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ज्योतिष और बुद्धि क्षमता

आज का युग प्रतिस्पर्धा का युग है | शिक्षा के आरम्भ के वर्षों में माता-पिता को चाहिए कि बालक की अभिरुचि , मनोवृत्ति और बौद्धिक योग्यता को जानने की कोशिश करें | इस क्षेत्र में ज्योतिष माता-पिता की सहायता कर सकते हैं | ज्योतिष कि नियमों द्वारा यह जाना जा सकता है कि जातक में बौद्धिक योग्यता कितनी है और उसकी मनोवृत्ति किस ओर है | एक योग्य ज्योतिषी माता – पिता को होने वाली घटनाओं का पहले से ही अनुमान लगाकर उनका मार्गदर्शन कर सकता है |

स्वस्थ शरीर में स्वस्थ बुद्धि और मन रहता है | इसलिए शरीर का स्वस्थ रहना पहली शर्त है | यदि लग्नेश पाप ग्रहों से युक्त दृष्ट होकर ६,८,१२ भावों में स्थित हो तो जातक रोगी रहता है | इससे जातक की योग्यता पर प्रभाव पड़ता है |

लग्न- से उपचय भाव तीन, छह , दस और ग्यारह  जातक को उत्साह और आगे बढ़ने की शक्ति, हिम्मत, शत्रुओं से लड़ने की शक्ति , प्रतिस्पर्धा को शक्ति देते हैं | उपचय भाव में अशुभ ग्रह मंगल , सूर्य , शनि ग्रह आदि जातक को प्रतिस्पर्धा की शक्ति प्रदान करतें हैं |

द्वितीय भाव – द्वितीय भाव से हम हीरे , मोती , सोना , चांदी आदि धातुओं का क्रय -विक्रय आदि का अनुमान लगते हैं. यदि  कोई भावेश द्वितीय भाव में स्थित है तो उस भावेश की वस्तु के क्रय-विक्रय द्वारा धन कमाना  अथवा सत्य -झूठ या बहु भाषण (वकील नेता आदि )आदि  का  अनुमान हम द्वितीय भाव से लगाते हैं | द्वितीय भाव से स्मरण शक्ति का भी अनुमान लगाया जा सकता है जैसे –

धनेश चतुर्थेश से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को माता की संपत्ति प्राप्त होती है |
धनेश चतुर्थेश से युक्त या दृष्ट नवांश और दशमांश में भी हो तो जातक को किसी बंधु या कृषि कर्म से धन लाभ होता है |
यदि धनेश बलवान होकर पंचमेश या पंचम कारक ग्रह बृहस्पति से युति या दृष्टि सम्बन्ध हो तो जातक को पुत्र से धन लाभ होता है |
यदि चतुर्थेश धन भाव में पाप ग्रह से युक्त होकर नीच राशि या शत्रु राशि में स्थित हो तो जातक भूमि का क्रय-विक्रय करने वाला होता है |
यदि द्वितीयेश कोई पाप ग्रह हो और नीच राशि या शत्रु राशि में स्थित होकर बलवान चतुर्थेश से दृष्टि या युति सम्बन्ध करे तो जातक भूमि का क्रय -विक्रय करने वाला होता है |
इन सब योगों से स्पष्ट होता है कि जातक को धन की प्राप्ति कैसे होगी द्वितीय भाव और द्वितीयेश से जाना जा सकता है | इससे जातक के माता पिता का मार्ग दर्शन किया जा सकता है |
चतुर्थ भाव से हम केवल जातक के शिक्षा के बारे में ही नहीं जानते अपितु किस विषय पर शिक्षा होगी , किस प्रकार की शिक्षा जातक ग्रहण करेगा भी जाना जा सकता है | ज्योतिष के कई ग्रंथों में स्पष्ट लिखा है कि कौन सा ग्रह किस प्रकार की शिक्षा के लिए जातक को प्रेरित करेगा | यदि उसका प्रभाव चतुर्थ भाव पर हो शुक्र संगीत की शिक्षा , बुध शिक्षा , सूर्य और चंद्र | राजनैतिक विज्ञान , मनोविज्ञान और पराविद्या की शिक्षा देते हैं | सूर्य और बुध गणित , सूर्य ,शुक्र या बुध और शुक्र जातक को कवि बनाते हैं | मंगल और सूर्य जातक को तर्क शास्त्र का ज्ञाता बनाने में मदद करते हैं | इत्यादि |
चतुर्थ भाव और चतुर्थेश को प्रभावित करने करने वाले ग्रहों के अध्ययन से जातक की शिक्षा के विषय में जाना जा सकता है |

