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[ गोखरू पुरुषो और महिलाओ के रोगो के लिए रामबाण औषिधि।

गोखरू भारत में सभी प्रदेशों में पाये जाने वाला पौधा है। यह जमीन पर फैलने वाला पौधा होता है, जो हर जगह पाया जाता है। वर्षा के आरम्भ में ही यह पौधा जंगलों, खेतों के आसपास के उग आता है। गोखरू छोटा और बड़ा दो प्रकार का होता है लेकिन इसके गुणों में समानता होती है। गोखरू की शाखाएं लगभग 90 सेंटीमीटर लंबी होती है जिसमें पत्ते चने के समान होते हैं। हर पत्ती 4 से 7 जोड़ों में पाए जाते हैं। इसकी टहनियों पर रोयें और जगह-जगह पर गाठें होती हैं।

गोखरू के फूल पीले रंग के होते है जो सर्दी के मौसम में उगते हैं। इसके कांटे छूरे की तरह तेज होते हैं इसलिए इसे गौक्षुर कहा जाता है। इसके बीजों से सुगंधित तेल निकलता है। इसकी जड़ 10 से 15 सेंटीमीटर लम्बी होती है तथा यह मुलायम, रेशेदार, भूरे रंग की ईख की जड़ जैसी होती है। उत्तर भारत मे, हरियाणा, राजस्थान मे यह बहुत मिलता है। गोखरू का सारा पौधा ही औषधीय क्षमता रखता है । फल व जड़ अलग से भी प्रयुक्त होते हैं।

गोखरू की प्रकृति गर्म होती है। यह शरीर में ताकत देने वाला, नाभि के नीचे के भाग की सूजन को कम करने वाला, वीर्य की वृद्धि करने वाला, वल्य रसायन, भूख को तेज करने वाला होता है, कमजोर पुरुषों व महिलाओं के लिए एक टॉनिक भी है। यह स्वादिष्ट होता है। यह पेशाब से सम्बंधित परेशानी तथा पेशाब करने पर होने वाले जलन को दूर करने वाला, पथरी को नष्ट करने वाला, जलन को शान्त करने वाला, प्रमेह (वीर्य विकार), श्वांस, खांसी, हृदय रोग, बवासीर तथा त्रिदोष (वात, कफ और पित्त) को नष्ट करने वाला होता है। तथा यह मासिकधर्म को चालू करता है। यह दशमूलारिष्ट में प्रयुक्त होने वाला एक द्रव्य भी है । यह नपुंसकता तथा निवारण तथा बार-बार होने वाले गर्भपात में भी सफलता से प्रयुक्त होता है ।

गोखरू सभी प्रकार के गुर्दें के रोगों को ठीक करने में प्रभावशाली औषधि है। यह औषधि मूत्र की मात्रा को बढ़ाकर पथरी को कुछ ही हफ्तों में टुकड़े-टुकड़े करके बाहर निकाल देती है।

गोखरू का फल बड़ा और छोटा दो प्रकार का होता है। । दोनों के फूल पीले और सफेद रंग के होते हैं। गोखरू के पत्ते भी सफेद होते हैं। गोखरू के फल के चारों कोनों पर एक-एक कांटा होता है। छोटे गोखरू का पेड़ छत्तेदार होता है। गोखरू के पत्ते चने के पत्तों के समान होते हैं। इसके फल में 6 कांटे पाये जाते हैं। कहीं कहीं लोग इसके बीजों का आटा बनाकर खाते हैं।

वैद्यक में इन्हें शीतल, मधुर, पुष्ट, रसायन, दीपन और काश, वायु, अर्श और ब्रणनाशक कहा है।

यह शीतवीर्य, मुत्रविरेचक, बस्तिशोधक, अग्निदीपक, वृष्य, तथा पुष्टिकारक होता है। विभिन्न विकारो मे वैद्यवर्ग द्वारा इसको प्रयोग किया जाता है। मुत्रकृच्छ, सोजाक, अश्मरी, बस्तिशोथ, वृक्कविकार, प्रमेह, नपुंसकता, ओवेरियन रोग, वीर्य क्षीणता मे इसका प्रयोग किया जाता है।

गर्भाशय को शुद्ध करता है तथा वन्ध्यत्व को मिटाता है । इस प्रकार यह प्रजनन अंगों के लिए एक प्रकार की शोधक, बलवर्धक औषधि है ।

यह ब्लैडर व गुर्दे की पथरी का नाश करता है तथा मूत्रावरोध को दूर करता है । मूत्र मार्ग से बड़ी से बड़ी पथरी को तोड़कर निकाल बाहर करता है ।

इसका प्रयोग कैसे करे ।

इसके फल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम, दिन में 2 या 3 बार । पंचांग क्क्वाथ- 50 से 100 मिली लीटर ।

पथरी रोग में गोक्षुर के फलों का चूर्ण शहद के साथ 3 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम दिया जाता है । मूत्र के साथ यदि रक्त स्राव भी हो तो गोक्षुर चूर्ण को दूध में उबाल कर मिश्री के साथ पिलाते हैं ।

सुजाक रोग (गनोरिया) में गोक्षुर को घंटे पानी में भिगोकर और उसे अच्छी तरह छानकर दिन में चार बार 5-5 ग्राम की मात्रा में देते हैं । किसी भी कारण से यदि पेशाब की जलन हो तो गोखरु के फल और पत्तों का रस 20 से 50 मिलीलीटर दिन में दो-तीन बार पिलाने से वह तुरंत मिटती है । प्रमेह शुक्रमेह में गोखरू चूर्ण को 5 से 6 ग्राम मिश्री के साथ दो बार देते हैं । तुरंत लाभ मिलता है ।

मूत्र रोग संबंधी सभी शिकायतों यथा प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब का रुक-रुक कर आना, पेशाब का अपने आप निकलना (युरीनरी इनकाण्टीनेन्स), नपुंसकता, मूत्राशय की पुरानी सूजन आदि में गोखरू 10 ग्राम, जल 150 ग्राम, दूध 250 ग्राम को पकाकर आधा रह जाने पर छानकर नित्य पिलाने से मूत्र मार्ग की सारी विकृतियाँ दूर होती हैं । प्रदर में, अतिरिक्त स्राव में, स्री जनन अंगों के सामान्य संक्रमणों में गोखरू एक प्रति संक्रामक का काम करता है । स्री रोगों के लिए 15 ग्राम चूर्ण नित्य घी व मिश्री के साथ देते हैं । गोक्षरू मूत्र पिण्ड को उत्तेजना देता है, वेदना नाशक और बलदायक है । इसका सीधा असर मूत्रेन्द्रिय की श्लेष्म त्वचा पर पड़ता है ।

गोक्षुर चूर्ण प्रोस्टेट बढ़ने से मूत्र मार्ग में आए अवरोध को मिटाता है, उस स्थान विशेष में रक्त संचय को रोकती तथा यूरेथ्रा के द्वारों को उत्तेजित कर मूत्र को निकाल बाहर करता है । बहुसंख्य व्यक्तियों में गोक्षुर के प्रयोग के बाद ऑपरेशन की आवश्यकता नहीं रह जाती । इसे योग के रूप न देकर अकेले अनुपान भेद के माध्यम से ही दिया जाए, यही उचित है, ऐसा वैज्ञानिकों का व सारे अध्ययनों का अभिमत है ।

इसका सेवन आप दवा के रूप में या सब्जी के रूप में भी कर सकते हैं। गोखरू के फल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 या 3 बार सेवन कर सकते हैं। इसका काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर तक सेवन कर सकते हैं। गोखरू की सब्जी तबियत को नर्म करती है, शरीर में खून की वृद्धि करती है और उसके दोषों को दूर करती है। यह पेशाब की रुकावट को दूर करती है तथा मासिकधर्म को शुरू करती है। सूजाक और पेशाब की जलन को दूर करने के लिए यह लाभकारी है।

आचार्य चरक ने गोक्षुर को मूत्र विरेचन द्रव्यों में प्रधान मानते हुए लिखा है-गोक्षुर को मूत्रकृच्छानिलहराणाम् अर्थात् यह मूत्र कृच्छ (डिसयूरिया) विसर्जन के समय होने वाले कष्ट में उपयोगी एक महत्त्वपूर्ण औषधि है । आचार्य सुश्रुत ने लघुपंचकमूल, कण्टक पंचमूल गणों में गोखरू का उल्लेख किया है । अश्मरी भेदन (पथरी को तोड़ना, मूत्र मार्ग से ही बाहर निकाल देना) हेतु भी इसे उपयोगी माना है ।

श्री भाव मिश्र गोक्षुर को मूत्राशय का शोधन करने वाला, अश्मरी भेदक बताते हैं व लिखते हैं कि पेट के समस्त रोगों की गोखरू सर्वश्रेष्ठ दवा है । वनौषधि चन्द्रोदय के विद्वान् लेखक के अनुसार गोक्षरू मूत्र पिण्ड को उत्तेजना देता है, वेदना नाशक और बलदायक है ।

इसका सीधा असर मूत्रेन्द्रिय की श्लेष्म त्वचा पर पड़ता है । सुजाक रोग और वस्तिशोथ (पेल्विक इन्फ्लेमेशन) में भी गोखरू तुरंत अपना प्रभाव दिखाता है ।

श्री नादकर्णी अपने ग्रंथ मटेरिया मेडिका में लिखते हैं-गोक्षुर का सारा पौधा ही मूत्रल शोथ निवारक है । इसके मूत्रल गुण का कारण इसमें प्रचुर मात्रा में विद्यमान नाइट्रेट और उत्त्पत तेल है । इसके काण्ड में कषाय कारक घटक होते हैं और ये मूत्र संस्थान की श्लेष्मा झिल्ली पर तीव्र प्रभाव डालते हैं ।

होम्योपैथी में श्री विलियम बोरिक का मत प्रामाणिक माना जाता है । विशेषकर वनौषधियों के विषय में वे लिखते हैं कि मूत्र मार्ग में अवरोध, वीर्यपात, प्रोस्टेट ग्रंथि की सूजन व अन्य यौन रोगों में गोखरू का टिंक्चर 10 से 20 बूंद दिन में तीन बार देने से तुरंत लाभ होता है ।

सावधानी :

गोखरू का अधिक मात्रा में सेवन ठण्डे स्वभाव के व्यक्तियों के लिए हानिकारक हो सकता है। गोखरू का अधिक मात्रा का सेवन करने से प्लीहा और गुर्दों को हानि पहुंचती है और कफजन्य रोगों की वृद्धि होती है।

गोखरू की सब्जी का अधिक मात्रा में सेवन प्लीहा (तिल्ली) के लिए हानिकारक हो सकता है।
[ प्रेग्नेंसी में जरूर पहनें पैरों में बिछिया, शिशु को होंगे ये 5 बड़े फायदे

पैरों में बिछिया पहनने से ये एक्यूप्रेशर का काम करती हैं।

इस अवस्था में महिलाएं अक्सर तनाव की चपेट में आ जाती हैं।

बिछिया पहनने से ब्लड प्रेशर की समस्या से भी छुटकारा मिलता है।

हर महिला का सपना होता है कि वह शादी के बाद जल्द से जल्द मां बने। मां बनने के लिए एक महिला को अपने खानपान और रहन सहन के साथ साथ अपनी दिनचर्या पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। गर्भवती को सलाह दी जाती है कि उसे इस वक्त ढीले और आरामदायक कपड़े पहनने चाहिए। लेकिन इससे अलग कोई कुछ नहीं बताता है। जैसे- शादी के बाद सभी महिलाएं बिछिया पहनती है। इसे कहीं न कहीं विवाहित महिला की निशान और सोलह श्रंगार का अभिन्न रूप माना जाता है। आप इसे गर्भवती अवस्था में पहन कर कई परेशानियों से बच सकती हैं। आज हम आपको प्रेग्नेंसी के दौरान महिला के पैरों में बिछिया पहनने के फायदे के बारे में बता रहे हैं।

करता है एक्यूप्रेशर का काम

पैरों में बिछिया पहनने से ये एक्यूप्रेशर का काम करती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि पैरों की उंगलियों में बिछिया पहनने से दबाब बनता है जो गर्भाशय को स्वस्थ रखता है। ऐसी मान्यता है कि गर्भावस्था के दौरान पैरों में बिछिया पहनने से महिला के पेट संबंधित रोग भी दूर होते हैं और शिशु का स्वास्थ्य भी बेहतर रहता है।

तनाव से दिलाते हैं छुटकारा

इस अवस्था में महिलाएं अक्सर तनाव की चपेट में आ जाती हैं। जो महिलाएं वर्किंग होती हैं उन्हें इस दिक्कत का ज्यादा सामना करना पड़ता है। उन्हें इस समस्या से राहत पाने के लिए पैरों में बिछिया पहनी चाहिए क्योंकि इससे दिमाग शांत रहता है। कई बार प्रेग्नेंसी के दौरान महिला का ब्लड प्रेशर घटने या बढ़ने लगता है जिससे महिला और बच्चे दोनों को खतरा हो सकता है। बिछिया पहनने से ब्लड प्रेशर की समस्या से भी छुटकारा पाया जा सकता है। यानि कि बिछिया पहनना बहुत अच्छा होता है।

