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दूसरे का खून चढ़ाने की जरूरत नहीं।
महज आयुर्वेदिक रस रसायनों से ही यह कार्य समुचित ढंग से सम्पन्न हो सकता है।

आदरणीय बन्धुओं,
याद है, मैंने एक बार लिखा था कि राम रावण युद्ध या महाभारत के युद्ध में जब प्रतिदिन लाखों लोग बुरी तरह घायल हो जाते थे तब घायलों को उतना खून चढ़ाने के लिए दूसरों का खून कहां से आता था और किसी भी ग्रन्थ में दूसरे ब्यक्ति का रक्त दूसरे को चढाने का उल्लेख भी नहीं मिलता। तो क्या उस समय का चिकित्सा विज्ञान आज की तरह विकसित नहीं था ?
नहीं, नहीं, ऐसा नहीं है, बल्कि उस समय की चिकित्सा पद्धतियां ज्यादा विकसित थीं, ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं।
रक्त चढ़ाने का विकल्प खोजना मुझे बहुत आवश्यक लगा, इसीलिये इस विषय पर रिसर्च करना पड़ा।
वैसे भी आयुर्वेद के अलावा विश्व की और किस चिकित्सा पद्धति से ऐसी आशा की जा सकती है ?
अपने यहाँ एक भस्म है – अभ्रक भस्म।
अपने पास एक वानस्पतिक अमृत है – अमृता अर्थात गिलोय।
सहस्र पुटी अभ्रक भस्म और विशुद्ध गिलोय सत्व को खूब अच्छी तरह 8 घंटे खरल कर सेवन कराने से मरीज के शरीर में रक्त की कमी दूर हो जाती है और खून चढ़ाने की जरूरत नहीं होती।
आप स्वयं आजमा कर देखें।
अब ब्लड बैंक पर निर्भरता कम हो जायेगी।

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