पंचम भाव से जातक के सोचने की शक्ति देखते हैं | यही भाव बौद्धिक लब्धि कोष्ठक को भी बतलाता है |

शुभ योग

पंचम भाव में शुभ राशि हो तथा शुभ ग्रहों की युति या दृष्टि हो |
पंचम भाव शुभ ग्रहों के मध्य हो तथा पंचमेश बलवान हो |
पंचमेश अपनी उच्च , स्वराशि या मित्र राशि में स्थित हो या शुभ ग्रहों के मध्य हो |
बृहस्पति केंद्र या त्रिकोण में स्थित हो और बलवान हो |
बलवान बुध पंचम भाव में स्थित हो तथा पंचमेश बलवान होकर केंद्र में स्थित हो |

अशुभ योग

चन्द्रमा षष्ट , अष्टम या द्वादश भाव में स्थित हो और शुक्र देखता हो |
चन्द्रमा और शनि केंद्र में स्थित हो और चन्द्रमा पीड़ित हो|
शनि और पंचमेश दोनों साथ-साथ हों |
राहु और पंचमेश दोनों साथ – साथ हों |
लग्न में चन्द्रमा हो और शनि और मंगल से दृष्ट हो |
ऊपर के योगों से यह स्पष्ट हो जाता है कि यदि पंचम भाव पंचमेश , कारक बृहस्पति , बुध , और चन्द्रमा पीड़ित हो तो जातक मंद बुद्धि होता है | वह पढ़ाई में  पीछे रह जाता है | बुध का सम्बन्ध यदि द्वितीय भाव से हो तो जातक चंचल बुद्धि वाला होता है | उसमे एकाग्रता की कमी आ जाती है और वह शिक्षा में पीछे रह जाता है | यही प्रभाव चन्द्रमा का सूर्य के साथ होने पर होता है | सूर्य और चन्द्रमा लग्न और त्रिकोण में स्थित हो तो जातक की एकाग्रता में कमी होती है |

तत्व

बुध यदि वायु तत्व या अग्नि तत्व की राशियों में स्थित हैं तो जातक बुद्धिमान होता है |

बुध यदि पृथ्वी तत्व की राशियों में स्थित है तो जातक को गणित और गणित से सम्बंधित विषयों में परेशानी होती है | इसलिए ऐसे जातक को उन विषयों में शिक्षा नहीं लेनी चाहिए | उसे इतिहास , राजनैतिक आदि विषय ठीक रहते हैं |

बुध यदि जल तत्व की राशियों में स्थित होता है तो उसके बौद्धिक विकास में कमी आ जाती है | उस जातक को जब तक कोई दूसरा ग्रह मदद नहीं करता तब तक जातक शिक्षा से दूर भागता है |

दशम भाव एवं शिक्षा –

शिक्षा का अध्ययन हम व्यवसाय को ध्यान में रखकर ही करते हैं | इसलिए दशम भाव में स्थित ग्रह , राशि और तत्व को ध्यान में रखकर ही निर्णय लेना उपयुक्त होगा |

दशान्तर्दशा –

यह सर्वमान्य ज्योतिष का नियम है कि ग्रह अपना फल अपनी दशा और अंतर्दशा में देते हैं | जन्म कुंडली में चाहे कितने भी उच्च ग्रह क्यों न बैठे हों परन्तु जब तक उनकी दशा या अंतर्दशा नहीं आएगी तब तक उनका फल जातक को नहीं मिल सकता  | इसलिए शिक्षा के काल के समय जातक की कौन सी दशा – अंतर्दशा चल रही है उसका भी कम महत्व नहीं होता | इसलिए दशा – अन्तर्दशा के ग्रहों का बल तथा भाव स्थिति देखकर ही विषयों का चयन आवश्यक है |

गोचर –

गोचर का अपना महत्व है | दशा अंतर्दशा जहां भूमि को उर्वरा बनाती है  तो गोचर उसको पल्ल्वित और पुष्पित करता है | इनमे शनि और बृहस्पति का विशेष महत्व है | इन दो ग्रहों का जातक के किस भाव पर विशेष प्रभाव पड़ रहा है इसका भी अध्ययन आवश्यक हो जाता है | जिन – जिन भावों पर शनि और बृहस्पति का संयुक्त प्रभाव पड़ रहा है उस भाव से विशेष कर फल  ज्यादा मिलता है | इसलिए शिक्षा के विषयों का चयन करते हुए दशान्तर्दशा और गोचर का ध्यान भी आवश्यक हो जाता है | क्योंकि बिना दशान्तर्दशा तथा गोचर के फलित निर्णय नहीं लिया जा सकता |

