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वात रोग (Disease of nervous system)

      *जो रोग शरीर में वायु के कारण पैदा होता है उसे वातरोग कहते हैं। वायु का दोष त्रिदोषों (वात, पित्त और कफ) में से एक मुख्य दोष हैं। यदि इसमें किसी प्रकार का विकार पैदा होता है तो शरीर में तरह-तरह के रोग पैदा हो जाते हैं जैसे- मिर्गी, हिस्टीरिया, लकवा, एक अंग का पक्षाघात, शरीर का सुन्न होना आदि।*

      *वायु के कुपित होने पर संधियों (हडि्डयों) में संकुचन, हडि्डयों में दर्द, शरीर में कंपन, सुन्नता, तीव्र शूल, आक्षेप (बेहोशी), नींद न आना, प्रलाप, रोमांच, कूबड़ापन, अपगन्ता, खंजता (बालों का झड़ जाना), थकान, शोथ (सूजन), गर्भनाश, शुक्रनाश, सिर और शरीर के सारे भाग कांपते रहते हैं, नाक, लकवे से आधा मुंह टेढ़ा होना और गर्दन भी टेढ़ी होना या अन्दर की ओर धंस जाने जैसे लक्षण प्रकट होते हैं।*

      *वातरोग में रोगी का पेट फूल जाता है, शरीर का रंग बदल जाता है। दांतों का भिंच जाना, बेहोशी और पसीना आना, मुंह से आवाज नहीं निकलना तथा आंख, नाक, भौहे और गालों में दर्द होता है। कूल्हे की हड्डी, कमर, पीठ, जांघ और पांवों में सुई चुभने जैसा दर्द होता है। यह बीमारी कमर से लेकर पांवों के टखनों तक फैल जाती है।*

      *गेहूं की रोटी, घी और शक्कर (चीनी) डाला हुआ हलुवा, साठी चावल-पुनर्नवा के पत्तों का साग, अनार, आम, अंगूर, अरण्डी का तेल और अग्निमान्द्य (पाचनक्रिया का मन्द होना) न हो तो उड़द की दाल ले सकते हैं।*

      *वातरोग में चना, मटर, सोयाबीन, आलू, मूंग, तोरई, कटहल, ज्यादा मेहनत, रात में जागना, व्रत करना, ठंड़े पानी से नहाना जैसे कार्य नहीं करने चाहिए। रोगी को उड़द की दाल, दही, मूली आदि चीजें नहीं खानी चाहिए क्योंकि यह सब चीजें कब्ज पैदा करती है।*

विभिन्न औषधियों से उपचार-

  1. लहसुन :

बूढ़े व्यक्ति अगर सुबह के समय 3-4 कलियां लहसुन खाते रहे तो वात रोग उन्हे परेशान नहीं करता है।
लहसुन के तेल से रोजाना वात रोग से पीड़ित अंग पर मालिश करे। लहसुन की बडी गांठ को साफ करके उसके 2-2 टुकड़े करके 250 मिलीलीटर दूध में उबाल लें। इस बनी खीर को 6 हफ्ते तक रोजाना खाने से वात रोग दूर हो जाता है। लहसुन को दूध में पीसकर भी उपयोग में ले सकते हैं। परन्तु ध्यान रहें कि वातरोग में खटाई, मिठाई आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
लगभग 40 ग्राम लहसुन को लेकर उसका छिलका निकाल लें। फिर लहुसन को पीसकर उसमें 1 ग्राम हींग, जीरा, सेंधानमक, कालानमक, सोंठ, कालीमिर्च और पीपर का चूर्ण डालकर उसके चने की तरह की छोटी-छोटी गोलियां बनाकर खाने से और उसके ऊपर से एरण्ड की जड़ का काढ़ा बनाकर पीने से लकवा, सर्वांगवायु, उरूस्तम्भ, पेट के कीड़े, कमर के दर्द, और सारे वायु रोग ठीक हो जाते हैं।
400 ग्राम लहसुन का सूखा चूर्ण और 6-6 ग्राम सेंधानमक, कालानमक, विड़नमक, सोंठ, कालीमिर्च, छोटी पीपल और हीरा हींग को ले लें। इसके बाद घी में हींग को भूनकर अलग रख लें और सभी चीजो को कूटकर पीसकर रख लें और उसमें भूनी हुई हींग भी मिला लें। इस चूर्ण को 3-3 ग्राम की खुराक के रूप में सुबह-शाम पानी के साथ वात रोग के रोगी को देने से आराम मिलता है।