बढ़ाते हैं पॉजिविटी

प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को थोड़ा साम काम करते ही थकान हो जाती है। शरीर में एनर्जी लाने के लिए पैरों में चांदी के बिछिया पहनना बहुत अच्छा होता है। चांदी को वैसे भी शरीर के लिए ठंडा माना जाता है। इसे पहन कर जमीन पर चलने से उसके शरीर को सकारात्मक ऊर्जा मिलती है जो कि गर्भावस्था के लिए बेहद फायदेमंद है। जिससे से उसका दिमाग भी शांत रहता है।

शिशु के लिए भी है फायदेमंद

पैरों में बिछिया पहनना मां के गर्भाशय के लिए भी काफी अच्छा होता है। इसे पहनने से महिला का गर्भ स्वस्थ रहता है। इसे पहनने से महिला के साथ उसके गर्भ में पल रहा बच्चा भी शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है। बिछिया गर्भाशय में पल रहे बच्चे को भी ऊर्जा प्रदान करती हैं।

बिछिया पहनने के अन्य फायदे

बिछिया पहनने से महिलाओं को गर्भ धारण में आसानी होती है। चांदी एक गुड कंडक्टर धातु है, अतः यह पृथ्वी की ध्रुवीय ऊर्जा को अवशोषित करके शरीर तक पहुंचाती है। तनावग्रस्त जीवनशैली के कारण अधिकांश महिलाओं का मासिक-चक्र अनियमित हो जाता है। ऐसी महिलाओं के लिए बिछिया पहनना अत्यंत लाभदायक होता है।

ऐसा माना जाता है कि एक बिछिया स्त्री के भीतर ऊर्जा को उत्पन्न करती है। पायल की तरह ही चांदी की बिछिया में भी इच्छा शक्ति उजागर करने की शक्ति होती है जो पहनने वाली स्त्री को हर प्रकार के नकारात्मक प्रभाव से दूर रखती है।

साइटिक नर्व की एक नस को बिछिया दबाती है जिस वजह से आस-पास की दूसरी नसों में रक्त का प्रवाह तेज होता है और यूटेरस, ब्लैडर व आंतों तक रक्त का प्रवाह ठीक होता है। गर्भाशय तक सही मात्रा में रक्‍त पहुंचता रहता है। यह बिछिया अपने प्रभाव से धीरे-धीरे महिलाओं के तनाव को कम करती है।

विज्ञान की माने तो पैरों के अंगूठे की तरफ से दूसरी अंगुली में एक विशेष नस होती है जो गर्भाशय से जुड़ी होती है। यह गर्भाशय को नियंत्रित करती है। रक्तचाप को संतुलित कर इसे स्वस्थ रखती है। बिछिया के दबाव से रक्तचाप नियमित और नियंत्रित रहता है।

इस कारण उनका मासिक-चक्र नियमित हो जाता है। इसका दूसरा फायदा यह है कि बिछिया महिलाओं के प्रजनन अंग को भी स्वस्थ रखने में भी मदद करती है। बिछिया महिलाओं के गर्भाधान में भी सहायक होती है।बिछिया एक्यूप्रेशर का भी काम करती है। जिससे तलवे से लेकर नाभि तक की सभी नाड़िया और पेशियां व्यवस्थित होती हैं।

वन्देमातरम
: पीलिया(जॉन्डिस)

पीलिया के प्रकार और उपचार
दोस्तों पिछले दो साल से मैंने सबसे ज्यादा केस अगर देखे है तो वह है पीलिया के। यह बीमारी शरीर पे धीरे धीरे अपना कब्ज़ा जमाती है। हमारे शरीर में रक्त के लाल कण अगर कम हो जाते है तो पीलिया हो जाता है। हमारे रक्त में बिलीरुबिन नाम का एक पिला पदार्थ होता है जो लाल कणो के नष्ट होने पर निकलता है तो शरीर में पीलापन आने लगता है। दूसरा कारन यह है की हमारा जिगर ठीक से कार्य नहीं करता एक यह भी पीलिया होने का संकेत है। कुछ दिनों तक जी मिचलाता है, शरीर सुस्त बेजान सा लगता है, आँखे और त्वचा जैसे नाख़ून पिले हो जाते है, बुखार रहता है, पेशाब पिला और मल बदबूदार होता है।

पीलिया के रोग प्रकार

वातज : इस पीलिया में आँखे और पेशाब में रुक्षता, कालापन तथा लाली दिखाई देती है, शरीर में सुई चुभने जैसी पीड़ा तथा कम्प, भ्रम के लक्षण दिखाई देते है।

पित्तज : इस पीलिया में मलमूत्र और आँखों का रंग पिला हो जाता है। शरीर की कांति भी पिली हो जाती है। मल पतला होता है एवं जलन, प्यास और बुखार के लक्षण भी दिखाई पड़ते है।

कफज :
इस पीलिया में रोगी के मुख से कफ गिरता है, आलस्य, शरीर में भारीपन, सूजन और आँख, मुंह, त्वचा एवं पेशाब में सफेदी के लक्षण दिखते है।

सन्निपतज :

इस पीलिया में ऊपर के तीनो लक्षण दिखाई देते है और यह अत्यन्त कष्टदायक भी होता है। नाभि, मुंह और पाँव सूज जाते है। पेट के कीड़े, कफ तथा रकयुक्त मल निकलता है। आँखों पे, गालो पे और भोवो पे सूजन आती है।

क्यों होता है पीलिया
खटाई, गर्म चटपटे और पित्त बढ़ाने वाले पदार्थ अधिक खाना, शराब अधिक पीना, दिन में ज्यादा सोना, खून की कमी तथा संक्रमण के कारन, खट्टे पदार्थो का अधिक सेवन, वात, कफ और पित्त कुपित होने से भी पीलिया होता है।

भोजन तथा परहेज

आराम करना, फलाहार, रसाहार, जूस का सेवन, चोकर के साथ आटे की रोटी, पुराने चावल, निम्बू पानी, ताजे एवं पके फल, अंजीर, किशमिश, गन्ने का रस, जौ चना का सत्तू, छाछ, मूंग की दाल, बैगन की सब्जी, मूली, खीरा आदि खाना चाहिए।

पेट भर खाना, मैदे से बने पदार्थ, खटाई, उड़द की दाल, ठन्डे पानी से नहाना, लालमिर्च, मसाले, ताली हुयी चीजे, घी, मछली, मांस आदि से दुर रहे और रोगी को पूर्ण रूप से आराम करने दे तथा मानसिक कष्ट ना हो इस बात का ध्यान रखे।

3 चम्मच नीम के ताजे पत्तो का रस, आधा चम्मच सोंठ का पावडर और 4 चम्मच शहद इन सब को साथ में मिलाकर सुबह खली पेट 5 दिन तक लेने से कैसा भी पीलिया हो ठीक हो जाता है।

गिलोय का 5 ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर देने से पीलिया रोग मीट जाता है। अगर गिलोय ना हो तो कालीमिर्च या त्रिफला का चूर्ण भी आप रोगी को दे सकते है।

100 ग्राम बड़ी हरड़ के छिलके और 100 ग्राम मिश्री को मिलकर चूर्ण बनकर 6-6 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम खाली पेट ताजे पानी के साथ खाने से पीलिया रोग मीट जाता है।*

20 मिली तजा निम्बू का रस सुबह शाम रोगी को पिलाने से और 2-3 बुँदे आँखों में डालने से पीलिया रोग जड़ से खत्म हो जाता है।

पुनर्नवा की जड़ को साफ करके छोटे छोटे टुकड़े काटकर गले में 21 टुकड़ो की माला बनाकर रोगी के गले में पहना दे और जब पीलिया का प्रकोप चला उतर जाये तब माला को उतार कर किसी पेड़ पे लटका कर रख दे।

मूली में विटामिन सी, लोह, कैल्सियम, सोडियम, म्याग्नेसियम और क्लोरीन आदि खनिज होते है जो जिगर की क्रिया को ठीक करते है इसलिए पीलिया के रोगी को 100 मिली मूली के रस को गुड मिलाकर दिन में 3-4 बार देने से बहोत लाभ मिलाता है।

4 कलि लसुन को पीसकर आधा कप गर्म दूध में मिलाकर पिने से ऊपर से दूध पि ले। यह प्रयोग 4 दिन तक करने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
यह रोग अधिकांशतः पानी की अशुद्धि के कारण होता है। इसका मुख्य कारण शरीर मे सही ढंग से खून न बनना है। जिसके कारण शरीर मे पीलापन आ जाता है सबसे पहले इसका असर आँखों मे बाद में शरीर व मुत्र में पीलापन आता है। भूख न लगना, भोजन देखकर उल्टी आना,मुह का स्वाद कड़वा होना,नाड़ी की गति धीरे चलना व शरीर मे खुजली,अनिद्रा व कमजोरी महसूस करना।
पीलिया के घरेलू उपचार :-

  1. गिलोय चूर्ण एक चम्मच सुबह शाम सादे जल से या शहद में मिलाकर चाटने से
  2. ‎मूली गाजर के ताजे पत्ते नमक के साथ खाने से या रस पीने से
  3. ‎कड़वे निम के कोमल पत्तो का रस में मिश्री मिलाकर गर्म कर ठंडा कर पीने से (रामबाण औषधि)
  4. ‎गन्ने के रस में निम्बू या गेंहू के दाने के बराबर चुना डालकर पीने से
  5. ‎कालीमिर्च का चूर्ण शहद के साथ
  6. ‎बड़े हरड़े का चूर्ण गुड़ के साथ खाने से
  7. ‎त्रिफला चूर्ण का काढ़ा बनाये व देसी घी व मिश्री मिलाकर सेवन से
  8. ‎गिलोय के पत्ते का रस मठ्ठे में मिलाकर सेवन से
  9. ‎एक चुटकी छोटी हरड़ का चूर्ण शहद के साथ
  10. ‎बेल पत्तो का रस में कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सुबह शाम लेने से
  11. ‎सौ ग्राम गुड़ के साथ या केले को चीरा लगाकर बीच मे गेंहू के दाने के बराबर चुना मिलकार सेवन करने से एक एक हप्ते के अंतराल पर 2 से 3 बार
  12. ‎सौठ चूर्ण शहद के साथ सुबह शाम
  13. ‎त्रिफला गिलोय अदुलसा कुटकी चिरायता का काढ़ा सुबह शाम
  14. ‎बथुये के बीज का चूर्ण सुबह शाम सादे जल के साथ

15.आक के दो छोटे कोमल पत्ते कोपल वाले पान के पत्ते के साथ चबाये

  1. द्रोण पुष्पी के पत्ते का रस एक से 2 चम्मच सुबह ख़ालि पेट
  2. ‎गेहूँ के दाने के बराबर चुना गन्ने या किसी भी मौसमी जूस में (ध्यान दें पथरी हो तो न लें)

लीवर में गड़बड़ी होने के कारण पित्त (Bile) सीधा रक्त में मिल जाता है जिससे रोगी का रक्त पीला होने लगता है जिससे रोगी की त्वचा, पेशाब का रंग, आँख और नाख़ून आदि पीले दिखने लगते हैं l मुख में कड़वापन, बुखार, दुर्बलता व सुस्ती आ जाती है l

● इलाज शुरू करने के पहले दें – (सल्फर 30, की 3 खुराक 2-2 घंटे पर)

● जब उबकाई आए, उल्टी लगे, बेचैनी व प्यास जल्दी – जल्दी लगे – (इपिकैक 30 और आर्सेनिक एल्ब 30, दिन में 3 बार)

● जब उल्टी आनि बंद हो चुकी हो, शरीर में पीलापन नजर आने लगे – (कारडूअस Q या 6, दिन में 3 बार)

● जब जिगर (Liver) बढ़ जाये, आंखे पीली व पेशाब पीला – (चेलीडोनियम Q या 6, दिन में 3 बार)

● अगर रोगी शराबी हो या शराब पीने से लीवर की बीमारी हुई हो – (नक्स वोमिका Q या 6 या 30, दिन में 3 बार)

● कालमेघ Q, चेलिडोनियम Q, केरिका पपाया Q, माइरिका Q इन सब को बराबर मात्रा में मिला लें और दस – दस बूंद पानी में मिलाकर दिन में 3-4 बार लें l

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पीलिया JAUNDICE

परिचय-
पीलिया रोग में रोगी के शरीर की त्वचा पीली हो जाती है, आंखों के अन्दर का सफेद भाग तक भी पीला हो जाता है। आंखों और रोगी की त्वचा से पता चलता है कि उसे पीलिया हुआ है। ये पीलापन खून में मौजूद बिलरूबिन की मौजूदगी के कारण होता है। ये तत्व लाल रक्त कोशिकाओं के नष्ट होने से बनता है।

लक्षण-

पीलिया रोग के लक्षणों में रोगी की त्वचा, आंखे, नाखून पीले रंग के हो जाते हैं। रोगी पेशाब करता है तो वह भी बिल्कुल पीले रंग का आता है।

