—————————————शनि से ही मुक्ति———————————–
मनुष्य जीवन का उद्देश्य मुक्ति की प्राप्ति है..और मुक्ति बिना कर्म के निववृति के संभव ही नही…..आप जहा कर्म किए ,,उसका फल तैयार हो जाता है..सत्कर्म हुआ तो सुख मिल जाएगा,,और कुकर्म हुआ तो दुख मिल जाएगा …अब ये कब मिलेगा,,ये ईस्वर के विशेष -अधिकार के क्षेत्र मे है,, लेकिन मिलेगा ज़रूर….
सुख तो कम लेकिन दुख ही जयदा मिलता है,,शास्त्रो के अनुसार 3 तरह के दुख कहे गये है-
अधिदैव्विक
अध्यात्मिक
अधिभौतिक
दुख की परिभासा है—”’इच्छा की पूर्ति नही होने से जो चित्त मे विक्षोभ उत्पन्न होता है वो ”दुख ”है..
दुख से निवरति ”कर्म”के निवरती के बिना संभव ही नही…और कर्म होता है मन के गुण के आधार पर,,3 तारह के गुण भी कहे गये है-सत,रज,और तम…
वैसे तो सतगुन के प्रभव मे ही मन को रहना चाहिए…लेकिन ऐसा हो नही पाता..
मन जयदातर,,तम और रजोगुण के प्रभाव मे रहता है,,और कर्म करता है,,जिसका फल भोग होता है,,ऐसे मन को नियंत्रित रखना आवश्यक है..
ये मन योग्य और अयोग्य को जानते हुए भी,,अयोग्य के तरफ ज़यादा आकर्षित होता है,,क्योकि मन पर वातावरण,संगत,,अन्न,जल..आदि सबका प्रभाव होता है..
ऐसे मन को सिर्फ़ -सिर्फ़ और सिर्फ़ ”’परम वैराग्य ”’से ही नियंत्रित किया जा सकता है..तभी दुख से और कर्म से निवरति संभव है..तभी ”निष्कर्म या अकर्म घटित होगा जिसका फल ””’मुक्ति”’है..
और यही से शनि देव की उपयोगिता है,,,क्योकि
””हे मनुष्य अगर तुम मुक्ति चाहते हो तो मन मे संसार के प्रति वैराग उत्पन्न करो…””’और ये वैराग ,क्या ”शनि कृपा के बिना संभव है?”””
और लोग जो है,,शनि से डरते है..उन्ही से निवरति चाहते है..कुकर्म से नही..क्या ये संभव है–की आप कर्म ना सुधारो और ,,शनि की कृपा भी चाहो.
आप चाहे कितने भी तेल चढ़ा लो,या पीपल मे जल दो,,,
जब तक ””’सत्कर्म”’ना करोगे ,,तब तक शनि की कृपा नही होगी”
और जब तक राग ,मोह,रहेगा ,,मन स्थिर नही होगा,,
मन स्थिर नही होगा तो ,,”’वैराग”नही होगा…वैराग नही तो ”मुक्ति नही
इसलिए
”””””””’शनि नही तो मुक्ति भी नही”””””””
और एक चीज़—शनि शिव है.(कल्याण है,मनुष्य का शनि देव)
””””””””””जय शिव रूप परम कल्याणकारी शनि देव की”””””’
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