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जीवन में खुश रहने का एक सीधा सा मंत्र है और वो ये कि आपकी उम्मीद स्वयं से होनी चाहिए किसी और से नहीं। परीक्षा फल से वही बच्चा घबराता है जो स्वयं से नहीं अपितु निरीक्षक से उम्मीद लगाए रहता है । स्वयं के पैरों पर उम्मीद ही हमें किसी दौड़ में विजेता बनाती है।।

     *स्वयं के तीरों पर भरोसा रखने वाला कौन्तेय युद्ध भूमि में अकेला पड़ने के बावजूद भी सफल हो जाता है और दूसरों से उम्मीद रखने वाला दुर्योधन पितामह, द्रोण, कर्ण, कृपाचार्य जैसे अनगिनत योद्धाओं के साथ रहते हुए भी युद्ध भूमि में बुरी तरह असफल हो जाता है।।*

    *सूर्य स्वयं के प्रकाश से चमकता है और चन्द्रमा को चमकने के लिए सूर्य के प्रकाश पर निर्भर रहना होता है। दूसरे के प्रकाश से प्रकाशित होने की उम्मीद रखने के कारण ही चन्द्रमा की चमक एक जैसी नहीं रहती । कभी ज्यादा कभी कम तो कभी पूरी तरह क्षीण भी हो जाती है।।*

       *कमल उतनी ही देर अपना सौंदर्य बिखेरता है जितनी देर उसे सूर्य का प्रकाश प्राप्त होता है। इसका सीधा सा अर्थ केवल इतना कि दूसरों से प्राप्त खुशी कभी भी टिकाऊ नहीं हो सकती।      इसलिए जीवन में सदा खुश रहना है तो दूसरों से किसी भी प्रकार की उम्मीद छोड़कर स्वयं ही उद्यम अथवा पुरुषार्थ में लगना होगा ताकि संपूर्ण जीवन प्रसन्नता से जिया जा सके..!!*

🙏🏾🙏🏽🙏🏼जय जय श्री राधे🙏🏻🙏🏿🙏


आंसुओं से कभी भी भयभीत न हों। जब आंसू आते हैं, तो आप शर्मिंदा महसूस करते हैं। आपको लगता है।। कि लोग क्या सोचते होंगे आप उन आंसुओं को रोक लेते हैं। आपके पास जो भी है।। आंसू उनमें सबसे अनूठी चीज़ हैं। क्योंकि आंसू आपके अंतस के छलकने का परिणाम हैं।। आंसू केवल दुख के ही द्योतक नहीं हैं। कई बार वे भावातिरेक से भी आते हैं।। कई बार वे अपार शांति के कारण आते हैं। प्रेम व आनंद से आते हैं।।

