Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

भवन जितना ऊंचा बनाना होता हैं, नींव उतनी ही गहरी खोदनी पड़ती है। नींव की गहराई पर ही भवन की ऊंचाई निर्भर है।। ध्येय ऊंचा हो और उसे पाना भी हो तो अपना व्यक्तित्व उतना ही गम्भीर और मजबूत बनाना होता है। ऐसे मकानों पर आँधी तूफान और भूकम्प का असर नहीं पड़ता।। नींव गहरी होने के कारण वे डगमगाते नहीं। नींव का कार्य पूरा हो जाने के बाद भवन निर्माण की दिशा और स्वरूप बनता है।। इसी प्रकार ज्ञान, चरित्र और व्यक्तित्व बन जाने के बाद ध्येय पूरा करने की यात्रा आरम्भ होती है। इस प्रकार बने हुए भवन पर छोटी-बड़ी चोटें पड़ती रहती हैं।। और बड़े झकझोरे आते रहते हैं पर कुछ बिगाड़ नहीं पाते। जबकि कमजोर नींव वाले एक ही अन्धड़ से उखड़ कर दूसरे कोने पर जा गिरते हैं।। जीवन को जितना महान बनाना है। उतने ही मजबूत मनोबल वाली नींव बननी चाहिए।।
[: शरीर आज है, कल नहीं इसलिए जो सदा है। उस पर ध्यान दो।। वही मंगल है, उसमें ही मंगल है। शरीर का सीढ़ी की भाँति उपयोग करो।। लेकिन, शरीर गंतव्य नहीं है। शरीर में निवास करो – शरीर घर है।। लेकिन, शरीर ही मत हो जाओ – तुम शरीर नहीं हो। शरीर अस्वस्थ भी होगा मरेगा भी लेकिन, शरीर के साथ तुम्हें अस्वस्थ होने की ज़रूरत नहीं है।। और जब शरीर के अस्वस्थ होने पर भी पाओ कि तुम स्वस्थ हो, उसी दिन तुम जानना कि स्वस्थ हो। अन्यथा, शरीर की मृत्यु में तुम्हें स्वयं की मृत्यु की भ्रान्ति होगी।। अनेक बार – अनंत बार इसी भ्रान्ति में तो जन्मी और मरी हो। अब छोड़ो इस भ्रान्ति को अब तोड़ो इस अज्ञान को शरीर मरे और तुम जान सको कि तुम अमर हो, यही तो लक्ष्य है।। ध्यान का धर्म का इस लक्ष्य को सदा स्मरण रखो। बस, तुम इतना ही करो और शेष सब अपने आप हो जाता है।।
[ जिस व्यक्ति को यह याद रहता है। कि मै इस दुनिया में यात्री हूँ।। और एक दिन मुझे जाना है। तो वह सबसे मिलकर चलता है और खुश रहता है।। जिन्दगी का सफर पूरा होने की स्मृति उसे देह और इन्द्रियों से न्यारा कर देती है। ऐसा व्यक्ति अपने मूल अस्तित्व के करीब आता है।। अर्थात आत्म स्वरूप को पहचानकर उसमें टिका रहता है। वह अपने में रमण करते हुए अपने से बातें करता है।। और अपने आपके साथ ही असीम तृप्ति महसूस करता है। ऐसे व्यक्ति को कहते है आत्म निर्भर पर निर्भर अपनी ताकत को नही पहचानता और दूसरों से सहयोग की अपेक्षा रखता है।। परन्तु दूसरे भी तो उसी की तरह खाली है। जब चाहत पूरी नही होती तो खुशी गायब हो जाती है।। व्यक्ति अपने भावनाओं में पहले स्व-निर्भर बने अपने आपसे सब कुछ लेना सिखे शेअर करना सीखे इसको कहते है। स्वतन्त्रता। नही तो वह परतन्त्र है।।

दोस्तो ,

हमें चिंता नही चिंतन करना चाहिए। क्योंकि चिंता किसी भी काम को और अधिक कठिन बना देती है। इसलिए चिंता से निपटने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदम है अपने विश्वासों को सही करना। अपनी उस सोच को बदलें जिसके आप आदी हो चुके हैं फिर आप उस परिवर्तन के साक्षी बनेंगे जिसकी आप कल्पना करते हैं। 

चिंता की वजह खोजें। उसके मूल कारण की तह तक जाएं और उसके लिए हल खोजने का प्रयास करें। आप ऐसा क्यों महसूस कर रहे हैं और आपके भीतर का डर क्या है इसे समझें और आत्मविश्लेषण करें। फिर अपने आप को गले लगाने का आभास करके अपने आप से कहें कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। चिंता बढ़ने की अवस्था में ऐसा कहें कि स्थिति उतनी बुरी नहीं है जितनी कल्पना की थी। अपने आप को उस समान स्थिति की याद दिलाएँ जिसका आप सामना कर चुके हैं और अपने आप से कहें कि कैसे अंत में सब चीजें बिल्कुल सही हो गई थीं।

घबराना छोड़ कर चैन की लंबी साँस लें।चिंतित होने पर आप तेजी से साँस लेने लगते हैं। आपके फेफड़ों में ऑक्सीजन कम हो जाती है और आप हांफने लगते हैं। अपनी सांसों की रफ़्तार को नियंत्रित करने के लिए एक लंबी और उद्देश्यपूर्ण साँस लें। ऐसा करने से आप शांत हों जाएँगे। उन लोगों के साथ अपनी चिंताओं को सांझा करें जिन पर आप विश्वास करते हैं। चिंता के विषय पर बात करने पर आपको इस बात का अहसास होगा कि वास्तव में समस्या उतनी बड़ी है नहीं जितनी बड़ी नज़र आ रही थी। यदि समस्या बड़ी है फिर भी किसी के साथ बांटने से उसे देखने के नज़रिए में बदलाव ज़रूर आ जाएगा और आप अच्छा महसूस करेंगे। 

व्यायाम तनाव को कम करने का एक बढ़िया विकल्प है। यदि आप ऑफिस में हैं तो गलियारों में टहल लें या अपने शरीर में खिंचाव भी पैदा कर सकते हैं। यदि आप काफी ज्यादा थके हुए हैं तो कुछ कदम टहल के आएँ। जॉगिंग, मुक्केबाजी या तैराकी के रूप में कोई भी शारीरिक गतिविधि तनाव के स्तर को नीचे लाने में मदद कर सकती है।

Recommended Articles

Leave A Comment