख भगवान द्वारा ८४ सिद्धो में पूजनीय है

४} गुरु दत्तात्रय का नाथ सम्प्रदाय को स्थापित करना X
-उत्तर->
भगवान दत्तात्रय और गोरक्ष नाथजी एक ही परम तत्व के दो स्वरुप है,
इसका प्रत्यक्ष प्रमाण गिरनार शिखर पर दोनों का एक साथ तप और साधना करना.
गुरु दत्तात्रय का अवतार भी सतयुग का है और गोरक्षनाथ जी तथा नाथ संप्रदाय का,
इन दोनों द्वारा विभिन्न मार्गो की गुरु-शिष्य परंपरा चलाई गयी.
गुरु दत्तात्रय द्वारा अघोर तंत्र, शाक्त और श्री विद्या उपासना.
और गुरु गोरक्षनाथ जी द्वारा नाथ मत और हठयोग पद्धति के मार्ग का प्रचार प्रसार हुआ.
कोई भी प्राचीन ग्रन्थ में यह उल्लेख नहीं है की दत्तात्रय महाराज ने,
नाथ संप्रदाय चलाया या उसका प्रवर्तन किया.
और गुरु दत्तात्रय ने अपने कोई भी विचारित ग्रन्थ में स्वयं को नाथो का गुरु नहीं बताया

नाथ संप्रदाय की मूल गुरु शिष्य प्रणाली,
आदिनाथ –> मत्स्येन्द्रनाथ –> गोरक्षनाथ –> और गोरक्षनाथ जी द्वारा
“बारह पंथ भेख” को चलाया गया.
इन बारह पंथ अथवा शाखाओ के नाम है
१) सतनाथ
२) धर्मनाथ
३) दरियानाथ (नटेश्वरी)
४) आई पंथी
५) वैराग के
६) राम के
७) कपिलानी
८) गंगानाथी
९) मन्ननाथी
१०) रावल के
११) पाव पंथ
१२) पागल पंथ
ईनके अलावा
धव्जपंथी, कंथडपंथी, गोपाल पंथ ,
वन के, पकं (पंख), हेठ नाथी,
ईत्यादी मिलाकर पंथ की कुल संख्या १२-१८ मानी गई है.

५} कुछ अज्ञानी द्वारा अलग अलग “नाथ संप्रदाय” बताना X
-उत्तर–>
सर्व प्रथम “संप्रदाय” एक ही होता है
उसकी शाखा अलग हो सकती है,
पर मूल नहीं. ना
जैसे नाथ संप्रदाय से ज्ञाननाथ जी द्वारा “वारकरी मत”
सिद्ध रामदेवजी द्वारा “निजार मत”
नाथ संप्रदाय के आश्रित “मुस्लिम संतो”
द्वारा “सूफी मत” चला पर इन सब का मूल तोह गोरक्षनाथ जी का
नाथ संप्रदाय ही है.
चाहे उत्तर भारत हो या दक्षिण भारत,
महाराष्ट्र, गुजरात अथवा राजस्थान पंजाब ही नहीं परंतु सम्पूर्ण विश्व में
एक मात्र “नाथ संप्रदाय” है यह कही भी भाषा अथवा राज्य के आधार पर विभाजित नहीं है.

६}अलग अलग जगहों पर नवनाथ की समाधी बताना X
नवनाथ यह स्वयंभू और अयोनिज है,
जन्म और मृत्यु से परे,
चारो युगों में शरीर शांत होने पर अलग अलग दाहसंस्कार कहे गए है,
सतयुग – वनदाह अथवा पवन दाह
त्रेतायुग – जलदाह
द्वापरयुग – अग्निदाह
कलयुग – भूमिदाह का
जब कोई योगी अपनी इच्छा से अपना शरीर त्याग कर ब्रह्मस्वरुप में विलीन होता है, तोह उसके पंच भौतिक शरीर को समाधी दी जाती है,
अब नवनाथ (ऊपर बताये हुए) देवी देवता जो योगी स्वरुप में है
इनकी मृत्यु नही हुई है तो इनकी समाधि होने का प्रश्न ही नहीं उठता है यह आज भी दिव्य स्थान पर धरातल पर चेतन स्वरुप में विचरण करते हैं पृथ्वी की योगी की रक्षा करते हैं सनातन धर्म की रक्षा करते हैं,
कई लोगो को ज्ञान नहीं होने के कारण यह बात कही जाती है कि ये इनकी समाधि है ये उसकी है जबकी असल बात यह है की नवनाथ चौरासी सिद्धो की चरण पादुका का स्थान होता है जहाँ ये प्रकट हुए थे या उन्होंने उस स्थान तपस्या की थी या फिर भक्त को दर्शन दिये थे तो उस स्थान पर उनकी चरण कमल पादुका अथवा धुना अथवा मठ स्थापित होती है ना कि समाधि.