विभिन्न औषधी से रोग का उपचार

  1. ऐकोनाइट- अगर पीलिया रोग की शुरुआत में ही रोगी को ऐकोनाइट औषधि दी जाए तो इससे पीलिया का रोग पूरी तरह से समाप्त हो सकता है। इसके अलावा पीलिया का तेज होना जिसके कारण रोगी पूरी रात करवटें बदलता रहता है, उसे घबराहट होती है, बेचैनी सी छाने लगती है, रोगी को बहुत तेज प्यास लगती रहती है जो बार-बार पानी पीने से भी नहीं बुझती बल्कि और भी बढ़ती जाती है, रोगी को पानी के सिवाय बाकी सारी चीजें कड़वी लगने लगती हैं, पेशाब का रंग काला हो जाता है, पेट के नीचे के भाग को छूने से दर्द होने लगता है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को ऐकोनाइट औषधि की 3 शक्ति देना लाभ करती है। पीलिया के रोगी ने अगर पारे की बनी हुई औषधियों को सही तरह से उपयोग किया हो तो मर्क-सोल औषधि के सेवन से इस रोग को काबू में किया जा सकता है। पीलिया के रोगी ने अगर ज्यादा मात्रा में पारे से बनी हुई औषधियों का सेवन किया हो तो उसे चायना औषधि देनी चाहिए।
  2. ब्रायोनिया- रोगी को पीलिया रोग होने के लक्षणो में किसी तरह की हरकत करने से ही रोग बढ़ जाता है, जिगर के भाग में हल्का सा दबाव ही रोगी को बर्दाश्त नहीं होता, रोगी से बिल्कुल भी हिला-डुला नहीं जाता, सांस लेने में परेशानी होती है, रोगी को खांसी होने पर ऐसा महसूस होता है जैसे कि उसका जिगर अभी फट पड़ेगा। इस प्रकार के लक्षणो में रोगी को ब्रायोनिया औषधि की 30 शक्ति दी जा सकती है।
  3. चियोनैन्थस- चियोनैन्थस औषधि को जिगर के रोग की एक बहुत ही खास औषधि माना जाता है। रोगी की आंखें बिल्कुल पीली हो जाना, नाभि के भाग में दर्द होना, मल का रंग पीला और पतला सा आना। जिगर बड़ा हो जाना, रोगी का बिल्कुल कमजोर हो जाना, पेशाब काले रंग का आना आदि लक्षणों में चियोनैन्थस औषधि का रस लेने से लाभ मिलता है। इसके अलावा पुराने पीलिया के रोग की ये बहुत ही अच्छी औषधि मानी जाती है।
  4. सल्फर- पीलिया रोग की शुरुआत में ही अगर रोगी को सल्फर औषधि की 200 शक्ति दी जाती है तो इससे रोगी को बहुत जल्दी आराम मिलता है।
  5. चैलीडोनियम- पीलिया के रोगी को रोग की शुरुआत में अगर सल्फर औषधि से खास लाभ न हो तो उसे दूसरे दिन चैलीडोनियम औषधि दी जा सकती है। रोगी को अपने जिगर के भाग में दर्द सा महसूस होना, मुंह का स्वाद बिल्कुल कड़वा हो जाना, जीभ पर मैल की मोटी सी परत का जम जाना, जीभ के किनारे लाल होना, जीभ पर दांतों के निशान से पड़ जाना, आंखों का बिल्कुल पीला हो जाना, रोगी का चेहरा, हाथ और त्वचा पीली सी हो जाना, पेशाब पीला सा आना, भूख न लगना, जी मिचलाना, पित्त की उल्टी होना, रोगी को गर्म ही भोजन और गर्म ही पानी पीने की इच्छा होती रहती है। इस तरह के पुराने पीलिया या नए पीलिया रोग के लक्षणों में रोगी को चैलीडोनियम औषधि का रस या 3 शक्ति देने से लाभ होता है।
  6. मर्क-सोल-

रोगी को पीलिया रोग के दूसरे लक्षणों के साथ अगर जिगर में सूजन आ जाती है जिसके कारण रोगी दाईं करवट लेट नहीं सकता, जिगर में किसी तरह का दबाव रोगी से सहा नहीं जाता या वहां पर सुई की तरह चुभता हुआ सा दर्द होता है। पित्त की नली में सूजन आना, रोगी की जीभ बिल्कुल तर होने पर भी रोगी को बार-बार प्यास लगती रहती है, रात को सोते समय बहुत ज्यादा खुजली होना, बिस्तर में लेटते ही गर्मी बढ़ने के कारण रोग का बढ़ जाना, मुंह का स्वाद कड़वा हो जाना, जीभ पर दांतों के निशान से पड़ जाना, रोगी को बहुत ज्यादा पसीना आने पर भी रोगी को किसी तरह का आराम नहीं मिलता, रोगी को पीला पसीना आता है जिसके कारण उसके कपड़े भी पीले हो जाते हैं। इस तरह के लक्षणों में रोगी को मर्क-सोल औषधि की 2 या 30 शक्ति देने से लाभ मिलता है।
अगर पीलिया रोग की शुरुआत में बुखार भी आता है तो उसकी चिकित्सा ऐकोनाइट औषधि के द्वारा शुरु की जा सकती है और उसके बाद मर्क-सौल औषधि दे सकते हैं। अगर इस रोग के साथ बुखार नहीं आता है और रोग थोड़े दिन पुराना हो गया है तो पहले 7 दिन तक चायना औषधि दी जाती है और इसके बाद मर्क-सौल दी जाती है।

  1. पोडोफाइलम- अगर किसी व्यक्ति को पीलिया रोग हुए कुछ दिन बीत चुके हैं और उसके सामान्य स्वास्थय पर इसका कोई ज्यादा बुरा असर नहीं पड़ा है तो यह औषधि लेने से लाभ मिलता है। रोगी को कब्ज और दस्त एक के बाद एक होते रहते हैं जैसे कभी तो मल बिल्कुल नहीं आता और कभी बहुत ज्यादा आता है, रोगी का पेट फूला हुआ सा रहता है, जिगर में दर्द होता है, खून की उल्टी आ सकती है, बहुत ज्यादा गंदी सी डकारें आती है। इस तरह के लक्षणों में अगर रोगी को पोडोफाइलम औषधि का रस या 6 शक्ति दी जाए तो उसके लिए अच्छा रहता है।
  2. माइरिका-सेरिफेरा- माइरिका-सेरिफेरा औषधि का जिगर पर बहुत अच्छा असर पड़ता है। पीलिया के रोग में रोगी को बिल्कुल नींद न आना, कंधे के अस्थि-फलक के नीचे और गर्दन के पीछे के भाग में दर्द होना, शरीर की सारी मांस-पेशियों में दर्द होना, त्वचा का रंग पीला होने के साथ उसमें खुजली होना, दाएं पैर के खोल में दर्द होना, जीभ पर गाढ़ा, पीले या काले रंग की परत जम जाना जैसे लक्षणों में इस औषधि का रस या 3 शक्ति देना लाभदायक होता है।
  3. डिजिटेलिस- पीलिया के रोगी का रोग बिगड़ जाने पर उसकी नाड़ी का अनियमित रूप से चलना या बीच में रुक-रुककर चलने में डिजिटेलिस औषधि अच्छा असर करती है। इसके अलावा अचानक जी मिचलाने लगना जैसे उल्टी आने वाली है। रोगी का नींद की अवस्था में रहना और कुछ समय के बाद उसका पूरा शरीर पीले रंग का पड़ जाना यहां तक की आंखें और नाखून भी पीले हो जाते हैं। मल का बेरंग आना, पेशाब का बीयर के रंग जैसा रंग हो जाना, नाड़ी चलने की गति एक मिनट में सिर्फ 30 की गति से ही चलती है। पीलिया रोग के इस तरह के लक्षण अगर दिल के रोग के कारण पैदा होते हैं तो इस औषधि का रस या 3 या 30 शक्ति लाभ करती है।
  4. नक्स-वोमिका- अगर किसी व्यक्ति को गुस्सा आने के बाद पीलिया का रोग हो जाता है तो उस समय के लिए नक्स-वोमिका औषधि अच्छी रहती है। पीलिया रोग के कारण रोगी में मानसिक लक्षण पैदा हो जाते हैं जैसे दूसरे लोगों से बदतमीजी से बात करना, गालियां बकने लगना, छोटी-छोटी बातों पर ही झगड़ने लगना। इसके अलावा रोगी हर समय कपड़ों में ही ढका रहना चाहता है क्योंकि उसे ठण्ड बहुत ज्यादा महसूस होती है, रोगी बिस्तर में इस तरह से सिकुड़कर लेटता है कि कहीं से हवा न लग जाए, रोगी शीत प्रकृति का होता है। उसका चेहरा पीला पड़ जाता है, मुंह का स्वाद कड़वा हो जाता है जिसके कारण उसे रोटी भी कड़वी लगने लगती है। जिगर में सूजन आना, सख्त सा हो जाना जिसको छूते ही दर्द करने लगता है। इस तरह से रोगी शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से कमजोर सा हो जाता है। इन लक्षणों के आधार पर अगर रोगी को नक्स-वोमिका औषधि की 6 या 30 शक्ति दी जाए तो लाभदायक रहती है।
  5. नैट्रम-सल्फ- नैट्रम-सल्फ को जिगर के रोगों की एक बहुत ही असरदार औषधि माना जाता है। अगर रोगी को जिगर के रोगों के साथ अन्य लक्षण जैसे सिर में दर्द होना, जीभ पीली या भूरी सी होना आदि में भी ये औषधि बहुत लाभकारी रहती है।
  6. चायना- रोगी के जिगर में सूजन आ जाती है, जिगर कठोर सा हो जाता है जिसमें हाथ लगाते ही दर्द होने लगता है, पित्त-कोष में रुकावट आ जाती है, दर्द होने लगता है, मुंह का स्वाद खराब हो जाता है, पेट का फूल जाना, बहुत ज्यादा डकारें आना, रोगी को रात के समय बहुत ज्यादा कमजोरी महसूस होती है, उससे ज्यादा ठण्डी हवा भी बर्दाश्त नहीं होती, बहुत तेज भूख लगती है या बिल्कुल ही नहीं लगती, बे्रड, बीयर, मक्खन, मांस, घी, गर्म कॉफी या गर्म भोजन को देखते ही रोगी को अरुचि हो जाती है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को चायना औषधि की 6 या 30 शक्ति देना लाभकारी रहता है।
  7. सीपिया- रोगी के जिगर में सूजन आ जाना, जिगर का बड़ा हो जाने के साथ ही दर्द होना, पेट का बहुत ज्यादा फूल जाना, जिगर के भाग में बेचैनी सी होना, बहुत ज्यादा चिड़चिडा हो जाना, किसी से भी प्यार से बातें न करना, बहुत ज्यादा भूख लगती है जो भोजन करने के बाद भी शांत नहीं होती, कब्ज बनना आदि लक्षणों में रोगी को सीपिया औषधि की 200 शक्ति लाभदायक रहती है।
  8. डोलिकोस-प्युरियेन्स- पीलिया रोग में रोगी को सफेद रंग का मल आता है, रोगी को पूरे शरीर में बिना किसी दानों के हुए बहुत तेज खुजली होने लगती है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को डोलिकोस-प्युरियेन्स औषधि की 6 शक्ति देनी चाहिए।
  9. कैमोमिला- रोगी का बहुत ज्यादा चिड़चिड़ा सा हो जाना, हर समय गुस्से में ही रहना, जिगर में सूजन आ जाना, इस तरह का दर्द होना जो रोगी के लिए बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को कैमोमिला औषधि की 30 शक्ति देना लाभदायक रहती है।

जानकारी-

पीलिया रोग में रोजाना गन्ने का रस पीना बहुत ही लाभकारी रहता है क्योंकि गन्ने के रस को पीलिया रोग का बहुत बड़ा दुश्मन माना जाता है।
पीलिया के रोगी को रोजाना ताजी सब्जियों का 2-3 गिलास रस पीना चाहिए।
रोगी को, दूध, पनीर और मांसाहारी चीजों का सेवन नहीं कराना चाहिए।
पीलिया के रोगी को शराब नहीं पीनी चाहिए।
रोगी को बहुत ज्यादा मात्रा में ठण्डा पानी पीना चाहिए।

अमर शहीद राष्ट्रगुरु, आयुर्वेदज्ञाता, होमियोपैथी ज्ञाता स्वर्गीय भाई राजीव दीक्षित जी के सपनो (स्वस्थ व समृद्ध भारत) को पूरा करने हेतु अपना समय दान दें

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[ सहजन पेड़ नहीं मानव के लिए कुदरत का चमत्कार

सेंजन, मुनगा या सहजन आदि नामों से जाना जाने वाला सहजन औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके अलग-अलग हिस्सों में 300 से अधिक रोगों के रोकथाम के गुण हैं। इसमें 92 तरह के मल्टीविटामिन्स, 46 तरह के एंटी आक्सीडेंट गुण, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं। चारे के रूप में इसकी पत्तियों के प्रयोग से पशुओं के दूध में डेढ़ गुना और वजन में एक तिहाई से अधिक की वृद्धि की रिपोर्ट है। यही नहीं इसकी पत्तियों के रस को पानी के घोल में मिलाकर फसल पर छिड़कने से उपज में सवाया से अधिक की वृद्धि होती है। इतने गुणों के नाते सहजन चमत्कार से कम नहीं है। आयुर्वेद ने सहजन की जिन खूबियों को पहचाना था, आज के वैज्ञानिक युग में वे साबित हो चुकी हैं। सहजन को अंग्रेजी में ड्रमस्टिक कहा जाता है। इसका वनस्पति नाम मोरिंगा ओलिफेरा है। फिलीपीन्स, मैक्सिको, श्रीलंका, मलेशिया आदि देशों में भी सहजन का उपयोग बहुत अधिक किया जाता है। दक्षिण भारत में व्यंजनों में इसका उपयोग खूब किया जाता है।

