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    *जीवन को दो ही तरीके से जिया जा सकता है, तपस्या बनाकर या तमाशा बनाकर। तपस्या का अर्थ जंगल में जाकर आँखे बंद करके बैठ जाना नहीं अपितु अपने दैनिक जीवन में आने वाली समस्याओं को मुस्कुराकर सहने को क्षमता को विकसित कर लेना है।* 
     *हिमालय पर जाकर देह को ठंडा करना तपस्या नहीं अपितु हिमालय सी शीतलता दिमाग में रखना जरुर है। किसी के क्रोधपूर्ण वचनों को मुस्कुराकर सह लेना जिसे आ गया, सच समझ लेना उसका जीवन तपस्या ही बन जाता हैं।*
     *छोटी-छोटी बातों पर जो क्रोध करता है निश्चित ही उसका जीवन एक तमाशा सा बनकर ही रह जाता है। हर समय दिमाग गरम रखकर रहना यह जीवन को तमाशा बनाना है और दिमाग ठंडा रखना ही जीवन को तपस्या सा बनाना है।*


🌹🌹जय श्री राधे☘️जय श्री श्याम🌹🌹

तीन गुरु:-चोर,कुत्ता और छोटा बच्चा
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बहुत समय पहले की बात है,किसी नगर में एक बेहद प्रभावशाली महंत रहते थे।उन के पास शिक्षा लेने हेतु दूर दूर से शिष्य आते थे।एक दिन एक शिष्य ने महंत से सवाल किया,स्वामीजी आपके गुरु कौन है?आपने किस गुरु से शिक्षा प्राप्त की है?महंत शिष्य का सवाल सुन मुस्कुराए और बोले,मेरे हजारो गुरु हैं!यदि मै उनके नाम गिनाने बैठ जाऊ तो शायद महीनो लग जाए। लेकिन फिर भी मै अपने तीन गुरुओ के बारे मे तुम्हे जरुर बताऊंगा।
👉🏻मेरा पहला गुरु था एक चोर
एक बार में रास्ता भटक गया था और जब दूर किसी गाव में पंहुचा तो बहुत देर हो गयी थी।सब दुकाने और घर बंद हो चुके थे।लेकिन आख़िरकार मुझे एक आदमी मिला जो एक दीवार में सेंध लगाने की कोशिश कर रहा था।मैने उससे पूछा कि मै कहा ठहर सकता हूं, तो वह बोला की आधी रात गए इस समय आपको कहीं कोई भी आसरा मिलना बहुत मुश्किल होंगा,लेकिन आप चाहे तो मेरे साथ आज कि रात ठहर सकते हो।मै एक चोर हु और अगर एक चोर के साथ रहने में आपको कोई परेशानी नहीं होंगी तो आप मेरे साथ रह सकते है।
वह इतना प्यारा आदमी था कि मै उसके साथ एक रात कि जगह एक महीने तक रह गया !वह हर रात मुझे कहता कि मै अपने काम पर जाता हूं, आप आराम करो,प्रार्थना करो।जब वह काम से आता तो मै उससे पूछता की कुछ मिला तुम्हे? तो वह कहता की आज तो कुछ नहीं मिला पर अगर भगवान ने चाहा तो जल्द ही जरुर कुछ मिलेगा।वह कभी निराश और उदास नहीं होता था,और हमेशा मस्त रहता था।कुछ दिन बाद मैं उसको धन्यवाद करके वापस आपने घर आ गया|
जब मुझे ध्यान करते हुए सालों-साल बीत गए थे और कुछ भी नहीं हो रहा था तो कई बार ऐसे क्षण आते थे कि मैं बिलकुल हताश और निराश होकर साधना छोड़ लेने की ठान लेता था।और तब अचानक मुझे उस चोर की याद आती जो रोज कहता था कि भगवान ने चाहा तो जल्द ही कुछ जरुर मिलेगा और इस तरह मैं हमेशा अपना ध्यान लगता और साधना में लीन रहता|
👉🏻मेरा दूसरा गुरु एक कुत्ता था
एक बहुत गर्मी वाले दिन मै कही जा रहा था और मैं बहुत प्यासा था और पानी के तलाश में घूम रहा था कि सामने से एक कुत्ता दौड़ता हुआ आया।वह भी बहुत प्यासा था।पास ही एक नदी थी।उस कुत्ते ने आगे जाकर नदी में झांका तो उसे एक और कुत्ता पानी में नजर आया जो की उसकी अपनी ही परछाई थी। कुत्ता उसे देख बहुत डर गया।वह परछाई को देखकर भौकता और पीछे हट जाता,लेकिन बहुत प्यास लगने के कारण वह वापस पानी के पास लौट आता।अंततः,अपने डर के बावजूद वह नदी में कूद पड़ा और उसके कूदते ही वह परछाई भी गायब हो गई।उस कुत्ते के इस साहस को देख मुझे एक बहुत बड़ी सिख मिल गई।अपने डर के बावजूद व्यक्ति को छलांग लगा लेनी होती है। सफलता उसे ही मिलती है जो व्यक्ति डर का साहस से मुकाबला करता है।
👉🏻मेरा तीसरा गुरु एक छोटा बच्चा है
मै एक गांव से गुजर रहा था कि मैंने देखा एक छोटा बच्चा एक जलती हुई मोमबत्ती ले जा रहा था।वह पास के किसी मंदिर में मोमबत्ती रखने जा रहा था। मजाक में ही मैंने उससे पूछा की क्या यह मोमबत्ती तुमने जलाई है?वह बोला, जी मैंने ही जलाई है।तो मैंने उससे कहा की एक क्षण था जब यह मोमबत्ती बुझी हुई थी और फिर एक क्षण आया जब यह मोमबत्ती जल गई।क्या तुम मुझे वह स्त्रोत दिखा सकते हो जहा से वह ज्योति आई?
वह बच्चा हँसा और मोमबत्ती को फूंख मारकर बुझाते हुए बोला,अब आपने ज्योति को जाते हुए देखा है।कहा गई वह?आप ही मुझे बताइए।
मेरा अहंकार चकनाचूर हो गया,मेरा ज्ञान जाता रहा।और उस क्षण मुझे अपनी ही मूढ़ता का एहसास हुआ।तब से मैंने कोरे ज्ञान से हाथ धो लिए।
शिष्य होने का अर्थ क्या है?शिष्य होने का अर्थ है पुरे अस्तित्व के प्रति खुले होना।हर समय हर ओर से सीखने को तैयार रहना।कभी किसी कि बात का बूरा नहि मानना चाहिए,किसी भी इंसान कि कही हुइ बात को ठंडे दिमाग से एकांत में बैठकर सोचना चाहिए के उसने क्या-क्या कहा और क्यों कहा तब उसकी कही बातों से अपनी कि हुई गलतियों को समझे और अपनी कमियों को दूर् करे|
जीवन का हर क्षण,हमें कुछ न कुछ सीखने का मौका देता है।
हमें जीवन में हमेशा एक शिष्य बनकर अच्छी बातो को सीखते रहना चाहिए। यह जीवन हमें आये दिन किसी न किसी रूप में किसी गुरु से मिलाता रहता है,यह हम पर निर्भर करता है कि क्या हम उस महंत की तरह एक शिष्य बनकर उस गुरु से मिलने वाली शिक्षा को ग्रहण कर पा रहे हैं की नही
🙏🏽🙏🏼🙏🏻जय जय श्री राधे🙏🏿🙏🙏🏾
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राधे – राधे ॥ भगवद् चिंतन ॥
कर्मयोगी बनो मगर कर्मफल का सदैव त्याग करो, ये भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की महत्वपूर्ण और प्रमुख सीखों में एक है।
सांसारिक जीवन में हम देखते हैं तो एक बात बड़ी मामूली सी मगर बहुत ही महत्वपूर्ण और समझने जैसी है। जब हमारे भीतर कर्ता भाव आ जाता है और हम ये समझने लगते हैं कि ये कर्म मैंने किया तो निश्चित ही उस कर्मफल के प्रति हमारी सहज आसक्ति हो जायेगी। अब हमारे लिए कर्म नहीं अपितु फल प्रधान हो जायेगा।

