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काम, क्रोध, मद, लोभ

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काम का अर्थ है: यह मिले, वह मिले, मिलता ही रहे। जो नहीं है, उसके पीछे दौड़। क्रोध का अर्थ है: तुम्हारी दौड़ में जो भी बाधा पैदा करके, उसके प्रति रोष, उसे मिटा डालने की आकांक्षा। मद का अर्थ है: तुम जो चाहते हो मिल जाए, तो अहंकार, अकड़। और लोभ का अर्थ है: जो मिल गया है, वह और मिले, और मिले। ये सब काम के ही भिन्न भिन्न रूप हैं। काम में ही बाधा पड़े तो क्रोध, काम पूरा हो जाए तो मद। और पूरे हो जाने पर भी कुछ पूरा नहीं होता। वासना कोई भरती नहीं।

एक सूफी फकीर के पास एक युवक आया और उस युवक ने कहा कि कैसे परमात्मा को पा सकता हूं? सूफी फकीर ने कहा कि अभी तो मैं जा रहा हूं कुएं पर पानी भरने, तुम मेरे साथ आओ। हो सका तो वहीं उत्तर भी हो जाएगा। मगर एक शर्त खयाल रखना। कसम खाओ। यह पहली कसौटी है कि तुम विद्यार्थी होने के योग्य हो भी या नहीं। मैं कुएं पर कुछ भी करूं, तुम प्रश्न मत उठाना; तुम चुपचाप देखते रहना। तुम्हारा काम निरीक्षण का है, तुम्हारा काम साक्षी का।

साक्षी की शिक्षा! विद्यार्थी भी बड़ा उत्सुक हुआ, क्योंकि साक्षी ही तो सार है। सुना है शास्त्रों में, पढ़ा है शास्त्रों में, ज्ञानियों से जाना है साक्षी ही तो सार है! यह भी अदभुत गुरु है। पहले ही मौके पर बस आखिरी कुंजी देने लगा! चल पड़ा जल्दी उत्सुकता में, आतुर, मस्त कि कुछ हाथ लगने को है। कुएं पर पहुंच कर लेकिन बड़ी निराशा लगी हाथ, क्योंकि वह फकीर पागल मालूम पड़ा। उसने एक बाल्टी निकाली अपने झोले में से, जिसमें पेंदी थी ही नहीं। जब उस विद्यार्थी ने देखा कि बिना पेंदी की बाल्टी…मारे गए! और जब उसने डोरी बांधी और बिना पेंदी की बाल्टी उसने कुएं में डाली, तो बार बार उसके सामने सवाल उठने लगा कि पूछूं कि यह आप क्या कर रहे हैं? लेकिन याद था उसे, कसम खा ली थी कि पूछना मत, सिर्फ साक्षी रहना। यह भी बड़ी झंझट हो गई। जबान पर आ आ जाए सवाल। घोंट दे गर्दन में सवाल को। और वह फकीर पानी भरने लगा बिना पेंदी की बाल्टी से। खूब खड़खड़ाएं कुएं में। जितना वह खड़खड़ाए, उसकी छाती भी खड़खड़ाए विद्यार्थी की, कि मारा! यह कब पानी भरेगा? जब कुएं में पानी में बाल्टी रहे, तब तो भरी हुई मालूम पड़े, जब डूबी रहे पानी में; और जैसे ही वह खींचे कि खाली। ऊपर आ जाए, देखे कि खाली, तो फिर डाले। एक बार, दो बार, दस बार…आखिर भूल गया विद्यार्थी अपनी कसम। उसने कहा कि रुको जी! होश है? यह तो जिंदगी खराब हो जाएगी तुम्हारी और मेरी भी! मैं भी सिके चक्कर में पड़ गया! इस बाल्टी में कभी पानी नहीं भर सकता।

