मित्रों, आज कुछ बातों का सूक्ष्म आध्यात्मिक चिंतन करेंगे और अपनी जड़ता से स्वयं को जगाने की कोशिश करेंगे, अपने संपूर्ण स्वभाव का पुनर्निर्माण करेंगे, सर्वव्यापी सौंदर्य के प्रति जब हम अपनी आँखे खोलेंगे और प्रकृति से संपर्क करेंगे तो पायेंगे कि बहुत सी बातें जो हमें अभी तक ज्ञात नहीं हैं, वह प्रकृति हमें सिखा देती है, ताकि हमारे व्यक्तित्व की महान् शांति को हम प्राप्त कर सकें।
हमारे चारों ओर के दृश्य में अदृश्य परमात्मा को देखो, साक्षी बनो, कर्त्ता कर्मफल के भार से दबा होता है, यदि हमें कर्म करना ही पड़े तो कर्म में भी हम साक्षी बनें, आत्मनिरीक्षण तथा आत्मसाक्षात्कार के अतिरिक्त और किसी बात की चिंता न करें, हममें जो सर्वश्रेष्ठ है उसे ही करें, दूसरों के मतामत की ओर ध्यान न दे, शक्तिशाली बने, अपने स्वयं की आत्मा को हम गुरु बनायें।
हमारे ऋषि-मुनियों के महान् आदर्श तथा विचारों से हम अपने आप को लबालब भर दे जिससे कि हम स्वयं सर्वोच्च परमात्मा को अभिव्यक्त करने के लिये व्याकुल हो उठे, एक बार सशक्त हो उठने पर हम स्वयं जाग उठेगें, तब स्वप्न में भी न सोची गई वस्तुयें हमारे सामने उद्घाटित हो उठेंगी, दूसरों की निन्दा से बचे, दूसरों के अनुचित आचरण की सूक्ष्म स्मृति तक को पोंछ डाले।
सजज्नों, हम अपने स्वयं का आत्मनिरीक्षण करे तो हम स्वयं में ही बहुत सी निन्दनीय बातें पायेंगे, साथ ही बहुत सी ऐसी भी बातें पायेंगे जो हमें आनन्द देंगी, प्रत्येक व्यक्ति का अपने आप में अपना संसार होना चाहिये, हमारे भीतर के (निम्न) मनुष्य को मर जाने दो, जिससे कि परमात्मा प्रकाशित हो सके, किसी भी बात की चिन्ता न करे, शांति से रहना क्या अच्छा नहीं है?
मनुष्य पर आस्था न रखे आस्था रखो भगवान पर, वे हमारा मार्गदर्शन करेंगे तथा हमे आगे ले जायेंगे, हम जो सफलता चाहते हैं, जिसके लिए प्रयत्नशील हैं वह कामना कब तक पूरी हो जावेगी? इसका उत्तर सोचने से पूर्व अन्य परिस्थितियों को भुलाया नहीं जा सकता,अपना स्वभाव, सूझबूझ, श्रमशीलता, योग्यता, दूसरों का सहयोग, सामयिक परिस्थितियाँ, साधनों का अच्छा-बुरा होना।
तथा सिर पर लदे हुए तात्कालिक उत्तरदायित्व, प्रगति की गुंजाइश, स्वास्थ्य आदि अनेक बातों से सफलता संबंधित रहती है, और सब बातें सदा अपने अनुकूल नहीं रहतीं, इसलिये केवल इसी आधार पर सफलता की आशा नहीं की जा सकती कि हमने प्रयत्न पूरा किया तो सफलता भी निश्चित रूप से नियत समय पर मिल ही जानी चाहिये।
दूसरों को मात्र नैतिक उपदेश ही देते रहने से किसी का काम नहीं बनता, समय पर सहायता मिलना, मुश्किलें और कठिनाइयाँ दूर करना भी जरूरी है, उपदेश देने की अपेक्षा अधिक उपयोगी है, इसी से किसी को कुछ ठोस लाभ प्राप्त हो सकता है, और यही ईश्वर की सच्ची पूजा है, प्रसन्न रह सकना इस संसार का बहुत बड़ा सुख है, हर कोई प्रसन्नता चाहता है, आनंद की खोज में है, और विनोद तथा उल्लासमयी परिस्थितियों को ढूँढता है।
यह आकाँक्षा निश्चय ही पूर्ण हो सकती है, यदि हम बुराइयों की उपेक्षा करना और अच्छाइयों से लिपटे रहना पसंद करें, इस संसार में सभी कुछ है,अच्छाई भी कम नहीं है, बुरे आदमियों में भी अच्छाई ढूँढें, आपत्तियों से जो शिक्षा मिलती है उसे कठोर अध्यापक द्वारा कान ऐंठकर दी हुई सिखावन की तरह सीखें, उपकारों को स्मरण रखें।
जहाँ जो कुछ श्रेष्ठ हो रहा है उसे सुनें और समझें, अच्छा देखो और प्रसन्न रहो का मंत्र हमें भली प्रकार जपना और हृदयंगम करना होगा, भाई-बहनों! इसी छोटे से जीवन मंत्र से हम अपने मानव जीवन को श्रेष्ठ व सुन्दर बनाया जा सकता हैं, इसी भाव के साथ आज के पावन दिवस की पावन अपरान्ह आप सभी को मंगलमय् हों।