दोस्तों
पञ्च तत्व की व्याख्या।
निम्न है
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तारा बिकल देखि रघुराया। दीन्ह ग्यान हरि लीन्ही माया॥
💐छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा॥💐
दोस्तो आपने यह चोपाई बहुत बार सुनी होगी। बहुत बार इस विषय पर वार्ता लाप हुआ होगा। परंतु ये तत्व है क्या। ये क्या होते है । इनको जानना जरूरी है। मे अपने ज्ञान के अनुसार इसके विस्तृत रूप को बता रहा हू। अगर आपको उचित लगे तो थॅंक्स कहना न लगे तो राय देना। ओर कोई गलती हो तो सुधार करना आपकी मेहरवानी होगी। ओर जन साधारण का ज्ञान बढ़ेगा।
ये 5 तत्व तीन प्रकार के होते है।। (आप केह सकते है। की तीनो देवो के)
ये है
1.भौतिक
2.देविक
3.दैहिक
ये सभी तत्व हर प्राणी मे मिलते है चाहे वह मानव हो या जानवर जलचर आदि।या अन्य कोई योनि।चाहे वृछ हो।
जब मानव या कोई अन्य प्राणी जन्म लेता है तो ये पांच तत्व अपने साथ लाता है।
अब सर्व प्रथम मे भौतिक तत्व लेता हू।
भौतिक तत्वों को आप देखकर,छू कर या खुसबू आदि से महसूस कर सकते है। अधिकतर भौतिक तत्वों को देखा जा सकता है।
जेसे वायु,पृथ्वी,अग्नि,जल,एवम् प्रकाश या अन्य आकाशीय किरणे (इथर) जिनसे प्राणी का शरीर की स्थापना होती है । एवम् शरीर के अंदर का रिक्त इस स्थान जहां आत्मा का वास होता है।ये पाँचों तत्व का निर्माण शरीर के रूप में दिखाई देता है।
इन पञ्च तत्व से शरीर का निर्माण होता है। जिनको उपरोक्त चोपाई मे बताया गया है
नोट -इस चोपाई से आगे का हिस्सा लगता है किसी कारण वश नस्ट हो गया है।मेरा अनुमान है।
जब प्राणी जन्म लेकर पृथ्वी पर आता है तो ये पाँचों तत्व हमे दिखाई देते है या स्पर्श या किसी प्रकार महसूस कर सकते है।
ये पांचो तत्व मिर्त्यु उपरांत भी होते है।
ये 5 तत्व मानव विकसित वस्तुओं मे भी पाये जा सकते है।
अब हम दैहिक तत्वों पर आते है।
दैहिक तत्व निम्न है।
आकाश तत्व
आत्मा जो सूर्य से मिलती है।सूर्य आत्मा का कारक है।यह अमर है। ओर इथर जिसे आकाश तत्व कहते है ।इनको मिलकर जीव रूपी शरीर बना है । जब आत्मा आकाश तत्व जिसे ईथर कहते है, ज्योतिष में ब्रहस्पति कहते है, मिल जाती है तो सूक्ष्म शरीर बनता है। पंच तत्व मिलकर भोतिक शरीर बनता है।
वायु तत्व जो शनि से मिलती है। शनि वायु तत्व का कारण है।अर्थात स्वाश लेने की प्रिक्रिया जो शरीर के अंदर बनती है।
जल तत्व। अर्थात मन बुद्धि । आप जानते है की जल तत्व मन है।कभी स्थिर नही रहता। फिर बुद्धि का विकास जो बुध से मिलती है। सोचने विचारने की प्रिक्रिया।जो सरीर के अंदर बनती है।जिसे mind & brain कहते है।एवम् खून, अन्य तरलिय पदार्थ आदि आदि।
अग्नि तत्व। शरीर के कार्य करने की प्रिक्रया।जो मंगल से मिलती है। जिसे कार्य छमता भी कहते है।मंगल अग्नि तत्व का कारक है।
पृथ्वी तत्व
शरीर एवम् इसका आकार । जिसे हम जीव केहते है। शरीर के बढ़ने की प्रिक्रिया। शरीर का बड़ा होना जेसे दांत आना। बाल आना। नाखून आना आदि आदि।ये गुरु से मिलती है जिसे हम जीव कहते है। एवम् जीव का कारक है। पृथ्वी से पदार्थ लेकर शरीर की संरचना बनाये रखना गुरु का कार्य है।
इन पांचों तत्व आपसी मेल से शरीर मे अन्य पदार्थ बनते है। जेसे वीर्य।
अब हम आते है देविक पर ।
जिसके समझने से आपके सम्पूर्ण शंकाए दूर हो जायेगी।
