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👉स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर तथा कारण शरीर क्या हैं?——

👉जिस प्रकार मनुष्य स्थूल शरीर की स्वस्थता का लाभ समझते हुए उसे सुस्थिर बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहता है, उसी प्रकार उसे सूक्ष्म और कारण शरीर की सुरक्षा एवं समर्थता के लिए सदैव सचेष्ट रहना चाहिए।

(1). 👉स्थूल शरीर :: जिसमें पाँच ज्ञानेंद्रिय (आँख, कान, जीभ, नाक, त्वचा), पाँच कर्मेन्द्रिय (वाक्, हस्त, पैर, उपस्थ, पायु), पंच तन्मात्र (धरती, अग्नि, , वायु, आकाश) होते हैं। पञ्च भूत से निर्मित हाड़ :- अस्थि, मज्जा, माँस, रक्त का बना शरीर ही स्थूल शरीर है। कर्मेन्द्रियों से शरीर-चर्या एवं लोक व्यवहार के विविध विधि क्रिया-कलाप चलते हैं, का बना शरीर ही स्थूल शरीर है। स्थूल और सूक्ष्म का अन्तर प्रत्यक्ष है। स्थूल शरीर पंचतत्वों के सूक्ष्म घटकों से बना है। उन्हें तत्वों, आदि के रूप में देखा जा सकता है। कर्मेन्द्रियों से शरीर-चर्या एवं लोक व्यवहार के विविध विधि क्रिया-कलाप चलते हैं। स्थूल शरीर में शरीरी का निवास है। शरीरी-आत्मा सूक्ष्म शरीर में मौजूद है। स्थूल शरीर निर्जीव है, यदि उसमें आत्मा न हो। योगी स्थूल शरीर को सुरक्षित रख कर जहाँ-तहाँ विचरता रहता-भ्रमण करता है। स्थूल के ऊपर है सूक्ष्म शरीर। सूक्ष्म शरीर को भी पार करेंगे तो वह उपलब्‍ध होगा, जो नहीं है, अशरीरी-जो आत्‍मा है। मृत्‍यु के समय सिर्फ स्‍थूल शरीर गिरता है, सूक्ष्‍म शरीर नहीं।

अनाहत चक्र (हृदय में स्थित चक्र) के जाग्रत होने पर, स्थूल शरीर में अहम भावना का नाश होने पर दो शरीरों का अनुभव होता ही है। कई बार साधकों को लगता है, जैसे उनके शरीर के छिद्रों से गर्म वायु निकल कर एक स्थान पर एकत्र हुई और एक शरीर का रूप धारण कर लिया, जो बहुत शक्तिशाली है। उस समय यह स्थूल शरीर जड़ पदार्थ की भांति क्रियाहीन हो जाता है। इस दूसरे शरीर को सूक्ष्म शरीर या मनोमय शरीर कहते हैं। कभी-कभी ऐसा लगता है कि वह सूक्ष्म शरीर हवा में तैर रहा है और जीवित अवस्था में वह शरीर स्थूल शरीर की नाभी से एक पतले तंतु से जुड़ा हुआ है।

कभी ऐसा भी अनुभव हो सकता है कि यह सूक्ष्म शरीर, स्थूल शरीर से बाहर निकल गया अर्थात जीवात्मा शरीर से बाहर निकल गई और अब स्थूल शरीर नहीं रहेगा, उसकी मृत्यु हो जायेगी। ऐसा विचार आते ही योगी उस सूक्ष्म शरीर को वापस स्थूल शरीर में लाने की कोशिश करते हैं, परन्तु यह बहुत मुश्किल कार्य मालूम देता है। स्थूल शरीर मैं ही हूँ ऐसी भावना करने से व ईश्वर का स्मरण करने से वह सूक्ष्म शरीर शीघ्र ही स्थूल शरीर में पुनः प्रवेश कर जाता है।

हठ योगी शरीर को छोड़कर पुनः प्रवेश कर सकता है। शरीर को छोड़ने पर भी वह सूक्ष्म शरीर धारण किये रहता है। अक्सर योगी-संतजन एक साथ एक ही समय दो जगह देखे गए हैं, ऐसा उस सूक्ष्म शरीर के द्वारा ही संभव होता है, स्थूल यहाँ और सूक्ष्म वहाँ। सूक्ष्म शरीर के लिए कोई आवरण-बाधा नहीं है, वह सब जगह आ जा सकता है। जो प्रत्यक्ष दिखाई देता है वो स्थूल शरीर हैं। प्याज की परतों के समान ही इसकी अन्य दो परतें हैं :- सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर।

