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वेदों में कृषि विज्ञान (Agriculture साइंस इन इंडिया ) का महत्व |

विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में कृषि का गौरवपूर्ण उल्लेख मिलता है ।
अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित्‌ कृषस्व वित्ते रमस्व बहुमन्यमानः । ऋग्वेद-३४-१३।
अर्थात जुआ मत खेलो, कृषि करो और सम्मान के साथ धन पाओ
कृषि सम्पत्ति और मेधा प्रदान करती है और कृषि ही मानव जीवन का आधार है ।
मानव सभ्यता की ओर बढ़ा, तभी से कृषि प्रारंभ हुई और भारत में कृषि एक विज्ञान के रूप में विकसित हुई । इसके इतिहास का संक्षिप्त वर्णन A concise History of Science in India नामक पुस्तक में किया गया है ।
वैदिक काल में ही बीज वपन, कटाई आदि क्रियाएं , हल, हँसिया, चलनी आदि उपकरण तथा गेहूँ, धान, जौ आदि अनेक धान्यों का उत्पादन होता था । चक्रीय परती के द्वारा मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने की परम्परा के निर्माण का श्रेय उस समय के कृषकों को जाता है । यूरोपीय वनस्पति विज्ञान के जनक रोम्सबर्ग के अनुसार इस पद्धति को पश्चिम ने बाद के दिनों में अपनाया ।
मौर्य राजाओं के काल में कौटिल्य अर्थशास्त्र में कृषि, कृषि उत्पाद आदि को बढ़ावा देने हेतु कृषि अधिकारी की नियुक्ति का उल्लेख मिलता है ।
कृषि हेतु सिचाई की व्यवस्था विकसित की गयी । यूनानी यात्री मेगस्थनीज लिखता है, मुख्य नाले और उसकी शाखाओं में जल के समान वितरण को निश्चित करने के लिए व नदी और कुंओं के निरीक्षण के लिए राजा द्वारा अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी ।
कृषि के संदर्भ में नारदस्मृति, विष्णु धर्मोत्तर, अग्नि पुराण आदि में उल्लेख मिलता है । कृषिपरायण कृषि के संदर्भ में एक संदर्भ ग्रंथ बन गया । इस ग्रंथ में कुछ विशेष बातें कृषि के संदर्भ में कही गयी हैं ।
जोताई – इसमें कितने क्षेत्र की जोताई करना, उस हेतु हल, उसके अंग आदि का वर्णन है । इसी प्रकार जोतने वाले बैल, उनका रंग, प्रकृति तथा कृषि कार्य करवाते समय उने प्रति मानवीय दृष्टिकोण रखने का वर्णन इस ग्रंथ में मिलता है ।
वर्षा के बारे में भविष्यवाणी – प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण, ग्रहों की गति तथा प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों का गहरा अभ्यास प्राचीन काल के व्यक्तियों ने किया था और उस आधार पर वे भविष्यवाणियाँ करते थे ।
जिस वर्ष सूर्य अधिपति होगा, उस वर्ष में वर्षा कम होगी और मानवों को कष्ट सहना होगा । जिस वर्ष चन्द्रमा अधिपति होगा, उस वर्ष अच्छी वर्षा और वनस्पति की वृद्धि होगी । लोग स्वस्थ रहेंगे । उसी प्रकार बुध, बृहस्पति और शुक्र वर्षाधिपति होने पर भी स्थिति ठीक रहेगी । परन्तु जिस वर्ष शनि वर्षाधिपति होगा, हर जगह विपत्ति होगी ।
जोतने का समय – नक्षत्र तथा काल के निरीक्षण के आधार पर जोताई के लिए कौन सा समय उपयुक्त रहेगा, उसका निर्धारण उन्होंने किया ।
बीजवपन – उत्तम बीज संग्रह हेतु पराशर ऋषि गर्ग ऋषि का मत प्रकट करते हैं कि गीज को माघ ( जनवरी – फरवरी ) या फाल्गुन ( फरवरी मार्च ) माह में संग्रहीता करके धूप में सुखाना चाहिए तथा तथा उन बीजों को बाद में अच्छी जगह सुरक्षित रखना चाहिए ।
वर्षा मापन – ” कृषि पाराशर ” में वर्षा को मापने का वर्णन भी मिलता है अथ जलाढक निर्णयः
शतयोजनविस्तीर्णं त्रिंशद्योजनमुच्छि्रतम्‌ ।
अढकस्य भवेन्मानं मुनिभिः परिकीर्तितक्‌ ॥
अर्थात – पूर्व में ऋषियों ने वर्षा को मापने का पैमाना तय किया है । अढकक याने सौ योजन विस्तीर्ण तथा ३०० योजन ऊँचाई में वर्षा के पानी की मात्रा ।
योजन अर्थात्‌‌ – १ अंगुली की चौड़ाई
१ द्रोण = ४ अढक = ६.४ से. मी.
आजकल वर्षा मापन भी इतना ही आता है ।
कौटिलय के अर्थशास्त्र में द्रोण आधार पर वर्षा मापने का उल्लेख तथा देश में कहाँ कहाँ कितनी वर्षा होती है, इसका उल्लेख भी मिलता है ।
उपरोपण ( ग्राफ्टिंग ) – वराहमिहिर अपनी वृहत्‌ संहिता में उपरोपण की दो विधियाँ बताते हैं ।
( १ ) जड़ से पेड़ में काटना और दूसरे को तने ( trunk ) से काटकर सन्निविष्ट ( insert ) करना ।
( २ ) Inserting the cutting of tree into the stem of another जहाँ दोनों जुडे़गे वहाँ मिट्टी और गोबर से उनको बंदकर आच्छादित करना ।
इसी के वराहमिहिर किस मौसम में किस प्रकार के पौधे की उपरोपण करना चाहिए, इसका भी उल्लेख करते हैं । वे कहते हैं ।
इसी के वराहमिहिर किस मौसम में किस प्रकार के पौधे की उपरोपण करना चाहिए, इसका भी उल्लेख करते हैं । वे कहते हैं ।
शिशिर ऋतु ( दिसम्बर – जनवरी ) ——— जिनकी शाखांए बहुत हैं उनका उपरोपण करना चाहिए
शरद ऋतु ( अगस्त – सितम्बर )
वराहमिहिर किस मौसम में कितना पानी प्रतिरोपण किए पौधों को देना चाहिए, इसका उल्लेख करते हुए कहते हैं कि ” गरमी में प्रतिरोपण किए गए पौधे को प्रतिदिन सुबह तथा शाम को पानी दिया जाए । शीत ऋतु में एक दिन छोड़कर तथा वर्षा काम में जब जब मिट्टी सूखी हो । “इस प्रकार हम देखते हैं कि प्राचीन काल से भारत में कृषि एक विज्ञान के रूप में विकसित हुआ । जिसके कारण हजारों वर्ष बीतने के बाद भी हमारे यहाँ भूमि की उर्वरा शक्ति अक्षुण्ण बनी रही, जबकि कुछ दशाब्दियों में ही अमेरिका में लाखों हेक्टेयर भूमि बंजर हो गयी है ।
भारतीय कृषि पद्धति की विशेषता एवं इसके उपकरणों का जो प्रशंसापूर्ण उल्लेख अंगेजों द्वारा किया गया , उसका उद्धरण धर्मपाल जी की पुस्तक ” इण्डियन साइंस एण्ड टैक्नोलॉजी उन दी एटीन्थ सेन्चुरी ” मे दिया गया है । उस समय भारत कृषि के सुविकसित साधनों में दुनिया में अग्रणी था । कृषि क्षेत्र में पंक्ति में बोने के तरीके को इस क्षेत्र में बहुत उपयोगी और उपयोगी अनुसंधान माना जाता है । आस्ट्रिया में पहले पहल इसका प्रयोग सन्‌ १६६२ में हुआ था तथा इंग्लैण्ड में १७३० में हुआ हालाकि इसका व्यापक प्रचार प्रसार वहाँ इसके ५० वर्ष बाद हो पाया । पर मेजर जनरल अलेक्झेंडर वाकर के अनुसार पंक्ति में बोने का प्रयोग भारत में अत्यंत प्राचीन काल से ही होता आया है । थामॅमस हाल्काट ने १७९७ में इंग्लैण्ड के कृषि बोर्ड को लिखे एक पत्र में बताया कि, भारत इसका प्रयोग प्राचीन काल से ही होता रहा है । उसने बोर्ड को पंक्तियुक्त हलों के तीन सेट लन्दन भेजे ताकि इन हलों की नकल अंग्रेज कर सकें, क्योंकि ये अंग्रेजी हलों की अपेक्षा अधिक उपयोंगी और सस्ते थें ।
सर वाकर लिखते हैं ” भारत में शायद विश्व के किसी भी देश से अधिक किस्मों का अनाज बोया जाता है और तरत – तरह की पौष्टिक जड़ों वाली फसलों का भी यहाँ प्रचलन है । वाकर की समझ में नहीं आया कि हम भारत को क्या दे सकते हैं क्योंकि जो खाद्यान्न हमारे यहाँ हैं, वे तो यहाँ हैं ही, और भी अनेक प्रकार के अन्न यहाँ हैं । “

ऐसा नहीं है वेदों में सिर्फ पूजा पाठ ही था ……………………….वेद पढ़िए और जानिये भारत के स्वर्णिम अतीत और विज्ञान को |
[पूजा आदि कर्म में आसन का महत्त्व
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हमारे महर्षियों के अनुसार जिस स्थान पर प्रभु को बैठाया जाता है, उसे दर्भासन कहते हैं

और जिस पर स्वयं साधक बैठता है, उसे आसन कहते हैं।

योगियों की भाषा में यह शरीर भी आसन है और प्रभु के भजन में इसे समर्पित करना सबसे बड़ी पूजा है।

जैसा देव वैसा भेष वाली बात भक्त को अपने इष्ट के समीप पहुंचा देती है ।

कभी जमीन पर बैठकर पूजा नहीं करनी चाहिए, ऐसा करने से पूजा का पुण्य भूमि को चला जाता है।

नंगे पैर पूजा करना भी उचित नहीं है। हो सके तो पूजा का आसन व वस्त्र अलग रखने चाहिए जो शुद्ध रहे।

लकड़ी की चैकी, घास फूस से बनी चटाई, पत्तों से बने आसन पर बैठकर भक्त को मानसिक अस्थिरता, बुद्धि विक्षेप, चित्त विभ्रम, उच्चाटन, रोग शोक आदि उत्पन्न करते हैं।