योग :

योग फलित ज्योतिष का एक आवश्यक अंग है | ग्रहों की भावों में एक विशेष स्थिति जातक को प्रभावित करती है | इसलिए ज्योतिष ग्रंथों में योगों का विशेष महत्व है शिक्षा से सम्बंधित कुछ योग इस प्रकार हैं –

बुध – आदित्य योग –

बुध और सूर्य की युति को बुध आदित्य योग कहते हैं |

यह सर्वविदित है कि ग्रह सूर्य कि निकट आ जाता है और अस्त हो जाता है | अस्त का अर्थ यह है कि वह ग्रह अपना प्रभाव देने में असमर्थ हो जाता है | इसलिए बुध भी सूर्य कि निकट हो तो अस्त हो जाता है | इसलिए बुध भी सूर्य से चौदह अंश तक दूर रहना चाहिए यदि बुध वक्री है तो बारह अंश दूर रहना चाहिए | इसलिए बुध – आदित्य योग में बुध और सूर्य का कम से कम चौदह अंश का अंतर आवश्यक है |

सांख्य योग – यदि पंचमेश और षष्ठेश एक दूसरे से केंद्र में स्थित हों और लग्नेश बलवान हों तो जातक अच्छी शिक्षा प्राप्त करता है |

सरस्वती योग –

यदि शुभ ग्रह ( बृहस्पति , शुक्र , बुध और चंद्र ) केंद्र ( १,४,७,१० ) त्रिकोण (५,९ ) और दूसरे भाव में इकठे या अलग-अलग स्थित हों तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता है |

बुद्ध योग–

यदि गुरु लग्न में चन्द्रमा केंद्र में , राहु चन्द्रमा से द्वितीय भाव में , सूर्य और मंगल राहु से तृतीये भाव में स्थित हों तो जातक बौद्धिक सक्षम होता है |

ऊपर के योग में बृहस्पति लग्न में चन्द्रमा , सूर्य , मंगल ( मित्र ग्रह ) एक दूसरे से केंद्र में होने के कारण एक दूसरे को प्रभावित कर रहे हैं | राहु चन्द्रमा से द्वितीय में स्थित है जो शुभ है |

ऊपर लिखित कुछ योगों से स्पष्ट है कि कारक ग्रह बुद्ध और चन्द्रमा यदि केंद्र या त्रिकोण में स्थित हों तो जातक बुद्धिमान होता है | उनका बौद्धिक लब्धी कोष्ठक उच्च होता है | इसलिए शिक्षा का निर्णय लेते हुए बुद्धिकारक ग्रहों की भाव स्थिति ,राशि , तत्व , दशान्तर्दशा और गोचर का ध्यान रखकर ही निर्णय लिया जाये तो माता – पिता जातक में छिपे गुणों का पूर्ण -विकास कर जातक को जीवन में सफल व्यक्ति बना सकते हैं |

कुंडली में अत्यंत कठिन कार्य होता है जब किसी ग्रह पर किसी अन्य ग्रह की दृष्टि , युति , राशिपरिवर्तन , का अन्यतर स्थान दृष्टि सम्बन्ध नहीं है | इसी से योग बनते हैं और जातक के जीवन को प्रभावित करते हैं | कुछ योग संक्षिप्त में इस प्रकार हैं –

सूर्य + चन्द्रमा  : शत्रु को पराजित करने वाला , शस्त्र धारण करने वाला सैनिक |

सूर्य + मंगल : शस्त्र धारण करने वाला दंडाधिकारी |

सूर्य + बुद्ध : विज्ञान सम्बन्धी ज्ञान |

सूर्य + गुरु : पुरोहित ( प्रवचन करने वाला ) |

सूर्य + शुक्र : वाहन |

सूर्य + शनि : दुःख परदेश में नौकरी |

सूर्य + राहु : पिता को भय , अपराधिकीय , आध्यात्मिक ज्ञान , कृषि या वनस्पति ज्ञाता , वैद्य |

