हमारा स्वभाव है। जवानी संसार को देते है और बुढ़ापा भगवान को देते हैं। हमारे देने से पता चलता है कि हमारी नज़रो में मूल्य किसका ज्यादा है। जब तक बुद्धि चलती है तब तक तर्क बुद्धि से खुद को श्रेष्ठ सिद्ध करते हैं। जवानी नश्वर परिवर्तनशील संसार को देते हैं और बुढ़ापा भगवान को जब शक्ति होती है।
तब गलत करते हैं और जब शक्ति नहीं होती तब कहते हैं कि अच्छा करेंगे। जब करने को ही कुछ नहीं बचता तब कहते हैं कि अच्छा करेंगे। जब मरने लगते हैं तब कहते हैं समर्पण करना है।
जब तक संसार को पकड़ सकते थे तब तक हमने कभी समर्पण की बात नही सोची सिर्फ दुनिया को भोगने में अपना बनाने में लगे रहे। संसार को भोगते भोगते हम बूढ़े हो गए लेकिन हमारी कामना बूढी नहीं हुई। अब बुढापे में कमजोर हो के संसार को भोगने में असमर्थ हो गये तब भगवान को चाहते हैं। हम किसे धोखा दे रहे हैं।
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अपने
प्रेम को प्रार्थना बनायें।
जितना हो सके प्रेम बाँटिये।
और जिसे दें, उस पर अधिकार न जमायें।
उससे धन्यवाद तक की अपेक्षा न करें।
उतनी अपेक्षा भी सौदा है।
केवल बाँटिये क्योंकि आपके पास है।
अगर आप बाँटेंगे तो निश्चित
हजार गुना होकर आपके पास आएगा।
मगर माँगें कभी भी नहीं।
भिखमंगों के पास नहीं आता है।
सम्राटों के पास आता है।
आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि कितने
आपके प्रेम के लिए आतुर हैं।
आपकी मौजूदगी से
अनुग्रहित हैं।
हरि ओम
!!!…जलने और जलाने का बस,
इतना सा फलसफा है…..
“फिक्र” में होते है तो,
खुद जलते है…..
“बेफिक्र” होते है, तो दुनिया जलती है…!!!
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*लक्ष्य जितना बड़ा होगा मार्ग भी उतना बड़ा होगा और बाधायें भी अधिक आएँगी। सामान्य आत्म विश्वास नहीं बहुत उच्च स्तर का आत्म विश्वास इसके लिए चाहिए। एक क्षण के लिए भी निराशा आयी वहीँ लक्ष्य मुश्किल और दूर होता चला जायेगा।*
*मनुष्य का सच्चा साथी और हर स्थिति में उसे संभालने वाला अगर कोई है तो वह आत्मविश्वास ही है। आत्मविश्वास हमारी बिखरी हुई समस्त चेतना और ऊर्जा को इकठ्ठा करके लक्ष्य की दिशा में लगाता है।*
*दूसरों के ऊपर ज्यादा निर्भर रहने से आत्मिक दुर्बलता तो आती है। साथ ही छोटी छोटी ऐसी बाधायें आती हैं जो पल में तुम्हें विचलित कर जाती हैं। स्वयं पर ही भरोसा रखें। दुनिया में ऐसा कुछ नहीं जो तुम्हारे संकल्प से बड़ा हो।*
!!!…ना मीठे हैं और न बनने की कोशिश करते हैं..!!
हम तो वो सच हैं जो सबको कड़वे लगते हैं…!!!
जय श्री कृष्ण🙏🙏