अपना आसन, माला आदि किसी को नहीं देने चाहिए, इससे पुण्य क्षय हो जाता है।

*निम्न आसनों का विशेष महत्व है।
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कंबल का आसन:👉 कंबल के आसन पर बैठकर पूजा करना सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। लाल रंग का कंबल मां भगवती, लक्ष्मी, हनुमानजी आदि की पूजा के लिए तो सर्वोत्तम माना जाता है।

आसन हमेशा चैकोर होना चाहिए, कंबल के आसन के अभाव में कपड़े का या रेशमी आसन चल सकता है।

कुश का आसन:👉 योगियों के लिए यह आसन सर्वश्रेष्ठ है। यह कुश नामक घास से बनाया जाता है, जो भगवान के शरीर से उत्पन्न हुई है।

इस पर बैठकर पूजा करने से सर्व सिद्धि मिलती है।

विशेषतः पिंड श्राद्ध इत्यादि के कार्यों में कुश का आसन सर्वश्रेष्ठ माना गया है,

स्त्रियों को कुश का आसन प्रयोग में नहीं लाना चाहिए, इससे अनिष्ट हो सकता है।

किसी भी मंत्र को सिद्ध करने में कुश का आसन सबसे अधिक प्रभावी है।

मृगचर्म आसन:👉 यह ब्रह्मचर्य, ज्ञान, वैराग्य, सिद्धि, शांति एवं मोक्ष प्रदान करने वाला सर्वश्रेष्ठ आसन है।

इस पर बैठकर पूजा करने से सारी इंद्रियां संयमित रहती हैं। कीड़े मकोड़ों, रक्त विकार, वायु-पित्त विकार आदि से साधक की रक्षा करता है।
यह शारीरिक ऊर्जा भी प्रदान करता है।

व्याघ्र चर्म आसन:👉 इस आसन का प्रयोग बड़े-बड़े यति, योगी तथा साधु-महात्मा एवं स्वयं भगवान शंकर करते हैं।

यह आसन सात्विक गुण, धन-वैभव, भू-संपदा, पद-प्रतिष्ठा आदि प्रदान करता है।

आसन पर बैठने से पूर्व आसन का पूजन करना चाहिए या एक एक चम्मच जल एवं एक फूल आसन के नीचे अवश्य चढ़ाना चाहिए।

आसन देवता से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि मैं जब तक आपके ऊपर बैठकर पूजा करूं तब तक आप मेरी रक्षा करें तथा मुझे सिद्धि प्रदान करें। ( पूजा में आसन विनियोग का विशेष महत्व है)। पूजा के बाद अपने आसन को मोड़कर रख देना चाहिए,

किसी को प्रयोग के लिए नहीं देना चाहिए।
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[🌹व्रत या उपवास कितने प्रकार के होते हैं??? 🌹💫

व्रत रखने के नियम दुनिया को हिंदू धर्म की देन है। व्रत रखना एक पवित्र कर्म है और यदि इसे नियम पूर्वक नहीं किया जाता है तो न तो इसका कोई महत्व है और न ही लाभ, राजा भोज के राजमार्तण्ड में 24 व्रतों का उल्लेख है।

हेमादि में 700 व्रतों के नाम बताए गए हैं। गोपीनाथ कविराज ने 1622 व्रतों का उल्लेख अपने व्रतकोश में किया है। व्रतों के प्रकार तो मूलत: तीन है:- 1. नित्य, 2. नैमित्तिक और 3. काम्य।

1.नित्य व्रत उसे कहते हैं जिसमें ईश्वर भक्ति या आचरणों पर बल दिया जाता है, जैसे सत्य बोलना, पवित्र रहना, इंद्रियों का निग्रह करना, क्रोध न करना, अश्लील भाषण न करना और परनिंदा न करना, प्रतिदिन ईश्वर भक्ति का संकल्प लेना आदि नित्य व्रत हैं। इनका पालन नहीं करते से मानव दोषी माना जाता है।

2.नैमिक्तिक व्रत उसे कहते हैं जिसमें किसी प्रकार के पाप हो जाने या दुखों से छुटकारा पाने का विधान होता है। अन्य किसी प्रकार के निमित्त के उपस्थित होने पर चांद्रायण प्रभृति, तिथि विशेष में जो ऐसे व्रत किए जाते हैं वे नैमिक्तिक व्रत हैं।

3.काम्य व्रत किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाते हैं, जैसे पुत्र प्राप्ति के लिए, धन- समृद्धि के लिए या अन्य सुखों की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले व्रत काम्य व्रत हैं।

व्रतों का वार्षिक चक्र :-
1.साप्ताहिक व्रत : सप्ताह में एक दिन व्रत रखना चाहिए। यह सबसे उत्तम है।

2.पाक्षिक व्रत : 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। प्रत्येक पक्ष में चतुर्थी, एकादशी, त्रयोदशी, अमावस्या और पूर्णिमा के व्रत महतवपूर्ण होते हैं। उक्त में से किसी भी एक व्रत को करना चाहिए।

3.त्रैमासिक : वैसे त्रैमासिक व्रतों में प्रमुख है नवरात्रि के व्रत। हिंदू माह अनुसार पौष, चैत्र, आषाढ और अश्विन मान में नवरात्रि आती है। उक्त प्रत्येक माह की प्रतिपदा यानी एकम् से नवमी तक का समय नवरात्रि का होता है। इन नौ दिनों तक व्रत और उपवास रखने से सभी तरह के क्लेश समाप्त हो जाते हैं।

4.छह मासिक व्रत : चैत्र माह की नवरात्रि को बड़ी नवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी नवरात्रि कहते हैं। उक्त दोंनों के बीच छह माह का अंतर होता है। इसके अलावा

5.वार्षिक व्रत : वार्षिक व्रतों में पूरे श्रावण मास में व्रत रखने का विधान है। इसके अलवा जो लोग चतुर्मास करते हैं उन्हें जिंदगी में किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं होता है। इससे यह सिद्ध हुआ की व्रतों में ‘श्रावण माह’ महत्वपूर्ण होता है। सोमवार नहीं पूरे श्रावण माह में व्रत रखने से हर तरह के शारीरिक और मानसिक कलेश मिट जाते हैं।

उपवास के प्रकार:- 1.प्रात: उपवास, 2.अद्धोपवास, 3.एकाहारोपवास, 4.रसोपवास, 5.फलोपवास, 6.दुग्धोपवास, 7.तक्रोपवास, 8.पूर्णोपवास, 9.साप्ताहिक उपवास, 10.लघु उपवास, 11.कठोर उपवास, 12.टूटे उपवास, 13.दीर्घ उपवास। बताए गए हैं, लेकिन हम यहां वर्ष में जो व्रत होते हैं उसके बारे में बता रहे हैं।

1.प्रात: उपवास- इस उपवास में सिर्फ सुबह का नाश्ता नहीं करना होता है और पूरे दिन और रात में सिर्फ 2 बार ही भोजन करना होता है।

2.अद्धोपवास- इस उपवास को शाम का उपवास भी कहा जाता है और इस उपवास में सिर्फ पूरे दिन में एक ही बार भोजन करना होता है। इस उपवास के दौरान रात का भोजन नहीं खाया जाता।

3.एकाहारोपवास- एकाहारोपवास में एक समय के भोजन में सिर्फ एक ही चीज खाई जाती है, जैसे सुबह के समय अगर रोटी खाई जाए तो शाम को सिर्फ सब्जी खाई जाती है। दूसरे दिन सुबह को एक तरह का कोई फल और शाम को सिर्फ दूध आदि।

4.रसोपवास- इस उपवास में अन्न तथा फल जैसे ज्यादा भारी पदार्थ नहीं खाए जाते, सिर्फ रसदार फलों के रस अथवा साग-सब्जियों के जूस पर ही रहा जाता है। दूध पीना भी मना होता है, क्योंकि दूध की गणना भी ठोस पदार्थों में की जा सकती है।

5.फलोपवास- कुछ दिनों तक सिर्फ रसदार फलों या भाजी आदि पर रहना फलोपवास कहलाता है। अगर फल बिलकुल ही अनुकूल न पड़ते हो तो सिर्फ पकी हुई साग-सब्जियां खानी चाहिए।

6.दुग्धोपवास- दुग्धोपवास को ‘दुग्ध कल्प’ के नाम से भी जाना जाता है। इस उपवास में सिर्फ कुछ दिनों तक दिन में 4-5 बार सिर्फ दूध ही पीना होता है।

7.तक्रोपवास- तक्रोपवास को ‘मठाकल्प’ भी कहा जाता है। इस उपवास में जो मठा लिया जाए, उसमें घी कम होना चाहिए और वो खट्टा भी कम ही होना चाहिए। इस उपवास को कम से कम 2 महीने तक आराम से किया जा सकता है।

8.पूर्णोपवास- बिलकुल साफ-सुथरे ताजे पानी के अलावा किसी और चीज को बिलकुल न खाना पूर्णोपवास कहलाता है। इस उपवास में उपवास से संबंधित बहुत सारे नियमों का पालन करना होता है।

9.साप्ताहिक उपवास- पूरे सप्ताह में सिर्फ एक पूर्णोपवास नियम से करना साप्ताहिक उपवास कहलाता है।

10.लघु उपवास- 3 से लेकर 7 दिनों तक के पूर्णोपवास को लघु उपवास कहते हैं।

11.कठोर उपवास- जिन लोगों को बहुत भयानक रोग होते हैं यह उपवास उनके लिए बहुत लाभकारी होता है। इस उपवास में पूर्णोपवास के सारे नियमों को सख्ती से निभाना पड़ता है।

12.टूटे उपवास- इस उपवास में 2 से 7 दिनों तक पूर्णोपवास करने के बाद कुछ दिनों तक हल्के प्राकृतिक भोजन पर रहकर दोबारा उतने ही दिनों का उपवास करना होता है। उपवास रखने का और हल्का भोजन करने का यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक कि इस उपवास को करने का मकसद पूरा न हो जाए।

13.दीर्घ उपवास- दीर्घ उपवास में पूर्णोपवास बहुत दिनों तक करना होता है जिसके लिए कोई निश्चित समय पहले से ही निर्धारित नहीं होता। इसमें 21 से लेकर 50-60 दिन भी लग सकते हैं। अक्सर यह उपवास तभी तोड़ा जाता है, जब स्वाभाविक भूख लगने लगती है अथवा शरीर के सारे जहरीले पदार्थ पचने के बाद जब शरीर के जरूरी अवयवों के पचने की नौबत आ जाने की संभावना हो जाती है।

