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[: अध्यात्मिक जगत में एक शब्द है “कृपा” विज्ञान की भाषा में इसे परिभाषित करना संभव नही है। कभी-कभी बहुत कोशिश से भी काम नहीं बनता तब आपने पाया होगा कि जो काम मेंहनत से नही बना अब वह अनायास ही बनने लगा उस प्रभु की कृपा तो सबके ही ऊपर होती हे मगर उसे महसूस क़ोई-कोई कर पाते हैं। अधिकतर वह “आश्चर्य” बनकर ही रह जाती है। नफरत से कुछ नही मिलता मेंहनत से कुछ-कुछ मिलता है।। और प्रभु की रहमत से सब कुछ मिल जाता है। आग्रह से कुछ मिल सकता है।। मगर अनुग्रह से सब कुछ मिलता है। कभी प्रयास से तो कभी प्रसाद से कई बार बात बन जाती है। इसलिए कर्म तो करते रहो लेकिन प्रभु से प्रार्थना भी करते रहो, अच्छा समय जरूर आयेगा।।
[ सन्त जन कहते हैं। कि इन्द्रियाँ तो वही है।। उसे आप जहाँ चाहे लगा लो आँख का काम है, देखना अब आप चाहो तो संसार देख लो या तो प्रभु के दर्शन का आनंद ले लो कान का काम है। श्रवण अब चाहे तो किसी की निंदा सुन लो या चाहे तो भगवान की कथा श्रवण कर लो नासिका से संसार के सुगंधित पदार्थों को ग्रहण करो या तो प्रभु को अर्पित तुलसी , फूल माला की सुगंधि को अपने हृदय तक ले जाओ पैरों से चलकर ठाकुर के मंदिरों तक जाओ और मुख से भगवान का नाम गाओ भगवान का चरित्र गायन का विषय है।। जितना गाओगे उतना हृदय निर्मल होता जायेगा ।लेकिन गायन भी कैसा हो कपट रहित गायन हो कपट छोड़कर गायन करोगे तो नवधा भक्ति की चौथी भक्ति सिद्ध हो जायेगी।। समय जब निर्णय करता है। तब गवाहों की जरूरत नहीं होती।
[जीवन में उन्नति करने के लिए तपस्या करना अनिवार्य है, आलस्य प्रमाद हमारे बहुत बड़े शत्रु हैं। ये हमारी उन्नति में बाधक हैं । हमें वैसे ही रोकते हैं जैसे आंधी तूफान हमें यात्रा करने से रोकती है।। फिर भी यदि आंधी तूफान चलता हो और यात्रा भी करना आवश्यक हो, तो उससे संघर्ष करना ही होता है। कोई भी युद्ध किए बिना, संघर्ष किए बिना जीवन में आगे नहीं बढ़ सकता। पुरुषार्थ करना होगा, तपस्या करनी होगी।। जब तक वृक्ष के पुराने पत्ते नहीं झड़ेंगे, तब तक नए नहीं आएंगे। इसी तरह से जब तक जीवन में पुराने दोष नहीं हटेंगे, तब तक नए गुण जीवन में नहीं आएंगे, और उन्नति नहीं हो पाएगी।। इसलिए अपने दोषों से संघर्ष करें, उन से युद्ध करें, उन्हें दूर करें और उत्तम गुणों की प्राप्ति के लिए तपस्या करें। तभी जीवन सफल होगा।। सरल रहो ताकि सब आप से मिल सकें। तरल रहो ताकि आप सबमे घुल सको। आप स्वयं विचार करें।।

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