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💐💐(वार विवेचन क्रम)💐💐*
ऋषियों के मत को समझने से पहले तीन विषयों पर ध्यान देना अनिवार्य है।
१-ब्रह्माण्ड में मनुष्य के रहने लायक ग्रह पृथ्वी ही है कोई अन्य नहीं।मनुष्य पृथ्वी का उत्पादन है,पार्थिव है।
२-ब्रह्माण्ड का केंद्र आधुनिक विज्ञान को अज्ञात है जब कि ऋषिमत से ” मेरु “केन्द्र है और यह पृथ्वी से होकर गुजरा है।ग्रह गणना का केंद्रीयआधार चाहे सूर्य,चंद्र,पृथ्वी किसी को माने कोई अंतर नहीं पड़ता।
३-सूर्यसिद्धांत ग्रन्थ का प्रकटीकरण भारतीय गणना के अनुसार २१ लाख,६५ हजार, १२१ सौ वर्ष मय असुर के
माध्यम से हुआ था।अंग्रेज इसे चौथी शताब्दी की रचना कहते हैं । ये उनकी धूर्तता है। उनके मत से मनुष्य धरती पर ४००४ ईसापूर्व वर्ष में आया था।
💐ग्रह कक्षा क्रम💐

शनि

बृहस्पति

मङ्गल

रवि

शुक्र

बुध

चन्द्र

( पृथ्वी )

*– यह ऋषि प्रतिपादित ग्रह कक्षा क्रम है।मैकाले पुत्रों को न पचे तो कोई बात नहीं?

  • सूत्र है— मंदाधः क्रमेण स्यु:चतुर्था दिवसाधिपा:।।
    मन्द(शनि)से क्रमपूर्वक चौथा चौथा ग्रह वार का अधिपति होता है।शनि से चौथा–१ रवि है।रवि से चौथा २- चन्द्र है।चंद्र से चौथा–३ मङ्गल है।मङ्गल से चौथा –४ बुध है। बुध से चौथा–५ बृहस्पति है।बृहस्पतिसे चौथा–६ शुक्रहै।शुक्र
    से चौथा–७ शनि है।
    इस प्रकार से ऋषि प्रोक्त ग्रह कक्षा क्रम के द्वारा सृष्टि में वारों का निर्धारण हुआ।यही क्रम वैज्ञानिक है और भू: र्भुवः स्वःलोक को एक दूसरे से जोड़ता भी है।ये सभी ग्रह मेरु की प्रदक्षिणा करते हैं।इसका विशद विवेचन आचार्य विनय झा ने अपने ग्रन्थ में किया है।
  • सूर्य सिद्धान्त अपूर्व गणित ग्रन्थ है जिसमें अनेक रहस्य पूर्ण गणितीय सिद्धान्त भरे पड़े हैं।
  • आईये इस बात का हम गर्व करें कि रविवार के बाद सोमवार ही क्यों होगा इस रहस्य को सूर्य सिद्धान्त ने खोला है।आज भी सम्पूर्ण विश्व में यही क्रम चलता है।

नारायण 🙏🏾

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