Jay Shri Krishna 🙏🏻💫

शुभ-अशुभ राहु के लक्षण

ज्योतिष के जनक महर्षि पराशर के अनुसार राहु ग्रह को पितामह (दादा), समाज एवं जाती से अलग लोग (विद्रोही भी), सर्प, सामाजिक जहर का फैलाना, क्रानिक बीमारियां, भय, विधवा, दुर्वचन, तीर्थ यात्रायें, निष्ठुर वाणी, विदेश में जीवन, त्वचा पर दाग, सरीसृप, महामारी, किसी महिला से अनैतिक संबन्ध, नानी, व्यर्थ के तर्क, भडकाऊ भाषण, बनावटीपन, दर्द और सूजन, डूबना, अंधेरा, दु:ख पहुंचाने वाले शब्द, निम्न जाति, दुष्ट स्त्री, जुआरी, विधर्मी, चालाकी, संक्रीण सोच, पीठ पीछे बुराई करने वाले, पाखण्डी, बुरी आदतों के आदी, जहाज के साथ जलमग्न होना, डूबना, रोगी स्त्री के साथ आनन्द लेना, अंगच्छेदन होना, डूबना, पथरी, कोढ, बल, व्यय,आत्मसम्मान, शत्रु, मिलावट दुर्घटना, नितम्ब, देश निकाला, विकलांग, खोजकर्ता, शराब, झगडा, गैरकानूनी, तरकीब से सामान देश से अन्दर बाहर ले जाना, जासूसी करना, आत्महत्या, विषैला, विधवा, पहलवान, शिकारी, दासता, शीघ्र उत्तेजित होने इत्यादि का कारक होता है।

कौन कौन से दोष आ जाते हैं, राहु खराब होने पर :-

जैसे की कहा जाता है, पीपल की छाया में सोने वाले को किसी भी प्रकार का रोग नहीं होता परंतु यदि बबूल की छाया में सोते रहें तो श्वास रोग या चर्म रोग हो सकता है।

इसी प्रकार ग्रहों की छाया का भी हमारे जीवन पर प्रभाव पढ़ता है। नवग्रहों में राहु ग्रह हमारी बुद्धि भ्रमित करता है, लेकिन जो चतुराई हमारी बुद्धि में पैदा होती है, उसका कारक भी राहु ही है। ज्योतिष शास्त्र में राहु के दोषपूर्ण या खराब होने पर जातक चतुराई से घोटाले तो करता है, परंतु एक दिन अपने ही बुने जाल में बुरी तरह फंस जाता है।

क्यों होता है राहु खराब ? :-

1 :- यदि कोई व्यक्ति अपने गुरु या फिर अपने धर्म का अपमान करता है, तो उस व्यक्ति का राहू ग्रह अवश्य बुरा फल देता है।

2 :- यदि कोई व्यक्ति शराब का सेवन नियमित करता है, या फिर पराई स्त्री के साथ सम्बन्ध बनाने की इच्छा रखता है, तो उसका राहू ग्रह अवश्य बुरा फल देता है।

3 :- यदि कोई व्यक्ति ब्याज वाले पैसों का प्रयोग घर में करता है तो, उस व्यक्ति का राहू ग्रह अवश्य बुरा फल देता है।

4 :- यदि कोई व्यक्ति चतुराई से किसी को धोखा देता है, और झूठ बोलने की आदत को नहीं छोड़ता तो उस व्यक्ति का राहू ग्रह बुरा फल देता है।

5 :- यदि कोई व्यक्ति हमेशा तामसिक भोजन करता है तो, उस व्यक्ति का राहू ग्रह बुरा फल देता है।

6 :- यदि कोई व्यक्ति खाना हमेशा घर से बाहर खाता है, या बाहर का खाना हमेशा खाता है तो, उस व्यक्ति का राहू ग्रह बुरा फल देने लगता है।

खराब राहु को कैसे पहचानेगे ? :-

1 :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो उसके ससुर, साले या साली से झगडा बढ़ने लगेगा।

2 :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो उसके सोचने की ताकत कम हो जायेगी।

3 :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो उसके जीवन में शत्रु बढ़ जायेंगे, और सोचने की क्षमता कम होने लगती है।

4 :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो उसके साथ दुर्घटना, पुलिस केस, या पत्नी के साथ लड़ाई झगडे में बढ़ोत्तरी हो जायेगी।

5 :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो वो व्यक्ति छोटी छोटी बातों पर गुस्सा होने लगता है, और लोगों के साथ सही तालमेल नहीं बिठा पाता है।

6 :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो उस व्यक्ति का एक तरह से दिमाग खराब होने लगता है, और उस व्यक्ति के सर में फालतू में छोटी छोटी चोट लगने लगती है या चक्कर आते हैं।

7 :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो वह व्यक्ति अधिक मदिरापान या फिर सम्भोग/हस्तमैथुन की तरफ भागने लगता है।

8 :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो व्यक्ति नीच हरकते करने लगता है, और निर्दयी हो जाता है।

राहु ग्रह खराब होने से होने वाले रोग :-

1 :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो सबसे पहले उसको गैस से सम्बन्धित शिकायत बढ़ने लगती है।

2 :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो उसके बाल झड़ने लगते हैं, तथा बवासीर से सम्बन्धित भी समस्या होने लगती है।

3 :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो वो जातक पागलों की तरह व्यवहार करेगा और लगातार मानसिक तनाव में रहेगा।

4 :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो उसके नाखून अपने आप ही टूटने लगते हैं और व्यक्ति के सर में पीड़ा या दर्द बनी रहती है।

5 :- किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो उस व्यक्ति को अचानक पता चलेगा की मुझे कोई बीमारी है और उस पर पैसा भी खूब खर्चा होगा तथा व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।

राहु के शुभ होने पर
व्यक्ति दौलतमंद होगा। कल्पना शक्ति तेज होगी। रहस्यमय या धार्मिक बातों में रुचि लेगा। राहु के अच्छा होने से व्यक्ति में श्रेष्ठ साहित्यकार, दार्शनिक, वैज्ञानिक या फिर रहस्यमय विद्याओं के गुणों का विकास होता है। इसका दूसरा पक्ष यह कि इसके अच्छा होने से राजयोग भी फलित हो सकता है। आमतौर पर पुलिस या प्रशासन में इसके लोग ज्यादा होते हैं।

राहु को प्रसन्न करने के उपाय

राहु बीज मन्त्र: ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम: (108 बार)

दुर्गा चालीसा का पाठ करें.

पक्षियों को प्रतिदिन बाजरा खिलाएं.

एक नारियल ग्यारह साबुत बादाम काले वस्त्र में बांधकर बहते जल में प्रवाहित करें.

शिवलिंग पर जलाभिषेक करें.

अपने घर के नैऋत्य कोण में पीले रंग के फूल अवश्य लगाएं.

तामसिक आहार व मदिरापान बिल्कुल न करें.

अपने पास सफेद चन्दन अवश्य रखना चाहिए. सफेद चन्दन की माला भी धारण की जा सकती है. प्रतिदिन

सुबह चन्दन का टीका भी लगाना चाहिए. अगर हो सके तो नहाने के पानी में चन्दन का इत्र डाल कर नहाएं.

शिव साहित्य जैसे- शिवपुराण आदि का पाठ करना चाहिए.

शिव साहित्य जैसे- शिवपुराण आदि का पाठ करना चाहिए.

हाथी को हरे पत्ते, नारियल गोले या गुड़ खिलाएं.
[🌷🌷 ॐ ह्लीं पीताम्बरायै नमः🌷🌷
〰〰〰〰🌹🌹〰〰〰〰
श्री दुर्गा सप्तशती मैं छिपे महामृत्युंजय मंत्र के पाठ से इस गुप्त नवरात्रि पर अपने जीवन को धन्य बनाएं
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शिवजी के अतिरिक्त अन्य प्रमुख देवी देवताओं के भी ऐसे मंत्र और स्त्रोत है जिनका मृत्यु निवारण, रोग एवं संकट निवारण के लिए प्रयोग करने का विधान है। इन सभी मंत्रों को महामृत्युंजय मंत्र कहा जाता है दुर्गा सप्तशती चौथे अध्याय के श्लोक नंबर 24 से लेकर 28 तक यह सभी चार श्लोक महामृत्युंजय मंत्र कहे गए हैं।
इन मंत्रों का प्रभाव बहुत ही तीव्र और जल्द ही परिणाम देने वाला होता है। इन मंत्रों के परिणाम का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब लवणासुर के आतंक से महर्षि वाल्मीकि ने लव कुश की रक्षा करने के लिए अपने आश्रम को इन्हीं 4 मंत्रों से कीलित कर रखा था जिससे उस राक्षस के आतंक का कोई भी प्रभाव वाल्मीकि आश्रम पर नहीं पड़ा। कोई भी राक्षस आश्रम में प्रवेश नहीं कर सका। यह चारों महामृत्युंजय मंत्र इस प्रकार हैं
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शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि: स्वनेन च।।१
प्राच्यां रक्ष प्रतीच्यां च चण्डिके रक्ष दक्षिणे
भ्रामणेनात्मशूलस्य उत्तरस्यां तथेश्वरि।।२
सौम्यानि यानि रूपाणि त्रैलोक्ये विचरन्ति ते
यानि चात्यर्थघोराणि तै रक्षास्मांस्तथा भुवम्।।३
खड्गशूलगदादीन यानि चास्त्राणि तेऽम्बिके
करपल्लवसंगीन तैरस्मान् रक्ष सर्वत:।।४
यह चारों वही मंत्र है जिनके द्वारा सप्तशती का न्यास किया जाता है। इन्हीं के द्वारा जल और पीली सरसों को अभिमंत्रित करके रोगी के रोग का उपचार किया जाता है। जो साधक रात में साधना करते हैं, अधिकांश इन्हीं मंत्रों के द्वारा अपने चारों तरफ सिंदूर, रोली के द्वारा क्षेत्ररक्षण घेरा बना लेते हैं जिसके अंदर कोई भी बाहरी शत्रु प्रवेश नहीं कर सकता और साधक की साधना सफलता पूर्वक पूर्ण हो जाती है।
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🌷🌷जय मां पीताम्बरा🌷🌷
[नवग्रह , राशि एवं नक्षत्रों के प्रतिनिधि आराध्य वृक्ष होते है निम्नलिखित तरीके से इन वृक्षों द्वारा हमें सकारत्मक ऊर्जा एवं शुभ ऊर्जा मिलती है एवं वास्तु दोस भी मिट जाते हैं ।
1)इन वनस्पतियों के रोपण द्वारा ज्यादा जानकारी के लिए देखें , वृहद वास्तु माला ।
2)इन वृक्षों के पूजन द्वारा , देखें महर्षि पराशर द्वारा रचित वृक्ष आयुर्वेद ।
3)प्रतिनिधि , आराध्य वृक्षों कि सेवा द्वारा हमें हमेशा इन वृक्षों कि देखरेख और जल देकर सेवा करना चाहिए ।
4)इन वृक्षों से मित्रता करना , जैसे आदिवासी आराध्य वृक्ष को मित्र बनाकर जीवन भर उनकी देखरेख करते हैं ।
अर्थात हमें इन वनस्पतियों कि जो ग्रहो राशियों और नक्षत्रों का प्रतिनिधत्व करती हैं इनका रोपण , पूजन , सेवा और मित्रता करने से ग्रह प्रसन्न होकर मनोवांछित फल देते हैं ।
बरसात का मौसम हैं अपनी बगिया मे नक्षत्र वाटिका जरूर बनाए , इन पौधों को गमले मे कदापि न रोपे न ही बोनजाई बनाए ।
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27 नक्षत्रो के लिए निर्धारित पेड़-पौधे

