सुन्दर कथा :
एक बार एक गाँव में पंचायत लगी थी | वहीं थोड़ी दूरी पर एक संत ने अपना बसेरा किया हुआ था|
जब पंचायत किसी निर्णय पर नहीं पहुच सकी, तो किसी ने कहा कि क्यों न हम महात्मा जी के पास अपनी समस्या को लेकर चलें , अतः सभी संत के पास पहुंचे |
जब संत ने गांव के लोगों को देखा तो पूछा कि कैसे आना हुआ ?
तो लोगों ने कहा ‘महात्मा जी गाँव भर में एक ही कुआँ हैं और कुँए का पानी हम नहीं पी सकते, बदबू आ रही है । मन भी नहीं होता पानी पीने को।
संत ने पूछा –हुआ क्या ?
पानी क्यों नहीं पी रहे हो ?
लोग बोले–तीन कुत्ते लड़ते लड़ते उसमें गिर गये थे । बाहर नहीं निकले, मर गये उसी में । अब जिसमें कुत्ते मर गए हों, उसका पानी कौन पिये महात्मा जी ?
संत ने कहा — ‘एक काम करो ,उसमें गंगाजल डलवाओ ।
तो कुएं में गंगाजल भी आठ दस बाल्टी छोड़ दिया गया ।
फिर भी समस्या जस की तस !
लोग फिर से संत के पास पहुंचे,अब संत ने कहा”
भगवान की पूजा कराओ”।
लोगों ने कहा ••••ठीक है ।
भगवान की पूजा कराई ,
फिर भी समस्या जस की तस ।
लोग फिर संत के पास पहुंचे !
अब संत ने कहा उसमें सुगंधित द्रव्य डलवाओ।
लोगों ने फिर कहा ••••• हाँ, अवश्य ।
सुगंधित द्रव्य डाला गया ।
नतीजा फिर वही…ढाक के तीन पात।
लोग फिर संत के पास गए ,
अब संत खुद चलकर आये ।
लोगों ने कहा– महाराज ! वही हालत है, हमने सब करके देख लिया । गंगाजल भी डलवाया, पूजा भी करवायी, प्रसाद भी बाँटा और उसमें सुगन्धित पुष्प और बहुत चीजें डालीं; लेकिन महाराज !
हालत वहीं की वहीं ।
अब संत आश्चर्यचकित हुए कि अभी भी इनका कार्य ठीक क्यों नहीं हुआ ?
तो संत ने पूछा– कि तुमने और सब तो किया, वे तीन कुत्ते मरे पड़े थे, उन्हें निकाला कि नहीं ?
लोग बोले — उनके लिए न आपने कहा था, न हमने निकाला, बाकी सब किया । वे तो वहीं के वहीं पड़े हैं ।
संत बोले — जब तक उन्हें नहीं निकालोगे, इन उपायों का कोई प्रभाव नहीं होगा ।
सही बात यह है कि हमारे आपके जीवन की भी यही कहानी है ,
इस शरीर नामक गाँव के अंतःकरण के कुएँ में ये काम, क्रोध और लोभ के तीन कुत्ते लड़ते झगड़ते गिर गये हैं । इन्हीं की सारी बदबू है ।
हम उपाय पूछते हैं तो लोग बताते हैं– तीर्थ यात्रा कर लो, थोड़ा यह कर लो, थोड़ा पूजा करो, थोड़ा पाठ ।
सब करते हैं, पर बदबू उन्हीं दुर्गुणों की आती रहती है ।
कथा सार :
पहले हम सभी अपने भीतर के दुर्गुणों को निकाल कर बाहर करें तभी हमारा जीवन उपयोगी होगा ।