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एक ज्ञानी व्यक्ति और संसारी में यही फर्क है। कि ज्ञानी मरते हुए भी हँसता है।। और संसारी जीते हुए भी मरता है। ज्ञान हँसना नहीं सिखाता, बस रोने का कारण मिटा देता है।। ऐसे ही अज्ञान रोना नहीं देता बस हँसने के कारणों को मिटा देता है। ज्ञानी इसलिए हर स्थिति में प्रसन्न रहता है।। कि वो जानता है। जो मुझे मिला, वह कभी मेरा था ही नहीं और जो कुछ मुझसे छूट रहा है, वह भी मेरा नहीं है।। परिवर्तन ही दुनिया का शाश्वत सत्य है। संसारी इसलिए रोता है, उसकी मान्यता में जो कुछ उसे मिला है।। उसी का था और उसी के दम पर मिला है। जो कुछ छूट रहा है सदा सर्वदा यह उस पर अपना अधिकार मान कर बैठा है।। बस यही अशांत रहने का कारण है। मूढ़ता में नहीं ज्ञान में जियो ताकि आप हर स्थिति में प्रसन्न रह सकें।।
[: मित्रों,”विचारों”से हम उठते हैं, और “विचारों” से ही गिरते हैं। उनसे ही खड़े होते हैं।। और उनसे ही चलते हैं। उनकी जबरदस्त शक्ति से सबका भाग्य बनता है।। जो आदमी अपने “विचार” का स्वामी बनकर रहता है, जो आदमी इच्छाओं को अपने वश में रखता है। और जो प्रेमपूर्ण सचाई के तथा साहस भरे “विचार” करता है।। वह अपने आदर्श को सत्य के प्रकाश में ढूंढ़ लेता है।। तुम्हारे जीवन के जो क्षण व्यतीत हो रहे हैं। उनको सादे, मधुर, पवित्र, सुन्दर, श्रेष्ठ आशापूर्ण, उच्च तथा नम्र “विचारों” से भरो वे “विचार” तुम्हारे जीवन क्षेत्र में अपने अनुरूप फल पैदा करेंगे,फल स्वरूप तुम्हारा दैनिक जीवन आन्तरिक शुभ “विचारों” का जीता जागता चित्र बन जायेगा। ऐसा जीवन ही ‘”सफल मनुष्य जीवन”’ होता है।।

आत्म-चिंतन 🙏🌹🙌🙏

एक मालन को रोज़ राजा की सेज़ को फूलों से सजाने का काम दिया गया था। वो अपने काम में बहुत निपुण थी। एक दिन सेज़ सजाने के बाद उसके मन में आया की वो रोज़ तो फूलों की सेज़ सजाती है, पर उसने कभी खुद फूलों के सेज़ पर सोकर नहीं देखा था।
कौतुहल-बस वो दो घड़ी फूल सजे उस सेज़ पर सो गयी। उसे दिव्य आनंद मिला। ना जाने कैसे उसे नींद आ गयी।
कुछ घंटों बाद राजा अपने शयन कक्ष में आये। मालन को अपनी सेज़ पर सोता देखकर राजा बहुत गुस्सा हुआ। उसने मालन को पकड़कर सौ कोड़े लगाने की सज़ा दी।
मालन बहुत रोई, विनती की, पर राजा ने एक ना सुनी। जब कोड़े लगाने लगे तो शुरू में मालन खूब चीखी चिल्लाई, पर बाद में जोर-जोर से हंसने लगी।
राजा ने कोड़े रोकने का हुक्म दिया और पूछा – “अरे तू पागल हो गयी है क्या? हंस किस बात पर रही है तू?”
मालन बोली – “राजन! मैं इस आश्चर्य में हंस रही हूँ कि जब दो घड़ी फूलों की सेज़ पर सोने की सज़ा सौ कोड़े हैं, तो पूरी ज़िन्दगी हर रात ऐसे बिस्तर पर सोने की सज़ा क्या होगी?”
राजा को मालन की बात समझ में आ गयी, वो अपने कृत्य पर बेहद शर्मिंदा हुआ और जन कल्याण में अपने जीवन को लगा दिया।

सीख – हमें ये याद रखना चाहिये कि जो कर्म हम इस लोक में करते हैं, उससे परलोक में हमारी सज़ा या पुरस्कार तय होते हैं ।

     🙏हरे कृष्ण🙏

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