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🔷संसार में सारे झगड़ों की जड़ यह है कि हम देते कम है और माँगते ज्यादा हैं। जबकि होना ये चाहिए कि हम ज्यादा दें और बदले की अपेक्षा बिलकुल ना रखें या कम रखें। प्रेम और सेवा कोई कर्म नहीं हमारा स्वभाव बन जाये।

🔷संसार में कोई भी कर्म व्यर्थ नहीं जाता, कुछ ना कुछ उसका फल जरूर मिलता है। निष्काम सेवा का सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि हमारा कोई दुश्मन नहीं बनता। प्रत्येक क्षण हम हर्ष और आनंद से भरे रहते हैं।

🔷किसी से शिकायत करने पर जितना बदला मिलता है उससे कई गुना तो बिना माँगे ही मिल जाता है। प्रेम से उत्पन्न होने वाले आनंद का कोई मोल नहीं है। अपेक्षा ही बन्धन है, अपेक्षा जीवन को परतंत्र बनाती है, मन का सबसे स्वतंत्र हो जाना ही मोक्ष है।

प्रेम में जीने वाला निखर जाता है।
प्रेम से विलग जीने वाला बिखर जाता है॥

🔷🔷🔷🔷🔷🔷🔷🔷. गीता जी में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के समक्ष सन्यासी और योगी की जो परिभाषा रखी है, वह बड़ी ही अदभुत और विचारणीय है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन सन्यास आवरण का नहीं अपितु आचरण का विषय है।
जिह्वा क्या बोल रही यह सन्यासी होने की कसौटी नहीं अपितु जीवन क्या बोल रहा है, यह अवश्य ही सन्यासी और योगी होने की कसौटी है।

अनाश्रित: कर्म फलं कार्यं कर्म करोति य:
स सन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चा क्रिया।
जो पुरुष कर्म फल की इच्छा का त्याग कर सदैव शुभ कर्म करता रहता है, परोपकार ही जिसके जीवन का ध्येय है, वही सच्चा सन्यासी है। कर्मों का त्याग सन्यास नहीं, अपितु अशुभ कर्मों का त्याग सन्यास है। दुनियाँ का त्याग करना सन्यास नहीं है अपितु दुनियाँ के लिए त्याग करना यह अवश्य सन्यास है।

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     यह मानव जीवन कर्म जीवन है। यह ना केवल स्वयं के कल्याण और उत्थान के लिए है अपितु और भी बहुत लोगों के जीवन का भी भला करने के लिए है। 
      जिस प्रकार एक पिता उद्यमी पुत्र के प्रति विशेष प्रेम रखता है और उसकी प्रशंसा भी चहुँओर करता है। बैसे ही प्रभु को भी कर्मशील व्यक्ति बहुत प्रिय है। कर्म करते-करते ज्ञान को अनुभव करो। कई लोग सोचते हैं कि संतोष माने कर्म ना करना, जो है सो ठीक है।
     संतोष रखने का अर्थ यह है कि जब मेंहनत करने पर किसी कारणवश हम सफल ना हों या कम सफल हों तब उस समय मानसिक विक्षोभ के ऊपर काबू किया जाए। चिंता, दुःख, निराशा, स्ट्रेस, और डिप्रेशन से बचने के लिए भगवान की इच्छा समझकर संतोष किया जाए। लेकिन स्मरण रखना प्रभु को अकर्मण्य बिलकुल भी प्रिय नहीं है।

 *राधे राधे💐💐👏👏*

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