Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

मालिक एक, नामः अनेक।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
नज़र अगर मंज़िल पे हैं और रास्ते की ख़बर नहीं तो बात नहीं बन सकती क्यूँ?, क्यूँकि ठोकर लग जाएगीइसी तरह ध्यान साधना करने वाले साधक, क्या करते एक ऐसी मंज़िल जिसकी बुनियाद केवल कल्पना पे टिकी हो लेकिन ये भी एक सत्य की किसी कल्पना के पीछे ध्यान केंद्रित कर दो तो वो जागृत हो जाती 😂 ये सत्य हैं लेकिन ये भी सत्य नहीं हैं की जिस धारणा पे आप निरंतर ऊर्जा प्रवाहित कर रहे हो वही सशवत सत्य हो? 😂लेकिन इस रास्ते पे भी जो एक कल्पना को अपनी धारणा बना चुके हैं और निरंतर उसे सिद्ध करने को प्रयासरत हैं तो ऐसी क्रिया अंदर सो रही अनंत छोटी छोटी शक्तियों को जागृत करती जाती हैं जो आगे चलकर सिद्धियों के लिए सहायक होती पर ये धारणा के अंतर्गत आती हैं ना की पूर्ण समाधि और परमानंद तक लेकर जाती हैं मंज़िल तक ले जाने वाले रास्ते को देख देख कर हर आंतरिक रास्ते के अनुभव को महसूस करते जाओं, आगे बढ़ो ना की हर समय अपनी कल्पना को बदलो अपने धारणा को बदले बल्कि इसे चरणबद्ध तरीक़े से एक धारणा का चुनाव करे और निरंतर उसी में गुम होने की प्रयास और इस एक धारणा के अंतर्गत मन को भटकाने वाली अनेको कल्पना और धारणा अनियंत्रित रूप से स्वत अपनी जगह लेना चाहती और आपकी मंज़िल कब बदल जाती आपके रास्ते विधी छन भर में कब मुड़ जाते बदल जाते इसकी आभास साधक को लगता ही नहीं की 😂😴 कब वो दूसरे रास्ते की ओर मुड़ गए ऐसा कब होता हैं? जब जब रास्ते के प्रति आप बेहोश और कल्पना धारणा के परती तुच्छ एकाग्रता अल्प विकसित चेतना वजह क्या हैं ? विकार तो जैसे जैसे रास्ते के प्रति चेतना जागरूक होती जाती तो वही जगरूकता विकारों को साफ़ करती जाती हैं एक ही सलाह रास्ते पे जागते जाओ कल्पना द्वारा किसी मंज़िल का निर्माण ना करो और अगर करो तो चरणबद्ध तरीक़े से।
💐🙏🙏💐

“हमारे सामाजिक जीवन में बल को बुद्धि से परास्त कर सकते हैं, किन्तु बुद्धि को बल से नहीं जीता जा सकता …कदाचित अपने किसी विरोधी को अपने सामने झुकता देखें तो आनन्दित न हों, धनुष की कमान जितना झुकती है उतनी ही कारगर होती है … बुद्धिमान आत्मरक्षा के लिए भी झुकता है और आक्रमण के लिए भी, झुकना बुद्धिशाली का गुण है और ना-झुकना बलशाली का स्वभाव…वैसे भी हम झुक कर, सरलता से लोगों के मनों को विजयी कर सकते है,उलझ के नहीं…तो आइए आज सभी अपनों को नमन करते हुए प्रभु से परस्पर प्रेम के संचार की प्रार्थना के साथ”

जय श्री कृष्ण🙏🙏
आज संसार में बुद्धि की कहीं कमीं नहीं है पर शुद्धि की बहुत कमीं है। बुद्ध बनने के लिए बुद्धि नहीं शुद्धि की आवश्यकता है।। आज लोगों की बुद्धि सृजन में कम विध्वंश में ज्यादा लगी हुई है। बुद्धि जोड़ने में कम तोड़ने में ज्यादा लग रही है। जीवन किसी को नहीं थकाता, बुद्धि थका देती है।। संसार में कुछ बुद्धिमान तो केवल मीमांसा करने में ही लगे रहते हैं। अँधेरे को कोसने में ही जीवन लगा देते हैं। काश एक पल दीपक जलाने का भी बिचार उन्हें आ जाता।। कुछ बुद्धि मान गतिशील नहीं है, कुछ की गतिशीलता गलत दिशा में चली गई है।। इस बुद्धि का शोधन कैसे किया जाये ? सत्संग के आश्रय से ही बुद्धि का शोधन सम्भव है। आपके पास ऊर्जा की कोई कमीं नहीं है पर चेतना की कमी है। कर्मशील भी बनो और चिन्तनशील भी बनो। जिससे संसार का उपकार हो और संसार तुम्हारा ऋणी रहे।।

Զเधॆ Զเधॆ🙏🙏

प्रार्थना किसे कहते हैं ???
इससे क्या लाभ होता है ??? 🙏🏻

दोस्तो ,

भगवान के समक्ष विनम्र होकर इच्छित वस्तु उत्कंठा पूर्वक मांगने को ‘प्रार्थना’ कहते हैं । प्रार्थना में आदर, प्रेम, विनती, श्रद्धा और भक्तिभाव अंतर्भूत हैं । भगवान से प्रार्थना करने से आशीर्वाद तथा कार्य का इच्छित फल मिलता है । साथ ही आत्मशक्ति एवं आत्मविश्वास में वृद्धि होती है । इससे कार्य उत्तम और सफल होता है । मन की शांति मिलती है ।

स्थिर और शांत मन से किया गया कोई भी काम अच्छा होता है ।’ अब यह वैज्ञानिक प्रयोगोंद्वारा भी सिद्ध हो गया है कि प्रार्थना से व्यक्ति को व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक लाभ होते हैं ।’
[ भगवद चिन्तन ॥

पितामह भीष्म के जीवन का एक ही पाप था कि उन्होंने समय पर क्रोध नही किया और जटायु के जीवन का एक ही पुन्य था उसने समय पर क्रोध किया। परिणाम स्वरुप एक को वाणों की शैया मिली और एक को प्रभु राम की गोद।। अतः क्रोध तब पुन्य बन जाता है जब वह धर्म एवं मर्यादा की रक्षा के लिए किया जाये और वही क्रोध तब पाप बन जाता है जब वह धर्म व मर्यादा को चोट पहुँचाता हो। यह विचार का विषय नहीं कि कोई आदमी क्रोध करता है अपितु यह विचारणीय है वह क्रोध क्यों और किस पर करता है।। शांति तो जीवन का आभूषण है। मगर अनीति और असत्य के खिलाफ जब आप क्रोधाग्नि में दग्ध होते हो तो आपके द्वारा गीता के आदेश का पालन हो जाता है।। मगर इसके विपरीत किया गया क्रोध आपको पशुता की संज्ञा भी दिला सकता है। धर्म के लिए क्रोध हो सकता है, क्रोध के लिए धर्म नहीं।।

जय श्री राधे कृष्ण

Recommended Articles

Leave A Comment