कम देखरेख और ढेरों फायदे

सहजन औषधीय गुणों से भरपूर है । इसकी फली के अचार और चटनी कई बीमारियों से मुक्ति दिलाने में सहायक हैं। यह जिस जमीन पर यह लगाया जाता है, उसके लिए भी लाभप्रद है। दक्षिण भारत में साल भर फली देने वाले पेड़ होते है. इसे सांबर में डाला जाता है। उत्तर भारत में यह साल में एक बार ही फली देता है। सर्दियां जाने के बाद फूलों की सब्जी बना कर खाई जाती है फिर फलियों की सब्जी बनाई जाती है। इसके बाद इसके पेड़ों की छटाई कर दी जाती है।सहजन वृक्ष किसी भी भूमि पर पनप सकता है और कम देख-रेख की मांग करता है। इसके फूल, फली और टहनियों को अनेक उपयोग में लिया जा सकता है। भोजन के रूप में अत्यंत पौष्टिक है और इसमें औषधीय गुण हैं। इसमें पानी को शुद्ध करने के गुण भी मौजूद हैं। सहजन के बीज से तेल निकाला जाता है और छाल पत्ती, गोंद, जड़ आदि से दवाएं तैयार की जाती हैं। सहजन में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन ए, सी और बी कॉम्पलैक्स प्रचुर मात्रा में है। सहजन में दूध की तुलना में ४ गुना कैल्शियम और दुगना प्रोटीन पाया जाता है।

सैकड़ों औषधीय गुण

सहजन की फली वात व उदरशूल में पत्ती नेत्ररोग, मोच ,शियाटिका ,गठिया में उपयोगी है। सहजन की जड़ दमा, जलोधर, पथरी,प्लीहा रोग के लिए उपयोगी है। छाल का उपयोग शियाटिका ,गठियाए,यकृत आदि रोगों के लिए श्रेयष्कर है। सहजन के विभिन्न अंगों के रस को मधुर,वातघ्न,रुचिकारक, वेदनाशक,पाचक आदि गुणों के रूप में जाना जाता है सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वातए व कफ रोग शांत हो जाते है, इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया, शियाटिका ,पक्षाघात,वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है, शियाटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है। सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं तथा मोच के स्थान पर लगाने से शीघ्र ही लाभ मिलने लगता है। सहजन को अस्सी प्रकार के दर्द व बहत्तर प्रकार के वायु विकारों का शमन करने वाला बताया गया है। सहजन की सब्जी खाने से पुराने गठिया ए जोड़ों के दर्दए वायु संचय , वात रोगों में लाभ होता है। सहजन के ताज़े पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है। सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है। सहजन की जड़ की छाल का काढा सेंधा नमक और हिंग डालकर पीने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है। सहजन के पत्तों का रस बच्चों के पेट के कीड़े निकालता है और उलटी दस्त भी रोकता है। सहजन फली का रस सुबह शाम पीने से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है। सहजन की पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे धीरे कम होने लगता है। सहजन. की छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़ें नष्ट होते है और दर्द में आराम मिलता है। सहजन के कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होती है। सहजन की जड़ का काढे को सेंधा नमक और हींग के साथ पीने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है। सहजन की पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सुजन ठीक होते है। सहजन के पत्तों को पीसकर गर्म कर सिर में लेप लगाए या इसके बीज घीसकर सूंघे तो सर दर्द दूर हो जाता है। सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीस कर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लैरीफिकेशन एजेंट बन जाता है। यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है जिससे जीवविज्ञान के नजरिए से मानवीय उपभोग के लिए अधिक योग्य बन जाता है। सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है। सहजन में विटामिन सी की मात्रा बहुत होती है। विटामिन सी शरीर के कई रोगों से लड़ता है खासतौर पर सर्दी जुखाम से। अगर सर्दी की वजह से नाक कान बंद हो चुके हैं तोए आप सहजन को पानी में उबाल कर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होगी। सहजन में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है जिससे हड्डियां मजबूत बनती है। इसके अलावा इसमें आयरन , मैग्नीशियम और सीलियम होता है।सहजन का जूस गर्भवती को देने की सलाह दी जाती है। इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है। सहजन में विटामिन ए होता है जो कि पुराने समय से ही सौंदर्य के लिये प्रयोग किया आता जा रहा है। इस हरी सब्जी को अक्सर खाने से बुढापा दूर रहता है। इससे आंखों की रौशनी भी अच्छी होती है।सहजन का सूप पीने से शरीर का रक्त साफ होता है। पिंपल जैसी समस्याएं तभी सही होंगी जब खून अंदर से साफ होगा।सहजन की पत्ती को सुखाकर उसकी चटनी बनाने से उसमें आयरन, फास्फोरस, कैल्शियम प्रचूर मात्रा में पाया जाता है। गर्भवती महिलाएँ और बुजुर्ग भी इस चटनी, अचार का प्रयोग कर सकते हैं और कई बीमारियों जैसे रक्त अल्पता तथा आँख की बीमारियों से मुक्ति पा सकते हैं। सहजन या सुरजने का समूचा पेड़ ही चिकित्सा के काम आता है। इसे जादू का पेड़ भी कहा जाता है। त्वचा रोग के इलाज में इसका विशेष स्थान है। सहजन के बीज धूप से होने वाले दुष्प्रभावों से रक्षा करते हैं। अक्सर इन्हें पीसकर डे केअर क्रीम में इस्तेमाल किया जाता है। बीजों का दरदरा पेस्ट चेहरे की मृत त्वचा को हटाने के लिए स्क्रब के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है। फेस मास्क बनाने के लिए सहजन के बीजों के अलावा कुछ और मसाले भी मिलाना पड़ते हैं। सहजन के बीजों का तेल सूखी त्वचा के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह एक ताकतवर मॉश्चराइजर है। इसके पेस्ट से खुरदुरी और एलर्जिक त्वचा का बेहतर इलाज किया जा सकता है। सहजन के पेड़ की छाल गोखरू, कील और बिवाइयों के इलाज की अक्सीर दवा मानी जाती है। सहजन के बीजों का तेल शिशुओं की मालिश के लिए प्रयोग किया जाता है। त्वचा साफ करने के लिए सहजन के बीजों का सत्व कॉस्मेटिक उद्योगों में बेहद लोकप्रिय है। सत्व के जरिए त्वचा की गहराई में छिपे विषैले तत्व बाहर निकाले जा सकते हैं। सहजन के बीजों का पेस्ट त्वचा के रंग और टोन को साफ रखने में मदद करता है।मृत त्वचा के पुनर्जीवन के लिए इससे बेहतर कोई रसायन नहीं है। धूम्रपान के धुएँ और भारी धातुओं के विषैले प्रभावों को दूर करने में सहजन के बीजों के सत्व का प्रयोग सफल साबित हुआ है।

सहजन के पौष्टिक गुणों की तुलना

-विटामिन सी- संतरे से सात गुना।

-विटामिन ए- गाजर से चार गुना।

-कैलशियम- दूध से चार गुना।

-पोटेशियम- केले से तीन गुना।

-प्रोटीन- दही की तुलना में तीन गुना।

उत्तम स्वास्थ्य के लिए योग आयुर्वेद अपनाओ । राजीव दीक्षित जी को सुनें ।खाना मिट्टी के बर्तनों में पकायें । 100% पोषक तत्व पायें ।

सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयाः

वन्देमातरम ।
1 . भोजन हमेशा समय पर करें .

2 . प्रतिदिन सुबह देसी शहद में निम्बू रस मिलाकर चाट लें .

3 . हींग , लहसुन , चद गुप्पा ये तीनो बूटियाँ पीसकर गोली बनाकर छाँव में सुखा लें , व् प्रतिदिन एक गोली खाएं .

4 . भोजन के समय सादे पानी के बजाये अजवायन का उबला पानी प्रयोग करें .

5 . लहसुन , जीरा 10 ग्राम घी में भुनकर भोजन से पहले खाएं .

6 . सौंठ पावडर शहद ये गर्म पानी से खाएं .

7 . लौंग का उबला पानी रोजाना पियें .

8 . जीरा , सौंफ , अजवायन इनको सुखाकर पावडर बना लें , शहद के साथ भोजन से पहले प्रयोग करें .
[विटामिन के फायदे और नुकसान

विटामिन ‘ए’ के फायदे :

सबसे पहले विटामिन ‘ए’ की चर्चा करते हैं। हमारे आहार में थोड़ी बहुत मात्रा में ये विटामिन मौजूद रहते हैं।

आहार के जो तत्व हमारी नेत्र की ज्योति और त्वचा को स्वस्थ रखते हैं उन तत्वों को विटामिन ‘ए’ कहा गया है।

विटामिन ‘ए’ की बनी बनाई टेबलेट, केपसूल आदि दवाइयां बाज़ार में सब जगह मिलती हैं पर प्राकृतिक रूप से हरी शाक-सब्ज़ी, फल आदि शाकाहारी भोजन से विटामिन प्राप्त करना सर्वश्रेष्ठ और अधिक गुणकारी है। हरी शाक सब्ज़ी में पाया जाने वाला तत्व ‘केरोटीन’ शरीर में पहुंच कर विटामिन ‘ए’ के रूप में परिवर्तित हो जाता है।

आधुनिक चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि प्रति दिन 5000 यूनिट विटामिन ‘ए’ मिल जाना पर्याप्त है।

विटामिन ‘ए’ की कमी के लक्षण और रोग :

✦ विटामिन ‘ए’ की कमी या इसका बिल्कुल अभाव होने से हमारी नज़र कम या बिल्कुल खत्म हो सकती है और हम अन्धे हो सकते हैं।

✦ बाल्यकाल में बच्चों के आहार में इस विटामिन की कमी से उनकी नज़र कमज़ोर हो जाती है, वे अन्धे हो सकते हैं।

✦ रात में न दिखाई देना ‘रतौंधी‘ यानी रात का अन्धापन कहलाता है यह भी इसी विटामिन के अभाव के कारण होता है।

विटामिन ‘ए’ के स्रोत

इसके लिए आप शाक सब्ज़ी में चौलाई, मैथी, पत्ता गोभी आदि हरी पत्ती वाली शाक सब्ज़ी खाइए।

फलों में आम, पपीता, टमाटर, तरबूज, गाजर, सीताफल, नारंगी आदि तथा मख्खन व दूध का सेवन कीजिए। बासे, अधिक पके हुए और ज्यादा धूप खाए हुए पदार्थों में यह विटामिन नष्ट हो जाता है।

विटामिन-बी (समूह) :

विटामिन बी के तत्व बहुत व्यापक और विभिन्न गुण वाले पाये गये अतः वैज्ञानिकों ने इनके वर्ग तय करके एक ‘विटामिन बी’ समूह यानी विटामिन बी ग्रुप निर्धारित किया। इनमें विटामिन बी1, बी2, बी6, और बी 12 शामिल हैं।  मेडिकल भाषा में बी-वन को थायमिन, बी-टू को रिबोफ्लेविन कहते हैं।

विटामिन-बी (ग्रुप) की कमी के लक्षण और रोग

✦ बी-वन की कमी से ‘बेरी-बेरी’ नामक रोग होता है जिसमें मांस पेशियां कमज़ोर हो जाती हैं, पैरों में सूजन आती है सांस फूलती है और दिल की धड़कन बढ़ जाती है। मशीन से साफ़ किये हुए व पालिश किये हुए चावल के अधिक प्रयोग से भी यह रोग होता है।

✦ विटामिन बी-वन की कमी से हाथ पैर सुन्न होना सामान्य कमज़ोरी, भूख की कमी, लकवा होना, चक्कर आना व पेट की गड़बड़ी आदि व्याधियां होती हैं।

✦ हृदय पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

✦ विटामिन बी-टू की कमी से जीभ फटना, होंठों के कोने फटना, होठों पर सूखी पपड़ी जमना, जीभ की रंगत खराब होना, सारे शरीर में शिथिलता व थकावट आदि लक्षण प्रकट होते हैं।

✦ सर्वाधिक प्रभाव बी-12 का यह होता है कि इसकी कमी से रक्त की कमी हो जाती है, एनेमिक हालत हो जाती है।

✦ बच्चों के शरीर का विकास रुक जाता है।

✦ नस नाड़ी व स्नायविक संस्थान कमज़ोर पड़ जाता है। त्वचा का रंग पीला पड़ने लगता है।

✦ कमज़ोरी, चक्कर, पाचन शक्ति में खराबी,दुबलापन, जीभ चिकनी, अन्दर पेट में दाह चिड़चिड़ापन आदि लक्षण प्रकट होते हैं।

बी-12 में कोबाल्ट और सायनाइड दो तत्व पाये जाने से इसे सायनोकोबालमिन भी कहा जाता है।

विटामिन-बी (ग्रुप) के स्रोत :

यह विटामिन छिलके सहित सब्ज़ी, गेहूं की चोकर, साबुत अंकुरित अन्न, दाल, मूंगफली, खमीर आदि में पाया जाता है। अतः इनका यथोचित सेवन करना चाहिए।

विटामिन-सी के फायदे :

बच्चों के दांत निकलते समय और गर्भवती स्त्री के लिए विटामिन-सी बहुत ज़रूरी होता है।

विटामिन-सी की कमी के लक्षण और रोग

इस विटामिन की कमी से मसूढ़े फूलना, जोड़ों में सूजन व दर्द, त्वचा रोग और स्कर्वी रोग आदि उपद्रव होते हैं।

विटामिन-सी के स्रोत :

विटामिन-सी सबसे अधिक आंवला और अमरूद में तो होता ही है, नींबू, सन्तरे, टमाटर, पालक, हरी सब्ज़ियों, अंकुरित मूंग और कच्चे दूध में भी पाया जाता है।

विटामिन डी के फायदे :