अब इच्छानुसार फल प्राप्ति ही हमारे द्वारा संपन्न किसी भी कर्म का उद्देश्य रह जायेगा। ऐसी स्थिति में जब फल हमारे मनोनुकूल प्राप्त नहीं होगा तो निश्चित ही हमारा जीवन दुख, विषाद और तनाव से भर जायेगा।

इसके ठीक विपरीत जब हम अपने कर्तापन का अहंकार त्याग कर इस भाव से सदा श्रेष्ठ कर्मों में निरत रहेंगे कि करने – कराने वाला तो एक मात्र वह प्रभु है।
मुझे माध्यम बनाकर जो चाहें मेरे प्रभु मुझसे करवा रहे हैं। अब परिणाम की कोई चिंता नहीं रही। इस स्थिति में अब परिणाम चाहे सकारात्मक आये अथवा नकारात्मक, जीत मिले या हार, सफलता मिले अथवा तो असफलता किसी भी स्थिति में हमारा मन विचलित नहीं होगा और एक अखंडत आनंद की अनुभूति हमें सतत होती रहेगी।

जब कर्म करने वाला मैं ही शेष नहीं रहा तो परिणाम के प्रति आसक्त रहने वाला मैं कहाँ से आयेगा..?
बस यही तो जीवन का कर्म योग कहलाता है। जिसमें कर्म तो होता है मगर उसका कर्तापन का भाव नहीं होता है। जहाँ कर्तापन का भाव नहीं, करने-कराने वाले सब प्रभु ही हैं तो वहाँ तनाव, विषाद अथवा वियोग कैसा..?

वहाँ सतत कर्मयोग और उस परम प्रभु का संयोग ही शेष रह जाता है।

🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩

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