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एक दिन एक शिष्य ने गुरु से पूछा, ‘गुरुदेव, आपकी दृष्टि में यह संसार क्या है?’ इस पर गुरु ने एक कथा सुनाई ‘एक नगर में एक शीशमहल था। महल की हरेक दीवार पर सैंकड़ों शीशे जड़े हुए थे। एक दिन एक गुस्सैल कुत्ता महल में घुस गया महल के भीतर उसे सैंकड़ों कुत्ते दिखे, जो नाराज और दुखी लग रहे थे।। उन्हें देखकर वह उन पर भौंकने लगा उसे सैंकड़ों कुत्ते अपने ऊपर भौंकते दिखने लगे वह डरकर वहां से भाग गया कुछ दूर जाकर उसने मन ही मन सोचा कि इससे बुरी जगह नहीं हो सकती कुछ दिनों बाद एक अन्य कुत्ता शीशमहल पहुंचा वह खुशमिजाज-जिंदादिल था महल में घुसते ही उसे वहां सैंकड़ों कुत्ते दुम हिलाकर स्वागत करते दिखे उसका आत्म विश्वास बढ़ा और उसने खुश होकर सामने देखा तो उसे सैंकड़ों कुत्ते खुशी जताते हुए नजर आए उसकी खुशी का ठिकाना न रहा जब वह महल से बाहर आया तो उसने महल को दुनिया का सर्व श्रेष्ठ स्थान और वहां के अनुभव को अपने जीवन का सबसे बढ़िया अनुभव माना वहां फिर से आने के संकल्प के साथ वह वहां से रवाना हुआ’ कथा समाप्त कर गुरु ने शिष्य से कहा, ‘संसार भी ऐसा ही शीशमहल है। इसमें व्यक्ति अपने विचारों के अनुरूप ही प्रतिक्रिया पाता है।। जो लोग संसार को आनंद का बाजार मानते हैं। वे यहां से हर प्रकार के सुख-आनंद के अनुभव लेकर जाते हैं।। जो लोग इसे दुखों का कारागार समझते हैं। उनकी झोली में दुःख-कटुता के सिवाय कुछ नहीं बचता।।

       *।। राधे राधे।।*

[: परिवार और समाज में रहने के लिए हरेक व्यक्ति को संघर्ष करना पड़ता है। हर व्यक्ति अपने तरीके से जिंदगी गुजार तो लेता है, लेकिन सुखी और सफल जीवन जीना अलग बात है। इसके लिए कई बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है। इसी क्रम में आज हम आपको ऐसी बातें बताने जा रहे, हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर आप मुश्किल समय में भी सुखी रह सकते हैं।। दूसरों के हाव-भाव की तरफ ध्यान देने का प्रयास करें। क्योंकि, अक्सर आपके आसपास के लोग आपको ये नहीं बता पाते कि वे आपके बारे में क्या सोच रहे है।। लेकिन आप गौर करें तो उसके हाव-भाव पूरा हाल बता देंगे। हरेक व्यक्ति के साथ प्रेमपूर्वक मिलें, वह चाहे कैसा भी हो, उसे सम्मान दें। इसके लिए एक आदर्श स्थापित करें।।
[ आकांक्षाएं-कामनाएं वह दीमक है, जो सुखी और शांति पूर्ण जीवन को खोखला कर देती है। कामना-वासना के भंवरजाल में फंसा मन, लहलहाती फसल पर भोले मृग की तरह इन्द्रिय विषयों की फसल पर झपट पड़ता है। आकर्षक-लुभावने विज्ञापनों के प्रलोभनों में फंसा तथा लिविंग स्टैंडर्ड जीवनस्तर के नाम की आड़ में आदमी ढेर सारी अनावश्यक वस्तुओं को चाहने लगता है जिनका न कहीं ओर है न छोर। एक समय में कुछ ही चीजों में इंसान संतोष कर लेता था, पर आज हर वस्तु को पाने की हर इंसान में होड़-सी लगी हुई है।। बेतहाशा होड़ की अंधी दौड़ में आदमी इस कदर भागा जा रहा है। कि न कहीं पूर्ण विराम है, न अर्धविराम।। विपुल पदार्थ, विविध वैज्ञानिक सुविधाओं के बावजूद आज का इच्छा-पुरुष अशांत, क्लांत, दिग्भ्रांत और तनावपूर्ण जीवन जी रहा है। और भोग रहा है- बेचैनी से उत्पन्न प्राणलेवा बीमारियों की पीड़ा। भगवान महावीर का जीवन-दर्शन हमारे लिए आदर्श है, क्योंकि उन्होंने अपने अनुभव से यह जाना कि सोया हुआ आदमी संसार को सिर्फ भोगता है, देखता नहीं जबकि जागा हुआ आदमी संसार को भोगता नहीं, सिर्फ देखता है। भोगने और देखने की जीवनशैली ही महावीर की संपूर्ण जिंदगी का व्याख्या सूत्र है। और यही व्याख्या सूत्र जन-जन की जीवन शैली बने, तभी आदमी समस्याओं से मुक्ति पाकर सुखी और शांति पूर्ण जीवन का हार्द पा सकता हैं।।

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