आज भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्दशी हैं और आज के दिन को ही अनंत चतुर्दशी कहा जाता है, आज चतुर्दशी के दिन भगवान गणेशजी की विदाई भी की जाती है, आज के दिन अनंत चतुर्दशी का व्रत भी रखा जाता है और अनंत भगवान् श्रीहरि की पूजा की जाती है, ऐसी मान्यता है कि अनंत भगवान की पूजा करने और व्रत रखने से हमारे सभी कष्ट दूर होते हैं, इसलिये संकटों से सबकी रक्षा करने वाला अनंतसूत्र बांधा जाता है, इससे सभी कष्टों का निवारण होता है।
कहा जाता है कि जब पाण्डव जुयें में अपना सारा राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी थी, धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदी के साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया और अनन्त सूत्र धारण किया, इस व्रत का इतना प्रभाव था कि पाण्डव सभी संकटों से मुक्त हो गयें।
सज्जनों! अनंत चतुर्दशी कुछ इस प्रकार है- प्राचीन काल में सुमंत नाम का एक नेक तपस्वी ब्राह्मण था, उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था, उसकी एक परम सुंदरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी कन्या थी, जिसका नाम सुशीला था, सुशीला जब बड़ी हुई तो उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई, पत्नी के मरने के बाद सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया।
सुशीला का विवाह ब्राह्मण सुमंत ने कौंडिन्य ऋषि के साथ कर दिया, विदाई में कुछ देने की बात पर कर्कशा ने दामाद को कुछ ईंटें और पत्थरों के टुकड़े बांध कर दे दियें, कौंडिन्य ऋषि दुखी हो अपनी पत्नी को लेकर अपने आश्रम की ओर चल दिये, परंतु रास्ते में ही रात हो गई, वे नदी तट पर संध्या करने लगे, सुशीला ने देखा- वहां पर बहुत-सी स्त्रियां सुंदर वस्त्र धारण कर किसी देवता की पूजा पर रही थीं।
सुशीला के पूछने पर उन्होंने विधिपूर्वक अनंत व्रत की महत्ता बताई, सुशीला ने वहीं उस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांध कर ऋषि कौंडिन्य के पास आ गई, कौंडिन्य ने सुशीला से डोरे के बारे में पूछा तो उसने सारी बात बता दी, उन्होंने डोरे को तोड़ कर अग्नि में डाल दिया, इससे भगवान अनंत जी का अपमान हुआ।
परिणामत ऋषि कौंडिन्य दुखी रहने लगे, उनकी सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई, इस दरिद्रता का उन्होंने अपनी पत्नी से कारण पूछा तो सुशीला ने अनंत भगवान का डोरा जलाने की बात कहीं, पश्चाताप करते हुए ऋषि कौंडिन्य अनंत डोरे की प्राप्ति के लिए वन में चले गयें, वन में कई दिनों तक भटकते-भटकते निराश होकर एक दिन भूमि पर गिर पड़े।
तब अनंत भगवान प्रकट होकर बोले- हे कौंडिन्य! तुमने मेरा तिरस्कार किया था, उसी से तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ा, तुम दुखी हुयें, अब तुमनेपश्चाताप किया है, मैं तुमसे प्रसन्न हूंँ, अब तुम घर जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो, चौदह वर्षपर्यंत व्रत करने से तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा, तुम धन-धान्य से संपन्न हो जाओगे, कौंडिन्य ने वैसा ही किया और उन्हें सारे क्लेशों से मुक्ति मिल गयीं।
भाई-बहनों! श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत किया जिसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुयें तथा चिरकाल तक राज्य करते रहे, कौंडिन्य ऋषि के दुःख दूर हुयें, वैसे ही आप सभी पर भी अनंत भगवान् श्री हरि की कृपा बनी रहें, इसी कामनाओं के साथ आज के पावन अनंत चतुर्दशी की एवम् गणपति विसर्जन की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें, भगवान् श्री हरि आप सभी को भक्ति और आनन्द प्रदान करें।