यह हमारे शरीर की हड्डियों और दांतों को मज़बूत बनाता है। इसकी सहायता से कैल्शियम का पाचन होता है।

विटामिन डी के स्रोत :

विटामिन ‘डी’ सर्वाधिक रूप से सूर्य की किरणों से मिलता है। आहार में मख्खन, पनीर, दूध,हरी शाक सब्ज़ी और दही  से मिलता है।

विटामिन-ई के फायदे :

यह शरीर के विकास में उपयोगी है और प्रजनन शक्ति प्रदान करने वाला है

विशेष कर छोटे बच्चों के शरीर में समुचित विकास के लिए यह ज़रूरी होता है।

विटामिन-ई के स्रोत :

यह दूध, गेहूं की चोकर, दाल, तिल में पाया जाता है।

हमारे आहार वाले पदार्थों में विटामिन एवं अन्य पोषक तत्व बने रहें और नष्ट न हो जाएं इसके लिए हमें कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए।

विशेष बातें :
*
✶ सभी पदार्थ सब्ज़ी फल आदि ताज़े ही खाना चाहिए।*

✶सब्ज़ी धोकर बिना छीले यानी छिलके सहित ही पकाएं और सब्ज़ी उबाल कर पानी फेंकें नहीं बल्कि इस पानी को आटे में डाल लें क्योंकि इस पानी में पोषक तत्व रहते हैं।

✶ कच्चे ही खाये जाने वाले फल या शाक, सलाद आदि को तभी काटें जब खाना हो।

✶ काट कर देर तक रखे हुए, बासे, फिर से गर्म किये हुए, ज्यादा पकाये हुए, अधिक तले हुए और तेज़ मिर्च मसालों से युक्त पदार्थों के तत्व नष्ट हो जाते हैं।

✶ सब्ज़ी आदि को जल्दी पकाने के लिए खाने का सोडा प्रयोग न करें।

✶ आटा मोटा पिसवाएं और चोकर सहित गूंधे।

✶ भोजन में अधिक से अधिक हरी शाक सब्ज़ी का सेवन करें।

✶ बिना पकाये हुए कच्ची और ताज़ी सब्ज़ी ही खाना और भी अधिक गुणकारी होता है।
रोटी से भाग्य

🗣कभी-कभी न चाहते हुए भी जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ता है। भाग्य बिल्कुल भी साथ नहीं देता साथ ही दुर्भाग्य निरन्तर पीछा करता रहता है। दुर्भाग्य से बचने के लिए या दुर्भाग्य नाश के लिए यहां हम आपको एक अनुभूत टोटका बता रहे हैं। इसे पूर्ण आस्था के साथ करने से दुर्भाग्य का नाश होकर सौभाग्य में वृद्धि होती है। टोटका सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त से पहले इस टोटके को करना है। एक रोटी लें। इस रोटी को अपने ऊपर से 31 बार ऊवार लें। प्रत्येक बार वारते समय इस मन्त्र का उच्चारण भी करें।

🔱”ऊँ दुर्भाग्यनाशिनी दुं दुर्गाय नम:”🔱

🗣बाद में यह रोटी कुत्ते को खिला दें अथवा बहते पानी में बहा दें।यह अद्भुत प्रयोग है। इसके बाद आप देखेंगे कि किस्मत के दरवाजे आपके लिए खुल गए हैं। पूर्ण आस्था से यह टोटका करने पर शीघ्र लाभ होता है।
माॅ बगलामुखी भक्त

: ये हैं बुरी नजर से बचाने के सरल व अचूक उपाय

हम अक्सर यह सुनते हैं कि बच्चे को बुरी नजर लग गई या नजर लगने से दुकान बंद हो गई। नजर किसी भी सुंदर या अच्छी चीज को लग सकती है जैसे- सुंदर बच्चे को, दुकान को, घर को आदि। ऐसे में बुरी नजर से मुक्ति पाने के लिए टोने- टोटके ही अपनाए जाते हैं। अगर आपके घर के किसी सदस्य या आप पर बुरी नजर का प्रभाव है तो नीचे लिखे टोटके अपनाकर बुरी नजर से मुक्ति पा सकते हैं।
उपाय

  • नारियल को काले कपड़े में बांधकर सिलकर घर से बाहर लटका दें तो घर पर बुरी नजर का प्रभाव नहीं पड़ता।
  • थोड़ी सी साबुत फिटकरी लेकर नजर लगी दुकान पर से 31 बार उसारें। फिर किसी चौराहे पर जाकर उसे उत्तर दिशा में फेंककर पीछे देखें बिना लौट जाएं। दुकान पर लगी नजर दूर हो जाएगी।
  • थोड़ी सी राई, नमक, आटा और सात सूखी लाल मिर्च लेकर नजर दोष से पीड़ित व्यक्ति के सिर पर से सात-बार घुमाकर आग में डाल दें। नजरदोष होने से मिर्च जलने पर गन्ध नहीं आएगी।
  • घर के निकट वृक्ष की जड़ में शाम को थोड़ा सा कच्चा दूध डाल दें। फिर गुलाब की अगरबत्ती जलाएं। नजरदोष दूर हो जाएगा।
  • मंगलवार को हनुमान मन्दिर जाकर हनुमान जी के कन्धे का सिंदूर लाकर लगाने से बुरी नजर का प्रभाव दूर हो जाता है।
  • पुराने कपड़े की सात चिंदियां लेकर सिर पर से 21 बार उसारकर आग में जलाने से बच्चे को लगी नजर समाप्त हो जाती है।
  • पीली कौड़ी में छेद करके बच्चे को पहनाने से उसे नजर नहीं लगती।
  • नए मकान की चौखट पर काले धागे से पीली कौड़ी बांधने से उस पर बुरी नजर नहीं लगती है।
    : 🌷🌷ॐ ह्लीं पीताम्बरायै नमः🌷🌷
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    रात में करें बजरंगबली की पूजा !!
    🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 🌷 घर पर हनुमान पूजा कैसे करें🌷 हिन्दू धर्म के अनुसार मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा की जाती है। हनुमान जी यानि बल-बुद्धि और कौशल के दाता, श्री राम जी के परम भक्त और भगवान शिव के रुद्रावतार। हनुमान जी को सदा से साहस और वीरता से जोड़कर देखा जाता है। 🌷 *हनुमान पूजा विधि*🌷 अगर आपको रात को डरावने सपने आते हैं, शनिदेव की पीड़ा के कारण समस्या हो या किसी के नजर लगने का डर हो तो भगवान हनुमान जी की सच्चे ह्रदय से पूजा करना आपके लिए बहुत लाभदायक हो सकता है। आइये आज जानें कि किस तरह आप हनुमान जी की घर पर ही पूजा कर पूर्ण लाभ उठा सकते हैं। 🌷 हनुमान जी की पूजा विधि🌷 हनुमान जी की पूजा प्रतिदिन तो करनी ही चाहिए लेकिन मंगलवार और शनिवार को विशेष रूप से इनकी पूजा करनी चाहिए। अगर संभव हो सके तो जातक को 21 मंगलवार का व्रत रखना चाहिए। मंगलवार के दिन प्रातः काल स्नान आदि के पश्चात भगवान हनुमान जी की मूर्ति या प्रतिमा को गंगाजल से पवित्र करना चाहिए। 🌷 लाल रंग का इस्तेमाल🌷 पूजा के लिए लाल रंग के फूल और घी या तिल के तेल के दीपक को उपयोग में लाना चाहिए। हनुमान जी के समक्ष दीपक लगाने के बाद आरती, हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का यथासंभव पाठ करना चाहिए। 🌷 भोग का प्रसाद🌷 पाठ के बाद भगवान को भोग लगाना चाहिए। मंगलवार के दिन हनुमान जी को विशेष रूप से सिंदूर और लाल मिष्ठान प्रसाद स्वरूप अवश्य चढ़ाने चाहिए। किस दिशा में रखें हनुमान जी की मूर्ति वास्तु शास्त्र के अनुसार भगवान शिव जी के रुद्रावतार माने जाने वाले हनुमान जी की प्रतिमा घर में ऐसे लगानी चाहिए कि उनकी दृष्टि दक्षिण दिशा की तरफ हो। हनुमान जी को बाल ब्रहम्चारी माने जाते हैं इसलिए इनकी तस्वीर या प्रतिमा युगल दंपतियों के कमरे में नहीं लगानी चाहिए। *🌷शुभ तस्वीर*🌷 अगर बेडरूम के मंदिर में हनुमान जी की प्रतिमा लगानी हो तो जब पूजा ना हो तो मंदिर के दरवाजे बंद रखने चाहिए। घर में हनुमान जी की श्री राम, लक्ष्मण जी और सीता जी के साथ वाली तस्वीर लगाना शुभ माना जाता है। 🌷 यहां लगाए🌷 यह तस्वीर हनुमान जी के भक्तिभाव को दर्शाती है। इसके अलावा ध्यान मुद्रा में बैठे हनुमान जी या राम-लक्ष्मण जी को कंधे पर बिठाकर उड़ते हुए हनुमान जी की फोटो भी आप लगा सकते हैं।

हनुमान जी के कुछ आसान मंत्र

ॐ हं हनुमते नमः, ॐ पवनपुत्राय नमः, ॐ रामदूताय नमः आदि कुछ हनुमान जी के आसान मंत्र हैं। इनमें से किसी भी एक मंत्र का मंगलवार के दिन 108 बार जाप करने की कोशिश करनी चाहिए।

   *🌷हनुमान पाठ*🌷

   मंत्रों को इसके अतिरिक्त हनुमान चालीसा के गुणों का गुणगान तो आपने भी कई बार सुना होगा। यह हनुमान जी से संबंधित सबसे प्रभावशाली मंत्र माना जाता है। भय मुक्ति के लिए इस मंत्र का नियमित जाप अवश्य करना चाहिए।

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🌷🌷जय मां पीताम्बरा🌷🌷
: ज्योतिष के अद्भुत फलित सूत्र।