अश्विनी – कोचिला,
भरनी – आंवला
कृतका – गुल्लड़
रोहिणी – जामुन
मृगशिरा – खैर
आद्रा – शीशम
पुनर्वसु – बांस
पुष्य – पीपल
अश्लेषा – नागकेसर
मघा – बट
पूर्वा फाल्गुन – पलास
उत्तरा फाल्गुन – पाकड़
हस्त – रीठा
चित्रा – बेल
स्वाती- अजरुन
विशाखा – कटैया
अनुराधा – भालसरी
ज्योष्ठा – चीर
मूला – शाल
पूर्वाषाढ़ – अशोक
उत्तराषाढ़ – कटहल
श्रवण – अकौन
धनिष्ठा – शमी
शतभिषा – कदम्ब
पूर्व भाद्र – आम
उत्तरभाद्र – नीम
रेवती – महुआ
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शनि कष्ट निवारण हेतु मंत्र, पूजा, दान विधि |

ज्योतिष में शनि ग्रह मकर और कुम्भ का स्वामी है। मकर पृथ्वी तत्त्व तथा कुम्भ वायु तत्त्व राशि है। मकर स्त्री वर्ण और कुम्भ पुरुष वर्ण राशि है। शनि ग्रह तुला में उच्च का तथा मेष में नीच का होता है। शनि का शुक्र और बुध के साथ मित्रता का सम्बन्ध है वही गुरु के प्रति शनि उदासीन है। शनि सूर्य को पूर्ण शत्रु ग्रह मानता है परन्तु सूर्य शनि को शत्रु नही मानता है।

जन्मकुंडली में शनि की महत्ता |

वस्तुतः शनिदेव कालचक्र के अधिपति है। इनके प्रभाव से प्रत्येक प्राणी नए जन्म के साथ एक नए स्वरूप में जन्म लेकर अपना विकास करता रहता है। इनका मृत्यु से साक्षात् सम्बन्ध है। इनके अधिदेवता यम हैं। इनका काम प्राणियों को मृत्यु प्रदान करना है। मृतक प्राणी की अन्तः शक्ति को उसके कर्मो के अनुसार यम उसे दूसरे जन्म के लिए तैयार करते है। इस प्रकार स्पष्ट है की जन्म-मरण के चक्र में शनि देव का कितना विशिष्ट योगदान है।

शनि के साथ ग्रहो की युति से अनेक प्रकार के योग उत्पन्न होते है। जैसे चन्द्रमा का शनि के साथ युति या प्रतियुति होती है तो सन्यास योग कहलाता है ऐसा जातक सांसारिक संबंधो के प्रति अनासक्त और परित्याग करने की भावना से युक्त होता है।

शनि कारक ग्रह है |

ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह कर्म, लोहा, खेती, चोरी, जेल, वृद्धावस्था, अध्यात्म, कंजूस, धार्मिक नेता, मशीन, कोयला, दुःख इत्यादि का कारक ग्रह है।

शनि और स्वास्थय |

शनि ग्रह स्वास्थ्य को अधिक रूप से प्रभावित करता है। यदि जन्मकुंडली में शनि ग्रह अशुभ स्थिति में है या अशुभ ग्रह के प्रभाव में है तो जातक हमेशा “मानसिक रूप से परेशान” रहता है। यदि शनि ग्रह पीड़ित है तो जातक जोड़ो के दर्द परेशान रहता है। अतः व्यक्ति को चाहिए की शनि से सम्बंधित मन्त्र, पूजा दान इत्यादि करे ऐसा करने से शारीरिक रोग से छुटकारा पा सकता है।

शनि ग्रह शुभ तथा अशुभ दोनों फल देता है |

शनि ग्रह यदि अनुकूल स्थिति में है और व्यक्ति ईमानदारी से काम किया है तो उसे मनोनुकूल फल की प्राप्ति होती है। जातक जो भी काम करता है उसमें उसे सफलता मिलती है। इस सफलता के कारण उसे समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा भी मिलता है। यदि शनि जन्मकुंडली में शुभ स्थिति में है तो यह जातक की सभी इच्छाओं को पूर्ण करने की शक्ति रखता है इसी शनि की दशा में इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनी थी परन्तु यदि यह अशुभ स्थिति में है तो वह कार्य के प्रति उदासीनता देता है परिणामस्वरूप व्यक्ति मानसिक पीड़ा का अनुभव करता है।

शनि कष्ट निवारण हेतु आराध्यदेव

शनि ग्रह के लिए आराध्य देव भैरवनाथ जी तथा ब्रह्मा जी है। अतः शनि की शांति हेतु हनुमानजी या भैरवजी की आराधना करनी चाहिए।

शनि कष्ट निवारण हेतु मंत्र |

जन्मकुंडली में शनि के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए शनि मंत्र का जप करने से अनेक प्रकार की समस्याओ से मुक्ति पा सकते है। यदि आप शनि के अशुभ प्रभाव से पीड़ित हैं या जन्मकुंडली में यह ग्रह यदि अशुभ स्थिति में है, तो आपको यह उपाय अवश्य करना चाहिए। शनि मन्त्र का जप शनिवार के दिन से आरम्भ करना चाहिए।

शनि कष्ट निवारण हेतु तांत्रिक मंत्र |

“ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनवे नमः”

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः

ॐ शं शनैश्चराय नमः

शनि कष्ट निवारण हेतु गायत्री मंत्र

ॐ भग भवाय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि तन्न: शनि प्रचोदयात।।

शनि कष्ट निवारण हेतु वैदिक मन्त्र

ॐ शन्नोदेवीरभीष्टये आपो भवन्तु पीतये श्योरिवश्रवन्तुनः। शनि मन्त्र की जप संख्या

जप संख्या – 23000

हवन –

तर्पण – 190

मार्जन – 19

ब्राह्मण भोजन – 2

शनि कष्ट निवारण हेतु दान |

शनि ग्रह के लिए निम्नलिखित वस्तुओं का दान देना चाहिए। दान से पूर्व शनि ग्रह की पूजा विधिवत करनी चाहिए उसके बाद नवग्रह की पूजा करे। शनि से संबंधित वस्तुओं का दान शनिवार के दिन संध्या काल में जरूरतमंद वृद्ध वा गरीब व्यक्ति को दान देना चाहिए यदि यह सम्भव नहीं हो सके तो किसी ब्राह्मण को दान दे।

काली तिल
काला वस्त्र
तेल
जूता
लोहा
भैस
उड़द
नीलमणि

शनि कष्ट निवारण हेतु तांत्रिक टोटका

“दशरथ कृत शनि स्तोत्र“ का नियमित पाठ करे।
अपने भोजन में से प्रथम ग्रास निकालकर काली गाय को खिलावें।
शिवजी के भैरवजी की रूप की अराधना करें।
हनुमानजी की पूजा आराधना करें।
पीपल के वृक्ष में प्रतिदिन अथवा शनिवार के दिन जल दे।
शनि ग्रह की शांति हेतु व्रत

शनि ग्रह की पीड़ा को शांत करने के लिए जातक को शनिवार का व्रत करना चाहिए। यह व्रत ज्येष्ठमास के शुक्लपक्ष में प्रथम शनिवार से आरम्भ करना चाहिए।

शनि कष्ट निवारण हेतु कौन सा रत्न धारण करें

यदि शनि ग्रह आपके कुंडली में शुभ है या योगकारी है या लग्न का स्वामी है और उसे बलप्रदान करना है तो वैसी स्थिति में जातक को लोहे या पञ्च धातु में नीलम रत्न “नीली रत्न” की अंगूठी धारण करनी चाहिए।

शनि की शांति के लिए किस रुद्राक्ष को धारण करे

जिस जातक का शनि कमजोर है वैसे व्यक्ति को “सात मुखी रुद्राक्ष” की पूजा तथा धारण करनी चाहिए । शनि ग्रह से अधिष्ठित सात मुखी रुद्राक्ष साक्षात कामदेव रूप में स्थित है इसके धारण करने से विपुल वैभव, भाग्योदय और उत्तम आरोग्य की प्राप्ति होती है।
[ 🌹🙏पुष्य नक्षत्र पर करे ये काम कार्य सिद्धि के साथ मिलेगी स्थायी समृद्धि🙏🌹

हिन्दू धर्म ग्रंथों में पुष्य नक्षत्र को सबसे शुभकारक नक्षत्र कहा जाता है। पुष्य का अर्थ होता है कि पोषण करने वाला और ऊर्जा-शक्ति प्रदान करने वाला नक्षत्र। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति हमेशा ही लोगों की भलाई व सेवा करने के लिए तत्पर रहते हैं। इस नक्षत्र में जन्मे जातक अपनी मेहनत और साहस के बल पर जिंदगी में तरक्की प्राप्त करते हैं। मान्यता है कि इस शुभ दिन पर संपत्ति और समृद्धि की देवी माँ लक्ष्मी का जन्म हुआ था। जब भी गुरुवार अथवा रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र आता है तो इस योग को क्रमशः गुरु पुष्य नक्षत्र और रवि पुष्य नक्षत्र के रूप में जाना जाता है। यह योग अक्षय तृतीया, धन तेरस, और दिवाली जैसी धार्मिक तिथियों की भांति ही शुभ होता है। कहते हैं कि इस दिन माँ लक्ष्मी घर में बसती है और वहां एक लंबे समय तक विराजती है इसीलिए, इस यह घड़ी पावन कहलाती है। पुष्य नक्षत्र का स्वभाव फलप्रदायी और ध्यान रखने वाला है। पुष्य नक्षत्र के दौरान किए जाने वाले कार्यों से जीवन में समृद्धि का आगमन होता है। इस दिन ग्रहों के अनुकूल स्थितियों में भ्रमण कर रहे होने से वे आपके जीवन में शांति, संपत्ति और स्थायी समृद्धि लेकर आते हैं। क्या वर्ष 2017 में आपके जीवन में समृद्घि रहेगी ? इसका जवाब जानने के लिए खरीदें 2017 विस्तृत वार्षिक रिपोर्ट।   

