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: जीवन में कुछ भी पाना हो तो “सोच” और “कर्म” बड़े आवश्यक होते है। किन्तु क्या केवल सोच से, क्या केवल कर्म करने से आपको सफलता प्राप्त होगी ? नहीं, कुछ लोग सोचते रह जाते है कर्म नहीं कर पाते और इसी कारण से उन्हें सफलता प्राप्त नहीं होती। कुछ लोग बिना सोचे-समझे कर्म करते रह जाते है! उन्हें भी सफलता प्राप्त नहीं होती !! स्मरण रखियेगा वृक्ष को काटना हो तो कुल्हाड़ी के लगातार प्रयास करने के साथ ही  कुल्हाड़ी किस दिशा में मारी जानी चाहिए इसका ध्यान रखना पड़ता है ! सोच और कर्म इनका ठीक से सम्मिश्रण करेंगे तो अवश्य ही सफलता मिलेगी !!
[: महापुरुषों का कथन है, कि झुकने वाला व्यक्ति कभी छोटा, कायर या कमजोर नहीं होता बल्कि वह बड़ा, शक्ति शाली और मजबूत होता है। विनम्रता के कारण ही महापुरुषों पर अहंकार हावी नहीं हो पाता है।। तराजू का वजनदार पलड़ा कम कीमत वाला तथा महत्व हीन होता है।और उसी की कीमत भी अधिक होती है।। इसके विपरीत उठा हुआ पलड़ा कम कीमत वाला तथा महत्व हीन होता है। इसी प्रकार अहंकारी आदमी भी अपनी कृत्रिमता, चापलूसी से तना और अकड़ा होता है।। वस्तुत: जो कमजोर होता है। इसलिए शीघ्र ही क्रुद्ध और उत्तेजित होकर भभकने लगता है।। अहंकारी व्यक्ति अनुकूलता में अपनी मनुष्यता को छोड़ देता है, पैसे, प्रतिष्ठा, पदवी और पांडित्य को वह हजम नहीं कर सकता अत: उसे अपच हो जाता है। और वह निरंकुश हो जाता है।।
[ यदि “महाभारत” को पढ़ने का समय न हो तो भी इसके नौ सार- सूत्र को ही समझ लेना हमारे जीवन में उपयोगी सिद्ध हो सकता है

  1. संतानों की गलत माँग और हठ पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया गया, तो अंत में आप असहाय हो जायेंगे – कौरव
  2. आप भले ही कितने बलवान हो लेकिन अधर्म के साथ हो तो, आपकी विद्या, अस्त्र-शस्त्र शक्ति और वरदान सब निष्फल हो जायेगा – कर्ण
  3. संतानों को इतना महत्वाकांक्षी मत बना दो कि विद्या का दुरुपयोग कर स्वयंनाश कर सर्वनाश को आमंत्रित करे – अश्वत्थामा
  4. कभी किसी को ऐसा वचन मत दो कि आपको अधर्मियों के आगे समर्पण करना पड़े – भीष्म पितामह
  5. संपत्ति, शक्ति व सत्ता का दुरुपयोग और दुराचारियों का साथ अंत में स्वयंनाश का दर्शन कराता है – दुर्योधन
  6. अंध व्यक्ति – अर्थात मुद्रा, मदिरा, अज्ञान, मोह और काम ( मृदुला) अंध व्यक्ति के हाथ में सत्ता भी विनाश की ओर ले जाती है – धृतराष्ट्र
  7. यदि व्यक्ति के पास विद्या, विवेक से बँधी हो तो विजय अवश्य मिलती है – अर्जुन
  8. हर कार्य में छल, कपट, व प्रपंच रच कर आप हमेशा सफल नहीं हो सकते – शकुनि
  9. यदि आप नीति, धर्म, व कर्म का सफलता पूर्वक पालन करेंगे, तो विश्व की कोई भी शक्ति आपको पराजित नहीं कर सकती – युधिष्ठिर

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