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केदारनाथ इतिहास एवं जानिए धरती पर क्यों आए भगवान शिव
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हिमालय ‘देवभूमि’ है। सौंदर्य भरी वादियों से घिरे केदारनाथ की यात्रा स्वत: आनंद का स्रोत है। चहुं ओर मनोहारी दृश्य देख कर मन आनंद विभोर हो उठता है।

शैव सम्प्रदाय में एवं शिवभक्तों में बैल की उभरी पीठ यानी गर्दन के बाद जो शिवलिंग के समान उठी हुई आकृति प्राकृतिक रूप से बन जाती है, के समान केदारनाथ में स्वरूप शिवपिंड की बड़ी मान्यता व विशेष महत्व है।

अत: दर्शन पाने के लिए भक्त गण सब कुछ प्रसन्नता से सहने को तैयार रहते हैं। अब हरिद्वार व ऋषिकेश से सड़क मार्ग से जाने के लिए विभिन्न वाहन प्राप्त हैं। विभिन्न प्रमुख नगरों से रेल मार्ग से या सड़क मार्ग से हरिद्वार-ऋषिकेश जा सकते हैं।

केदारनाथ महादेव स्थान को महाभारत काल का भी बताया जाता है। इसके लिए एक कथा आती है। महाभारत युद्ध में विजयी होने के पश्चात पांडव भ्रात हत्या व अन्य हत्याओं से मुक्ति के लिए भगवान शिव शंकर का साक्षात आशीर्वाद चाहते थे पर शिव महादेव उनसे रुष्ट थे।

पांडव उनके दर्शन पाने के लिए काशी (वाराणसी) गए पर उन्हें पा नहीं सके। तब वे शिव शंकर को ढूंढते हुए हिमालय पहुंचे पर अपने निश्चित स्थान से शिव अंर्तध्यान होकर केदार में आ बसे क्योंकि वे पांडवों को दर्शन देना नहीं चाहते थे।

पांडव भी धुन के पक्के निकले। आस्था, श्रद्धा व लगनपूर्वक ढूंढते हुए केदार भी पहुंच गए। तब शिव ने बसाहा बैल का रूप धारण किया और अन्य पशुओं में जा मिले।

पांडवों को शंका हो गई। तब भीमसेन ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पर्वतों पर अपने पैर फैला लिए। सभी गोवंश उनके पैरों के नीचे से निकल गए पर शंकर रूपी बैल नीचे से नहीं निकले, तब भीम बलपूर्वक झपटे और बैल को कसकर पकड़ लिया, तब बैल भूमि मेें समाने लगा।

तभी भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ (महादेव शरीर) का हिस्सा पकड़ लिया और नहीं छोड़ा। तब भगवान शंकर ने पांडवों की श्रद्धा, भक्ति, आस्था से प्रसन्न होकर उन्हें प्रकटत: तत्काल दर्शन दिया और उन्हें पाप मुक्त कर दिया।

उसी समय से भगवान शिव शंकर रूपी बैल की पीठ (महादेव) की आकृति का पिंड श्री केदारनाथ के नाम से पूजित हुआ।

अन्य धर्मग्रंथों और पौराणिक कथाओं में प्रचीन काल से ही बद्रीनाथ को सबसे पवित्र स्थान के तौर पर माना जाता रहा है। यह पवित्र तीर्थ स्थान गढ़वाल की लहरदार पहाडिय़ों में अलकनंदा नदी के किनारे नर-नारायण पर्वत पर स्थित है। कहते हैं भागवान विष्णु जी ने इसे अपने निवास स्थान के रूप में चुना है।

यह वो जगह (गुफा) है जहां शिव और पार्वती रहते थे। यह उनका घर था। एक दिन नारायण यानी विष्णु के पास नारद मुनि जी गए और बोले, ‘आप मानवता के लिए एक खराब मिसाल हैं। आप हर समय शेषनाग के ऊपर लेटे रहते हैं। आपकी पत्नी लक्ष्मी हमेशा आपकी सेवा में लगी रहती हैं, और आपको लाड़ करती रहती हैं। इस ग्रह के अन्य प्राणियों के लिए आप अच्छी मिसाल नहीं बन पा रहे हैं। आपको सृष्टि के सभी जीवों के लिए कुछ अर्थ पूर्ण कार्य करना चाहिए। इस आलोचना से बचने और साथ ही अपने उत्थान के लिए (भगवान को भी ऐसा करना पड़ता है) विष्णु तप और साधना करने के लिए सही स्थान की तलाश में नीचे हिमालय तक आए। वहां उन्हें मिला बद्रीनाथ, एक अच्छा-सा, छोटा-सा घर, जहां सब कुछ वैसा ही था जैसा उन्होंने सोचा था।