वैदिक ज्योतिष में महात्मय: 

हमारे वैदिक ज्योतिष में बारह राशियों में समाविष्ट होने वाले 27 नक्षत्रों में आठवें नक्षत्र ‘पुष्य’ को सबसे शुभ नक्षत्र कहते हैं। इसी नक्षत्र में गुरु उच्च का होता है। देवों के आशीर्वाद से पुरस्कृत इस नक्षत्र के देवता बृहस्पति और दशा स्वामी शनि हैं। कर्क राशि के अंतर्गत समाविष्ट होने से इस नक्षत्र के राशिधिपति चंद्र हैं। इस प्रकार से गुरु व चंद्र के शुभ संयोग इस नक्षत्र में होने से किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए पुष्य नक्षत्र श्रेष्ठ माना जाता है। क्या आपकी जन्मकुंडली में महत्वपूर्ण ग्रह अच्छी स्थिति में विराजमान है ? इसका जवाब जानने के लिए खरीदें जन्मपत्री रिपोर्ट। 

जीवन में समृद्धि का आगमनः

पुष्य नक्षत्र का दशा स्वामी शनि होने से इस नक्षत्र के दरमियान घर में आयी संपत्ति या समृद्धि चिरस्थायी रहती है। पुष्य नक्षत्र में किए गए कामों को हमेशा सफलता व सिद्धि मिलती है। इसलिए, विवाह को छोड़कर हर एक कार्यों के लिए पुष्य नक्षत्र को शुभ माना जाता है। दिवाली के दिनों में चोपड़ा खरीदने के लिए व्यापारीगण पुष्य नक्षत्र को विशेष महत्व देते हैं। इसके अलावा, वर्ष के दौरान भी पुष्य नक्षत्र में जब गुरु पुष्यामृत योग बन रहा हो तब सोने, आभूषण और रत्नों को खरीदने की प्रथा सदियों से प्रचलित है। 

पुष्य नक्षत्र में किए जाने वाले मांगलिक कार्य:

– इस मंगलकर्ता नक्षत्र के दौरान घर में आयी संपत्ति या समृद्धि चिरस्थायी रहती है। 

– ज्ञान और विद्याभ्यास के लिए पावन दिन।

– इस दिन आध्यात्मिक कार्य किए जा सकते हैं। 

– मंत्रों, यंत्रों, पूजा, जाप और अनुष्ठान हेतु शुभ दिन। 

– माँ लक्ष्मी की उपासना और श्री यंत्र की खरीदी करके जीवन में समृद्धि ला सकते हैं। 

– इस समय के दौरान किए गए तमाम धार्मिक और आर्थिक कार्यों से जातक की उन्नति होती है। 
: जगन्नाथ भगवान हिंदु धर्म के चार धामों में जगन्नाथ पुरी का बहुत महत्व है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु रामेश्वरम में स्नान, द्वारका में शयन, बद्रीनाथ में ध्यान और पुरी में भोजन करते हैं। भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए बिना चारों धामों की यात्रा अधूरी मानी जाती है। आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा प्रारंभ होती है। ऐसा कहा जाता है कि रथ यात्रा के जरिए भगवान मौसी के घर जनकपुर जाते हैं। रथ यात्रा में बलरामजी के रथ को ‘तालध्वज ’ कहते हैं। देवी सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदीघोष’ या ‘गरुड़ध्वज ’ कहा जाता है। यह सबसे पीछे रहता है। इन तीनों रथों की उंचाई, पहिए और आकृति अलग-अलग होती हैं।

ये है तीनों रथों की खासियत

  1. भगवान जगन्नाथ का रथ

इस रथ को गरुड़ध्वज, कपिध्वज या नंदीघोष कहा जाता है। इसमें 16 पहिए होते हैं व ऊंचाई साढ़े 13 मीटर तक होती है। लाल और पीले रंग का लगभग 1100 मीटर कपड़ा रथ को ढंकने के लिए उपयोग में लाया जाता है। इस रथ को बनाने में 832 लकड़ी के टुकड़ों का उपयोग किया जाता है।

इस रथ के सारथी का नाम दारुक है। इस रथ के रक्षक भगवान विष्णु के वाहन पक्षीराज गरुड़ और नृसिंह हैं। रथ पर लगे झंडे को यानी ध्वजा का नाम त्रिलोक्यमोहिनी है। रथ में जय और विजय नाम के दो द्वारपाल होते हैं।

इस रथ के घोड़ों का नाम शंख, बलाहक, श्वेत एवं हरिदाश्व है, जिनका रंग सफेद होता है। इसके अलावा भगवान जगन्नाथ के रथ की रक्षा के लिए शंख और सुदर्शन स्तंभ भी होता है। रथ को जिस रस्सी से खींचा जाता है, वह शंखचूड़ (एक प्रकार का नाग) नाम से जानी जाती है।

इस रथ में भगवान जगन्नाथ के अलावा अन्य सहायक देवता के रूप में वराह, गोवर्धन, कृष्ण, नृसिंह, राम, नारायण, त्रिविक्रम, हनुमान और रूद्र भी होते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ के साथ 8 ऋषि भी चलते हैं जिनके नाम नारद, देवल, व्यास, शुक, पाराशर, विशिष्ठ, विश्वामित्र और रूद्र हैं।

  1. बलराम जी का रथ

इस रथ का नाम तालध्वज है। यह रथ 13.2 मीटर ऊंचा व 14 पहियों का होता है, जो लाल, हरे रंग के कपड़े व लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है। इस रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं। इनके रथ की ध्वजा का नाम उनानी हैं।
इस रथ में काले रंग के 4 घोड़े लगे होते हैं। जिनका नाम त्रिब्रा, घोरा, दीर्घशर्मा व स्वर्णनवा है। इस रथ में नंद और सुनंद नाम के 2 द्वारपाल होते हैं। रथ की रक्षा के लिए हल और मुसल भी होते हैं। इनके रथ की शक्तियों के नाम ब्रह्म और शिवा है। इनके रथ को खिंचने के लिए वासुकी नाग के रुप में रस्सी होती है।
इस रथ में बलराम जी के अलावा अन्य सहायक देवता के रूप में गणेश, कार्तिकेय, सर्वमंगल, प्रलंबरी, हलायुध, मृत्युंजय, नटवर, मुक्तेश्वर और शेषदेव होते हैं। बलराम जी के रथ के साथ अंगिरा, पौलस्त्य, पुलह, असस्ति, मुद्गल, अत्रेय और कश्यप ऋषि भी चलते हैं।

  1. सुभद्रा जी का रथ

सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन है। इसके अन्य नाम दर्पदलन और पद्मध्वज भी है। 12.9 मीटर ऊंचे 12 पहिए के इस रथ में लाल, काले कपड़े के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों का इस्तेमाल होता है।
इस रथ के रक्षक जयदुर्गा और सारथी अर्जुन होते हैं। इस रथ की द्वारपाल गंगा और यमुना होती हैं। इनके रथ की ध्वजा का नाम नदंबिका है। इनके रथ की रक्षा के लिए पद्म और कल्हर के रुप में शस्त्र होते हैं।
इस रथ की शक्तियों के नाम चक्र और भुवनेश्वरी है। सुभद्रा जी के रथ में लाल रंग के 4 घोड़े होते हैं। जिनके नाम रोचिक, मोचिक, जिता व अपराजिता है। इस रथ को खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचुड़ा कहते हैं।
सुभद्रा जी के इनके अलावा रथ में सहायक देवियों के रुप में चंडी, चामुंडा, उग्रतारा, वनदुर्गा, वराही, श्यामा, काली, मंगला और विमला नाम की देवियां होती हैं। इनके रथ के साथ भृगु, सुपर्व, व्रज, श्रृंगी, ध्रुव और उलूक ऋषि चलते हैं।
[ जिन्दगी में मन लगाना है तो प्रभु में ही लगाना। अन्यथा तुम अपूर्ण और अधूरे ही जियोगे और अधूरे ही जाओगे। ऐसा नहीं है कि आदमी पूर्ण होकर नहीं जी सकता। जी सकता है पर वह पूर्णता प्राप्त तो परमात्मा के संग से ही होगी।
परमात्मा के संग होने से असंभव भी संभव हो जाता है और संग ना होने से संभव भी असंभव हो जाता है। अर्जुन अकेला था तो उससे युद्ध में खड़ा होना भी मुश्किल हो रहा था। जब श्री कृष्ण के संग होने का अहसास हुआ तो पूरा मैदान जीत लिया।
संग होने का अर्थ मात्र 24 घंटे राम-राम रटना या मंदिर में जाना नहीं है। यह तो सारी दुनिया कर ही रही है। यद्यपि यह भी आसान और सरल नहीं है। फिर भी राम राम जपने के साथ ही भीतर ह्रदय में यह भाव दृढ़ता के साथ बैठ जाना कि श्री हरि ही मेरे अपने हैं संसार में बस। अर्जुन की तरह सारथी बनालो श्रीकृष्ण को , अपने आप मंजिल तक ले जायेंगे।

जय श्री कृष्ण🙏🙏
[“”समय का चक्र””
यह संसार समय के चक्र से बँधा आगे चलता जा रहा है इस संसार में न कोई सदा रहा है और न ही रह सकता है हम से पहले अनेक लोग यहाँ से जा चुके हैं , और हमे भी एक दिन यह संसार छोड़कर चले जाना है , इन्सान का जीवन-काल अल्‍प है जो हमे कुछ समय के लिये ही खास उद्देश्य की पूति॔ के लिये ही मिला है , हमारे पास समय बहुत कम है और हम एक बार जन्म लेने के बाद कभी भी मृत्यु से भाग नही सकते और हमने तो अपने जीवनकाल का अधिक भाग पहले से ही गुजार चुके है हमारा जीवन तेजी से मौत की और बढ़ता जा रहा है और यह हमारा अनमोल मनुष्य-जन्म व्‍यथ॔ ही संसार के कामों में बिता जा रहा है, आज हम अपना कीमती समय संसार के कामों में गँवाकर अपने खुद के साथ बहुत बड़ा अन्‍याय कर रहे है….

