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गुरु रूप में विख्यात भगवान दत्तात्रेय अवतार की कथा
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एक समय जब वेद, वेद-प्रक्रिया तथा यज्ञ नष्ट हो गए थे, धर्म शिथिल हो गया था, चारों वर्णों में संकरता आ गई थी, अधर्म तीव्रता से बढ़ रहा था, चारों ओर असत्य का ही बोल बाला था और प्रजा क्षीण हो रहीं थी। ऐसे समय में भगवान विष्णु के अवतार दत्तात्रेय ने यज्ञ तथा क्रियाओं सहित वेदों का पुनरुद्धार किया और चारों वर्णों को पृथक-पृथक कर, उन्हें व्यवस्थित किया, वे परम बुद्धिमान और वर-दायक थे।

इन्होंने वेद तथा तंत्र मार्ग का विलय एक संप्रदाय निर्मित किया, वैसे ये हैं तो भगवान विष्णु के अवतार परन्तु गुरु, साधक, योगी और वैज्ञानिक अधिक माना जाता है। इन्होंने ब्रह्मा-विष्णु-महेश के विलय रूप में जन्म धारण किया, कारणवश इन्हें त्रिदेव-स्वरूप भी कहा जाता हैं।

पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य, कपोत, अजगर, सिंधु, पतंग, भ्रमर, मधुमक्खी, गज, मृग, मीन, पिंगला, कुररपक्षी, बालक, कुमारी, सर्प, शरकृत, मकड़ी और भृंगी, ये दत्तात्रेय जी के २४ गुरु थे, प्रत्येक से इन्होंने कुछ न कुछ सिखा तथा उसे अपने गुरु दीक्षा के रूप में स्वीकार किया।

जैसे अजगर से इन्होंने सिखा की प्रारब्ध के अनुसार जितना मिल जाये उसी में संतुष्ट रहना चाहिये तथा एक जगह पर नहीं रहना चाहिये। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र अत्रि इनके पिता थे तथा कपिल-देव की बहन देवी अनुसूया इनकी माता थी।

भगवान दत्तात्रेय के जन्म से सम्बंधित कथा।
एक बार तीनों महा-देवियों पार्वती, लक्ष्मी तथा सावित्री को अपने पतिव्रत धर्म पर बहुत अहंकार हो गया था।देवर्षि नारद को जब उन तीन महा-देवियों के अहंकार का ज्ञान हुआ, वे उनके अहंकार को तोड़ने के निमित्त बारी-बारी से तीनों देवियों के पास गए।

सर्वप्रथम देवर्षि नारद! पार्वती जी के पास गए तथा उनके सनमुख अत्रि-ऋषि की पत्नी अनुसूया द्वारा किये जा रहे पति-व्रत धर्म का गुणगान करने लगे। इसी प्रकार नारद जी!

लक्ष्मी जी के पास गए तथा उनके समक्ष भी देवी अनुसूया के सतीत्व की प्रशंसा करने लगे; विष्णु-लोक के पश्चात वे ब्रह्म-लोक गए वहां जाकर उन्होंने देवी सावित्री के समक्ष देवी अनुसूया के पति-भक्ति की घोर प्रशंसा की।

इस प्रकार तीनों महा-देवियों को देवी अनुसूया की प्रशंसा अच्छी नहीं लगी तथा वे उनसे द्वेष करने लगी। तीनों महा-देवियों ने अपने-अपने पति शिव, विष्णु तथा ब्रह्मा से देवी अनुसूया के पतिव्रता धर्म को भंग करने की हठ करने लगी।
अपनी-अपनी पत्नी के हठ अनुसार तीनों महा-देवों को हार माननी पड़ी तथा तीनों अपने-अपने लोकों से पृथ्वी पर आयें। तीनों महा-देव!

देवी अनुसूया की कुटिया के सामने भिक्षुक बनकर खड़े हो गए तथा देवी से भिक्षा देने हेतु निवेदन करने लगे।देवी अनुसूया जब तीनों को भिक्षा देने हेतु उनके सनमुख आयें, तीनों महा-देवों ने भिक्षा लेने से माना कर दिया, तथा उनके गृह में भोजन करने की इच्छा प्रकट की।

भिक्षुकों के निवेदन अनुसार देवी अतिथि सत्कार को अपना प्रधान धर्म मानते हुए, तीनों भिक्षुकों से स्नान करने हेतु कहा तथा पीछे से भोजन निर्मित करने में लग गई। तीनों भिक्षुकों के स्नान करने के पश्चात, जब देवी अनुसूया भोजन हेतु भोजन की थाली परोस कर लाई, तीनों ने भोजन करने से मना कर दिया तथा कहा!