साधना के लिए सबसे आदर्श जगह लगी उन्हें यह। वह उस घर के अंदर गए। घुसते ही उन्हें पता चल गया कि यह तो शिव का निवास है और शिव को नाराज करनेका साहस कौन जुटा सकता है। ऐसे में नारायण ने खुद को एक छोटे-से बच्चे के रूप में बदल लिया और घर के सामने बैठ गए। उस वक्त शिव और पार्वती बाहर कहीं टहलने गए थे। जब वे घर वापस लौटे तो उन्होंने देखा कि एक छोटा सा बच्चा जोर-जोर से रो रहा है। पार्वती को दया आ गई। उन्होंने बच्चे को उठाने की कोशिश की। शिव ने पार्वती को रोकते हुए कहा, ‘इस बच्चे को मत छूना।’ पार्वती ने कहा, ‘कितने क्रूर हैं आप ! कैसी नासमझी की बात कर रहे हैं? मैं तो इस बच्चे को उठाने जा रही हूं। देखिए तो कैसे रो रहा है।’ शिव बोले, ‘जो तुम देख रही हो, उस पर भरोसा मत करो। मैं कह रहा हूं न, इस बच्चे को मत उठाओ।’ बच्चे के लिए पार्वती की स्त्रीसुलभ मनोभावना ने उन्हें शिव की बातों को नहीं मानने दिया। उन्होंने कहा, ‘आप कुछ भी कहें, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरे अंदर की मां बच्चे को इस तरह रोते नहीं देख सकती। मैं तो इस बच्चे को जरूर उठाऊंगी। और यह कहकर उन्होंने बच्चे को उठाकर अपनी गोद में ले लिया। बच्चा पार्वती की गोद में आराम से था और शिव की तरफ बहुत ही खुश होकर देख रहा था। शिव इसका नतीजा जानते थे, लेकिन करें तो क्या करें? इसलिए उन्होंने कहा, ‘ठीक है, चलो देखते हैं क्या होता है।’ पार्वती ने बच्चे को खिला-पिला कर चुप किया और वहीं घर पर छोडक़र खुद शिव के साथ गर्म पानी से स्नान के लिए बाहर चली गईं। वहां पर गर्म पानी के कुंड हैं, उसी कुंड पर स्नान के लिए शिव-पार्वती चले गए। लौटकर आए तो देखा कि घर अंदर से बंद था। शिव तो जानते ही थे कि अब खेल शुरू हो गया है। पार्वती हैरान थीं कि आखिर दरवाजा किसने बंद किया? शिव बोले, ‘मैंने कहा था न, इस बच्चे को मत उठाना। तुम बच्चे को घर के अंदर लाईं और अब उसने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया है। पार्वती ने कहा, ‘अब हम क्या करें ‘ ।

शिव के पास दो विकल्प थे। एक, जो भी उनके सामने है, उसे जलाकर भस्म कर दें और दूसरा, वे वहां से चले जाएं और कोई और रास्ता ढूंढ लें। उन्होंने कहा, ‘चलो, कहीं और चलते हैं क्योंकि मैं अब कुछ नहीं कर सकता। चलो, कहीं और चलते हैं। इस तरह शिव और पार्वती को अवैध तरीके से वहां से निष्कासित कर दिया गया। वे दूसरी जगह तलाश करने के लिए पैदल ही निकल पड़े। दरअसल, बद्रीनाथ और केदारनाथ के बीच, एक चोटी से दूसरी चोटी के बीच, सिर्फ दस किलोमीटर की दूरी है। आखिर में वह केदार में बस गए और इस तरह शिव ने अपना खुद का घर खो दिया। भूतभावन महादेव सब बातों को जानते हैं, लेकिन फिर भी प्रकृति के अनुसार उन बातों को अनदेखा कर उन्हें होने देते हैं।


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