  1. एरण्ड :

वातरक्त में एरण्ड का 10 मिलीलीटर तेल एक गिलास दूध के साथ सेवन करना चाहिए।
एरण्ड के बीजों को पीसकर लेप करने से छोटी संधियों (हडि्डयों) और गठिया यानी घुटनों की सूजन मिटती है।
वातरोग में एरण्ड का तेल उत्तम गुणकारी होता है। कमर व जोड़ों का दर्द, हृदय शूल, कफजशूल आमवात और संधिशोथ, इन सब रोगों में एरण्ड की जड़ 10 ग्राम और सौंठ का चूर्ण 5 ग्राम का काढ़ा बनाकर सेवन करना चाहिए तथा वेदना स्थल पर एरण्ड के तेल की मालिश करनी चाहिए।
2 चम्मच एरण्ड के तेल को गर्म दूध में मिलाकर सेवन करने से वातरोग में लाभ होता है।
एरण्ड के तेल में गाय का मूत्र मिलाकर 1 महीने तक सेवन करने से हर तरह के वातरोग खत्म हो जाते हैं।
एरण्ड की जड़ को घी या तेल में पीसकर गर्म करके लगाने से वात विद्रधि रोग खत्म हो जाते हैं।
एरण्ड की लकड़ी जलाकर उसकी 10 ग्राम राख को पानी के साथ खाने से वातरोग मे लाभ होता है।

  1. तिल :

तिल के तेल में लहसुन का काढ़ा और सेंधानमक को मिलाकर खाने से वातरोग खत्म हो जाता है।
तिल के तेल की मालिश करने से वातरोग में लाभ होता है।
पैरों पर तिल के तेल की मालिश करके 1 घण्टे तक गर्म पानी में रखनें से वात की बीमारी में लाभ होता है।
काले तिल और एरण्ड की मिंगी 50-50 ग्राम की मात्रा में लेकर भेड़ के दूध में पीसकर लेप करने से वात-बादी रोग खत्म हो जाता है।

  1. निर्गुण्डी :

दमा, खांसी और ठंड़ में वात रोग होने पर 10 ग्राम निर्गुण्डी को गोमूत्र (गाय के मूत्र) में पीसकर खाने से लाभ होता है।
10 ग्राम निर्गुण्डी और मीठे तेल को मिलाकर मालिश करने से 84 तरह के वात रोग दूर हो जाते हैं।
निर्गुण्डी के पत्तों को गर्म करके बांधने से बादी की गांठें बैठ जाती है।

  1. गाय का घी : 10 ग्राम गाय के घी में 10 ग्राम निर्गुण्डी के चूर्ण को मिलाकर खाने से कफ और वायु रोग दूर हो जाते हैं।
  2. भेड़ का दूध : भेड़ के दूध में एरण्ड का तेल मिलाकर मालिश करने से घुटने, कमर और पैरों का वात-दर्द खत्म हो जाता है। तेल को गर्म करके मालिश करें और ऊपर से पीपल, एरण्ड या आक के पत्ते ऊपर से लपेट दें। 4-5 दिन की मालिश करने से दर्द शान्त हो जाता है।
  3. काकजंगा : घी में काकजंगा को मिलाकर पीने से वातरोग से पैदा होने वाले रोग खत्म हो जाते हैं।
  4. समुद्रफल :

समुद्रफल के साथ गुड़ खाने से बादी मिट जाती है।
समुद्रफल के साथ नींबू खाने से बादी मिट जाती है।
समुद्रफल को बासी पानी के साथ खाने से सभी प्रकार के वात रोग खत्म हो जाते हैं।

  1. जायफल : जायफल, अंबर और लौंग को मिलाकर खाने से हर तरह के वातरोग दूर होते हैं।
  2. कौंच : कौंच के बीजों की खीर बनाकर खाने से वातरोग दूर हो जाते हैं।
  3. नींबू :

