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अध्यात्म” एक ऐसा विषय है जो अपने आपको जानने अपने भीतर झाकने और अपने में ही समा जाने की क्रिया–विधि और प्रेरणा देता है..!!! यह ऐसा विषय है जो हर मानव के व्यक्तित्व पारिवारिक सम्माजिक नैतिक शैक्षणिक चारित्रिक शील संस्कार और वैयक्तिक वैचारिक राष्ट्रीय पृष्टभूमि से जुदा हुआ है ! मानव–जीवन का मुख्या ध्येय सुख–संपदा और शांति–संतुष्टि अर्जित करना तो सामान्यतः होता है..किन्तु इन सभी चीज को सही तरीके से अर्जित और प्राप्त करने ककी दिशा में जम जो प्रयास करते है..उसमे अध्यात्म ज्ञान..और आत्मा–तत्त्व–वोध एक प्रेरक..उत्प्रेरक जैसा कार्य करता है..! मानव मन सामान्यतः..बुरयियो की और अपनी प्रकृत-वश भागता है..क्योकि यह मन ही सभी इन्द्रियों का राजा है. १ हम जैसे परिवेश–संस्कार में पलते–बढ़ाते–पढ़ते–करते है..वैसा ही यह मन अपना धरातल प्राप्त कर लेता है..!
स्वर्ग–नरक–मोक्ष की कल्पना हम करते है..लेकिन हम यथार्थतः इसको समझ नहि पाते..! यह मन ही राम (स्वर्ग) रावण (नरक) और ब्रह्मा (मोक्ष) है..! यदि हम अच्छाई से चलते है तो राम है..बुराई से चलते है तो रावण है और यदि प्रभु का चितन–ध्यान–भजन करते है तो ब्रह्मा के साद्रश्य हो जाते है..! स्कूल में हम सब कुछ पढ़ लेते है और उपाध्या भी प्राप्त कर लेते है..लेकिन इससे क्या..?? पढ़ाई करना और पढ़ा–लिखा होना अलग-अलग स्थितिया है ! एक साक्षर जो कुछ जानता है..वह एक उच्च शिक्षित शायद नहि जनता होगा..?? इसलिए संतो की वाणी अटपटी–सी होती है..संत–लोग बहुत अधिक पढ़े लिखे नहि होते..लेकिन उनकी तपश्चर्या इतनी प्रखर होती है की वह अंतर्दृष्टि से सब कुछ जान लेते है !!
हमारा भारत देश विश्व–गुरु राहा है..अध्यात्म हमारे देश का प्राण है..! अपने–आपको जानकर जो अपने को देखते हुये अपने–आपमें स्थित और ली हो जाता है वही सच्चा मानव है..! समय के तत्वदर्शी की खोज करके हमको अपना कल्याण करना चाहिए..! “श्रद्धावान लभ्यते ज्ञानम्..” श्रद्धा–पूर्वक ग्यानी–गुरु के पास जाकर स्सश्तांग–दडावट–प्रणाम करके अपने कल्याण के लिए “आत्मा–ज्ञान” प्राप्त करना चाहिए..! सच्चा भक्त वही है..जाओ प्रभु को उनके सच्चे नाम से जानकार उनका हमेशा स्मरण करा रहता है..! “भक्त वही जो नाम जपे..बाकी दुखिया सब संसारा…!!”
जय श्री विष्णु नारायण हरि

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