जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। कभी सुख आता है, कभी दुख भी आता है। प्रायः ऐसा देखा जाता है कि सुख के अवसर पर व्यक्ति नाचने कूदने लगता है और जब दुख आता है, तो बहुत हैरान परेशान हो जाता है। ये दोनों ही स्थितियां अच्छी नहीं हैं।
जब सुख का अवसर आए, तो उसे सामान्य रूप से निभाने का प्रयत्न करें, बहुत अधिक खुश न हों। यदि आप सुख के अवसर पर ऐसा कर लेंगे, तो जिस दिन दुख आएगा, तब आप उसे भी सामान्य रूप से निभा लेंगे और बहुत रोना चिल्लाना आदि नहीं करेंगे। इसी समत्व का नाम उत्तम जीवन है।
यह समत्व ईश्वर की कृपा तथा उसके न्याय पर भरोसा रखने से प्राप्त होता है। जो लोग ईश्वर की कृपा तथा न्याय पर विश्वास करते हैं, तो ये दोनों चीजें मिलकर उनके जीवन में समता को उत्पन्न कर देती हैं। इस समता के सहारे वे बड़े आनंद से जीवन जीते है। आप भी इस विषय में विचार करें। हो सके तो इसका पालन करके अपने जीवन को सुखी और सफल बनाएं।
एक अच्छा रिश्ता तब बनता है …..!!
जब कोई आपके अतीत को स्वीकार करता है ,,आपके वर्तमान का समर्थन करे ,,और आपके भविष्य को प्रोत्साहित करे…..
अगर आप दुख पर ध्यान देंगे तो हमेशा दुखी रहेंगे और सुख पर ध्यान देंगे तो हमेशा सुखी रहेंगे क्योंकि यह जीवन का शाश्वत नियम है कि आप जिस पर ध्यान देंगे वही चीज सक्रिय हो जाती है।
यदि दो पेड़ों को एक साथ लगाया जाए मगर देख रेख एक ही पेड़ की की जाए, एक ही पेड़ का ध्यान रखा जाए और समय – समय पर खाद पानी भी उसी एक पेड़ को दिया जाए तो सीधी सी बात है कि जिस पेड़ पर ध्यान दिया जाएगा वही अच्छे से पुष्पित और फलित हो पायेगा। ठीक ऐसे ही सुख पर ध्यान केंद्रित करोगे तो जीवन में सुख की ही वृद्धि पाओगे और दुख पर ध्यान केंद्रित करोगे तो जीवन में दुख ही दुख प्राप्त होंगे।
विज्ञान ने भी इस बात को सिद्ध किया है कि जीवन में जिस वस्तु की हम उपेक्षा करने लगते हैं वो वस्तु धीरे-धीरे अपने अस्तित्व को खोना शुरू कर देती हैं। भले ही वो प्रेम हो, करुणा हो,जीवन का उल्लास हो अथवा सुख ही क्यों न हो।
जहाँ सकारात्मक दृष्टि जीवन में सुख की जननी होती है वहीं नकारात्मक दृष्टि जीवन को दुख और विषाद से भी भर देती है। इसलिए जीवन में सदा सकारात्मक दृष्टि ही रखी जानी चाहिए ताकि व्यक्ति के दुख और विषाद जैसे काल्पनिक शत्रुओं का समूल नाश हो सके।
पानी को कितना भी गर्म कर लें पर वह थोड़ी देर बाद अपने मूल स्वभाव में आकर शीतल हो जायेगा। इसी प्रकार हम कितने भी क्रोध में, भय में अशांति में रह लें थोड़ी देर बाद बोध में, निर्भयता में और प्रसन्नता में हमें आना होगा क्योंकि यही हमारा मूल स्वभाव है।
इतना ऊर्जा सम्पन्न जीवन परमात्मा ने हमें दिया है स्वयं का तो क्या लाखों लाखों लोगों का कल्याण करने के निमित्त भी हम बन सकते है। जरुरत है स्वयं की शक्ति और स्वभाव समझने की।
सबसे बड़ी अगर जीवन पथ में अगर कोई बाधा है तो वह है निराशा। हम थोड़ी देर में ही परिस्थिति के आगे घुटने टेककर उसे अपने ऊपर हावी कर लेते हैं। किसी संग दोष के कारण, किन्ही बातों के प्रभाव में आकर निराश हो जाना, यह संयोग जन्य स्थिति है। आनंद , प्रसन्नता, उत्साह, उल्लास और सात्विकता मूल स्वभाव तो हमारा यही ही है।