वात के कारण होने वाले घुटने के दर्द, पैरों की सूजन और शरीर के मोटापे को कम करने के लिये रोगी को रोजाना सुबह उठकर कुल्ला करके एक गिलास ठंडे पानी में एक नींबू निचोड़कर पीने से वायु रोग और मोटापे के रोगी को लाभ होता है।
नींबू को 2 टुकड़ों में काटकर गर्म करके जोड़ों को सेंककर वातरोग से पीड़ित अंग पर लगाएं।
2 चम्मच नींबू के रस को एक गिलास गर्म पानी में मिलाकर पीने से पेट की गैस में राहत मिलती है।

  1. असगन्ध :

100 ग्राम असगंध और 100 ग्राम मेथी को बराबर मात्रा में लेकर बने बारीक चूर्ण में गुड़ मिलाकर 10-10 ग्राम के लड्डू बना लें। 1-1 लड्डू सुबह-शाम खाकर ऊपर से दूध पी लें। यह प्रयोग वात रोगों में अच्छा आराम दिलाता है। जिन्हे डायबिटीज हो, उन्हे गुड़ नहीं खिलाना चाहियें, सिर्फ अश्वगंध और मेथी का चूर्ण पानी के साथ लेना चाहिए।
असगंध के पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) को खाने से फायदा होता है।
500-500 ग्राम असगंध और विधारा को कूटकर और पीसकर रख लें। यह 10 ग्राम दवा सुबह के समय गाय के दूध के साथ खाने से वातरोग खत्म हो जाते हैं।

  1. अफीम : थोड़ी सी मात्रा में अफीम खाने से गठिया के तेज दर्द में आराम मिलता है।
  2. नारियल :

ताजे नारियल के खोपरे के रस को आग पर सेंक लें, सेकने के बाद जो तेल निकले, उसमें कालीमिर्च की बुकनी डालकर शरीर पर लगाने से वायु के कारण अकड़े हुए अंग वायुमुक्त होते हैं और वातरोग दूर होते हैं।
1 नारियल के साथ 20 ग्राम भिलावा को पीसकर आग पर चढ़ा दें। जब तेल ऊपर आ जाये तो उसे छानकर शीशी में रख लें। इस तेल की मालिश और नीचे की बची हुई लुग्दी को एक चौथाई ग्राम से कम की मात्रा में रोजाना खुराक के रूप में लेने से सारे वातरोग दूर होते हैं।
70 ग्राम कच्चे नारियल का रस, 3 ग्राम त्रिफला कुटा हुआ और 2 ग्राम कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम पीने से सारे वायुरोग खत्म हो जाते हैं।

  1. आलू : कच्चे आलू को पीसकर, वातरक्त में अंगूठे और दर्द वाले स्थान पर लगाने से दर्द कम होता है।
  2. राई :

4 ग्राम पिसी हुई राई और 4 ग्राम गुड़ को मिलाकर सुबह और शाम गुनगुने पानी में मिलाकर पीने से वातरोगों में आराम मिलता हैं।
राई के तेल में पूरी या पकौड़े तलकर रोगी को खिलाये और इस तेल से वातरोग से पीड़ित भाग की मालिश करें, गुनगुने पानी से स्नान करें। ध्यान रहें कि सिर, आंख आदि कोमल भागों पर राई के तेल की मालिश नहीं करनी चाहिए।
जवान व्यक्ति के इस्तेमाल हेतु 10 ग्राम अलसी के चूर्ण और 10 ग्राम राई को ठंड़े पानी में घोटकर पोटली बनाकर दर्द वाले स्थान पर लगाने से रोगी को दर्द और रोग में लाभ दिखाई देता है।
बच्चों के लिए 10 ग्राम राई का चूर्ण और अलसी चूर्ण 10 से 15 गुणा अधिक मात्रा में लें।
10 ग्राम राई का बारीक चूर्ण और 30 ग्राम गेहूं या चावल के आटे को ठंड़े पानी में घोलकर आवश्यकतानुसार बनाकर लेप को बनाकर पीड़ित अंग पर लगाने से लाभ होता है।
राई की पोटली या लेप कपड़े पर लगाकर प्रयोग करने से वातरोग से पीड़ित अंग पर मालिश करने से लाभ होता है।
राई के तेल की मालिश करने से वायुरोग में राहत मिलती है।
राई और चीनी को पीसकर कपड़े में डालकर पट्टी के रूप में वातरोग के कारण दर्द वाले अंग पर लगाने से रोगी को आराम मिलता है।
राई और सहजने की छाल को मट्ठे यानी छाछ में पीसकर पतला-पतला लेप करके पीड़ित भाग पर लगाने से लाभ होता हैं।