जब प्राणी जन्म लेता है ओर पृथ्वी पर आता है तो सबसे पहले वह स्वाश लेता है। अर्थात वह पृथ्वी से पृथ्वी तत्व लेता है।अर्थात वायु लेता है।जो भौतिक तत्व है।इस वायु तत्व को जीव या व्यक्ति द्वारा सरीर के अंदर लिया गया जो एक दैहिक प्रिक्रिया है।अब शरीर इस वायु से जीवन दाइनी शक्ति को निकाल कर शरीर मे इस तरह मिलाता है की यह वायु शक्ति जीवन मे बदल जाती है।जिससे शरीर का संचरण होता है।यहा वायु वायु नही रेह जाती बल्कि शक्ति रूप ले लेती है।
इस पूरी प्रिक्रिया को देविक वायु तत्व कहते है। इसको देखा नही जा सकता। पूर्ण मेडिकल साइंस इसे जानने मे लगी है।यह देविक तत्व शनि का है। शनि इसका कारक है।
अब आप यहां देखते है की वायु तत्व के 3 प्रकार हुए । पहला शरीर के रूप मे।दूसरा वायु रूप मे जिसे स्वाश द्वारा शरीर के अंदर प्रेविस्त कराया। तीसरा वायु को सरीर के अंदर की मशीनरी द्वारा जीवन शक्ति मे बदल कर शरीर मे मिलाना। अत: ये वायु के भौतिक दैहिक दैविक तत्व हुये।
अब हम अग्नि तत्व को लेते है।
प्राणी मात्र खाना खाता है।खाना भौतिक तत्व है।
इसको खाने की प्रिक्रिया दैहिक तत्व है।इस खाने को ऊर्जा मे बदलना सरीर की मशीन क्स कार्य है।
ऊर्जा मे बदल कर खाना जीवन तत्व बं जाता है।इस खाने(फूड) को जीवन क्रिया योग्य बनाना देविक तत्व है। ये मंगल कारक माना गया है।
जल तत्व ठीक उपरोक्त प्रकार हम शरीर मे जल तत्व की पूर्ति करते है। जल से मतलब किसी भी प्रकार का तरल पदार्थ। यह भौतिक तत्व है।दिखाई देते है छू।सकते है। इसको खाना पीना भौतिक है। फिर इसको ऊर्जा मे बदलना ओर उससे बुद्धि। मन मे आने वाले विचारो मे बदलना। खून एवम् अन्य तरल पधरथो जेसे वीर्य आदि मे बदलना देविक तत्व है।इनके करक चंद्र एवम् बुध है।
पृथ्वी तत्व।
पृथ्वी पर पाई जाने वाले प्रितेक तत्व की कुछ मात्र किसी न किसी रूप मे सरीर के अंदर पाई जाती है। इन सबसे मिलकार सरीर बना ।ओर यह शरीर हिलने डोलने बोलने सूंघने आदि मे समर्थ हुआ ये पृथ्वी तत्व हुआ। है ना ताज्जुब की नेर्जीव वस्तुए जीवन प्राप्त कर जीवित हो जाती है।ओर कार्य करने लगती है। इसे पृथ्वी तत्व कहते है। जो यह देविक है। इन देविक सक्तिओं से सोचना सुघना पेशाव करना सुनना आदि होता है।
इसका कारक पृथ्वी है अर्थात सभी ग्रह किसी न किसी रूप मे अपना प्रभाव दिखाते है।
आकाश तत्व। यह आत्मा है जो सूर्य से मिलती है। तथा जीव तत्व से मिलकर जीवन मे बदल जाती है। ओर प्राणी मात्र सब कुछ मिलकर भौतिक तत्वों को देविक तत्व मे बदलने की शक्ति यहां से प्राप्त होती है।जिसके लिए हम आस पास के वातावरण से कुछ न कुछ लेकर ऊर्जा मे बदलते रहते है।अर्थात अब पूर्ण मशीन हो गई।इस पूर्ण मशीन को बनने से सरीर की अन्य क्रिया कार्य करने लगती है। जेसे सोचना।सूंघना। चलना। सुनना।भूख लगना।प्यास लगना। आदि आदि। ये देविक क्रिया है। एवम् आकाश तत्व से मिली।रंग रूप सब आकाश तत्व है।
यहां आत्मा को छोड़कर बकि सभी सक्तिया जीवन उपरांत पृथ्वी या आकश मे मिल जाती है।आत्मा हिन्दू धर्म अनुसार दुबारा जन्म लेती है य परम पिता परमेश्वर मे लीन हो जाती है।
अब देखिये अगर इनमे से कोई भी तत्व कम या जायदा हो जाये या कोई भी तत्व भौतिक दैहिक भौतिक बिगड़ जाये तो बीमारी बन जाती है। ओर अगर बीमारी देविक है तो बहुत भयकर हो जाती है जिसे समझने के लिए खोज चल रही थी चल रही है ओर चलती रहेंगी।ै
अत 5 तत्व का विवेचन मेंने अपनी बुद्धि अनुसार किया।