उस गुरु ने कहा: बात खतम हो गई! अब तुम अपने रास्ते लगो। तुम पहला वचन पूरा न कर पाए। बस एक बार और मैं डालने वाला था, बस एक बार और। तुम बस पहुंचते पहुंचते चूक गए, मैं क्या करूं? मैंने तय किया था: ग्यारह बार। दस बर तो हो चुका था। जरा और धीरज रख लेते, बस जरा और! मुझे मालूम है कि बड़ी तकलीफ तुम्हें हो रही थी। पसीना पसीना तुम हो रहे थे। तुम्हारा सब हाल मुझे मालूम है। बाल्टी खड़खड़ा रही, तुम भी खड़खड़ा रहे थे…सब मुझे मालूम है। बाल्टी से ज्यादा परेशान तुम थे। लेकिन अगर एक बार और धीरज रख लिया होता तो मैं तुम्हें शिष्य स्वीकार कर लेता। अब रास्ता नापो!

उसने बाल्टी रखी अपने झोले में और घर वापस लौट गया। विद्यार्थी ने भी सोचा कि हो तो गई गलती…पता नहीं यह क्या देने वाला था! एक ही बार और…खूब चूके! मगर यह आदमी भरोसे का नहीं है। हो सकता है हम और एक बार रहते, और तब भी यह यही कहता: इस आदमी का क्या पक्का! हम बीस बार भी चुप रहते, यह कहता, इक्कीसवीं बार…। इसने कुछ पहले से बताया तो था नहीं कि ग्यारह बार चुप रहना। हजार बार भी अगर हमने धीरज रखा होता तो यह कहता, बस एक…। यह आदमी बड़ा चालबाज है। पागल भी है और चालबाज भी है।

लौट तो गया घर, लेकिन बीच बीच में खयाल आने लगा कि चालबाज कितना ही हो, पागल कितना ही हो, आंखों में उसकी एक मस्ती तो थी ही, जो कहीं और नहीं देखी! उसके चारों तरफ एक आभा मंडल तो था, एक शीतलता तो थी! मैं चूक गया। मुझसे भूल हो गई।

रुक न सका, आधी रात वापस पहुंच गया। एकदम पैर पर गिर पड़ा और कहा: मुझे क्षमा कर दो, मुझसे भूल हो गई। उस फकीर ने कहा: अगर तुम समझ गए हो, समझकर क्षमा मांग रहे हो, समझकर कह रहे हो कि तुम से भूल हो गई, तो पाठ पूरा हो गया।

यही तुम्हारी अब तक कि जिंदगी है। वासना बिना पेंदी की बाल्टी है। इसको संसार के कुएं में डालते रहे, डालते रहो, खड़खड़ाते रहो, हर बार भरी हुई मालूम होगी और जब खींच कर लाओगे घाट तक, खाली हो जाएगी। यह कभी भरने वाली नहीं। यह पहला पाठ। जो मैंने बाल्टी के साथ किया और तुम समझ गए, अब वही अपने साथ करो और समझो। जिस दिन यह बात तुम्हारी समझ में आ जाए, फिर आना, फिर दूसरा पाठ दूंगा। अब अपनी वासना की बाल्टी को रोज रोज देखो डालते हो कुएं में और खाली की खाली लौट आती है।

काम का अर्थ है: अंधी वासना। क्रोध का अर्थ है: तुम्हारी वासना में जो भी बाधा डाले। मद का अर्थ है: अगर कभी भूल चूक से किसी संयोगवशात तुम्हारी बाल्टी भर जाए, तो अहंकार पकड़ता है। और लोभ का अर्थ है: बाल्टी कितनी ही भर जाए, मन कहता है, और। मन कभी और की आवाज बंद करता ही नहीं। मन तो ऐसा समझो जैसे ग्रामोफोन का रिकार्ड है, जिस पर सुई एक ही जगह अटक गई है और वही, और वही, और वही दोहराए चली जाती है।