जय श्री कृष्ण🙏🙏

गोचर में नक्षत्र फल ।

गोचर विचार करते समय जन्मराशि या जन्मलग्न से द्वादश भावों में सूर्यादि नौ ग्रहों के परिभ्रमण को दृष्टिग्रत रखकर ही फलादेश किया जाता है। यदि सूक्ष्म गोचर फलादेश कहना है तो जन्म नक्षत्र से गोचर वश ग्रहों का 27 नक्षत्रों में भ्रमण को भी ध्यान में रखना होगा।
जन्म नक्षत्र पर कोई ग्रह आने से वह नक्षत्र प्रथम कहलाता है, उससे अगले पर जाने से दूसरा, दूसरे से अगले नक्षत्र पर जाने से तीसरा आदि कहा जाता है। इसी प्रकार 27 नक्षत्रों पर क्रमशः जानना चाहिए। अब यहाँ पर 27 नक्षत्रों पर सूर्यादि नौ ग्रहों के परिभ्रमण से जो प्रभाव पड़ता है उसे उपयोगार्थ दे रहे हैं।
सूर्य ग्रह का नक्षत्र-फल
सूर्य ग्रह जन्म नक्षत्र से 1 पर नाश, 2रे से 5वें तक धनलाभ, 6ठे से 9वें तक कार्यसिद्धि, 10वें से 13वें तक धनलाभ, 14वें से 19वें तक भोगोपभोग के साधनों में वृद्धि, 20वें से 23वें तक शारीरिक कष्ट, 24वें से 25वें तक लाभकारी एवं 26वें व 27वें नक्षत्र में मृत्यु भय कराता है।
चन्द्र ग्रह का नक्षत्र-फल
जन्म नक्षत्र से चन्द्र 1ले व 2रे हो तो भयभीत करता है, 3रे व 6ठे हो तो प्रसन्नचित व सकुशल रखता है, 7वें व 8वें पर हो तो विरोधियों पर विजय दिलाता है, 9वें व 10वें पर हो तो आर्थिक सम्पन्नता, 11वें से 15वें तक मनोविनोद के कार्यों में संलग्न कराता है, 16वें से 18वें तक वाद-विवाद, झगड़ा या मारपीट कराता है एवं 19वें से 27वें तक धनलाभ कारक है।
मंगल ग्रह का नक्षत्र फल
जन्म नक्षत्र से मंगल ग्रह 1ले व 2रे नक्षत्र पर होने से दुर्घटना कराता है, 3रे से 8वें होने पर वाद-विवाद एवं कलह कराता है, 9वें से 11वें होने पर कार्य में सफलता दिलाता है, 12वें से 15वें होने पर धनहानि कराता है, 16वें से 17वें होने पर आर्थिक लाभ होता है, 18वें से 21वें तक होने पर मन में भय व्याप्त रहता है, 22वें से 25वें तक होने पर सुख में वृद्धि होती है एवं 26वें व 27वें नक्षत्र पर होने से यात्रा योग बनता है।
बुध, गुरु एवं शुक्र ग्रह का नक्षत्र-फल
जन्म नक्षत्र से बुध, गुरु एवं शुक्र ग्रह 1ले से 3रे नक्षत्र पर होने से चिन्ताकारक, 4थे से 6ठे होने पर आर्थिक लाभ, 7वें से 12वें होने पर अनिष्टकारी, 13वें से 17वें होने पर आर्थिक सम्पन्नता, 18वें से 19वें होने पर कष्टकारी एवं 20वें से 27वें होने पर यश और लाभ में वृद्धि होती है।
शनि, राहु एवं केतु ग्रह का नक्षत्र-फल
जन्म नक्षत्र से शनि, राहु एवं केतु 1ले होने पर कष्टकारी, 2रे से 5वें होने पर सुखकारी, 6ठे से 8वें होने पर यात्रा कारक, 9वें से 11वें होने पर सर्व प्रकार से हानि एवं कष्ट, 12वें से 15वें होने पर सर्व प्रकार से उन्नति, 16वें से 20वें होने पर भोगोपभोग के साधन बढ़ते हैं, 21वें से 25वें होने पर सर्व कार्यसिद्धि होती है और 26वें व 27वें होने पर राज्य भय या शत्रु भय रहता है।

गोचर में राशि फल।

सूर्य- सूर्य जन्मकालीन राशि से 3,6,10 और 11 वें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में सूर्य का फल अशुभ देता है।

चंद्र- चंद्र जन्मकालीन राशि से 1, 3, 6, 7, 10 व 11 भाव में शुभ तथा 4,8, 12 वें भाव में अशुभ फल देता है।

मंगल- मंगल जन्मकालीन राशि से 3 ,6,11 भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।

बुध- बुध जन्मकालीन राशि से 2,4,6,8,10 और 11 वें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।

गुरु-गुरु जन्मकालीन राशि से 2,5,7,9 और 11 वें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।

शुक्र-शुक्र जन्मकालीन राशि से 1,2,3, 4,5, 8,9,11 और 12 वें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।

शनि-शनि जन्मकालीन राशि से 3,6,11 भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।

राहु-राहु जन्मकालीन राशि से 3 ,6,11 वें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।

केतु-केतु जन्मकालीन राशि से 1,2,3,4,5,7,9 और 11 वें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।
L: बहुत से लोग यह नारा लगाते हैं , हम बदलेंगे , जग बदलेगा । हम सुधरेंगे, जग सुधरेगा. इसमें कोई संदेह नहीं है, कि यह नारा सत्य है। परंतु लोग सिर्फ नारा ही लगाते हैं । न तो स्वयं को बदलते हैं , और न ही जग बदलता है। कारण क्या है? कारण यह है कि लोग स्वयं को बदलना ही नहीं चाहते. लोग स्वयं को बदलना क्यों नहीं चाहते? इसलिए कि बदलने में कष्ट होता है , कष्ट उठाना कोई चाहता नहीं । इसलिए सिर्फ बातें ही बातें करते हैं । नारे तो खूब लगाते हैं, परंतु बदलने की इच्छा नहीं है। और बदलने के लिए पुरुषार्थ भी नहीं करते , जिसके कारण परिवर्तन नहीं दिखाई देता।
तो जो लोग स्वयं को बदलना चाहते हैं , संसार को बदलना चाहते हैं , अपना और दूसरों का सुधार करना चाहते हैं , उन से निवेदन है , कि वे अपने अंदर स्वयं को बदलने की तथा अपना सुधार करने की इच्छा को तीव्र बनाएँ। दृढ़ संकल्प करें, कि दुनियाँ सुधरे या न सुधरे, हम अवश्य सुधरेंगे । दुनियाँ सुधरे या बिगड़े, हम नहीं बिगड़ेंगे , ऐसी तीव्र इच्छा और दृढ़ संकल्प करने के बाद , सुधार के लिए पूरा परिश्रम करें । और तब परिणाम को देखें , आप भी सुधरेंगे और संसार भी सुधरेगा। सारा संसार तो नहीं सुधरेगा। जिसके संस्कार अच्छे होंगे और वह यदि परिश्रम करेगा, तो वह व्यक्ति जरूर सुधरेगा –
[जब आपकी कार खराब हो जाती है , तो आप उसे ठीक कराने के लिए मैकेनिक के पास ले जाते हैं । मैकेनिक आपकी कार में खराबी को ढूंढता है और उसे ठीक करता है। वह उसमें अपना समय शक्ति खर्च करता है, विद्या बुद्धि भी खर्च करता है । इसके बदले में वह आपसे पैसे भी लेता है । यदि कोई मैकेनिक आपकी कार की खराबी, मुफ्त में ढूंढे और उसे मुफ्त में ठीक भी कर देवे, तो आप उसका उपकार मानेंगे या नहीं ? बुद्धिमान लोग तो अवश्य मानेंगे ।

ठीक इसी प्रकार से जब कोई आपका मित्र, संबंधी या हितैषी व्यक्ति, आपके जीवन में, किसी दोष को देखता है , तो वह अपना समय बुद्धि शक्ति लगाकर आपके उस दोष को ढूंढकर आपको बताता है , कि आपके जीवन में यह दोष है । तथा आप इस प्रकार से इस दोष का निवारण करें । इस प्रकार से वह आपको उस दोष के निवारण का उपाय भी बताता है। यह सब कार्य वह आपका मित्र संबंधी या हितैषी व्यक्ति, मुफ्त में करता है। वह आपसे इसकी कोई फीस भी नहीं लेता। तो क्या आपको उसका उपकार मानना चाहिए या नहीं ? उसका धन्यवाद करना चाहिए या नहीं ? बुद्धिमान लोग तो अवश्य ही उसका उपकार मानेंगे और धन्यवाद देंगे। हां , अज्ञानी लोग अवश्य उससे द्वेष करेंगे।
तो आप अज्ञानी न बनें , बुद्धिमान बनें, ऐसे व्यक्ति का उपकार मानें तथा धन्यवाद करें –
: लौकी क्या है : लौकी( Lauki / Ghiya) शीतल (ठंडा), पौष्टिक और मीठी होती है। यह बलवर्द्धक है और पित्त व कफ को दूर करती है। इसका उपयोग सब्जी के रूप में ही होता है। लेकिन लौकी को रस के रूप में भी उपयोग में लाया जा सकता है। लौकी की सब्जी खाने से सिर का दर्द दूर होता है और गर्मी दूर होती है। लौकी छिलके सहित ही खाना अधिक लाभकारी होता है।
लौकी में कार्बोहाइड्रेट होता है, जिसके कारण यह आसानी से पच जाता है। इसमें वसा की मात्रा कम होती है। बीमार व्यक्ति को तथा मधुमेह के रोगियों को लौकी देना फायदेमंद होता है।

