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: दूसरे व्यक्तियों में सुधार करने से पहले हमें अपने सुधार की बात पहले सोचनी होगी। दूसरों से मधुर व्यवहार की अपेक्षा रखने से पूर्व हमें स्वयं अपने व्यवहार को मधुर रखना होगा। कई बार हमारा खुद का व्यवहार कितना निम्न और अशोभनीय हो जाता है।। दूसरों की कमजोरियों और दुर्बलताओं का हम बहुत मजाक उड़ाते हैं। एकदम आग बबूला भी हो जाते हैं। कभी हमने विचार किया कि हमारे स्वयं के भीतर भी कितने दोष- दुर्गुण, और वासना भरी पड़ी है यह अलग बात है हमने उसके ऊपर सच्चरित्र की झूठी चादर ओढ़ रखी है।। इस जगत में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं जो पूर्णतः भला हो या बुरा हो। परिस्थिति के हिसाब से भली बुरी छवि सामने आती रहती है। यदि हम दूसरों में बुराई, अभाव, या अपकार ही देखते रहेंगे तो जीवन को नरक बनते देर ना लगेगी। याद रखना दुनिया में किसी को सुधारना चाहते हो तो केवल स्वयं को सुधारो।।
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संसार में सारे झगड़ों की जड़ यह है कि हम देते कम है और माँगते ज्यादा हैं। जबकि होना ये चाहिए कि हम ज्यादा दें और बदले की अपेक्षा बिलकुल ना रखें या कम रखें। प्रेम और सेवा कोई कर्म नहीं हमारा स्वभाव बन जाये।
संसार में कोई भी कर्म व्यर्थ नहीं जाता, कुछ ना कुछ उसका फल जरूर मिलता है। निष्काम सेवा का सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि हमारा कोई दुश्मन नहीं बनता। प्रत्येक क्षण हम हर्ष और आनंद से भरे रहते हैं।
किसी से शिकायत करने पर जितना बदला मिलता है उससे कई गुना तो बिना माँगे ही मिल जाता है। प्रेम से उत्पन्न होने वाले आनंद का कोई मोल नहीं है। अपेक्षा ही बन्धन है, अपेक्षा जीवन को परतंत्र बनाती है, मन का सबसे स्वतंत्र हो जाना ही मोक्ष है।

प्रेम में जीने वाला निखर जाता है।
प्रेम से विलग जीने वाला बिखर जाता है॥

🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩

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जो व्यक्ति स्वयं को नहीं जानता वह चाहे संसार में उपलब्ध सारे ग्रंथ कंठस्थ कर ले तो भी व्यर्थ है, जैसे दीये के ही नीचे अँधेरा होता है। वैसे ही आप उस के प्रति अंधकार में हैं।। जो कि आपकी आत्मा है। जो व्यक्ति स्वयं को ही नहीं जानता है।। तो यदि वह परेशान है। तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है।। आत्म ज्ञान के अभाव में जीवन ऐसे है। जिसको चलाने वाला बेहोश है।। लेकिन किसी प्रकार नौका चली जा रही है। जीवन को सम्यक् गति प्रदान करने और उसे गन्तव्य देने के लिये आत्म ज्ञान अनिवार्य है।।

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