  1. चमेली : चमेली की जड़ का लेप या चमेली के तेल को पीड़ित स्थान पर लगाने या मालिश करने से वात विकार में लाभ मिलता है।
  2. इन्द्रजौ : इन्द्रजौ का काढ़ा बनाकर उसमें संचन और सेंकी हुई हींग को डालकर वातरोगी को पिलाने से लाभ होता है।
  3. आक :

10 ग्राम आक की जड़ की छाल में 1-1 ग्राम कालीमिर्च, कुटकी और कालानमक आदि को मिलाकर पानी के साथ बारीक पीसकर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर रख लें। किसी भी अंग में वातजन्य पीड़ा हो तो सुबह और शाम यह 1-1 गोली गर्म पानी के साथ मरीज को सेवन कराने से लाभ होता हैं।
तिल के तेल में आक की जड़ को पकाकर अच्छी तरह से छानकर इस तेल को वातरोग से पीड़ित अंगो पर मलने से रोगी को आराम मिलता है।
आक की एक किलो जड़ (छाया में सुखाई हुई) को कूटकर 8 लीटर जल में पकाए। पकने पर 2 लीटर शेष रहने पर उसमें 1 लीटर एरण्ड के तेल को मिलाकर पकाए। तेल शेष रहने पर छानकर शीशी में भरकर रख लें। इसकी मालिश से भी दर्द में शीघ्र लाभ होता है।
वात रोगी को आक की रूई से भरे वस्त्र पहनने तथा इसकी रूई की रजाई व तोसक में सोने से बहुत लाभ होता है। वात व्याधि वाले अंग पर वायुनाशक तेल की मालिश करके ऊपर से इस रूई को बांधने से बहुत लाभ होता है।

  1. मुलेठी :

वात रक्त में मुलेठी और गंभारी से सिद्ध किये हुये तेल की मालिश करने से लाभ होता है।
मुलेठी और गंभारी फल का 50 से 100 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर दिन मे 3 बार पीने से वातरक्त में लाभ होता है।

  1. आंवला : आंवला, हल्दी तथा मोथा के 50 से 60 मिलीलीटर काढ़े में 2 चम्मच शहद को मिलाकर दिन में 3 बार पीने से वातरक्त शान्त हो जाता है।
  2. चित्रक : चित्रक की जड़, इन्द्रजौ, काली पहाड़ की जड़, कुटकी, अतीस और हरड़ को बराबर मात्रा में लेकर खुराक के रूप में सुबह-शाम सेवन करने से सभी प्रकार के वात रोग नष्ट हो जाते है।
  3. अदरक : अदरक के रस को नारियल के तेल में मिलाकर वातरोग से पीड़ित अंग पर मालिश करना लाभकारी रहता है।
  4. गाजर : गाजर का रस संधिवात (हड्डी का दर्द) और गठिया के रोग को ठीक करता है। गाजर, ककड़ी और चुकन्दर का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से जल्दी लाभ होता है। यदि ये तीनों सब्जियां उपलब्ध न हो तो उन्ही का मिश्रित रस पीने से शीघ्र लाभ होता है।
  5. अड़ूसा (वासा) : अड़ूसा के पके हुए पत्तो को गर्म करके सिंकाई करने से संधिवात, लकवा और वेदनायुक्त उत्सेध में आराम पहुंचता है।
  6. अगस्ता : अगस्ता के सूखे फूलों के 100 ग्राम बारीक चूर्ण को भैंस के एक किलो दूध में डालकर दही जमा दें। दूसरे दिन उस दही में से मक्खन निकालकर वातरोग से पीड़ित अंग पर मालिश करें। इस मक्खन की मालिश खाज पर करने से भी लाभ होता है।
  7. गिलोय :

गिलोय के 40 से 60 मिलीलीटर काढ़े को रोजाना सुबह-शाम पीने से वातरक्त का रोग दूर होता है।
गिलोय के 5 से 10 मिलीलीटर रस अथवा 3 से 6 ग्राम चूर्ण या 10 से 20 मिलीलीटर कल्क अथवा 40 से 60 मिलीलीटर काढ़े को प्रतिदिन निरन्तर कुछ समय तक सेवन करने से रोगी वातरक्त से मुक्त हो जाता है।
गिलोय, बिल्व, अरणी, गम्भारी, श्योनाक (सोनापाठा) तथा पाढ़ल की जड़ की छाल और आंवला, धनिया ये सभी बराबर मात्रा में लेकर इनके 20 से 30 मिलीलीटर काढ़े को दिन में 2 बार वातज्वर के रोगी को देने से लाभ होता है।