लौकी के फायदे और रोगों का इलाज

  1. बिच्छू के डंक: बिच्छू के काटे हुए स्थान पर लौकी पीसकर लेप करें और इसका रस निकालकर पिलाएं। इससे बिच्छू का जहर उतर जाता है।
  2. दस्त लगना:
    • लौकी( Lauki / Ghiya) का रायता बनाकर दस्त में देने से दस्त का बार-बार आना बंद हो जाता है।
    • लौकी का रायता बनाकर सेवन करने से दस्तों में आराम मिलता है।
  3. पुत्र प्राप्ति हेतु: जिन महिलाओं को लड़कियां ही होती हैं वे गर्भ ठहरने के दूसरे और तीसरे महीने में लौकी के बीज मिश्री के साथ मिलाकर लगातार खायें तो लड़का पैदा होगा। गर्भावस्था के शुरुआत और आखिरी के महीने में 125 ग्राम कच्ची लौकी को 70 ग्राम मिश्री के साथ रोजाना खाने से गर्भ में ठहरे बच्चे का रंग निखर जाता है।
  4. गुर्दे का दर्द: लौकी ( Lauki / Ghiya)के टुकड़े-टुकड़े करके गर्म करें और दर्द वाले जगह पर इसके रस से मालिश करें तथा इसे पीसकर लेप करने से गुर्दे के दर्द में जल्द आराम मिलता है।
  5. पैरों के तलुवों की जलन: लौकी को काटकर पैर के तलुवों पर मलने से पैर की गर्मी (जलन) निकल जाती है।
  6. दांत दर्द: लौकी 75 ग्राम और लहसुन 20 ग्राम दोनों को पीसकर एक किलो पानी में उबालें जब आधा पानी रह जाये तो छानकर कुल्ला करने से दांत दर्द दूर होता है।
  7. पीलिया: लौकी को धीमी आग में दबाकर भुर्ता-सा बना लें फिर इसका रस निचोड़कर थोड़ा सा मिश्री मिलाकर पीयें यह लीवर की बीमारी और पेट के अन्य रोगों के लिए लाभदायक है।
  8. आन्त्रिक ज्वर (टायफायड): घीये (लौकी) के टुकड़ों को तलुओं पर मालिश करने से टायफाइड बुखार की जलन दूर होती है।
  9. दमा या श्वास का रोग: ताजी लौकी ( Lauki / Ghiya)पर गीला आटा लेप लें, फिर उसे साफ कपडे़ में लपेटकर, भूभल (गर्म राख या रेत) में दबायें। आधे घंटे बाद कपड़ा और आटा उतारकर उस भुरते का रस निकालकर सेवन करें। लगभग 40 दिनों में इस रोग से छुटकारा मिल जाएगा।
  10. खांसी: लौकी की गिरी खाने से कफज-खांसी दूर हो जाती है।
  11. बवासीर (अर्श):
    • लौकी या तुलसी के पत्तों को पानी के साथ पीसकर अर्श (बवासीर) के मस्से पर दिन में दो से तीन बार लगायें। इससे दर्द व जलन कम होती है तथा मस्से भी नष्ट होते हैं।
    • लौकी या तुरई के पत्तों को पीसकर बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से खत्म हो जाते हैं।
    • लौकी के छिलके को छाया में सुखाकर पीसकर रख लें और 1 चम्मच प्रतिदिन सुबह-शाम ठण्डे पानी के साथ फंकी लें। इसकी फंकी 7-8 दिन तक लेने से बवासीर में खून का आना बंद हो जाता है।
  12. प्रसव पीड़ा: लौंकी को बिना पानी के उबालकर उसका रस 30 ग्राम की मात्रा में निकालकर प्रसूता को पिलाने से प्रसव के समय होने वाला नहीं होता है।
  13. लू का लगना: घीया के टुकड़ों से पैरों के तलुवों पर मालिश करने से लू के कारण होने वाली जलन खत्म हो जाती है।
  14. नकसीर: लौकी को उबालकर खाने से नकसीर (नाक से खून बहना) में आराम आता है।
  15. मूत्ररोग: लौकी का रस 10 मिलीलीटर, कलमी शोरा 2 ग्राम, मिश्री 20 ग्राम सबको 250 मिलीलीटर पानी में मिलाकर दिन में दो बार सुबह-शाम लें।
  16. गठिया रोग: कच्चे लौकी को काटकर उसकी लुगदी बनाकर घुटनों पर रखकर कपड़े से बांध लेना चाहिए। इससे घुटने का दर्द दूर हो जायेगा।
  17. चेहरे की झांई: लौकी के ताजे छिलके को पीसकर चेहरे पर लेप करने से चेहरा सुन्दर हो जाता है।
  18. हृदय रोग:
    • लौकी के रस में, पांच पुदीने की पत्तियां और तुलसी की 10 पत्तियों का रस निकाल लें और इस रस को दिन में तीन बार यानी सुबह, दोपहर और रात को भोजन के आधा घंटा बाद लेना चाहिए। पहले तीन-चार दिन रस की मात्रा कुछ कम ली जा सकती है। बाद में ठीक से हजम होने पर रोजाना तीन बार 250 मिलीलीटर रस लें। रस हर बार ताजा लेना चाहिए।
    • घीये का रस पेट में जो भी पाचन विकार होते हैं, उन्हें दूर करके मल के द्वारा बाहर निकाल देता है, जिसके कारण शुरुआत में पेट में कुछ खलबली, गड़गड़ाहट आदि महसूस होती है, जोकि एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। इससे घबराना नहीं चाहिए। तीन-चार दिन में पेट के विकार दूर होकर सामान्य स्थिति हो जाती है। इसे नियमित दो-तीन मास आवश्यकतानुसार लेने से हृदय रोगी ठीक होने लगता है और बाईपास सर्जरी कराने की जरूरत नहीं पड़ती है।
  19. होठों के लिए: लौकी के बीजों को पीसकर होठों पर लगाने से जीभ और होठों के छाले ठीक हो जाते हैं।
  20. कंठमाला: लौकी के तूंबे में सात दिन तक पानी भरकर रख दें। सात दिन बाद इस पानी को पीने से कंठमाला (गले की गांठे) बैठ जाती हैं।
  21. शरीर को शक्तिशाली बनाना: घिया या लौकी ( Lauki / Ghiya)के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से शरीर की शक्ति बढ़ती है।

लौकी के नुकसान

१] अतिसार, सर्दी-खाँसी, दमे के रोगी लौकी न खायें |
२] पुरानी ( पकी ) लौकी से कब्जियत होने के कारण उसका उपयोग न करें |
३] कडवी लौकी ( तुमड़ी ) विषैली होने से उसका सेवन निषिद्ध है |

वन्देमातरम !
[ बन्दर कभी बीमार नहीं होता।।

किसी भी चिड़िया को डायबिटीज नहीं होती।
किसी भी बन्दर को हार्ट अटैक नहीं आता ।
कोई भी जानवर न तो आयोडीन नमक खाता है और न ब्रश करता है, फिर भी किसी को थायराइड नहीं होता और न दांत खराब होता है ।

बन्दर शरीर संरचना में मनुष्य के सबसे नजदीक है, बस बंदर और आप में यही फर्क है कि बंदर के पूँछ है आप के नहीं है, बाकी सब कुछ समान है।

तो फिर बंदर को कभी भी हार्ट अटैक, डायबिटीज , high BP , क्यों नहीं होता है?

एक पुरानी कहावत है बंदर कभी बीमार नहीं होता और यदि बीमार होगा तो जिंदा नहीं बचेगा मर जाएगा!
बंदर बीमार क्यों नहीं होता?

हमारे एक मित्र बताते हैं कि एक बहुत बड़े , प्रोफेसर हैं, मेडिकल कॉलेज में काम करते हैं । उन्होंने एक बड़ा गहरा रिसर्च किया कि बंदर को बीमार बनाओ। तो उन्होने तरह – तरह के virus और वैक्टीरिया बंदर के शरीर में डालना शुरू किया, कभी इंजेक्शन के माध्यम से कभी किसी और माध्यम से । वो कहते है, मैं 15 साल असफल रहा , लेकिन बंदर को कुछ नहीं हुआ ।

मित्र ने प्रोफेसर से कहा कि आप यह कैसे कह सकते है कि बंदर को कुछ नहीं हो सकता ? तब उन्होंने एक दिन यह रहस्य की बात बताई वो आपको भी बता देता हूँ कि बंदर का जो RH factor है वह सबसे आदर्श है । कोई डॉक्टर जब आपका RH factor नापता है, तो वह बंदर के ही RH Factor से तुलना करता है , वह डॉक्टर आपको बताता नहीं यह अलग बात है

उसका कारण यह है कि, उसे कोई बीमारी आ ही नहीं सकती । उसके ब्लड में कभी कॉलेस्टेरॉल नहीं बढ़ता , कभी ट्रायग्लेसराइड नहीं बढ़ती , न ही उसे कभी डायबिटीज होती है । शुगर को कितनी भी बाहर से उसके शरीर में इंट्रोडयूस करो, वो टिकती नहीं । तो वह प्रोफेसर साहब कहते हैं कि यही चक्कर है , कि बंदर सबेरे सबेरे ही भरपेट खाता है। जो आदमी नहीं खा पाता है , इसीलिए उसको सारी बीमारियां होती है । सूर्य निकलते ही सारी चिड़िया , सारे जानवर खाना खाते हैं । जब से मनुष्य इस ब्रेकफास्ट , लंच , डिनर के चक्कर में फंसा तबसे मनुष्य ज्यादा बीमार रहने लगा है ।

*प्रोफेसर रवींद्रनाथ शानवाग ने अपने सभी मरींजों से कहा कि सुबह सुबह भरपेट खाओ । उनके मरीज बताते है कि, जबसे उन्हांने सुबह भरपेट खाना शुरू किया तबसे उन्हें डायबिटीज यानि शुगर कम हो गयी, किसी का कॉलेस्टेरॉल कम हो गया, किसी के घुटनों का दर्द कम हो गया , किसी का कमर का दर्द कम हो गया गैस बनाना बंद हो गई, पेट मे जलन होना बंद हो गया ,नींद अच्छी आने लगी ….. वगैरह ..वगैरह ।
और यह बात बागभट्ट जी ने 3500 साल पहले कहा, कि सुबह का किया हुआ भोजन सबसे अच्छा है ।

  • सुबह सूरज निकलने से ढाई घंटे तक यानि 9.30 बजे तक, ज्यादा से ज्यादा 10 बजे तक आपका भरपेट भोजन हो जाना चाहिए । और ये भोजन तभी होगा जब आप नाश्ता बंद करेंगे । यह नाश्ता का प्रचलन हिंदुस्तानी नहीं है , यह अंग्रेजो की देन है , और रात्रि का भोजन सूर्य अस्त होने से पहले आधा पेट कर लें । तभी बीमारियों से बचेंगे । सुबह सूर्य निकलने से ढाई घंटे तक हमारी जठराग्नि बहुत तीव्र होती है । हमारी जठराग्नि का सम्बन्ध सूर्य से है ।हमारी जठराग्नि सबसे अधिक तीव्र स्नान के बाद होती है । स्नान के बाद पित्त बढ़ता है , इसलिए सुबह स्नान करके भोजन कर लें । तथा एक भोजन से दूसरे भोजन के बीच ४ से ८ घंटे का अंतराल रखें बीच में कुछ न खाएं, और दिन डूबने के बाद बिल्कुल न खायें।।
    चूंकि यह पक्षियों और जंगली जानवरों की दिनचर्या में सम्मिलित है, अत: वे अमूमन बीमार नहीं होते।।
    [ क्या आप सफर करने से सिर्फ इसलिए डरते हैं, क्योंकि सफर में आपको उल्टी आती है? तो अब बेफिकर हो जाइए, क्योंकि सफर में ये उपाय आपको उल्टी नहीं आने देंगे, और आप अपने सफर का भरपूर आनंद ले पाएंगे।