७} स्वयं घोषित नाथ और गुरु पीठ X
–उत्तर->
नाथ संप्रदाय यह गुरु गम्य मार्ग है,
न की देखा देखि और पोथी पुस्तक में देख अनुसरण करनेका,
नाथ संप्रदाय के बारह पंथ और उससे संबंधित गुरु परंपरा से विधिवत दीक्षित व्यक्ति ही नाथ मार्ग का साधक कहा जाता है,
जिसके लिए सम्पूर्ण नाथ योगी दर्शनी और औघड़ पूज्य है,
नाथ संप्रदाय के दर्शनी योगी (कर्ण कुंडल धारी) सम्पूर्ण गुरु रूप में पूजे जाते है और यही नाथ संप्रदाय के मानद गुरुपीठ और क्षेत्रो के अधिकारी है.
जिस व्यक्ति ने नाथ मार्ग में दिक्षा और उसका आचरण न किया हो
उसे लेश ती मात्र भी “अधिकार” नही है की वह “नाथ संप्रदाय” के बारे में उपदेश दे.
कुछ लोगो ने मनमुखी हो कर अपने नाम के पीछे
“नाथ” लगाना शुरू कर दिया है,
जिन्हें नाथ मार्ग और योग का शून्य ज्ञान है,
ऐसे ओग अपने खुद बनाए हुए उटपटांग मंत्रो और विधियों द्वारा लोगो को भ्रमित कर अपना धंधा चला रखा है.
ऐसे लोगो से हमेशा सावधान रहे.

८} नाथो का किसी व्यक्ति के शरीर में संचार होना X
–उत्तर->
नाथ संप्रदाय में पाखंड हेतु
चिंटी के बाल जितनी भी जगह नहीं है,
अनेक पाखंडी लोग गुरुवार, रविवार, अमावस्या और पूर्णिमा को
हाथ में चिमटा, बड़ी बड़ी रस्सी कमर पर बांध के,
नकली नादी जनेऊ पहनकर
भगवे वस्त्र वं पहनकर, भस्म वगेरे लगाकर
“अलख अलख” करते (जिसका अर्थ शायद उन्हें खुद को पता न होंगा)
अपना दरबार लगते है,
जिसमे भोले भले लोग अपनी समस्या का निवारण मांगने आते है,
और ऐसे पाखंडियो का दावा है के इनके शरीर में “नाथजी”
( गोरक्षनाथ, मत्स्येन्द्रनाथ, कानिफ नाथ ) का संचार या प्रवेश होता है.
और वह इन समस्याओ का निवारण कर सकते है,
जो सिर्फ सुर सिर्फ ढोंग और पैसे के साथ शिष्य सेवक बनानेका धंधा है
जिसका संपूर्ण नाथ संप्रदाय और स्वयं भगवान गोरक्षनाथ जी खंडन करते है.

सभी भक्तो से विनंती है की किसी भी तथ्य पर विश्वास करने से पहले सत्य को समजे,
किसी भी भक्ति मार्ग या साधना मार्ग अथवा संप्रदाय के विषय जानकारी हेतु, उसके अधिकारी, साधू अथवा योग्य साधको अ से मार्गदर्शन प्राप्त करे.
जिज्ञासा हो तोह नाथ संप्रदाय के दलिचे, मठ, अखाड़े में जाकर सत्य और सम्पूर ज्ञान प्राप्त करे.
साधुओ के साथ सत्संग कर संप्रदाय को समजे.
श्री नाथजी आप सभी भक्तो को मार्गदर्शन करते रहे.

(नोट :- इस पोस्ट पर कमेन्ट करते समय अपनी भाषा मर्यादा बनाये रखे,
जिज्ञासु अपने प्रश्न आनंद से पूछे, उपदेश देने वाले सावधान रहे,
यहाँ सिर्फ प्रेम के लिए ही स्थान है,
अपितु किसी सज्जन को इस विषय चर्चा करनी हो,
तोह कमेंट करे)

लिखित –
योगी अवंतिकानाथ,
गुरु श्री १०८ महंत योगी
तुलसीनाथ जी महाराज.

🌙 अलख आदेश 🌙
🌿 ॐ शिव गोरक्ष 🌿

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