  1. मेथी :

मेथी घी में भूनकर पीसकर छोटे-छोटे लड्डू बनाकर 10 दिन सुबह खाने से वात की पीड़ा में लाभ होता है। मेथी के पत्तों की भुजिया या सूखा साग बनाकर खाने से पेट के वात-विकार और पेट की सर्दी में लाभ होता है।
दानामेथी को सेंककर और पीसकर 4 चम्मच की मात्रा में एक गिलास पानी मे उबालकर रोजाना पीनें से वातरोग में लाभ मिलता है।
मेथी के हरे पत्तों की पकौड़ी खाने से पेट की सर्दी और वायु-विकार ठीक हो जाते हैं।
वातरोग में मेथी की सब्जी और मेथी के साथ बनी दूसरी सब्जियां खाने से बहुत लाभ होता है। 2 चम्मच कुटी हुई मेथी को गर्म पानी के साथ लेने से वात-कफ के कारण होने वाला शरीर का दर्द ठीक हो जाता है। गुड़ में मेथी-पाक बनाकर खाने से गठिया ठीक हो जाता है।
मेथीदाने को महीन पीसकर उसमें सेंधानमक और कालीमिर्च मिलाकर चूर्ण बनाया जाता है जो कि वात रोग, पेट दर्द तथा जोड़ों के दर्द में लाभदायक होता है। मेथी को घी में भूनकर, पीसकर, छोटे-छोटे लड्डू बनाकर 10 दिन सुबह-शाम खाने से वातरोग में लाभ होता है। मेथी के पत्तों की भुजिया या सूखा साग बनाकर खाने से पेट के वात-विकार और आंतों की सर्दी में लाभ होता है।
मेथी वायुनाशक, पित्तनाशक और पौष्टिक होती है। मेथी का रस पीने या सब्जी बनाकर सेवन करने से वायु विकार और पित्त विकार में आराम मिलता है।
सर्दी के दिनों में मेथी की सब्जी खाने से वात विकार, जोड़ों का दर्द (संधिशूल) और सूजन समाप्त हो जाती है।
नारियल, मूंगफली या सरसों के साथ 100 ग्राम दानामेथी को कूटकर अच्छी तरह उबाल लें। फिर इसे छानकर शीशी में भर लें और जोंड़ों में जहां-जहां दर्द हो, मालिश करें। 2 चम्मच दाना मेथी की सुबह-शाम पानी से फंकी के साथ लेने से वातरोग में आराम मिलता है। यह प्रयोग करते समय घी-तेल कम-से-कम खाना होगा क्योंकि यह सब शरीर को नुकसान कर सकते हैं।
पिसी मेथी, सोंठ और गुड़ को बराबर मात्रा में एकसाथ मिलाकर और पीसकर 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम खाने से वातरोग दूर होता है।
50-50 ग्राम दाना मेथी, हल्दी, सोंठ और 25 ग्राम अश्वगंधा को बराबर मात्रा में एकसाथ मिलाकर पीस ले। सुबह नाश्ते के बाद तथा रात को खाने के आधा घंटे बाद गर्म पानी के साथ इस मिश्रण की 1-1 चम्मच फंकी लेने से कमरदर्द, गठिया और जोड़ों के दर्द में लाभ होता है।
मेथी को घी में सेंककर और पीसकर आटा बना लें। गुड़ और घी की चाशनी बनाकर उसमें मेथी का आटा डालकर हिलाएं और चूल्हें से उतारकर छोटे-छोटे लड्डू बना लें। रोजाना सुबह यह 1-1 लड्डू खाने से वातरोग से अकड़े हुए अंगों को राहत मिलती है और वात के कारण हाथ-पैरों में होने वाला दर्द दूर होता है।