     
             🙏


🙏जय जय श्री राधे राधे जी🙏
अध्यात्म ज्ञान विज्ञान…
👉अध्यात्म के दो मुख्य पक्ष है – ज्ञान-शक्ति और क्रिया शक्ति, जो ब्रह्म की शक्ति है। ज्ञान शक्ति चेतन और क्रिया-शक्ति जड़ है, जो प्रकृति का रूप धारण करती है। प्रकृति के रूपों से ही दृश्य-जगत् का विस्तार होता है, जो अध्यात्म का विज्ञान-पक्ष है। आधुनिक विज्ञान इसी जड़ प्रकृति के रहस्यों की खोज में लगा हुआ है। चेतन शक्ति-ज्ञान इस जड़ प्रकृति को नियंत्रित कर निश्चित रूप व आकार प्रदान करती है। चेतन के बिना जड़-शक्ति स्वत: कोई क्रिया करने, रूप या आकार ग्रहण करने अथवा विकसित होने में समर्थ नहीं है। इस चेतना शक्ति की संपूर्ण कार्यप्रणाली का विस्तृत अध्ययन अध्यात्म के अंदर किया जाता है। या जिस प्रकार अकेली जड़ या अकेली चेतन शक्ति सृष्टि रचना नहीं कर सकती, दोनों को एक-दूसरे के सहयोग की आवश्यकता होती हैं, उसी प्रकार जड़ शक्ति के अध्ययन से संबंधित अध्यात्म परस्पर पूरक होकर सहयोगी बने हुए हैं। बिना चेतना के सृष्टि का निवास नहीं हो सकता और बिना सृष्टि के चेतना को नहीं जाना जा सकता। चेतना अध्यात्म है व सृष्टि विज्ञान है। अध्यात्म विहीन विज्ञान की कल्पना ही नहीं की जा सकती।
अध्यात्म यदि प्राण है तो विज्ञान उसी का शरीर है, ये दोनों इतने अभिन्न है कि इन्हें अलग नहीं किया जा सकता। शरीर की समस्त क्रियाविधि का विश्लेषणात्मक अध्ययन विज्ञान का विषय है और प्राण से संबंधित समस्त ज्ञान अध्यात्म का क्षेत्राधिकार है। जिस प्रकार विज्ञान ने समस्त जड़ पिण्डों की भाँति शरीर का संपूर्ण ज्ञान प्रस्तुत किया गया हैं, उसी प्रकार अध्यात्म भी प्राण-तत्त्व के संबंध में सभी शंकाओं से रहित विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
धन्यवाद
जय जय श्री राधे राधे जी🙏🌹
🙏 आज का चिन्तन-भय🙏
🌹सत्य तो यह है कि जीवन का कोई मूल्य ही नहीं है वह अमूल्य है । जीवन इक यात्रा है समुद्र रुपी परमात्मा में विलीन होने की । जीवन मन्त्र है भोग में रहने के बावजूद भी योग में जाने का ‌। जीवन का अगर कोई वास्तविक मूल्य है तो वह कदाचित परमात्मा तत्व की प्रप्ति ।🌹
हमारा आज का एक और महत्वपूर्ण विषय “भय” है, जिस पर हम और आप विचार करेंगे । तो क्या हम सब सज्ज हैं । वास्तव में भय व्यक्ति के मन का एक ऐसा भाव है जिसके जाल में लगभग सभी लोग फंसते हैं । उदाहरण के लिए मृत्यु का भय ,अपनों के चले जाने का भय, असफलता का भय, हिंसा का भय ऐसे ही बहुत से कारण हैं भय में जीवन जीने के । कदाचित हम जानते हैं कि इस भय या डर के कारण हमारी मति मारी जाती है बुद्धि चकरा जाती है ।हम उचित निर्णय नहीं कर पाते । और वास्तविकता यही है कि हम भय से इतने प्रभावित हो जाते हैं कि अन्त में जिस बात का डर होता है हम स्वयं उसे सच कर देते हैं । क्या ये सत्य नहीं ? हम जीवन भर भय या डर से लड़ते रहते हैं किन्तु इस भय से मुक्त होने का कोई उपाय नहीं ढूंढते । किन्तु क्या हमने कभी डर के विषय में विचार किया है, कि डर वास्तव में क्या है ? कदाचित नहीं ! जिस बात का हमें डर होता है क्या वास्तव में वही डर का कारण होता है ? या डर हमारे मन का भाव मात्र है । जिसका वास्तविकता के साथ कोई सम्बन्ध नहीं । हम विचार कर है भय अथवा डर के विषय में । कदाचित डर सदा ही “भविष्य” से लगता है । भविष्य में कुछ अनुचित या अघटित न हो जाए । जीवन का स्वरुप कहीं बिगड़ न जाये । यही होता है ना डर और भविष्य तो सदा ही अनजान रहता है । इसलिए हम कभी वास्तव में डर से छूट ही नहीं पाते । कभी निर्भय हो ही नहीं पाते ।
भय हमारे “अज्ञान” का परिणाम है । क्या ये सत्य नहीं ? गहराई से विचार करेंगे तो हम ये अवश्य ही जान पायेंगे कि हम जिस अघटित या अनहोनी की चिन्ता में रहते हैं । वैसा हमेशा तो होता ही नहीं । भविष्य का क्रम तो हमारे डर से अनजान अपने मार्ग पर चलता रहता है । भय के कारण भविष्य नहीं बदलता केवल हमारा मन “रोगों” से भर जाता है । किन्तु हमारा मन यदि स्वस्थ्य रहे , हृदय यदि स्थिर रह पाये, तो हम संकट को पराजित कर सकते हैं । और जीने का सुख प्राप्त कर सकते हैं । क्योंकि भयभीत मन सुख मिलने पर भी उसे भोग नहीं सकता । जिस क्षण हमें ज्ञान हो जाता है कि भविष्य पर हमारा अंकुश नहीं किन्तु अपने मन पर अवश्य अंकुश है उसी क्षण हम भय को पराजित करके निर्भय बन सकते हैं । केवल इतना ही ज्ञान आवश्यक है कि भय किसी परिस्थिति का नाम नहीं बल्कि हमारी मनःस्थिति का नाम है । मन की दृष्टि में परिवर्तन करने से हम निर्भय हो जाते हैं । आशा करते हैं कि हमारा ये विषय हम सबके जीवन में कुछ अर्थ भरेगा । और साथ ही इस विषय पर विचार चिन्तन और मनन अवश्य कीजियेगा ।। जय जय श्री राधे-राधे ।।