मैंने सुना है, एक नया हवाई जहाज बना। वह बिना पायलट के उड़ने वाला था। पूरा आटोमैटिक! न उसमें पायलट, न उसमें होस्टेस, न कोई स्टीवर्ट…कोई भी नहीं। बस यात्री। और मशीन ही सब करेगी। सब आटोमैटिक! एक बटन दबाओ, भोजन आए; दूसरी बटन दबाओ, चाय आए। एक बटन दबाओ, फौरन इंटरकाम पर आवाज आए कि कितनी ऊंचाई पर उड़ रहे हो, मंजिल कितनी दूर है, कितनी देर में पहुंच जाओगे।

यात्री बड़े खुश थे। लोगों ने बड़ी मुश्किल मुश्किल से टिकटें पाई थीं। बड़ी भीड़ मची थी कौन सबसे पहले उड़ता है बिना पायलट के हवाई जहाज में! हवाई जहाज उड़ा। हजारों फीट ऊपर उठ गया। तब इंटरकाम पर आवाज आई कि निश्चिंत हो जाइए। अपनी अपनी बेल्ट खोल लीजिए। विश्राम करिए। जरा भी चिंता मत रखिए कि पायलट नहीं है। कोई भूल कभी नहीं हो सकती, कोई भूल कभी नहीं हो सकती, कोई भूल कभी नहीं हो सकती, कोई भूल कभी नहीं हो सकती…!

बस, छाती बैठे गई यात्रियों की कि मारे गए! भूल तो यहीं हो गई। अब आगे क्या होगा, अब कुछ कहा नहीं जा सकता।

ऐसा ही मन है। वह कहता है: और, और, और…। उसकी और की मांग कभी समाप्त ही नहीं होती। दस हजार हैं, तो कहता है, दस लाख। दस लाख हैं, तो कहता है, दस करोड़। वह मांग बढ़ाए जाता है, फैलाए चला जाता है। इन्हीं में पिस रहा है आदमी। ये हैं पीसनहारे!

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SMILE THOUGHT🌹 ::🌻 SONG THERAPY — It’s interesting to know that the beautiful and lovely songs which we hear and enjoy can be fully categorised in Triorigin order……🦚 We can have six ki classification of songs too on emotional basis…….🌼 There are six emotions like desire (wind), joy (heat), satisfaction (hotness), worry (humidity), sadness (dryness) and fear (coldness)……🌿☘ In SONG THERAPY, different songs are classified on the basis of the six emotions and then they are further classified on their six ki branch emotions each…..🌺🍁. Finally they are segregated under the above six captions…..✨💫💥 The songs are selected depending upon the disease of the patient…..🏂⛷. It is a fact if you are sad you like to hear sad songs and this happens due to Homo SIMILARITY principles of Triorigin…..🧜‍♀🧜‍♂. However, sad songs also tries to harmonize the sadness due to its neutralizing power and it’s true that if a sad person hears even sad songs, he can not do suicide or negatively influenced…….🥵. But in order to bring him out of the consciousness of sadness, it’s better to let him hear the joy or the songs of heat origin….🥭. The modus operandi of songs on any human being is via neutralization of stressful mind and thereafter channelizing the energy of the person to produce healing effect…..🍅. Unlike other therapies of the world, SONGS if properly selected can cure animals, birds and plants too because it emits neutro vibrations….🌹🌻 PKSINHA, 5th October, ’19.
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🍎 “सब कर्मों का फल है” 🍎
❗एक स्त्री थी जिसे 20 साल तक संतान नहीं हुई।कर्म संजोग से 20 वर्ष के बाद वो गर्भवती हुई और उसे पुत्र संतान की प्राप्ति हुई किन्तु दुर्भाग्यवश 20 दिन में वो संतान मृत्यु को प्राप्त हो गयी।

❗वो स्त्री हद से ज्यादा रोई और उस मृत बच्चे का शव लेकर एक सिद्ध महात्मा के पास गई ।

❗महात्मा से रोकर कहने लगी मुझे मेरा बच्चा बस एक बार जीवित करके दीजिये, मात्र एक बार मैं उसके मुख से “माँ” शब्द सुनना चाहती हूँ । स्त्री के बहुत जिद करने पर महात्मा ने 2 मिनट के लिए उस बच्चे की आत्मा को बुलाया।

❗तब उस स्त्री ने उस आत्मा से कहा तुम मुझे क्यों छोड़कर चले गए ?

