सुख-दुःखः जीवन -नैया की दो पतवार
जब कभी हमारे साथ कुछ अनहोनी होती है, हम पहला पत्थर भगवान की ओर उछालते हैं। उन्हें दोष देने लगते हैं। हमारे मन में यह सवाल उठता है कि जब हमने किसी का कभी बुरा नहीं किया फिर भगवान ने हमारे साथ ऐसा क्यों किया ? भगवान तो मौन रहते हैं। यह रोष धीरे-धीरे उदासी और फिर डिप्रेशन में बदल जाती है। बिना उत्तर पाए जीवन को बोझ बनाकर न जिएं। ईश्वर अवतार लेते ही है कि वे हमारे ऐसे प्रश्नों का उत्तर दे सकें। ईश्वर हमारी पहली सांस के साथ ही अंतिम सांस पर भी हस्ताक्षर कर चुके होते है। इस दौरान वह हमें उम्रभर खुशी और गम के पल देता है। इस धरती पर हम सीखने आए हैं।यह उसी का हिस्सा है। जब अच्छा होता है तब हम आभार जताते हैं। धीरे-धीरे हमारा हक मान लेते हैं कि ईश्वर आपको हमारे साथ अच्छा करना ही होगा। जब अनहोनी होती है तब हम बिखर जाते हैं और परमात्मा को कोसने लगते हैं। पर वह ऐसा करके हमें यही याद दिलाता है कि सुख-दुःख एक नाव की दो पतवार है। एक तरफ ही नाव चलाओगे तो भंवर बनकर नाव एक जगह घूमकर डूब जाएगी। दो पतवारों से चलने वाली नाव का अपना एक किनारा और यात्रा तय होता है। परमात्मा के फैसले में धैर्य के साथ भविष्य में झांके, वो फिर कुछ अच्छा करने के लिए खडा है और दिखाई भी देगा।।
।।जय श्रीकृष्ण राधे।।
।।राधे राधे।।
[ स्व भाव = अपना भाव
हर वस्तु और व्यक्ति का अपना एक निजी स्वभाव होता है
जैसे आग का स्वभाव है जलाना
यदि जलाए नहीं तो आग कैसी
ऐसे ही पानी का स्वभाव है शीतलता
यदि शीतलता नहीं और बहना नहीं तो पानी कैसा
स्वभाव अपरिवर्तनीय है स्वभाव बदल पाना असंभव ही है । हम लोग यह चाहते हैं कि सामने वाले का स्वभाव बदल जाए । अपना नहीं ।
सामने वाला बदले हम तो जैसे हैं वैसे ही रहें और हम ठीक हैं । जबकि यदि हम प्रयास करें तो हम फिर भी सत्संगति सत्य विचार सदाचरण से अपना स्वभाव बदल सकते हैं । दूसरे का कदापि नहीं ।
दूसरे के स्वभाव को हम स्वीकार कर सकते हैं उसके स्वभाव के अनुसार उससे व्यवहार कर सकते हैं ।
स्वीकार करने का एक ही तरीका है जब जलाने की जरूरत पड़े तो आग को याद कर लो
जब बुझाने की जरूरत पड़े तो पानी को याद कर लो
जब मुस्कुराने की जरूरत पड़े तो किसी अच्छे पुष्प को याद कर लो
हमें यदि आनंद में शांति में रहना है तो स्वभाव को स्वीकारना होगा