Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

।।कर्म फल या भोग ।।

मानसिक विषमता ही दुख है जिस प्रकार भोजन से हमे पोषण मिलता है वही कुपथ होने पर बीमारी भी लाता है और विष के सामान हो जाता है प्यासे व्यक्ति को जल तृप्ति देता है परन्तु जल मे डूबने लगे तो वही जल दुख हो जाता है । ब्रह्माण्ड को जितने भी पदार्थ है वह प्रकृति के आधीन है उनमे अनुकूलता ढूढनी चाहिए क्योंकि अनुकूलता ही सुख है और प्रतिकुलता दुःख है।
मन का स्वभाव है जितना विकेन्द्रित उतना ही दुख हो और इसके विपरीत स्थिति मे सुख होगा दुर्बल मन ही दुखो को जन्म देता है मानसिक विषमता ही दुःख है
मन की एकाग्रता ही उसे हटाने का साधन है। क्यो कि उससे मन को समता प्राप्त होती है दुःख को हम अवांछनीय कहकर उससे भागते है और जितना हम उससे भागते है उतना ही वह हमारा पीछा करता है ।
अगर किसी कारण से वह हमे छोड जाये तो हमारा विकासक्रम रूक जाता है दुख की भांति सुख का मूल भी तृष्णा है पुरुषार्थ हम तृष्णापूर्ति के लिए करते है वही हमे ज्ञान और तथा नयी शक्ति देता है यदि सुख की ईच्छा को अपने मन से निकाल दिया जाये तो भी हम पशुवत् हो जायेगें परन्तु सुख के पीछे भागने से सुख पाकर भी आनन्द नही पाया जा सकता क्योंकि दुख धैर्य की कसौटी है तो सुख मानवता की परीक्षा है

      

[ मैं करने वाला हूँ, जब तक यह भाव रहेगा आपकी चिंता अशांति मिटने वाली नही है। मैं करने वाला हूँ।। इस भाव मे ही आपका अहंकार है और जहां अहंकार है वहां मोह है क्रोध है विषमता है दुख है द्वेष है अशांति है।। जब वह परमात्मा करने वाला है। यह भाव आता है, तब आपका अहंकार हट जाता है, और अहंकार हटते ही सब उलझने अशांति पाप पुण्य शोक मोह भय क्रोध सब हट जाता है।। सिर्फ बचता है तो सहज आनन्द प्रेम जो आपमे से झरने लगता है झरने के जैसे, बरसने लगता है। बादलों के जैसे, बिखरने लगता है फूलो की सुगन्ध के जैसे यही आपकी वास्तविकता है।। हमारा अहंकार ही हमारी इस वास्तविकता से हमे दूर करता है, जब तक ‘मैं’ है, तब तक ही ‘तू’ भी है, और जब तक ‘मैं’ और ‘तू’ है। तब तक मोह क्रोध द्वेष तुलना हममे भरी रहेगी जो हमे अशांत और परमात्मा से अलग करती है।।

जय श्री कृष्ण🙏🙏
एक व्यक्ति ने अपने मित्र से कहा, मैं आपसे बहुत प्रेम करता हूँ, उसने पूछा कि “क्यों करते हो तो पहले व्यक्ति ने उत्तर दिया, मैं नहीं जानता, कि मैं आपसे प्रेम क्यों करता हूँ।। उसके इस कथन में यह तो स्पष्ट है कि वह अपने मित्र से प्रेम करता है, किसी न किसी गुण के कारण ही करता होगा। क्योंकि गुणों का ही संसार में सम्मान होता है, गुणों के कारण ही प्रेम होता है।। वह इतना तो समझता है, कि इस मित्र में कुछ गुण हैं।। परंतु कौन से गुण हैं, कितने गुण हैं। उनको स्पष्टता से नहीं समझ रहा, और बता नहीं पा रहा कि मैं किन गुणों के कारण आप से प्रेम करता हूँ।। लेकिन यदि कोई ऐसा कहे कि मैं अमुक व्यक्ति से बहुत घृणा करता हूँ। तो घृणा का कारण पूछने पर वह स्पष्ट बता देता है कि, अमुक व्यक्ति में यह दोष है, इस दोष के कारण मैं उस से घृणा करता हूँ।। उसके इस उत्तर से पता चलता है कि जब कोई व्यक्ति, किसी दूसरे से प्रेम करता है तो अनेक बार वह कारण को स्पष्ट नहीं कर पाता।। परंतु जब घृणा करता है, तो स्पष्टता से उत्तर देता है। कि मैं इन दोषों के कारण घृणा करता हूँ।। इससे यह पता चला कि प्रेम उतना अभिव्यक्ति कारक नहीं है, जितनी की घृणा। इसलिए यदि आप किसी से प्रेम करते हैं, तो उसका कारण – उसके गुणों को भी समझें, पहचानें।। आवश्यकता पड़ने पर उन गुणों को बताएं भी, कि मैं इन गुणों के कारण आपसे प्रेम करता हूँ, जैसे घृणा का कारण स्पष्टता से बतला पाते हैं। बल्कि हो सके, तो उन गुणों को अवश्य पहचानें, जिनके कारण आप उस से प्रेम करते हैं।। और घृणा तो न ही करें, क्योंकि यह हानिकारक है। घृणा करने से दूसरे की हानि तो नहीं होती, या कम होती है, बल्कि अपनी हानि अधिक होती है। तो बुद्धिमान व्यक्ति को अपनी हानि नहीं करनी चाहिए, इसलिये गुणों के कारण दूसरों से प्रेम अवश्य करें, घृणा नहीं।।

जय श्री राधे कृष्णा 🙏🏻

Recommended Articles

Leave A Comment