  1. यदि किसी जातक के जन्मलग्न को एक से अधिक शुभ ग्रह एवं केन्द्र-त्रिकोणादि के स्वामी (1, 4, 7, 10, 9, 5) होकर देख रहे हों, तो उसके व्यक्तित्व में सौम्यता, आकर्षण इत्यादि की अभिवृद्धि में सहायक होते हैं| दूसरी ओर यदि एक से अधिक पापग्रह लग्न भाव को देख रहे हों, तो ऐसी स्थिति में जातक उग्र स्वभाव वाला, तामसिक विचारों वाला तथा दु:खी होता है एवं कुछ न कुछ मानसिक, शारीरिक पीड़ा से भी व्यथित रहता है|
  2. नीच राशिगत ग्रह भी अपना विशेष प्रभाव नकारात्मक एवं सकारात्मक रूप से जातक के व्यक्तित्व तथा उसके जीवन पर डालते हैं, जो द्रष्टव्य है| अनुभव के आधार पर नीच राशिगत मङ्गल व्यक्ति को ठण्डे स्वभाव का बनाता है, तो उसके आत्मविश्‍वास, साहस में न्यूनता की प्रवृत्ति भी दर्शाता है| दूसरी ओर नीचराशिस्थ गुरु वाला जातक 31वें वर्ष के उपरान्त निजार्थिक, सामाजिक उत्थान का भोक्ता होता है, लेकिन सन्तान, और शिक्षा से जुड़ी जटिल समस्याओं का उसे जीवन में एक बार अवश्य सामना करना पड़ता है|
  3. सिंह राशि में गुरु एवं मकर राशि में मङ्गल हो, तो व्यक्ति स्वभाव से दम्भी एवं कट्टर होता है| सूर्य चन्द्र की युति वाला व्यक्ति अविनयी, हठी, दृढ़ प्रतिज्ञ होता है| बशर्ते कि इस युति पर मङ्गल की पूर्ण दृष्टि हो|
  4. लग्नस्थ बली (स्वगृही, उच्च) मङ्गल अथवा बुध जातक को अपनी वास्तविक उम्र से छोटी उम्र का दर्शाते हैं अर्थात् यदि वह वृद्धावस्था में हो, तो भी नौजवान युवक की भॉंति प्रतीत होगा|
  5. लग्नेश छठे भाव में हो, तो जातक को विरोधी प्रवृत्ति वाला एवं दबंग बनाता है और इस भाव में यदि शनि स्थित हो, तो पैरों में दर्द विकार अथवा सूजन का सामना करना पड़ता है|
  6. लग्न, सूर्य एवं चन्द्रमा बली होकर केन्द्र त्रिकोणादि भावों में हो साथ ही ये जिन राशियों में स्थित हों, उनके स्वामी भी षड्‌बल में बली होकर उक्त शुभ भावों में ही हो, तो व्यक्ति नि:संदेह प्रभावशाली, दीर्घायु, ख्यातिवान् एवं समाज में पूज्य होता है|
  7. यदि किसी राशि में कोई ग्रह उच्च का होकर स्थित हो, लेकिन उस राशि का स्वामी नीच अथवा अस्त होकर छठे, आठवें बारहवें भावों में से कहीं भी स्थित हो, तो ऐसी स्थिति में उच्चराशिस्थ ग्रह अपना पूर्ण प्रभाव दिखाने में असमर्थ होता है, जैसे यदि मेष राशि में सूर्य भले ही अपने परमोच्च अंश (10) में क्यों न हो? इसका राशिश (मेष का स्वामी मङ्गल ) मङ्गल नीच राशि कर्क में हो या अस्त हो, तो निश्‍चित रूप से उच्चस्थ सूर्य अपना भावजन्य एवं राशिजन्य पूर्ण प्रभाव अभिव्यक्त करने में असमर्थ होगा|
  8. लग्नस्थ मेष, सिंह, धनु, कर्क राशि मेंे स्थित गुरु व्यक्ति को अहंकारी एवं गंभीर प्रकृति का बनाता है|
  9. दशम भाव में स्थित शनि (स्वगृही, उच्च एवं वक्री) 36वें वर्ष से विशेष व्यावसायिक उत्थान देता है एवं आकस्मिक गिरावट भी करता है| दूसरी ओर इस भाव में स्थित बली मङ्गल जातक को अपने व्यवसाय में कीर्तिवान् बनाते हुए अनायास उसे विवादों के घेरे में भी उलझाता है|
  10. जातक के सिंहस्थ सूर्य, मेष राशिस्थ मङ्गल उसके आत्मप्रभाव में वृद्धिकारक होते हैं और वह स्वत: प्रेरणा से समाज में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त करता है|
  11. आधुनिक युग में तुला राशिस्थ सूर्य वाले व्यक्ति राजनीति एवं चिकित्सा के क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त करते हुए देखे जा सकते हैं|
  12. किसी जातक के यदि वृषभ राशि में चन्द्रमा केन्द्र त्रिकोणादि भावों में से कहीं भी पक्ष बल से परिपूर्ण होकर पापग्रहों की दृष्टि, युति से मुक्त हो, तो उसे (जातक को) राजपक्ष से पद प्राप्ति के सुअवसर मिलते हैं| ऐसा जातक उदार एवं व्यावहारिक भी होता है|
  13. जन्म लग्न कुण्डली के अन्तर्गत जातक के दाम्पत्य सुख के सन्दर्भ में सप्तम भाव स्थित अकेला शुक्र बाधाएँ एवं रूकावटें पैदा करता है, तो दूसरी ओर इस भाव में स्थित सूर्य जीवनसाथी से मतभेद पैदा करता है| स्थिति यहॉं तक आ जाती है कि गृहस्थ जीवन में घुटन एवं अलगाव की सम्भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं, लेकिन यदि शुक्र या सूर्य स्वगृही, उच्चराशि में स्थित होकर अथवा एक से अधिक शुभ ग्रहों द्वारा दृष्ट होकर सप्तम भाव में स्थित हो, तो इस भाव से उपर्युक्त वर्णित दुष्परिणाम जातक को अत्यल्प मात्रा में ही प्राप्त होंगे|
  14. शुभ भावों के स्वामी (1, 4, 7, 10, 5, 9 भावों के) होकर तीन अथवा इसे अधिक अस्त ग्रह जातक के राजयोग एवं उत्तम स्वास्थ्य में क्षीणता को दर्शाते हैं, ऐसा जातक साधारण व्यक्तित्व का एवं कोई न कोई आधि-व्याधि से ग्रसित रहता है|
  15. जातक की कुण्डली में एक से अधिक नीच राशिस्थ ग्रहों का नीचभङ्ग राजयोग उसे सामान्य स्थिति से काफी उच्च स्तर का बनाता है और अपने कार्य व्यवसाय में विशिष्ट मुकाम पर पहुँचाता है|
  16. जातक की जन्म कुण्डली में लग्न भाव छठे भाव की अपेक्षा पूर्ण बली हो और एकादश भाव द्वादश भाव की अपेक्षा पूर्ण बली हो, तब वह जीवन में मनवांछित यश, धन, उत्थान, उच्च सफलता की सहज प्राप्ति करता है|
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सुख और दु:ख केवल मन की अनुकूलता और प्रतिकूलता है। स्थितियों से सुख और दु:ख नहीं होते।
एक व्यक्ति जिसने सब कुछ त्याग दिया और एक जिसका सब कुछ लूट लिया गया हो; वे दोनों एक से हैं। जिसका लुटा वह रोता है और जिसने त्यागा वह हँसता है। यद्यपि दोनों की स्थिति एक सी है। इस लिए स्थितियों में कुछ नहीं रखा है। यह मन की अनुकूलता और प्रतिकूलता में है। अगर आप मन से भगवान की प्रत्येक विधि को, प्रत्येक विधान को सुखपूर्वक, आनंदपूर्वक स्वीकार करें तो कोई स्थिति, कोई अवस्था दु:ख का दर्शन नहीं करा सकती। दु:ख पास आएगा नहीं। क्योंकि भगवान का मंगल भरा, प्रसन्न श्रीमुख हमारे सामने नित्य हँसता हुआ रहेगा।

राधे राधे 🙏🏼
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: हमारा ईश्वर के प्रति झुकाव क्यों नहीं हो पाता..!!

एक व्यक्ति बहुत बीमार था..! उसकी पत्नी ने अपने छोटे पुत्र को औषधि लेने बाजार भेजा, लड़का चल दिया..!!
रास्ते में ‘बाजीगर’ का तमाशा हो रहा था, वह तमाशा देखने में मग्न हो गया और औषधि लेना भूल गया..!!
उसका पिता पीड़ा से तड़प रहा था, जब उसका बड़ा पुत्र आया, तब उसकी मां ने बड़े पुत्र से कहा, तेरा छोटा भाई औषधि लेने बाजार गया था, अभी तक नहीं लौटा, तुम जाकर देखो काफी देर हो गई है, कहीं कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई..!!
बड़ा भाई गया, तो वह तमाशा देखने में मग्न था, उसने छोटे भाई को डांटा, मूर्ख तुझे औषधि लेने भेजा था और तू तमाशे में मग्न है..!!
अब आप सोचिये, कि वह लड़का मूर्ख था, तो हम क्या हैं…??
हम भी तो आत्मा के लिए “दवा” लेने आये थे, और फंस गये माया के तमाशे में..!!
आज मकान बन रहा है, अब विवाह हो रहा है, अब बच्चे हो गये हैं, अब दुकान चल रही है, अब नौकरी हो रही है..!!
प्रातःसे सायं, और सायं से प्रातः, वर्ष के प्रारंभ और अन्त तक यह पेट चैन ही नहीं लेने देता..!!
जब यम के रूप में बड़ा भाई आता है, तब हमें पता चलता है, कि हम आये किसलिए थे..?? और क्या करते रह गये….!!

आज का विचार

जो बदला जा सके उसे बदलिए,जो बदला ना जा सके उसे स्वीकारिए,जो स्वीकारा न जा सके उससे दूर हो जाइए,खुश रहने का बस यही एक तरीका है,बड़ा आदमी वही हैं जो अपने पास बैठे व्यक्ति को छोटा महसूस न होने दे,सिर्फ धन की कमाई ही कमाई नहीं होती तजुर्बा रिश्ते सम्मान फिक्र करने वाले दोस्त और सबक ये सब भी कमाई के ही रूप हैं,छोटी सोच शंका को जन्म देती हैऔर बड़ी सोच समाधान को,सुनना सीख ले तो सहना सीख जायेगे और सहना सीख लिया तो रहना सीख जायेगें।

धर्म की वाणी प्रारंभ में अरुचिकर लगती है,संसार के भोगों में प्रवृत्ति होने से व्यक्ति सत्य,धर्मऔर नीति को सामान्यतःस्वीकार नहीं करता है,व्यक्ति बचपन से युवावस्था में प्रवेश करता है,तो उसमें छल कपट और असत्य की प्रवृत्ति बढ़ती है,धर्म इसअवसर पर उसे सत्मार्ग दिखाता है,यह जीवन प्रतिफल क्षणभंगुर होने की स्थिति को जानते हुए भी पाप की प्रवृत्तियों में लगा रहता है,धर्मऔर नीति के मार्ग पर चलकर ही महानता और श्रेष्ठता को प्राप्त किया जाता है,लेकिन इन दिनों हर आत्मा को यह लगता है कि वह असत्य बोलकर छल कपट कर आगे बढ सकता है,वह दिग्भ्रमित हो जाता है और जीवन रूपी चादर मैली कर लेता है, महापुरुषों ने जीवन के सत्य को जाना वही सार है,प्रश्नपत्र है जिंदगी जस की तस स्वीकार्यकरें कुछ भी वैकल्पिक नहीं हैं सभी प्रश्नअनिवार्यहैं,अपने हाथ से हुए पुण्य और किसी दूसरे से हुए पाप की चर्चा किसी से न करें यही अपने चरित्र की परीक्षा है!

आज का संदेश

संसार के सभी देशों में महान बना भारत देश, भारत को महान एवं विश्वगुरु बनाने में यहाँ के विद्वानों का विशेष योगदान रहा।अपने ज्ञान – विज्ञान का प्रसार करके यहाँ के विद्वानों ने श्रेष्ठता प्राप्त की थी, विद्वता प्राप्त कर लेना बहुत आसान नहीं तो कठिन भी नहीं है।कठिन है अपनी विद्वता को बनाये रखना, क्योंकि मनुष्य में जहाँ विद्वता आती वहीं अहंकार भी जन्म ले लेता है।विद्वता की परीक्षा उसी समय होती जब विद्वान स्वयं को इस अहंकार रूपी दुर्गुण से बचा ले जाय, हमारे शास्त्रों में कहा गया है :—
“विद्वान कुलीनो न करोति गर्व:” अर्थात जो विद्वान होता है उसे कभी अहंकार नहीं होता, वृक्ष में जब फल नहीं लगे होते तो वह एक अहंकारी की भाँति तनकर खड़ा रहता है परंतु जब उसमें फल लगते हैं और जैसे – जैसे फल बढने लगते हैं उसी क्रम में वृक्ष की प्रत्येक डाली झुकने लगती है। इसी प्रकार विद्वता की परिचायक है नम्रता, व्यक्ति में जैसे – जैसे ज्ञान का संचार होने लगता है उसी क्रम में वह नम्र होता चला जाता है। नम्रता, एवं सबको साथ में लेकर चलने वाला ही विद्वान कहा जा सकता है, यह सभी गुण हमारे प्राचीन विद्वानों में विद्यमान थे तभी हमारे पूर्वज विद्वान सारे संसार को एकता के सूत्र में बाँधकर रखते हुए “वसुधैव कुटुम्बकम्” की सूक्ति उच्चारित की थी, विद्वान वही कहा गया है जो अपने गुरुदेव के वचनों को व्याख्यायित न करके उनके वचनों को प्रेमपूर्वक ग्रहण करें।

आज विद्वानों से हमारा देश भारत परिपूर्ण है। पहले की अपेक्षा आज विद्वानों की संख्या अधिक ही दिखाई पड़ती है, और साथ ही दिखाई पड़ता है इन विद्वानों ते भीतर उफान मार रहा अहंकार, आज के विद्वान जिसकी व्याख्या करते हैं उसको स्वयं अपने आचरण में नहीं उतार पा रहे हैं। ऐसे विद्वान बार-बार घोषणा करते हैं कि :- यह मेरा सिद्धांत है, वास्तव में उनका कोई सिद्धांत ही नहीं होता है। ऐसे सिद्धान्तवादियों की विशेषता होती है कि यह पूर्ण एवं परिपक्व स्वयं के अतिरिक्त किसी दूसरे को नहीं मानते, ऐसे विद्वान प्राय: दूसरों को कहा करते हैं कि मैं अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करता हूं। इनके कुछ चिर परिचित वाक्य होते हैं जैसे :– क्या तुम मुझसे अधिक जानते हो ?? मुझसे ज्यादा पढ़े हो ?? मुझसे ज्यादा अनुभव है ?? इत्यादि इत्यादि।

मैं ऐसे विद्वानों से पूछना चाहूंगा कि आपको किस बात का दम्भ है ? किस बात का अहंकार है ? क्या ज्ञान की भी कोई सीमा होती है ? कुछ लोग तो यह कहते हैं कि मुझे झूठ से घृणा है जबकि यह सत्य हैं कि यह सारा संसार ही झूठ है। ऐसे विद्वानों की एक विशेषता और होती है कि क्रोध इनकी नाक पर होता है। कब किस बात पर भड़क जाए परमात्मा भी नहीं जानते, ऐसे विद्वानों का स्वभाव बड़ा अव्यवस्थित होता है। कभी कभी ऐसे विद्वानों का व्यवहार दुर्वासा ऋषि की तरह हो जाता है। ऐसा नहीं है कि ऐसे व्यक्ति बुरे होते हैं, ऐसे व्यक्तियों के अंदर भी एक अच्छा मनुष्य होता है परंतु बुरी होती है, इनकी मनोवृत्ति। अपने मनोवृत्ति के कारण यह अपनी विद्वता का अनजाने में ही पतन करते रहते हैं। इस संसार में कुछ किताबें पढ़कर के, कुछ सत्संग करके मनुष्य ज्ञानी तो बन जाता है जिसे यह संसार विद्वान भी कहने लगता है, परंतु व्यवहारिकता की कोई पाठशाला नहीं होती है इसे सीखने के लिए विनम्र होना पड़ता है।

मानवता क्रोध, अहंकार, वितृष्णा, घृणा जैसी भावनाओं का नाम नहीं यह तो प्रेम, विनम्रता और व्यवहारिकता का नाम है। इसे बनाये रखने वाला ही विद्वान कहा जा सकता है।