चंद्र + मंगल : व्यापार से धन , अपने परिश्रम से आजीविका |

चंद्र + बुध : सलाहकार , मंत्री

चंद्र + गुरु : ज्योतिषी , विद्वान |

चंद्र + शुक्र : कवि |

चंद्र + शनि : पुस्तक मुद्रण या विक्रेता |

मंगल + बुध : इंजीनियर इत्यादि |

पृथ्वी तत्व राशियां (२,६,१० ) यथार्थवादी , व्यवहारिक बनाती है | ऐसा व्यक्ति , कृषि , बागवानी भवन निर्माण सड़क निर्माण या प्लाट का क्रय – विक्रय इमारती लकड़ी का व्यापार या फर्नीचर आदि का कार्य या शिक्षा प्राप्त करता है |  ऐसा जातक एक सफल प्रबंधक का कार्य भी करता है | कन्या राशि का सूर्य और बुध का सम्बन्ध दशम या चतुर्थ भाव से हो तो जातक लेखा परीक्षक या कर अधिकारी बनता है |

वायु तत्व राशियाँ ३,७,११ जातक के बौद्धिक स्तर को बहुत  उठाती हैं | ऐसे जातक बुद्धिमान , चिंतन मनन करने वाला , दार्शनिक , लेखक , जर्नलिस्ट , विचारक या वैज्ञानिक शोधकर्ता होता है | इसके सोच की शक्ति बहुत विकसित होती है | ऐसा जातक वकील , साहित्यकार और एक अच्छा सलाहकार होता है |

जल तत्व राशियाँ ( ४,८,१२,) ऐसे जातक का बौद्धिक स्तर ज्याद अच्छा नहीं होता | दूध , घी पेय पदार्थ या रासायनिक पदार्थों में रूचि लेता है | जल भण्डारण बोध , नहर सिंचाई आदि कार्य रुचिकर होते हैं |

इस प्रकार हम पाते हैं कि लग्न , द्वितीय , चतुर्थ , पंचम  एवं दशम भाव और भावेश पर पड़ने वाले तत्वों का जातक के जीवन पर बहुत प्रभाव होता है | इसलिए भावों के तत्वों का विशेष ध्यान रखना चाहिए |
[ ज्योतिष ज्ञान
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मृगशिरा नक्षत्र परिचय
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बहादुर होते हैं मृगशिरा नक्षत्र के जातक 

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वैदिक ज्योतिष में मूल रूप से 27 नक्षत्रों का जिक्र किया गया है। नक्षत्रों के गणना क्रम में मृगशिरा नक्षत्र का स्थान पांचवां है। इस नक्षत्र पर मंगल का प्रभाव रहता है क्योंकि इस नक्षत्र का स्वामी मंगल होता है।

जैसा कि हम आप जानते हैं व्यक्ति जिस नक्षत्र में जन्म लेता है उसके स्वभाव पर उस नक्षत्र विशेष का प्रभाव रहता है। नक्षत्र विशेष के प्रभाव से व्यक्तित्व का निर्माण होने के कारण ज्योतिषशास्त्री जन्म कुण्डली में जन्म के समय उपस्थित नक्षत्र के आधार पर व्यक्ति के विषय में तमाम बातें बता देते हैं। जिनके जन्म के समय मृगशिरा नक्षत्र होता है अर्थात जो मृगशिरा नक्षत्र में पैदा होते हैं उनके विषय में ज्योतिषशास्त्री कहते हैं।

मृगशिरा नक्षत्र का स्वामी मंगल होता है। जो व्यक्ति मृगशिरा नक्षत्र में जन्म लेते हैं उनपर मंगल का प्रभाव देखा जाता है यही कारण है कि इस नक्षत्र के जातक दृढ़ निश्चयी होते हैं। ये स्थायी काम करना पसंद करते हैं, ये जो काम करते हैं उसमें हिम्मत और लगन पूर्वक जुटे रहते हैं। ये आकर्षक व्यक्तित्व और रूप के स्वामी होते हैं।ये हमेशा सावधान एवं सचेत रहते हैं। ये सदा उर्जा से भरे रहते हैं, इनका हृदय निर्मल और पवित्र होता है। अगर कोई इनके साथ छल करता है तो ये धोखा देने वाले को सबक सिखाये बिना दम नहीं लेते। इनका व्यक्तित्व आकर्षक होता है लोग इनसे मित्रता करना पसंद करते हैं।

