संसार में ऐसे कोई भी दो व्यक्ति नहीं दिखते , जिनके विचार सौ प्रतिशत एक जैसे हों। विचारों में कहीं न कहीं अंतर या टकराव होता ही है ।
इसका कारण है सब लोगों के पूर्व जन्मों के संस्कार एक समान नहीं हैं। सबकी इच्छाएं एक समान नहीं हैं। सबकी बुद्धि का स्तर अर्थात आई क्यू लैवल एक जैसा नहीं है, इत्यादि कारणों से सबके विचारों में अंतर आता है । सबकी रूचि में अंतर आता है। सबके कर्मों में भी अंतर आता है। फिर भी हमें एक दूसरे के साथ व्यवहार तो करना ही होता है ।
हम अपनी बातें दूसरों को समझाते हैं , दूसरे लोग अपनी बातें हमें समझाते हैं। इस सारी व्यवस्था में जब कोई व्यक्ति ईमानदारी से दूसरे व्यक्ति को अपनी बात समझाता है और दूसरा व्यक्ति भी ईमानदारी से उसे समझना चाहता है, तब तो वह पहले व्यक्ति की बात स्वीकार कर लेता है ।
और जब दूसरे व्यक्ति में ईमानदारी नहीं होती, हठ दुराग्रह स्वार्थ अविद्या आदि दोष होता है, तब आप उसे कितना ही समझा लें , उसको आपकी बात समझ में नहीं आती। और वह आप की बात नहीं मानता ।
तब वह झगड़े करता है, स्वयं दुखी रहता है और दूसरों को भी दुख देता है। इसलिए जो जो लोग आपके संपर्क में आते हैं, उन सब व्यक्तियों को पहचानें, उनमें से जो बुद्धिमान और सत्यग्राही हों, ऐसे व्यक्तियों से व्यवहार करें। तथा हठी बेईमान स्वार्थी लोगों से बचकर रहें।
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