सफर में होने वाली उल्टियों से बचने के लिए सफर पर जाने से आधे घंटे पहले 1 चम्‍मच प्‍याज के रस में 1 चम्‍मच अदरक के रस को मिलाकर लेना चाहिए। इससे आपको सफर के दौरान उल्टियां नहीं आयेगी। लेकिन अगर सफर लंबा है तो यह रस साथ में बनाकर भी रख सकते हैं।

अदरक में एंटीमेटिक गुण होते हैं। एंटीमेटिक एक ऐसा पदार्थ है जो उल्‍टी और चक्कर आने से बचाता है। सफर के दौरान जी मिचलाने पर अदरक की गोलियां या फिर अदरक की चाय का सेवन करें। इससे आपको उल्टी नहीं होगी। अगर हो सके तो अदरक अपने साथ ही रखे। अगर घबराहट हो तो इसे थोड़ा-थोड़ा खाते रहे।

पुदीना आपके पेट की मांसपेशियों को आराम देता है और इस तरह चक्कर आने और यात्रा के दौरान तबीयत के खराब लगने की स्थिति को भी समाप्त करता है। पुदीने के तेल भी उल्टियों को रोकने में बेहद मददगार है। इसके लिए रुमाल पर पुदीने के तेल की कुछ बूंदे छिड़के और सफर के दौरान उसे सूंघते रहे। सूखे पुदीने के पत्तों को गर्म पानी में मिलाकर खुद के लिए पुदीने की चाय बनाएं। इस मिश्रण को अच्छे से मिलाएं और इसमें 1 चम्मच शहद मिलाएं। कहीं निकलने से पहले इस मिश्रण को पियें। इसके अलावा इससे आपको काफी आराम मिलेगा।

जब भी किसी सफर के लिए निकलें, अपने साथ एक पका हुआ नींबू जरूर रख लें। जरा भी अजीब सा मन हो, तो इस नींबू को छीलकर सूंघे। ऐसा करने से उल्टी नहीं आएगी।
 

लौंग को भूनकर इसे पीस लें और किसी डिब्बी में भरकर रख लें। जब भी सफर में जाएं या उल्टी जैसा मन हो तो इसे सिर्फ एक चुटकी मात्रा में चीनी या काले नमक के साथ लें और चूसें।

तुलसी के पत्ते अपने साथ रखें, इसे खाने से उल्टी नहीं आएगी। इसके अलावा एक बॉटल में नींबू और पुदीने का रस काला नमक डालकर रखें और इसे थोड़ा-थोड़ा पीते रहें।

नींबू को काटकर, इस पर काली मिर्च और काला नमक बुरककर चाटें। यह तरीका भी आपको उल्टी आने से बचाएगा।

अगर आप बस में सफर कर रहे हैं, या बस में आपको उल्टी होती है तो जिस सीट पर आप बैठें, वहां पहले एक पेपर बिछा लें और इस पेपर पर बैठ जाएं। आपको उल्टी नहीं आएगी।

होमिओपेथी द्वारा

कोकुलस इंडिका 30, की 2 2 बूंद दिन में 3 बार

: माइग्रेन इलाज के लिए प्राकृतिक घरेलू नुस्खे

पुदीने का तेल- इस तेल में एंटी इंफ्लैमटरी गुण होते हैं जो सिर दर्द में आपको राहत दे सकते हैं। इसकी कुछ बूंदे जीभ पर रखने और कुछ अपने सिर पर लगा कर मालिश करने से माइग्रेन से आराम मिलता है। आराम करें- ध्यान सिर दर्द को दूर करने में काफी कारगर होता है। माइग्रेन के इलाज के लिए ध्यान करना सबसे अच्छा तरीका होगा।

बर्फ का पैक- बर्फ के टुकड़े एक पैक में लेकर सिर दर्द की जगह पर रखें। बर्फ में एंटी इंफ्लैमटरी गुण होते है जिससे सिर का दर्द ठीक हो सकता है। आप चाहें तो किसी और ठंडी चीज़ का पैक भी बना सकते है।

 विटामिन बी का सेवन- मस्तिष्क विकार जो माइग्रेन का मुख्य कारण होता है, अकसर विटामिन बी की कमी से पैदा होते हैं। विटामिन बी युक्त पदार्थों का सेवन करने से सिर दर्द से राहत मिल सकती है। माइग्रेन से बचने के लिए अपने भोजन में विटामिन बी युक्त पदार्थ शामिल करें।

जड़ी बूटियों का उपयोग- कैफीन युक्त पदार्थ जैसे चाय या कॉफ़ी पीने से भी माइग्रेन में राहत मिलती है। सिर दर्द में बाम को प्रयोग में लाएं। सिर पर बाम की हलकी मसाज देने पर रक्त संचार सामान्य हो जाता है तथा माइग्रेन से आराम मिलता है।

कमरे में अंधेरा करना- अक्सर तेज़ रोशनी से सिर का दर्द बढ़ जाता है। इस कारण अँधेरे और शांत कमरे में बैठने से भी माइग्रेन ठीक होता है।

योग- योग से माइग्रेन में काफी आराम मिल सकता है।
💥 सूजी का हलवा 💥💥

👉एक डॉक्टर आपको कभी नहीं कहेगा कि सूजी का हलवा खाओ, वो मांस, मछली, अंडे जैसी तमाम मांसाहारी चीजों को खाने की सलाह देगा, लेकिन सूजी का हलवा खाने की सलाह कभी न देगा । कहेगा कि मांस, मछली, अंडे खाने से प्रोटीन मिलेगा, शरीर को पोषकता मिलेगी ।

👉सूजी का हलवा अंडे से ज्यादा प्रोटीन की पोषकता देने वाला है, और प्रोटीन चाहिए तो मसूर की दाल खा लो, कोई भी मांस-मछली मसूर दाल जितनी प्रोटीन नहीं देता ।

👉इतना ही नहीं, ये सूजी हड्डियों और नर्वस सिस्टम को सही रखती है, एनर्जी बढ़ाती है, दिल की बीमारी को दूर रखती है, इम्यूनिटी बढ़ाती है, पाचन सही होता है, एनीमिया की प्रॉब्लम नहीं होती ।

👉प्रोटीन के अलावा सूजी में फास्फोरस, जिंक, मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्व भी भरपुर मात्रा में मौजूद रहते हैं ।

⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐
[अनिद्रा को भगाने के घरेलू इलाज 

  1. हरी साग और सब्जी ज्यादा मात्रा में खाएं (Eat green vegetables more) : हरी साग और सब्जी शरीर के लिए ही नहीं नींद के लिए भी जरुरी है। खासकर जिन सागों के पत्ते बड़े हों और उसमें लिसलिसापन हो तो यह नींद आने में काफी मदद करता है। पोरो और पालक के साग नियमित रुप से खाएं, इससे बेहतर नींद आएगी।
  2. मैग्नीशियम और कैल्शियम (Magnesium and calcium) : मैग्नीशियम और कैल्शियम दोनों को ही नींद बढ़ाने वाली केमिकल कही जाती है। जब यह दोनों साथ में ली जाए तो और असरदार होती है। मैग्नीशियम खाने से दिल की बीमारी का खतरा भी कम हो जाता है। रात में 200 Mg मैग्नीशियम(ज्यादा मात्रा न लें, डायरिया हो सकता है) और 600 mg कैल्शियम निश्चित रुप से खाएं, बेहतर नींद आएगी।
  3. योग और ध्यान (Yoga or meditation) : योग और ध्यान को नियमित अभ्यास में लाएं। योग में ज्यादा कठिन आसन नहीं करने हैं, साधारण आसन जिससे मन को शांति मिले वही करें। बेड पर जाने, पहले 5 से 10 मिनट ध्यान करें। ध्यान के दौरान कहीं भटके नहीं और मन को सिर्फ अपनी सांस पर एकाग्र करें। रात में बेहतर नींद आएगी।
  4. एरोमाथेरेपी (Aromatherapy) : सुगंध का मस्तिष्क से गहरा संबध है। बहुत सारे लोग अपने बेड पर तकिए के नीचे चमेली के फूल रख कर सोते हैं। कई लोग अपने बालकनी में रजनीगंधा या इसी तरह के सुगंधित फूलों के पौधे लगा कर रखते हैं ताकि इसके सुगंध से रात में बेहतर नींद आ सके। लेवेंडर के फूल भी काफी असरदार होते हैं अनिदा के मरीजों के लिए। तकिए के नीचे इसके फूल रख देने से सुगंध पूरे कमरे में फैल जाती है और नींद बेहतर आती है।
  5. हॉप्स (Hops) : यह एक प्रकार का जंगली पौधा है जिसके फल का उपयोग शराब (बीयर) बनाने के काम में आता है। अनिदा, टेंशन और डिप्रेथन के मरीजों को इसके फल का रस पिलाई जाती है ताकि उन्हें आराम की नींद आ सके।
    : 10 रुपए में कर सकते हैं कैल्शियम की कमी को दूर, दूध से चिढ़ते हैं तो यह जानकारी आपके लिए है
  6. पानी में अदरक डाल कर उबालें। इस पानी में शहद और हल्का नींबू निचोड़ें। सुबह 20 दिन तक पिएं। कैल्शियम की आपूर्ति होगी।
  7. प्रति दिन 2 चम्मच तिल का सेवन करें। आप इसे लड्डू या चिक्की के रूप में भी ले सकते हैं।
  8. एक चम्मच जीरे को रात भर पानी में भिगो दें। सुबह इसका सेवन करें। 15 दिन में लाभ दिखेगा।
  9. 1 अंजीर व दो बादाम रात में गलाएं और सुबह इसका सेवन करें। शर्तिया फायदा होगा।
  10. रागी का हफ्ते में एक बार किसी ना किसी रूप में सेवन करें। दलिया, हलवा या खीर बनाकर ले सकते हैं। किसी भी प्रकार से रागी कैल्शियम का विश्वसनीय स्त्रोत हैं।
  11. नींबू पानी दिन भर में एक बार अवश्य लें।
  12. अंकुरित अनाज में कैल्शियम प्रचूर मात्रा में होता है। अगर आप अंकुरित आहार नहीं ले सकते हैं तो हफ्ते में एक बार सोयाबीन ले सकते हैं।

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