: आज का विचार

जो बदला जा सके उसे बदलिए,जो बदला ना जा सके उसे स्वीकारिए,जो स्वीकारा न जा सके उससे दूर हो जाइए,खुश रहने का बस यही एक तरीका है,बड़ा आदमी वही हैं जो अपने पास बैठे व्यक्ति को छोटा महसूस न होने दे,सिर्फ धन की कमाई ही कमाई नहीं होती तजुर्बा रिश्ते सम्मान फिक्र करने वाले दोस्त और सबक ये सब भी कमाई के ही रूप हैं,छोटी सोच शंका को जन्म देती हैऔर बड़ी सोच समाधान को,सुनना सीख ले तो सहना सीख जायेगे और सहना सीख लिया तो रहना सीख जायेगें।

धर्म की वाणी प्रारंभ में अरुचिकर लगती है,संसार के भोगों में प्रवृत्ति होने से व्यक्ति सत्य,धर्मऔर नीति को सामान्यतःस्वीकार नहीं करता है,व्यक्ति बचपन से युवावस्था में प्रवेश करता है,तो उसमें छल कपट और असत्य की प्रवृत्ति बढ़ती है,धर्म इसअवसर पर उसे सत्मार्ग दिखाता है,यह जीवन प्रतिफल क्षणभंगुर होने की स्थिति को जानते हुए भी पाप की प्रवृत्तियों में लगा रहता है,धर्मऔर नीति के मार्ग पर चलकर ही महानता और श्रेष्ठता को प्राप्त किया जाता है,लेकिन इन दिनों हर आत्मा को यह लगता है कि वह असत्य बोलकर छल कपट कर आगे बढ सकता है,वह दिग्भ्रमित हो जाता है और जीवन रूपी चादर मैली कर लेता है, महापुरुषों ने जीवन के सत्य को जाना वही सार है,प्रश्नपत्र है जिंदगी जस की तस स्वीकार्यकरें कुछ भी वैकल्पिक नहीं हैं सभी प्रश्नअनिवार्यहैं,अपने हाथ से हुए पुण्य और किसी दूसरे से हुए पाप की चर्चा किसी से न करें यही अपने चरित्र की परीक्षा है!एक महात्मा थे। जीवन भर उन्होंने भजन ही किया था। उनकी कुटिया के सामने एक तालाब था। जब उनका शरीर छूटने का समय आया तो देखा कि एक बगुला मछली मार रहा है। उन्होंने बगुले को उड़ा दिया। इधर उनका शरीर छूटा तो नरक गये। उनके चेले को स्वप्न में दिखायी पड़ा; वे कह रहे थे- “बेटा! हमने जीवन भर कोई पाप नहीं किया, केवल बगुला उड़ा देने मात्र से नरक जाना पड़ा। तुम सावधान रहना।”

जब शिष्य का भी शरीर छूटने का समय आया तो वही दृश्य पुनः आया। बगुला मछली पकड़ रहा था। गुरु का निर्देश मानकर उसने बगुले को नहीं उड़ाया। मरने पर वह भी नरक जाने लगा तो गुरुभाई को आकाशवाणी मिली कि गुरुजी ने बगुला उड़ाया था इसलिए नरक गये। हमने नहीं उड़ाया इसलिए नरक में जा रहे हैं। तुम बचना!

गुरुभाई का शरीर छूटने का समय आया तो संयोग से पुनः बगुला मछली मारता दिखाई पड़ा। गुरुभाई ने भगवान् को प्रणाम किया कि भगवन्! आप ही मछली में हो और आप ही बगुले में भी। हमें नहीं मालूम कि क्या झूठ है? क्या सच है? कौन पाप है, कौन पुण्य? आप अपनी व्यवस्था देखें। मुझे तो आपके चिन्तन की डोरी से प्रयोजन है। वह शरीर छूटने पर प्रभु के धाम गया।

नारद जी ने भगवान से पूछा, “भगवन्! अन्ततः वे नरक क्यों गये? महात्मा जी ने बगुला उड़ाकर कोई पाप तो नहीं किया?” उन्होंने बताया, “नारद! उस दिन बगुले का भोजन वही था। उन्होंने उसे उड़ा दिया। भूख से छटपटाकर बगुला मर गया अतः पाप हुआ, इसलिए नरक गये।” नारद ने पूछा, “दूसरे ने तो नहीं उड़ाया, वह क्यों नरक गया?” बोले, “उस दिन बगुले का पेट भरा था। वह विनोदवश मछली पकड़ रहा था, उसे उड़ा देना चाहिए था। शिष्य से भूल हुई, इसी पाप से वह नरक गया।” नारद ने पूछा, “और तीसरा?” भगवान् ने कहा, “तीसरा अपने भजन में लगा रह गया, सारी जिम्मेदारी हमारे ऊपर सौंप दी। जैसी होनी थी, वह हुई; किन्तु मुझसे सम्बन्ध जोड़े रह जाने के कारण, मेरे ही चिन्तन के प्रभाव से वह मेरे धाम को प्राप्त हुआ।।”

अतः-
पाप-पुण्य की चिन्ता में समय को न गँवाकर जो निरन्तर चिन्तन में लगा रहता है, वह पा जाता है। जितने समय हमारा मन भगवान् के नाम’रुप, लीला,गुण,धाम और उनके संतों में रहता है केवल उतने समय ही हम पापमुक्त रहते हैं,,शेष सारे समय पाप ही पाप करते रहते हैं। भगवान कृष्ण कहते हैं- “यज्ञार्थात्कर्मणोsन्यत्र लोकोsयं कर्मबन्धन:”- यज्ञ के अतिरिक्त जो कुछ भी किया जाता है वह इसी लोक में बाँधकर रखने वाला है, जिसमें खाना-पीना सभी कुछ आ जाता है। पाप,पुण्य दोनों बन्धनकारी हैं,इन दोनों को छोड़कर जो भक्ति वाला कर्म है अर्थात् मन को निरंतर भगवान में रखें तो पाप, पुण्य दोनों भगवान को अर्पित हो जाएंगे। भगवान केवल मन की क्रिया ही नोट करेंगे,इसका मन तो मुझ में था,इसने कुछ किया ही नहीं।यह भक्ति ही भव बंधन काटने वाली है।
😭 विरह व्यथा 😭

*एक दिन वृंदावन की बाज़ार मैं खडी होके एक सखी कुछ बेच रही है, लोग आते हैं पूछते हैं और हँस कर चले जाते हैं।  वह चिल्ला चिल्ला कर कह रही है कोई तो खरीद लो। पर वो सखी बेच क्या रही है ?? अरे ? यह क्या ? ये तो नींद बेच रही है।* 

आखिर नींद कैसे बिक सकती है.? कोई दवा थोडी है। जो कोई भी नींद खरीद ले। सुबह से शाम होने को आई कोई ग्राहक ना मिला। सखी की आस बाकी है कोई तो ग्राहक मिलेगा शाम तक दूर कुछ महिलाऐं बातें करती गाँव मैं जा रहीं हैं वो उस सखी का ही उपहास कर रही है। अरे एक पगली आज सुबह से नींद बेच रही है। भला नींद कोई कैसे बेचेगा। पगला गई है वो ना जाने कौन गाँव की है। पीछे पीछे एक दूसरी सखी बेमन से गाय दुह कर आ रही है। वह ध्यान से उनकी बात सुन रही है। बात पूरी हुई तो सखी ने उन महिलाओ से पूछा कौन छोर पे बेच रही है नींद, पता पाकर दूध वहीं छोड़ उल्टे कदम भाग पडी। अँधेरा सा घिर आया है. पर पगली सी नंगे पैर भागे जा रही है. बाजार पहुंच कर पहली सखी से जा मिली और बोल पडी. अरी सखी ये नींद मुझे दे दे। इसके बदले चाहे तू कुछ भी ले ले पर ये नींद तू मुझे दे दे, मैं तुझसे मोल पूछती ही नही तू कुछ भी मोल लगा पर ये नींद मुझे ही दे दे।
अब बात बन रही है, सुबह से खडी सखी को ग्राहक मिल गया है और दूसरी सखी को नींद मिल रही है. अब बात बन भी गई.
अब पहली सखी ने पूछा सखी मुझे सुबह से शाम हो गई. लोग मुझे पागल बता के जा रहे हैं तू एक ऐसी भागी आई मेरी नींद खरीदने, ऐसा क्या हुआ ? दूसरी सखी बोली सखी यही मैं तुझसे पूछना चाहती हूँ ऐसा क्या हुआ जो तू नींद बेच रही है।
पहली सखी बोली, सखी क्या बताऊं, उसकी याद मैं पल पल भारी है मैने उससे एक बार दर्शन देने को कहा और वो प्यारा श्यामसुंदर राज़ी भी हो गया। उसने दिन भी बताया के मैं अमुक ठिकाने मिलने आऊँगा। पर हाय रे मेरी किस्मत जब से उसने कहा के मैं मिलने आऊगा तब से नींद उड़ गई पर हाय कल ही उसे आना था पर कल ही आँख लग गई। और वो प्यारा आकर चला भी गया। हाय रे मेरी फूटी किस्मत। तभी मैने पक्का किया के इस बैरन, सौतन निन्दिया को बेच कर रहूँगी। मेरे साजन से ना मिलने दिया। अब इसे बेच कर रहूँगी।
अब तू बता कि तू इसे खरीदना क्यों चाहती है ?
क्या बताऊ सखी, एक नींद मैं ही तो वो प्यारा मुझसे मिलता है. दिन भर काम मैं सास ससुर। घर के काम मैं फ़ुर्सत कहाँ के वो प्यारा श्यामसुंदर मुझसे मिलने आये. वो केवल ख्वाब मैं ही मिलता था. मैने उससे कहा अब कब मुझे अपने साथ ले चलेगा ? उसने कहा अमुक दिन ले चलूँगा पर उसी दिन से नींद ही उड़ गई। सौतन अंखिया छोड़कर ही भाग गई. अब कहाँ से मिले वो प्यारा ?? हाय कितने ही जतन किये पर ये लौट कर ना आई। अब सखी तू ये नींद मुझे दे दे जिस से मुझे वो प्यारा मिल जाये। पहली सखी बोली. ले जा इस बैरन, सौतन को ताकि मैं सो न सकूँ. और वो प्यारा मुझे मिल सके।

भाव देखिये दोनों का भाव एक ही है पर तरीका अलग है
व्रजभक्तो के भाग्य की क्या कहे। व्रजांगनाओके चरणोमें कोटी कोटी वंदन।
बोलिए वृंदावन बिहारी लाल की जय


: 🥀आंवला, जिसे इंडियन गूस्बेरी के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसा फल है जो अपने पोषक तत्‍वों के लिए जाना जाता है। यह आयुर्वेदिक चिकित्सा में “दिव्य आयु” के रूप में जाना जाता है, जिसे कई बीमारियों को दूर रखने के लिए जाना जाता है। आंवला एक बहुत ही खट्टा फल है जो मुंह में स्वाद के बाद कड़वा छोड़ सकता है। इसे अक्सर शहद के साथ खाया जाता है, जो न केवल आंवले के रस का स्वाद बढ़ाता है, बल्कि इसके लाभों को दोगुना कर देता है। इस लेख में, हम आमला और शहद के स्वास्थ्य लाभों के बारे में चर्चा करेंगे। 

🌻शहद और आंवले का मिश्रण 
शहद की कुछ बूंदों को आंवला में मिलाने से न केवल खट्टे फल खाने योग्य बनते हैं, बल्कि इसके लाभ भी बढ़ाते हैं। आंवला और शहद एक अद्भुत योग है, जो कई बीमारियों का इलाज करता है, विशेष रूप से गले में खराश, सर्दी, खांसी और फ्लू से राहत देने के लिए। शहद में भिगोए गए आंवला को लिवर की कार्यक्षमता को प्रोत्साहित करने के लिए भी जाना जाता है, जो इंसुलिन के बेहतर उत्पादन में मदद कर सकता है। नियमित रूप से लिया जाने वाला आंवला और शहद वजन घटाने में मदद कर सकते हैं और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी कम कर सकते हैं। संयोजन में अद्भुत सौंदर्य लाभ भी हैं और उम्र बढ़ने के संकेतों को रोकने और बालों को दुगुनी तेजी से बढ़ाने के साथ स्वस्थ त्वचा को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है।

🥀बालों के लिए है फायदेमंद 
आंवला स्वस्थ बाल विकास का समर्थन करने के लिए एक उत्कृष्ट औषधि है। यह समय से पहले सफ़ेद होना कम करता है और आपके बालों को चमकदार और सुंदर भी बनाता है। आंवला और शहद का मिश्रण बालों के रोम को मजबूत कर सकता है और सूखापन कम कर सकता है। यह अच्छी मात्रा प्राप्त करने के लिए बालों के विकास को भी उत्तेजित करता है

🍂अस्‍थमा में है फायदेमंद 
अस्थमा के लक्षणों के उपचार के लिए पारंपरिक उपचारों में से एक है आंवला और शहद का मिश्रण। यह घरघराहट, कफ के उत्पादन और सांस की तकलीफ को नियंत्रित करने में कारगर साबित होता है। यह आपके श्वसन पथ को साफ करने में भी मदद करता है ताकि व्यक्ति बेहतर सांस ले सके।

🌻रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाए 
आंवला एक सच्चा फाइटर है और शहद इसे दीवार की तरह सहारा दे सकता है और जब एक साथ सेवन किया जाता है तो कोई भी आपको संक्रमण से नहीं हरा सकता है, और आप स्वास्थ्य शरीर के साथ बने रहेंगे। शहद के साथ आंवला कई बीमारियों की रोकथाम में लाभ करता है और आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है।