जब तक आप हमें नग्न होकर भोजन नहीं परोसेंगी हम भोजन नहीं करेंगे। प्रथम यह सुनते ही देवी अनुसूया स्तब्ध रह गयी तथा क्रोध से भर गयी, परन्तु अपने पतिव्रता धर्म के बल से उन्होंने तीनों की वास्तविक मंशा जान ली तथा समझ गए कि! ये तीनों और कोई नहीं साक्षात ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं।

उन्होंने सोचा की क्यों न तीनों को बालकों के रूप में परिवर्तित कर दिया जाये, अबोध शिशु के सामने माता नग्न भी हो तो कुछ नहीं होता हैं, इस प्रकार तो वे नग्न होकर भी अपने बालक को भोजन करा सकती हैं।

इस प्रकार विचार कर देवी अनुसूया ने अपने पति अत्रि के चरणों के जल को तीनों महा-देवों के ऊपर छिड़क दिया तथा तक्षण ही तीनों शिशु रूप में परिवर्तित हो गए। इस प्रकार देवी अनुसूया ने तीनों को भर-पेट भोजन कराया तथा उन्हें अपने पास रखकर प्रेम तथा वात्सल्य से उन्हें पलने लगी।

धीरे-धीरे कई दिन बीत गए, कई दिन बीतने पर भी जब ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश अपने-अपने लोकों को वापस नहीं गए, उनकी पत्नी क्रमशः सावित्री, लक्ष्मी तथा पार्वती को अपने-अपने पति की चिंता सताने लगी।

उन तीनों महा-देवियों को देवर्षि नारद से यह ज्ञान हुआ की वे तीनों देवी अनुसूया के सतीत्व को परीक्षा लेने हेतु उनके घर में गए थे। यह सुनकर तीनों महा-देवी! अत्रि ऋषि के घर में आयें तथा अपने-अपने पति के सम्बन्ध में ज्ञात करने लगी।देवी अनुसूया ने पालने में सो रहे तीनों देवताओं की ओर इंगित करते हुए कहा कि!

तीनों देवियाँ अपने-अपने पति को पहचान कर वहां से ले जाये। परन्तु तीनों महा-देवियों में से कोई भी अपने पति को नहीं पहचान पाई, इस पर तीनों देवियों को अपनी भूल पर पछतावा होने लगा तथा तीनों देवी अनुसूया से क्षमा याचना करने लगी।देवी अनुसूया ने अपने पति-व्रत धर्म के प्रभाव से तीनों-देवों को पूर्ववत रूपी कर दिया, इस पर तीनों महा-देवियाँ बहुत प्रसन्न हुई तथा उनके कोई वर मांगने हेतु कहा।

देवी अनुसूया ने वर रूप में तीनों देवों के एकत्र हो उनके पुत्र रूप में जन्म लेने का वर मंगा, इस पर तीनों देवों तथा देवियों ने तथास्तु कहकर वहां से प्रस्थान किया और अपने-अपने लोकों में चले गए।

कालांतर में यही तीनों महा-देवों ने ही देवी अनुसूया के गर्भ से जन्म धारण किया तथा जिनका नाम दत्तात्रेय पड़ा। ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा तथा विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ।

अवधूत भेष धारी भगवान दत्तात्रेय। भगवान दत्तात्रेय तीन मस्तक युक्त हैं, इनकी ६ भुजाएँ हैं तथा अवधूत भेष धारी हैं, इन्होंने अवधूत चर्या धारण कर रखा हैं; इनके साथ गाय तथा कुत्ते दिखाई देते हैं।

प्रातः काल भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मा जी के रूप में, मध्याह्न के समय भगवान विष्णु के स्वरूप में तथा सायंकाल शिव जी के स्वरूप में अपने रूप को धारण किये रहते हैं। इस अवतार में उन्होंने अलर्क एवं प्रह्लाद आदि को ब्रह्म ज्ञान का उपदेश दिया।


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