ये मानसिक तौर पर बुद्धिमान होते और शारीरिक तौर पर तंदरूस्त होते हैं। इनके स्वभाव में मौजूद उतावलेपन के कारण कई बार इनका बनता हुआ काम बिगड़ जाता है या फिर आशा के अनुरूप इन्हें परिणाम नहीं मिल पाता है।

ये संगीत के शौकीन होते हैं, संगीत के प्रति इनके मन में काफी लगाव रहता है। ये स्वयं भी सक्रिय रूप से संगीत में भाग लेते हैं परंतु इसे व्यवसायिक तौर पर नहीं अपनाते हैं। इन्हें यात्रओं का भी शौक होता है, इनकी यात्राओं का मूल उद्देश्य मनोरंजन होता है। कारोबार एवं व्यवसाय की दृष्टि से यात्रा करना इन्हें विशेष पसंद नहीं होता है।

व्यक्तिगत जीवन में ये अच्छे मित्र साबित होते हैं, दोस्तों की हर संभव सहायता करने हेतु तैयार रहते हैं। ये स्वाभिमानी होते हैं और किसी भी स्थिति में अपने स्वाभिमान पर आंच नहीं आने देना चाहते। इनका वैवाहिक जीवन बहुत ही सुखमय होता है क्योंकि ये प्रेम में विश्वास रखने वाले होते हैं। ये धन सम्पत्ति का संग्रह करने के शौकीन होते हैं। इनके अंदर आत्म गौरव भरा रहता है। ये सांसारिक सुखों का उपभोग करने वाले होते हैं। मृगशिरा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति बहादुर होते हैं ये जीवन में आने वाले उतार चढ़ाव को लेकर सदैव तैयार रहते हैं


[ कुंडली में शेयर/सट्टा से आकस्मिक लाभ के योग
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ज‌िनकी कुंडली में ग्रहों की नीचे दीये गए विवरण जैसी खास स्‍थ‌ित‌ि होती है उन जातको को शेयर/सट्टे से आकस्मिक लाभ म‌िलता है। तो देख‌िए आपकी जन्मपत्री में भी ऐसे योग तो नहीं बन रहे।

१👉 यदि किसी जन्मपत्री में पांचवें घर में गुरू के साथ पहले घर यानी लग्न के स्वामी ग्रह बैठे हों तब व्यक्त‌ि को अचानक से धन लाभ म‌िलता रहता है।

२👉 यदि किसी कुंडली के पांचवें घर में चंद्र है और उस पर शुक्र की दृष्ट‌ि है तो यह भी अचानक धन प्राप्त होने का योग है।

३👉 यदि किसी जन्मपत्री में दूसरे घ्‍ार यानी ध्‍ान भाव और ग्यारहवें घर यानी लाभ स्थ्‍ाान के स्वामी चौथे घर में साथ बैठे हों और उन पर क‌िसी शुभ ग्रह की दृष्ट‌ि है तो आपको अचानक धन म‌िल सकता है।

४👉 यदि जन्मपत्री के केन्द्र स्‍थान यानी पहले, चौथे, सातवें और दसवें घर में कोई शुभ ग्रह हैं मजबूत स्‍थ‌ित‌ि में हों तो यह व्यक्त‌ि को आकस्मिक लाभ दिलाता है।

५👉 यदि आपका आपका जन्म मीन लग्न में हुआ है और आपकी कुंडली में पांचवें घर में बुध है और ग्यारहवें घर यानी आय स्‍थान में शन‌ि है तो यह शेयर सट्टे में अचानक लाभ का योग बनाता है।


