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“Negative और waste thoughts का सबसे सीधा असर हमारे brain पर पड़ता है”

᯽इससे neurons proper function नहीं कर पाते और memory loss तथा concentration में problem होता है आज छोटे बच्चे भी बहुत ही चंचल स्वभाव के होते हैं और अपनी पढ़ाई पर एकाग्र नहीं हो पाते इसका कारण है negative, waste और विकारी thoughts जो वे घर, व आस पड़ोस के वातावरण से ग्रहण करते हैं !

᯽जैसा हम सोचते हैं हमारे अन्दर वैसे ही biochemicals secrete होते हैं जो वैसे ही changes लाते हैं शरीर में नए cells व neurocircuits की formation द्वारा!

᯽depression का कारण भी यही है, healthy neurons के लिए positive और शुद्ध श्रेष्ठ thoughts चाहिए परंतु जब thoughts negative और विकारी हो जाएं तो neurons के functions में imbalance आ जाता है जिससे memory व concentration loss होता है!

᯽आज बच्चे पढ़ाई पर इसिलिए focus नहीं कर पाते हैं क्योंकि कलयुग की ताम्सिक जानकारी व इच्छायें उनके brain पर सीधा असर डाल रही हैं जिससे उनकी memory व concentration loss हो रहा है साथ ही साथ उनका day routine भी गलत है, सोने व उठने का proper time नहीं है, भोजन में भी सात्विक अन्न नहीं है जिसके कारण उनका biological clock खराब हो जाता है और उनकी पढ़ाई पर एकाग्रता व स्मरण शक्ति बिल्कुल ही नष्ट हो जाती है।

᯽इस पर हम लोग उन्हें पढ़ाई के लिए force करते रहते हैं, इस बात से बेखबर कि उनके अन्दर के biochemicals का secetions व function का system ही बिगड़ चुका है

᯽जिसको वे चाह कर भी ठीक नहीं कर पा रहे हैं इसका कारण हम parents हैं, जब बच्चा 3 से 13 साल की आयु का है तब हम उसकी upbringing पर कोई खास ध्यान नहीं देते, उसे tv , mobile या किसी के भी साथ मिलने मिलाते रहते हैं बिना यह सोचे समझे कि इस समय बच्चे के मन की alpha stage है।

᯽जिसमें वह जो कुछ भी वह देख रहा है सुन रहा है वह सीधा उसके subconscious mind में जा रहा है जो उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन रहा है और 13 साल की आयु के बाद जब वह उन विचारों को अपने व्यक्तित्व में दर्शाना शुरु करता है तो हम object करने लगते हैं जबकि उसकी foundation हमने ही डाली या डलवाई है।

᯽अकसर जब बच्चे की 3 से 13 साल तक की उम्र तक मां- बाप कमाई में इतने व्यस्त होते हैं कि वे बच्चों को cruch या किसी नौकर के पास छोड़ कर अपने काम में व्यस्त रहते हैं और 13 साल की उम्र के बाद जब इस पालना का रंग दिखाई देने लगता है तो मां – बाप सतर्क होना शुरु करते हैं पर ‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग जाए खेत’ ऐसे अब समय में धैर्यता, सयम व नियम ही काम आएगा, बच्चो को बार बार टोक कर हम उनको और ही खुद से दूर करेंगे !

᯽अतः बेहतर है कि अब उनका मित्र बनकर उनको नई अच्छी विचारधारा को अपनाने में मदद की जाए! इस समय उनकी बड़ी से बड़ी गलती को भी समाना पड़ेगा, देखकर भी अनदेखा करना पड़ेगा!

᯽अगर विरोध किया तो बच्चे depression में जा सकते हैं जिससे उनका जीवन और ही खराब हो जाएगा! उनको positivity व spirtuality की तरफ लाने के लिए पहले हमें ज्ञान स्वरूप बनना पड़ेगा इसमें भले कितनी भी मेहनत लगे पर यही एकमात्र रास्ता है।🙏

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