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[बुराई जड़ से खत्म करो बुराई की ऊपरी कांट-छांट से वह नहीं मिटती, उसे तो उसकी जड़ से मिटाना होता है। जब तक जड़ को नष्ट नहीं किया जाएगा तब तक कोई लाभ नहीं होगा।। किसी नगर में एक आदमी रहता था। उसके आँगन में एक पौधा उग आया।। कुछ दिनों बाद वह बड़ा हो गया और उस पर फल लगने लगे। एक बार एक फल पककर नीचे गिर गया।। उस फल को एक कुत्ते ने खा लिया। जैसे ही कुत्ते ने फल खाया, उसके प्राण निकल गए। आदमी ने सोचा–कोई बात होगी जिससे कुत्ता मर गया। पर उसने पेड़ के फल पर ध्यान नहीं दिया।। कुछ समय बाद उधर से एक लड़का निकला। फल देखकर उसके मन में लालच आ गया और उसने किसी तरह फल तोड़कर खा लिया।। फल को खाते ही लड़का मर गया। मरे हुए लड़के को देख आदमी की समझ में आ गया कि यह जहरीला पेड़ है।। उसने कुल्हाड़ी ली और वृक्ष के सारे फल काटकर गिरा दिए। थोड़े दिन बाद पेड़ में फिर फल लग गए।। लेकिन इस बार पहले से भी ज्यादा बड़े फल लगे थे। आदमी ने फिर कुल्हाड़ी से फल के साथ-साथ शाखाओं को भी काट दिया।। परंतु कुछ दिन बाद पेड़ फिर फलों से लद गया। अब आदमी की समझ में कुछ नहीं आया। वह परेशान हो गया।। तभी उसके पड़ोसी ने उसे देखा और उसकी परेशानी का कारण पूछा। आदमी ने सारी बातें बता दी।। यह सब सुनकर पड़ोसी ने कहा तुमने पेड़ के फल तोड़े, उसकी शाखाएं काटी, पर तुम्हारी समझ में नहीं आया कि जब तक पेड़ की जड़ रहेगी तब तक पेड़ रहेगा और उसमें फल आते रहेंगे। अगर तुम इससे छुटकारा चाहते हो तो इसकी जड़ काटो।। तब आदमी की समझ में आया कि बुराई की ऊपरी कांट-छांट से वह नहीं मिटती,उसे तो उसकी जड़ से मिटाना चाहिए। उसने कुल्हाड़ी लेकर पेड़ की जड़ को काट दिया और हमेशा के लिए चिंता मुक्त हो गया।। इसी तरह बुराई की जड़ हमारे मन में होती है। जब तक जड़ को नष्ट नहीं किया जाएगा, मनुष्य को जहरीला बनाने वाले फल आते रहेंगे।।

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