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-मानसिक बल -संकल्प -रोग

-दूसरों से  यह अपेक्षा  करना की सभी हमारे है, हमारे कहे अनुसार चलेंगे , निरर्थक उलझन मे फसना  है और तनाव का कारण है ।

-चुपचाप शांतिपूर्वक अपना काम करते चलो । लोगो को अपने हिसाब से चलने दें  ।किसी पर हावी न हो तथा न ही किसी को खुश रखने के चक्र मे अपना समय और शक्ति नष्ट करें  ।

-मन हमारा निकट का सम्बन्धी है । पति पत्नी, भाई  बहिन व शरीर भी  एक दिन हमारा साथ छोड़  देते   है परंतु मन हमारा  कभी साथ नही छोड़ता । यह हमारा  जन्म जन्म का साथी  है । ऐसे साथी को कभी रूठने न दो  । अन्य काम छोड़ कर भी  इस ओर ध्यान देना चाहिये  ।

-बाहर का बड़प्पन, बाहर के   सताधारी  रूपों  को  देख कर सब चकित होते  है, परंतु उन लोगो का  मन उतना ही खोखला होता है ।

-संसार की समग्र क्रियाओं का वास्तविक कर्ता  तो मन ही है ।   मन को शक्ति मिलती है एकाग्रता से  अर्थात राज योग का अभ्यास करने से । मन को शक्तिशाली बनाने के लिये मन में  हर समय कल्याण  व निर्माण के संकल्प रखो ।

-मनुष्य स्वभाव से मान और प्यार पाने का इच्छुक होता है । यही इच्छायें  विकृत हो कर विलासता, वैभव और बड़प्पन में बदल जाती है । यही है वो ग्राह जो गज को सरोवर में घसीट ले जाते है । यही है वे कौरव जो द्रौपदी को सभा  में निर्वस्त्र करते है ।

-मन को शक्ति भोजन से और सात्विक भावों से मिलती है । जितना सात्विक भोजन होगा उतना मन नियंत्रण में रहेगा ।

-कुछ  चूहों को तामसिक भोजन दिया  गया  जिस से वे  खूंखार   बन गये तथा  फ़िर से सात्विक भोजन खिलाने  से वे शांत व्यवहार करने लगे ।

-एक चिड़चिडे व्यक्ति को  फल और  गाय का दूध  ही पीने को दिया गया और    दया का भाव  रखने को कहा गया, उसका चिड़चिड़ापन दूर हो गया ।

-ईर्ष्या वाले को गरम पानी  बार  बार पिलाया गया और खुले मैदान में घूमने को कहा गया और सहयोग देने का भाव  रखने को कहा गया  तो वह ठीक हो गया   ।

-उपवास और फलों  के सेवन  तथा कल्याण की भावना से  जटिल मानसिक रोगॊ को भी  ठीक  किया जा सकता है ।

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