❗मैं तुमसे सिर्फ एक बार ‘ माँ ‘ शब्द सुनना चाहती हूँ। तभी उस आत्मा ने कहा कौन माँ ? कैसी माँ !

❗मैं तो तुमसे कर्मों का हिसाब किताब करने आया था। स्त्री ने पूछा कैसा हिसाब ! आत्मा ने बताया पिछले जन्म में तुम मेरी सौतन थी, मेरे आँखों के सामने मेरे पति को ले गई ! मैं बहुत रोई तुमसे अपना पति मांगा पर तुमने एक न सुनी।तब मैं रो रही थी और आज तुम रो रही हो ! बस मेरा तुम्हारे साथ जो कर्मों का हिसाब था वो मैंने पूरा किया और मर गया। इतना कहकर आत्मा चली गयी।उस स्त्री को झटका लगा।उसे महात्मा ने समझाया देखो मैने कहा था न कि ये सब रिश्तेदार माँ, पिता, भाई-बहन सब कर्मों के कारण जुड़े हुए हैं ।

❗हम सब कर्मो का हिसाब करने आये हैं। इसिलए बस अच्छे कर्म करो ताकि हमे बाद में भुगतना ना पड़े। वो स्त्री समझ गयी और अपने घर लौट गयी ।

👉शिक्षा: हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए

🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩

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परमात्मा जब किसी से नाराज़ होता है तो वह उसका भोजन नहीं बन्द करता और न ही जीव को कोई दुख देता है और न ही सूर्य को आज्ञा देता है कि इसके आंगन को रोशनी नहीं देना बल्कि परमात्मा जब किसी से नाराज़ होता है तो वह उसका वो वक्त छीन लेता है जिस वक्त वह पूजा-पाठ कर सके। परमात्मा की पूजा-पाठ न कर सकना उस परमात्मा की नाराज़गी की सबसे बड़ी निशानी है।और जो जीव हर रोज भजन पूजन करते हैं तो वह खुशनसीब हैं कि परमात्मा उस जीव से बहुत खुश हैं।और जीव को पल पल परमात्मा का आशीर्वाद अपने ऊपर समझना चाहिए।
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जब से सुबह नींद खुलती है, तब से व्यक्ति विचार आरंभ कर देता है। और पूरा दिन विचार करता रहता है। रात्रि को नींद आने तक भी विचार चलते रहते हैं। इन विचारों में बहुत से ऐसे व्यर्थ के विचार होते हैं, जिन्हें आप दूसरे को बता नहीं सकते, सुना नहीं सकते । अथवा बताने सुनाने की कोशिश करें , तो लोग उन्हें सुनना नहीं चाहते । क्योंकि वे फालतू बातें हैं, जिनसे किसी को भी लाभ नहीं होता। बस स्वयं ही सोच सोच कर सारा दिन दुखी होते रहते हैं ।
उदाहरण के लिए अमुक पार्टी में बहुत भ्रष्ट लोग हैं। अमुक नेता बहुत भ्रष्ट है। अमुक व्यक्ति इस तरह के काम करता है, इत्यादि।
जिस विषय में आप कुछ कर नहीं सकते, उस विषय में सोचने और बोलने से लाभ क्या? सिर्फ अपना और दूसरों का समय एवं शक्ति नष्ट करने वाली बात है।
इसलिए उतना ही सोचें, जितना उपयोगी हो। अर्थात उसे आप दूसरों के सामने बोल भी सकें। और बोलें वही, जो आपके लिए और दूसरों के लिए सार्थक हो.
व्यर्थ की और हानिकारक बातें सोच-सोच कर अपना और दूसरों का तनाव न बढ़ाएं ; तथा अपनी शक्ति एवं समय का नाश न करें। यदि आप ऐसा करेंगे, तो आप की ओर से संसार पर बहुत बड़ा उपकार होगा

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