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परमात्मा प्रतिपल आपको मिलने के लिए आतुर है, मगर आपने खुद को बंद कर रखा है। जरा सा स्थान भी नहीं छोड़ा है।। और आप सोच रहे हैं। कि आप बहुत बड़े धार्मिक हैं।। आप सोचते हैं। कि मंदिर में रखी प्रतिमा पर दो फूल चढ़ा दिए, सिर झुकाया और काम पूरा हो गया।। इतना सस्ता है, क्या धर्म ऐसे कहीं जीवन नहीं बदलता अगर इतना आसान होता तो सारी पृथ्वी कब की स्वर्ग हो गयी होती। बन्द करिये यह सब और थोड़ा गहरे में उतरिये।।
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: राधे-राधे ॥ आज का भगवद् चिंतन ॥
जिस प्रकार असली फूलों को इत्र लगाने की जरूरत नहीं होती वो तो स्वयं ही महक जाया करते हैं। उसी प्रकार अच्छे लोगों को किसी प्रशंसा की जरूरत नहीं होती। वो तो अपने श्रेष्ठ कर्मों की सुगंधी से स्वयं के साथ – साथ समष्टि को महकाने का सामर्थ्य रखते हैं।। इत्र की खुशबु तो केवल हवा की दिशा में बहती है मगर चरित्र की खुशबु वायु के विपरीत अथवा सर्वत्र बहती है। अपने अच्छे कार्यों के लिए किसी से प्रमाणपत्र की आश मत रखो, आपके अच्छे कर्म ही स्वयं में सर्वश्रेष्ठ प्रमाणपत्र भी हैं। जीवन में एक बात हमेशा याद रखना कि आपके अच्छे कार्यों को जगत में किसी ने देखा हो या नहीं मगर जगदीश ने अवश्य देखा है। उस प्रभु ने अवश्य देखा है।। आपके चाहने से आपको कोई पुरस्कार मिले या नहीं मगर आपके अच्छे कर्मों के फलस्वरूप एक दिन उस प्रभु द्वारा आपको अवश्य पुरस्कृत और सम्मानित किया जायेगा। ये बात भी सत्य है।। कि आपकी प्रशंसा तब नहीं होती जब आप चाहते हैं। अपितु तब होती है, जब आप अच्छे कर्म करते हैं। पानी पीने से प्यास स्वतः बुझती है, अन्न खाने से भूख स्वतः मिटती है और औषधि खाने से आरोग्यता की प्राप्ति स्वतः हो जाती है। इसी प्रकार अच्छे कर्म करने से जीवन में श्रेष्ठता आती है और समाज में आपका सम्मान स्वतः बढ़ जाता है। अतः सम्मानीय बनने के लिए नहीं अपितु सराहनीय करने के लिए सदा प्रयत्नशील रहें।।
*जय श्री राधे कृष्ण*
: 🙏आज का चिन्तन-करुणा🙏
आज का हमारा विषय है “करुणा भाव” । महानुभावों हम विगत कई दिनों से भगवत चिन्तन के माध्यम से हमारे जीवन में घटित होने वाली घटनाओं पर आत्मविश्लेषण करते आ रहे हैं । और जिसका उद्देश्य भी यही है कि हम अपने जीवन की प्रत्येक भावनाओं पर शान्त चित्त होकर विचार कर सकें । आशा है कि आपने इस चिन्तन के माध्यम से आत्मविश्वास के साथ बहुत से अर्थ अर्जित किया होगा । इसी सोच के साथ हम आज के विषय को प्रवाहित करेंगे ।। तो क्या आप सज्ज है?
आज हम बात कर रहे हैं “करुणा भाव” की । वास्तव में दया,तरस, रहम कितने ही नाम से जाना जाता है ये करुणा । आज के समाज में जिस भाव की लगातार कमी होते जा रही है वह करुणा ही है । लेकिन करुणा करना अथवा दया करना ये तो एक तरह से मन की कमजोरी का लक्षण माना जाता है । और अगर किसी का मन करुणा से भर कर कमजोर हो गया तो समाज में वो आगे कैसे बढ़ेगा ? जाने अनजाने हम सब इसी तरह की सोच रखते हैं । क्या ये सत्य नहीं? करुणा और दया को एक अनावश्यक सोच मानकर इससे बचने की बात करते हैं । आगे बढ़ने की अन्धी दौड़ में हम भूल गए कि इस करुणा का जीवन में क्या महत्व है ? हम समझ नहीं पाते की करुणा का मूल अर्थ क्या होता है ? करुणा का अर्थ होता है वो भावना जो किसी पराये का दुःख दूर करने के लिए प्रेरित करे । अर्थात हम अपने सम्बन्धों या स्वजनों तक ही करुणा नहीं कर सकते करुणाभाव का वास्तविक दर्शन तो पराये व्यक्तियों के दुःखों को दूर करने में होता है । क्या ये सत्य नहीं ? कदाचित महादेव इसी लिए करुणा सिन्धु भी हैं । वो करुणा के अवतार हैं और जो करुणा के अवतार होगा वहीं संसार का सार अर्थात “सत्व” होगा । मूल होगा और संसार के मूल में भी यही करुणा वास करती है । इस करुणा के ही कारण संसार संचालित होता है क्योंकि करुणा के मूल में धर्म भावना प्रबल है । सन्त तुलसीदास जी ने धर्म की एक बड़ी रोचक बात कही है –
परहित सरिस धर्म नहिं भाई ।
पर पीड़ा सम नहीं अधमाई ।। परहित अर्थात पराये लोगों का हित करना ही धर्म है और साथ ही ये भी याद दिलाते हैं कि पर पीड़ा यानी दुसरों को पीड़ा देने से बड़ा बुरा कार्य हो ही नहीं सकता । महादेव सदैव देवताओं के साथ दैत्यों पर भी दया और दृष्टि रखते रहे हैं। जब दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य जी ने संजीवनी विद्या पाने के लिए तप किया तो महादेव ने इस बात को मध्य में नहीं रखा कि शुक्राचार्य देवताओं के नहीं देत्यों के गुरु हैं । हम अपने मन में करुणा भाव का संचार कर समाज को एक नई दिशा दे सकने का प्रयास कर सकते हैं । हम महादेव तो नहीं हो सकते उनके होकर उनके दिखाए मार्ग पर चलने का प्रयत्न तो कर ही सकते हैं । जो मार्ग बहुत सरल है करुणा का मार्ग है वो । पराये लोगों के दुःखों को दूर करने का यत्न परहित धर्म है ।साथ ही तात्कालिक परिस्थितियों पर विवेक पूर्ण व्यवहार की अपेक्षा भी है,क्योंकि यह हमारे स्वयं के विचार हैं ;और हमारे विचार अन्तिम सत्य नहीं। आशा करते हैं कि हमारा ये विषय हम सबके जीवन में कुछ अर्थ भरेगा ।। जय जय श्रीराधे-राधे जी ।।
💐जय श्री महादेव प्रभु जी💐
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