सज्जनों आप आज धनवान है अर्थात करोड़ों अरबों का व्यापार चल रहा है या दीन हीन है, सुखी है या दुखी हैं शरीर से स्वस्थ हैं या अस्वस्थ है आपने सात्विक परिवार में जन्म लिया या राजसिक परिवार में जन्म लिया या तामसिक परिवार में जन्म लिया किस देश में जन्म लिया
आपको समाज में सम्मान या यश या अपकीर्ति कितनी प्राप्त हो रही है
यह सब आपने अपने कर्मों का फल भोगकर बचे हुए कर्म फल के अनुसार मानव रूप में भारतवर्ष में जन्म लिया है
अपने पूर्व जन्म के कर्म के अनुसार मनुष्य को इस जन्म में शरीर ज्ञान और इंद्रियों की योग्यता प्राप्त होती है
अर्थात यदि आप कुछ पद पर हैं या ईश्वर ने आपको धन दिया है या आपको स्वस्थ मजबूत शरीर दिया है या आपको उच्च कोटि की बुद्धि दी है
तो उस पर अहंकार ना करें उसका दुरुपयोग ना करें अपने उस शक्ति का उपयोग पात्र व्यक्ति का कल्याण करने के लिए करें अपात्र व्यक्ति को तो कभी दान भी नहीं दिया जाता
अर्थात यदि भगवान ने आपको मजबूत शरीर दिया है तो कोई भी व्यसन लेकर भगवान के दिए इस शरीर का अपमान ना करें
श्रीमद्भागवत गीता श्लोक 44 अध्याय 18 शंकर भाष्य
[: प्रतिदिन आयु कम हो रही मृत्यु निकट आ रही है, इसे मत भूलें। मृत्यु के बाद आपके न रहने पर भी यहाँ किसी काम में कोई अड़चन होगी, यह बिल्कुल ठीक मानिये। आप देखते हैं, परिवार में किसी न व्यक्ति की मृत्यु के समय कितना हाहाकार मचता है।। पर पीछे सब अतीत के गर्भ में दब जाता है। उनका अभाव कितने आदमियों को खटकता है।। यह दशा हम सबकी होगी। लोग भूल जायेंगे और जगत का काम ठीक है।। जैसा चलना चाहिये वैसा चलता रहेगा पर आपके बिना एक काम नहीं होगा आपके लिये भजन आपको ही करना पड़ेगा। इस काम की पूर्ति आपको ही करनी पड़ेगी।ल इसलिये गम्भीरता से मन को जो यहां फंस रहा है। यहाँ से निकालकर सुधार में लगाइये भगवत्प्राप्ति के सिवा कई ऐसी स्थिति नहीं है।। कि जो निर्भय हो, जहाँ से पतन का भय न हो इसलिये उस स्थिति को पाने में ही हमारी सार्थकता जिसे पाकर अशान्ति मिट जाय सदा के लिये हम सुखी हो जायें हौसले जिनके चट्टान हुआ करते हैं रास्ते उनके ही आसान हुआ करते हैं। ए नादान न घबरा इन परेशानियों से ये तो पल भर के मेहमान हुआ करतें हैं।।