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राहू का अच्छा और बुरा प्रभाव
✍🏻राहु जैसा भी है जन्म कुण्डली में बेहद है अच्छा है तो बेहद अच्छा है और अगर बुरा है तो बेहद बुरा है! मेष राशि से मीन राशि तक राहु का बेहद प्रभाव क्या है आओ जानते हैं। ✍🏻१.-मेष राशि:- राशि में राहु होने पर मंगल के गुणों को बढाएगा! जातक बेहद मेहनती होगा! बेहद गुस्से वाला होगा! जातक का व्यक्तित्व क्रोधी होगा। २.-वृषभ राशि:- वाले जातक में राहु शुक्र के गुणों को बेहद करेगा जातक बेहद रोमांटिक होगा जातक में कलाकारी के बेहद गुण होंगे जातक बेहद प्रेम प्रसंगों वाला होगा। ३.-मिथुन राशि:- में राहु बुध के गुणों को बेहद बढाएगा, जातक बेहद बुद्धिमान होगा, जातक बेहद गणितज्ञ होगा, बेहद व्यापारी या बेहद बढिया संचालक होगा जातक को कोई भी मूर्ख नहीं बना सकता। ४.-कर्क राशि:- में राहु बेहद भावुक होगा बेहद यात्राएं करने वाला होगा प्रतिदिन लंबी यात्रा करता होगा अपने परिवार के प्रति बेहद सोचने ओर चिन्तित रहने वाला होगा। ५.-सिंह राशि:- में राहु बेहद स्वाभिमानी होगा बेहद अकड़ वाला किसी के आगे ना झुकने वाला होगा, अपने आप को किसी राजा से कम नहीं समझने वाला होगा चाहे इतना पैसा ना हो पास। ६.-कन्या राशि:- में राहु बेहद द्वि स्वभाव वाला होगा जातक बेहद बुद्धिमान ओर अपनी बात मनवाने वाला होगा ओर अपने आगे सभी को बेवकूफ समझने वाला होगा। ७.-तुला राशि:- में राहु बेहद बड़ा व्यापारी होगा बेहद वासना प्रिय होगा बेहद मनोरंजन कार्य में मन लगाएगा और बेहद मित्रो वाला होगा। ८.-वृश्चिक राशि:- में राहु बेहद बुद्धिमान हमेशा कुछ ना कुछ गूह्य विषय में सोचने वाला अपनी गहरी चाल से दुश्मन को बर्बाद कर देने वाला ऐसा इंसान जिसे समझना मुश्किल ही नही नामुमकिन है। ९.-धनु राशि:- में राहु बेहद भक्ति भाव वाला नंगे पांव धर्म स्थान की यात्रा करने वाला बेहद अड़ियल स्वभाव वाला ओर धर्म को बेहद तरीके से मानने वाला होगा। १०.मकर राशि में राहु बेहद आलसी बेहद सुस्त बेहद नशा करने वाला ओर मन से बेहद अकेला अनुभव करने वाला होगा। ११.-कुंभ राशि:- में राहु बेहद संघर्षशील, जीवन में बेहद अकेलापन महसूस करने वाला ओर आलसी शराब सिगरेट आदि नशे करने वाला होगा। १२.-मीन राशि:- में राहु बेहद धार्मिक पूजा पाठ करने वाला वेदों ग्रंथों को पढने वाला ओर बडे़ दिलवाला गरीबों की मदद करने वाला होगा।
✍🏻राहु ही बनाता है बेहद अमीर या बेहद गरीब, राहु ही बनाता है बेहद बुद्धिमान या बेहद मूर्ख बेवकूफ, राहु ही बनाता है बेहद प्रसिद्ध या बेहद गुमनाम।
👌🏻किसव्यापारसेमिलेगीसफलताऔरलाभ?|| हर एक व्यवसायी जातक यही चाहता कि व्यापार(business)में खूब आर्थिक लाभ हो, उन्नति हो, अच्छी सफलताए मिले और व्यापार अच्छा चले।इन सबके लिए सबसे पहले व्यापार और आर्थिक लाभ के ग्रह योग अनुकूल और अच्छी स्थिति में होने जरूरी है।अब व्यापार और आर्थिक लाभ के योग अच्छे इसके बाबजूद उन्नति कम है, व्यापार में फिर भी अच्छी सफलता नही मिल रही तब कुंडली का दसवा भाव, भावेश और इसके साथ बेठे ग्रहो की स्थिति देखना अनिवार्य होता है।