  1. इमली : इमली के पत्तों को ताड़ी के साथ पीसकर गर्म करके दर्द वाले स्थान पर बांधने से लाभ होता है।
  2. अखरोट : अखरोट की 10 से 20 ग्राम की ताजी गिरी को पीसकर वातरोग से पीड़ित अंग पर लेप करें। ईंट को गर्म करके उस पर पानी छिड़क कर कपड़ा लपेटकर पीड़ित स्थान पर सेंक देने से पीड़ा शीघ्र मिट जाती है। गठिया पर इसकी गिरी को नियमपूर्वक सेवन करने से रक्त साफ होकर लाभ होता है।
  3. पुनर्नवा : श्वेत पुनर्नवा की जड़ को तेल में शुद्ध करके पैरो में मालिश करने से वातकंटक रोग दूर हो जाता है।
  4. शतावर :

शतावर के हल्के गर्म काढ़े में पीपल के 1 ग्राम चूर्ण को मिलाकर दिन में 3 बार पीने से वातज कास और दर्द दूर हो जाता है।
10 ग्राम शतावर और 10 मिलीलीटर गिलोय के रस में थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर खाने से या दोनों के 50 से 60 मिलीलीटर काढ़े में 2 चम्मच शहद मिलाकर पीने से वातज्वर खत्म हो जाता है।

  1. कुलथी : 60 ग्राम कुलथी को 1 लीटर पानी में उबालें। पानी थोड़ा बचने पर उसे छानकर उसमें थोड़ा सेंधानमक और आधा चम्मच पिसी हुई सौठ को मिलाकर पीने से वातरोग और वातज्वर में आराम आता है।
  2. नागरमोथा : नागरमोथा, हल्दी और आंवला का काढ़ा बनाकर ठंड़ा करके शहद के साथ पीने से खूनी वातरोग में लाभ पहुंचता है।
  3. वायबिडंग : आधा चम्मच वायबिड़ंग के फल का चूर्ण और एक चम्मच लहसुन के चूर्ण को एकसाथ मिलाकर सुबह-शाम रोजाना खाने से सिर और नाड़ी की कमजोरी से होने वाले वात के रोग में फायदा होता है।
  4. तुलसी : तुलसी के पत्तों को उबालते हुए इसकी भाप को वातग्रस्त अंगों पर देने से तथा इसके गर्म पानी से पीड़ित अंगों को धोने से वात के रोगी को आराम मिलता है। तुलसी के पत्ते, कालीमिर्च और गाय के घी को एकसाथ मिलाकर सेवन करने से वातरोग में बहुत ही जल्दी आराम मिलता है।
  5. सोंठ :

सोंठ तथा एरण्ड की जड़ के काढे़ में हींग और सौवर्चल नमक का प्रक्षेप देकर पीने से वात शूल नष्ट होता है।
सोंठ का रस एक तिहाई कप पानी में मिलाकर आधा कप की मात्रा में भोजन करने के बाद सुबह-शाम पीने से वात रोगों में आराम होता है।
50 ग्राम सोंठ और 50 ग्राम गोखरू को मोटा-मोटा कूटकर 5 खुराक बना लें। सोने से पहले इसे 200 मिलीलीटर पानी में उबाल लें। जब पानी थोड़ा-सा रह जाये तब इसे छानकर गुनगुना करके पीने से कुछ ही समय में वातरोग दूर होता है।

  1. अजवायन :

खुरासानी अजवायन का प्रयोग घुटने की सूजन में बहुत ही फायदेमन्द होता है।
5 ग्राम पिसी हुई अजवायन को 20 ग्राम गुड़ में मिलाकर छाछ के साथ लेने से वातरोग में लाभ होता है।
एक चम्मच अजवायन और काला नमक को पीसकर इसे छाछ में मिलाकर पीने से पेट की गैस की शिकायत दूर होती है।