(2).👉 सूक्ष्म शरीर :: जिसमें बुद्धि, अहंकार और मन होता है। सूक्ष्म शरीर पंच प्राणों का बना है। उनके प्रतीक पाँच शक्ति केन्द्र हैं, जिन्हें पंचकोश भी कहते हैं। अन्नमय-कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय-कोश, आनन्दमय कोश के रूप में इनकी पहचान की जाती है। इन पंच प्राणों का समन्वय महाप्राण के रूप में समझा जाता है। जीवन चेतना यही है। इसके रूप में पृथक् हो जाने पर सूक्ष्म शरीर भी नष्ट हो जाता है।

सूक्ष्‍म से योगी परिचित होता है और योग के भी जो ऊपर उठ जाते है, वे उससे परिचित होते है जो आत्‍मा है। सामान्‍य आँखे नहीं देख पाती हैं, इस शरीर को। योग-दृष्‍टि, ध्‍यान से ही दिख पाता है, सूक्ष्‍म शरीर। लेकिन ध्‍यानातित, बियॉंड योग, सूक्ष्‍म के भी पार, उसके भी आगे जो शेष रह जाता है, उसका तो समाधि में अनुभव होता है। ध्‍यान से भी जब व्‍यक्‍ति ऊपर उठ जाता है, तो समाधि फलित होती है और उस समाधि में जो अनुभव होता है, वह परमात्‍मा का अनुभव है। साधारण मनुष्‍य का अनुभव शरीर का अनुभव है, साधारण योगी का अनुभव सूक्ष्‍म शरीर का अनुभव है, परम योगी का अनुभव परमात्‍मा का अनुभव है। परमात्‍मा एक है, सूक्ष्‍म शरीर अनंत है, स्‍थूल शरीर अनंत है। सिद्ध योगी सूक्ष्म शरीर से परकाय प्रवेश में समर्थ हो जाते हैं। सूक्ष्म शरीर का मुख्य स्थान मस्तिष्क माना गया है।

(3). 👉कारण शरीर :: सद्भावना सम्पन्न व्यक्ति, जिन्होंने उच्च आदर्शों के अनुरूप अपनी निष्ठा परिपक्व की है, उनका कारण शरीर परिपुष्ट होता है। स्वर्ग, मुक्ति, शान्ति से लेकर आत्म साक्षात्कार और ईश्वर दर्शन तक की दिव्य विभूतियाँ, इस कारण शरीर की समर्थता पर ही निर्भर हैं।

कारण शरीर ने सूक्ष्म शरीर को घेर के रखा है। इसमें आत्मा के संस्कार, भाव, विचार, कामनाऐं, वासनाऐं, इच्‍छाऐं, अनुभव, ज्ञान बीज रूप में रहते हैं। यह विचार, भाव और स्मृतियों का बीज रूप में संग्रह कर लेता है। वही जीव को आगे की यात्रा कराता है। जिसके सारे दोष नष्‍ट हो गए, जिस मनुष्‍य की सारी वासनाएँ क्षीण हो गई, जिस मनुष्‍य की सारी इच्‍छाऐं विलीन हो गई, जिसके भीतर अब कोई भी इच्‍छा शेष न रही, उस मनुष्‍य को जाने के लिए कोई जगह नहीं बचती, जाने का कोई कारण नहीं रह जाता। जन्‍म की कोई वजह नहीं रह जाती। मृत्यु के बाद स्थूल शरीर कुछ दिनों में ही नष्ट हो जाता है और सूक्ष्म शरीर विसरित होकर कारण की ऊर्जा में विलिन हो जाता है। यही कारण शरीर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता है और इसी के प्रकाश से पुनः मनोमय व स्थूल शरीर की प्राप्ति होती है अर्थात नया जन्म होता है।

👉मोक्ष :: मोक्ष के समय स्‍थूल, सूक्ष्‍म और कारण शरीर भी गिर जाता है। फिर आत्‍मा का कोई जन्‍म नहीं होता। फिर वह आत्‍मा विराट पुरुष में लीन हो जाती है।

   

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