जिस तरह के ग्रहो का प्रभाव 10वे भाव और इसके स्वामी पर होगा उन्ही ग्रहो से संबंधित कार्य छेत्रो में व्यापार में अच्छी सफलता मिलेगी, क्योंकि जो ग्रह कुंडली मे व्यापार को प्रभावित कर रहे है उन ग्रहो से संबंधित व्यापार नही है या जो ग्रह दूसरे भाव(धन भाव)ग्यारहवे भाव(लाभ/आय भाव)को प्रभावित कर रहे है उन ग्रहो से संबंधित वस्तुओं का व्यापार में सहयोग नही है तब व्यापार औऱ धन-लाभ के अच्छे योग होने पर उन्नति इतनी नही हो पाती जितनी होनी चाहिए, जैसे दसवे भाव और इसके स्वामी का संबंध शुक्र से है लेकिन व्यापार करा जा रहा है शनि से संबंधित वस्तुओं का जैसे तेल, चमड़ा, सीमेंट ,लोहे आदि का जो कि शनि से संबंधित है, लेकिन आपके जन्मकुंडली में शनि का दसवे भाव/भावेश से कोई संबंध नही या है भी तो सिर्फ दृष्टि आदि पड़ रही है लेकिन मुख्य प्रभाव माना शुक्र का है चन्द्र का है , दसवे भाव में और दश्मेश के साथ बलवान शुक्र बेठा है तब यहाँ व्यापार शुक्र से सम्बन्धित चीजों का ही लाभ हर उन्नति देगा, यदि विपरीत ग्रहो के अनुसार व्यापार चुन लिया गया है, किसी खराब ग्रह दशाओ के कारण तब ऐसा विपरीत ग्रहो के द्वारा चुना गया व्यापार कोई तरक्की और लाभ नही देगा, बस इतना रह सकता है आजीविका चल रही है।इसके अलावा धनः स्वामी दूसरे भाव/भावेश और लाभ स्वामी ग्यारहवे/भाव और भावेश पर भी उन्ही ग्रहो का प्रभाव है जिन ग्रहो का दसवे भाव पर है तब यह बहुत प्रबल व्यापार में उन्नति और धनः लाभ की स्थिति होती है।। अब उदाहरण से समझे; #उदाहरण_अनुसार1:- किसी कर्क लग्न की कुंडली बने तब यहाँ दश्मेश मंगल बनता है, मंगल दसवे भाव मे ही बेठा हो और मंगल के साथ द्वितीयेश जो यहाँ कर्क लग्न में सूर्य बनेगा वह भी दसवे भाव मे मंगल के साथ बेठे और। व्यापार कारक बुध बलवान हो साथ ही कर्क लग्न लाभेश ग्यारहवे भाव स्वामी शुक्र भी बलवान हो या दसवे भाव मे सूर्य मंगल के साथ बेठे तब यहाँ सरकारी छेत्र से संबंधित व्यापार, जैसे सरकारी ठेकेदारी, सरकारी ठेकेदारी में दसवे भाव मे मंगल सूर्य शुक्र है तब इनसे ही संबंधित जैसे बिजली विभाग की ठेकेदारी, सरकारी बिल्डिंग, सरकारी आवास बनाने की ठेकेदारी का काम में बहुत अच्छी सफलता रहेगी क्योंकि दसवे भाव मे मंगल है जो बिल्डिंग, घर(आवास) बनवाने का कारक है, सूर्य सरकारी छेत्र है तब यहाँ इस तरह के काम मे खूब व्यापारिक लाभ होगा और काम अच्छा चलेगा।। #उदारहण2:- कोई कुंडली मकर लग्न की बने यहाँ दशमेश शुक्र होता है अब बलवान शुक्र के साथ व्यापार योग बनाकर शुभ स्थिति में शुक्र के साथ शनि बुध बलवान होकर बेठे हो और इन तीनो ग्रहो में शनि ज्यादा बलि हो साथ ही दसवे भाव मे राहु हो तब ऐसी स्थिति में शनि क्योंकि यह ज्यादा बलवान है और दश्मेश शुक्र के साथ है और राहु क्योंकि यह दसवे भाव मे है तब शनि और राहु से संबंधित जैसे मिट्टी तेल या किसी भी तरह के तेल, सीमेंट, लोहा, सरिया, चमड़े का काम, कारखानो और मशीनों से संबंधी चीजो के व्यापार आदि वस्तुओं का व्यापार करने से व्यापार अच्छी तरक्की करेगा और धन लाभ भी होगा, क्यों?, क्योंकि आपका व्यापार आपकी जन्मकुंडली के ग्रहो के अनुसार है।। व्यापार में अच्छी सफलता के लिए जन्मकुंडली में जो ग्रह व्यापार को प्रभावित कर रहे है/ जिस तरह के ग्रहो का संबंध व्यापार से उन्ही ग्रहो से संबंधित वस्तुओं/चीजो के व्यापार(business)से लाभ उन्नति और अच्छी सफलता मिलती है, अन्यता कुंडली के विपरीत ग्रहो के अनुसार व्यापार कर लेने से आर्थिक/ व्यापारिक आदि तरह से सफलता अच्छी तरह से नही मिलती और संघर्ष रहता है।

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