  1. कूट : कूट 80 ग्राम, चीता 70 ग्राम, हरड़ का छिलका 60 ग्राम, अजवायन 50 ग्राम, सोंठ 40 ग्राम, छोटी पीपल 30 ग्राम और बच 20 ग्राम के 10 ग्राम भूनी हुई हींग को कूटकर छानकर रख लें। फिर इसमें 5 ग्राम चूर्ण को सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ लेने से वायु की बीमारी में लाभ होता है।
  2. सौंफ : सौंफ 20 ग्राम, सोंठ 20 ग्राम, विधारा 20 ग्राम, असंगध 20 ग्राम, कुंटकी 20 ग्राम, सुरंजान 20 ग्राम, चोबचीनी 20 ग्राम और 20 ग्राम कडु को कूटकर छान लें। इस चूर्ण को 5-5 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम खाना खाने के बाद गुनगुने पानी के साथ लेने से वात के रोगों में आराम मिलता है।
  3. रास्ना : 50 ग्राम रास्ना, 50 ग्राम देवदारू और 50 ग्राम एरण्ड की जड़ को मोटा-मोटा कूटकर 12 खुराक बना लें। रोजाना रात को 200 मिलीलीटर पानी में एक खुराक को भिगों दें। सुबह इसे उबाल लें। जब पानी थोड़ा-सा बच जायें तब इसे हल्का गुनगुना करके पीने से वातरोग में आराम मिलता है।
  4. नमक :

10 ग्राम सेंधानमक और 10 ग्राम बूरा (देशी चीनी) को एकसाथ मिलाकर मिश्रण बना लें। इस मिश्रण में से आधा चम्मच गर्म पानी के साथ रोजाना दिन में सुबह, दोपहर और शाम (तीन बार) पीने से पेट की गैस मिट जाती है।
सेंधानमक, संचार नमक, त्रिकुटा और हींग को 4-4 ग्राम की मात्रा में लेकर 40 ग्राम सूखे लहसुन के साथ पीसकर 1 महीने तक 1 ग्राम की मात्रा में रोजाना खाने से सारे वात रोग और लकवा रोग ठीक हो जाते हैं।
10 ग्राम, काला नमक, 10 ग्राम कफे दरिया, 10 ग्राम समुद्रफल की गिरी, 10 ग्राम सज्जी सफेद, 10 ग्राम जवाखार, 10 ग्राम सुहागा, 10 ग्राम पीपल, 10 ग्राम सोंठ, 10 ग्राम हींग, 10 ग्राम बड़ी मुनक्का को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें। फिर इसमें 40 ग्राम अम्लश्वेत को कूटकर छोटी-छोटी गोली बना लें। इन गोलियों का नियमित रूप से सेवन करने से वातरोग में आराम मिलता है।

  1. महुआ : महुआ के पत्तों को गर्म करके वात रोग से पीड़ित अंगों पर बांधने से पीड़ा कम होती हैं।
  2. मूली : मूली के रस में नींबू का रस और सेंधानमक को मिलाकर सेवन करने से वायु विकार से उत्पन्न पेट दर्द समाप्त होता है।
  3. प्याज : वायु के कारण फैलने वाले रोगों के उपद्रवों से बचने के लिए प्याज को काटकर पास में रखने या दरवाजे पर बांधने से बचाव होता हैं।
  4. अजमोद : मूत्राशय (वह स्थान जहां पेशाब एकत्रित होता हैं) में वायु का प्रकोप होने पर अजमोद और नमक को साफ कपड़े में बांधकर नलों पर सेंक करने से वायु नष्ट हो जाती है।
  5. अमलतास :

अमलतास के 10-15 पत्तों को गरम करके उनकी पुल्टिस बांधने से सुन्नवात, गठिया और अर्दित मे फायदा होता है।
अमलतास के पत्तो का रस पक्षाघात से पीड़ित स्थान पर मालिश करने से भी लाभ होता है।
5 से 10 ग्राम अमलतास की जड़ को 250 मिलीलीटर दूध में उबालकर सेवन करने से वातरक्त का नाश होता है।

  1. पोदीना :

पोदीना, तुलसी, कालीमिर्च और अदरक का काढ़ा पीने से वायु रोग (वात रोग) दूर होता है और भूख भी बहुत लगती है।
पुदीना पाचक (हाजमेदार) होता है व वायुविकार, पेट का दर्द, अपच (भोजन) आदि को ठीक करता है।

  1. फालसे : पके फालसे के रस में पानी को मिलाकर उसमें शक्कर और थोड़ी-सी सोंठ की बुकनी डालकर शर्बत बनाकर पीने से पित्तविकार यानि पित्तप्रकोप मिटता है। यह शर्बत हृदय (दिल) के रोग के लिए लाभकारी होता है।
  2. तेजपत्ता : तेजपत्ते की छाल के चूर्ण को 2 से 4 ग्राम की मात्रा में फंकी लेने से वायु गोला मिट जाता है।

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