🍃बुढ़ापा रोके 
आंवला त्वचा की गुणवत्ता में सुधार करके उम्र बढ़ने के संकेतों को रोकने के लिए जाना जाता है। एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर होने के कारण, यह ऑक्सीकरण से होने वाले नुकसान को कम करने में मदद करता है। आंवला का रस कोशिका पुनर्जनन में भी मदद करता है और बेहतर लचीलेपन को बढ़ावा देता है। शहद पिगमेंटेशन को कम करने और त्वचा को सॉफ्ट करने के लिए जाना जाता है।

🏵️फर्टीलिटी से छुटकारा दिलाए 
पुरुषों और महिलाओं के लिए जिनके प्रजनन प्रणाली में समस्याएं हैं, आंवला और शहद एक अच्छा समाधान हो सकता है। आंवला में प्रजनन ऊतकों का समर्थन करने और शुक्राणु की गुणवत्ता में सुधार करने के गुण होते हैं। यह एक सफल गर्भावस्था के लिए, गर्भाशय को मजबूत करने में भी मदद करता है।
🍁पीपल का पेड़ पवित्र है।  यह एक पवित्र वृक्ष माना जाता है, क्योंकि प्राचीन काल में ऋषियों ने पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान लगाया था। धार्मिक महत्व के अलावा, पेड़ की पत्तियों का इस्तेमाल कई तरह के इलाज में प्रयोग किया जाता है। पृथ्‍वी पर पीपल एक ऐसा वृक्ष है जो सबसे ज्‍यादा ऑक्सीजन उत्‍सर्जित करता है।

🍃पीपल का पेड़ टैनिक एसिड, एसपारटिक एसिड, फ्लेवोनोइड्स, स्टेरॉयड, विटामिन, मेथिओनिन, ग्लाइसिन आदि से समृद्ध है। ये सभी सामग्रियां पीपल के पेड़ को एक असाधारण औषधीय पेड़ बनाती हैं। आयुर्वेद के अनुसार, पीपल के पेड़ के हर हिस्से – पत्ती, छाल, अंकुर, बीज, साथ ही फल के कई औषधीय लाभ हैं। इसका उपयोग कई बीमारियों के इलाज के लिए प्राचीन काल से किया जा रहा है

🌻🌷पीपल के पत्‍तों के लाभ क्‍या हैं?
🍂बुखार से राहत दिलाए 
पीपल के कुछ कोमल पत्ते लें, उन्हें दूध के साथ उबालें, चीनी डालें और फिर इस मिश्रण को दिन में लगभग दो बार पियें। इससे बुखार और सर्दी से राहत मिलती है।

🌺अस्‍थमा का करे खात्‍मा 
पीपल के कुछ पत्तों, या इसके पाउडर को लें और इसे दूध के साथ उबालें। फिर, चीनी मिलाएं और इसे एक दिन में लगभग दो बार पीएं। यह अस्थमा से पीड़ित लोगों की मदद करता है। 

🌾नेत्र रोगों में है लाभकारी 
पीपल नेत्र दर्द के इलाज में कुशलता से मदद करता है। इसकी पत्तियों से निकला पीपल का दूध आंखों के दर्द से राहत दिलाने में मददगार है।

🍂दांतों को मजबूती प्रदान करे 
पीपल के पेड़ की ताज़ी टहनियाँ या नई जड़ें लें, ब्रश के रूप में इसका इस्तेमाल न केवल दाग-धब्बों को दूर करने में मदद करता है बल्कि दांतों के आसपास मौजूद बैक्टीरिया को भी मारने में मदद करता है।

🌾नकसीर में है फायदेमंद 
कुछ कोमल पीपल के पत्ते लें, उसमें से एक रस तैयार करें और फिर इसकी कुछ बूंदें नासिका में डालें। इससे नकसीर से राहत मिलती है।

🌸पीलिया में है मददगार 
पीपल के पत्ते लें और कुछ मिश्री मिलाकर रस तैयार करें। इस रस को दिन में 2-3 बार पिएं। यह पीलिया और इसके लक्षणों को कम करने में मदद करता है।

🍂कब्‍ज से राहत दिलाए 
पीपल के पत्तों को बराबर मात्रा में सौंफ के बीज के पाउडर और गुड़ के साथ लें। सोने से पहले दूध के साथ ऐसा करें। इससे कब्ज से राहत मिलेगी।

🍃ह्रदय रोगों का करे नाश 
कुछ पीपल के पत्ते लें, उन्हें पानी के एक जार में भिगोकर रात भर छोड़ दें। पानी को डिस्टिल्ड करें और फिर इसे दिन में दो-तीन बार पिएं। यह दिल की धड़कन और दिल की कमजोरी से राहत प्रदान करने में मदद करता है।

🥀ब्‍लड शुगर को रखे नियंत्रित 
पीपल शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को कम करने के लिए पाया जाता है। पीपल के फल के पाउडर को हरितकी फल के पाउडर के साथ लिया जाता है, जो त्रिफला के घटकों में से एक है, रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में मदद करता है।
[ वास्तु शास्त्र और आप का मकान
✍🏼लक्ष्मीजी के किसी भी मंत्र का जाप बुधवार या शुक्रवार से शुरू करें तथा नित्य कमल गट्टे की एक माला जाप करें। २.-विष्णु सहस्रनाम तथा श्रीसूक्त का एक-एक पाठ नियमित करें तथा श्री लक्ष्मीजी को गुलाब या कमल पुष्प चढ़ाएं। ३.-अपने वरिष्ठ व्यक्तियों का सम्मान करें। घर-परिवार में सबसे प्रेम-व्यवहार करें। ४.-प्रात: जल्दी उठकर घर की सफाई करें तथा स्नानादि कर अपना पूजन- जप इत्यादि कर दिन की शुरुआत करें। जहां सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सोते हैं, वहां धन नहीं आता है। दुर्गंधयुक्त स्थान तथा अशुद्ध स्थान पर लक्ष्मी नहीं ठहरती। ५.-गाय -कुत्ता, भिखारी को यथासंभव खाना इत्यादि दें या न दे सकें तो उन्हें दुत्कारें नहीं। ६.-घर में कूड़ा-करकट, जाला इत्यादि जमा न होने दें। समय-समय पर सफाई करें। ७.-संध्या के पश्चात झाड़ू-बुहारी न करें। यदि करें तो कचरा घर के बाहर न फेंकें। ८.-झाडू संभालकर रखें तथा खड़ी न रखें। ऐसी रखें कि किसी की नजर उस पर न पड़े। झाड़ू को कभी लांघें नहीं, न ही पैर की ठोकर लगे। ९.-कपड़े स्वच्छ व धुले हुए हों। इत्र-सेंट का प्रयोग अवश्य करें। १०.-पूजन यदि नित्य करते हैं तो समय व स्थान निश्चित रखें। ११.-ईशान दिशा में गंदगी न होने दें, हो सके तो देव स्थान जरूर बनाये.! १२.-दक्षिण- नैऋत्य, पश्चिम में कोई गड्ढा, बोरिंग, हौज इत्यादि न हो तथा जहां भी वास्तुदोष हो, वहां एक स्वस्तिक बना दें। हमेशा बाथरूम में नल इत्यादि से पानी न टपके, ध्यान रखें..इत्यादि….!!


[ शत्रु को दण्ड देना

यदि आप निरपराधी हैं और शत्रु आप पर लगातार तंत्र का दुरूपयोग कर आप को परेशान कर रहा है, तब माँ के दंड विधान प्रयोग करने में विलम्ब न करें, जब तक दुष्ट को उसकी दुष्टता का दंड नहीं मिल जाता, वह अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करता ही रहता है। अपने गुरु से आज्ञा लेकर दंड विधान को प्रारम्भ कर दें, शीघ्र ही दुष्ट के किए हुए कर्मों की सजा माँ स्वयं दे देती है। मै एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ, जिसका पूरा जीवन ही संघर्ष में निकल गया फिर भी वह परेशान था जब किसी भी मंत्र के प्रयोग से सफलता न मिल पा रही हो, तब ग्रामीण आंचल में प्रचलित माँ पीताम्बरा के शाबर मंत्र का प्रयोग करें- सुखद परिणाम मिलता है। प्रयोग से पूर्व शावर पद्यति से इसे जाग्रत कर लेते हैं अर्थात होली, दीपावली व ग्रहण काल में एक हजार जप कर इसे जाग्रत कर लेते हैं।

प्रयोग विधि- मंत्र प्रयोग से पूर्व कन्या पूजन करते हैं किसी जमादार, भंगी की कन्या(जिसका मासिक न प्रारम्भ हुआ हो) का पूजन करते हैं, एक दिन पूर्व जाकर कन्या की माँ से उसे नहला कर लाने को कहे फिर नए वस्त्र (चड्ढी व फराक) पीले हो तो अति उत्तम, पहना कर, चुनरी ओढ़ा कर ऊँचे स्थान (पीढ़ा या कुर्सी) पर बैठा कर, खुद उसके नीचे बैठे व हृदय में भावना करे कि मैं माँ का श्रिंगार व पूजन कर रहा हूँ, इस क्रिया में भाव ही प्रधान होता है, अब उसके पैरों पर जल धीरे-धीरे डालते हुए मन में भावना करे मैं माँ के पैरों को अच्छे से साफ कर रहा हूँ फिर उसे तौलिए से पोछ कर, नई चप्पल पहनाए तथा पीला भोग (छेने की रसमलाई या बर्फी पीली) अपने हाथ से खिलाए व उसे ध्यान से देखे कभी-कभी कन्या का पैर या चेहरा पीले रंग में दिखने लगता है। भोग लगाने के बाद उसे कुछ देर बैठा रहने दें व स्वयं मन ही मन प्रार्थना करें

‘‘हे माँ हमें शत्रुओं ने बहुत पीड़ित कर रखा है, हम पर कृपाा करें उन शत्रुओं से हमारी रक्षा करे व उन्हें दंड दे‘‘

फिर कन्या के हाथ में यथा शक्ति दक्षिणा रख कर उससे आशीर्वाद लेकर रात्रि में इस मंत्र का एक सौ आठ बार जप कर पुनः शत्रु को दंड देने हेतु प्रार्थना कर दे। सात दिन लगातार इस प्रयोग से माँ पीताम्बरा शत्रु को मृत्यु तुल्य दंड देती है, जैसा मैंने देखा है।

इस मंत्र का प्रयोग आजमाने हेतु या निरपराधी व्यक्ति पर भूल कर न करें नहीं तो दुष्परिणाम भोगने ही पड़ जाता है।

मंत्र -‘‘जय जय बगला महारानी, अगम निगम की तुम्हीं बखानी, संकट में घिरा दास तुम्हारो, अमुक (अपना नाम दें) दास को तुरत उबारो, बैरी का बल छिन लो सारो, निर्दयी दुष्टों को तुम्हीं संघारो, जिव्हा खिंच लो शत्रु की सारी, बोल सके न बिच सभारी तुम मातु मैं दास तुम्हारा, आन हरो मम संकट सारा, दुहाई कामरूप कामाख्या माई की।‘‘

सदैव याद रखें, गलत कार्यों से अपना प्रारब्ध बिगड़ जाता है, जिसे भोगना पड़ता है।
[गायत्री मंत्र क्यों और कब ज़रूरी है
☀सुबह उठते वक़्त 8 बार ❕✋✌👆❕अष्ट कर्मों को जीतने के लिए !!

🍚🍜 भोजन के समय 1 बार❕👆❕ अमृत समान भोजन प्राप्त होने के लिए !!

🚶 बाहर जाते समय 3 बार ❕✌👆❕समृद्धि सफलता और सिद्धि के लिए !!

👏 मन्दिर में 12 बार ❕👐✌❕
प्रभु के गुणों को याद करने के लिए !!

😢छींक आए तब गायत्री मंत्र उच्चारण ☝1 बार अमंगल दूर करने के लिए !!

सोते समय 🌙 7 बार ❕✋✌ ❕सात प्रकार के भय दूर करने के लिए !!

कृपया सभी बन्धुओं को प्रेषित करें 👏👏 !!!

ॐ , ओउम् तीन अक्षरों से बना है।
अ उ म् ।
“अ” का अर्थ है उत्पन्न होना,

“उ” का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास,

“म” का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् “ब्रह्मलीन” हो जाना।

ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है।

ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है।

जानीए

ॐ कैसे है स्वास्थ्यवर्द्धक
और
अपनाएं आरोग्य के लिए ॐ के उच्चारण का मार्ग…

  1. ॐ और थायराॅयडः-
    ॐ का उच्‍चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
  2. ॐ और घबराहटः-
    अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं।
  3. ॐ और तनावः-
    यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।
  4. ॐ और खून का प्रवाहः-
    यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है।
  5. ॐ और पाचनः-
    ॐ के उच्चारण से पाचन शक्ति तेज़ होती है।
  6. ॐ लाए स्फूर्तिः-
    इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है।
  7. ॐ और थकान:-
    थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं।
  8. ॐ और नींदः-
    नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है। रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चिंत नींद आएगी।
  9. ॐ और फेफड़े:-
    कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है।
  10. ॐ और रीढ़ की हड्डी:-
    ॐ के पहले शब्‍द का उच्‍चारण करने से कंपन पैदा होती है। इन कंपन से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और इसकी क्षमता बढ़ जाती है।
  11. ॐ दूर करे तनावः-
    ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव-रहित हो जाता है।

आशा है आप अब कुछ समय जरुर ॐ का उच्चारण करेंगे। साथ ही साथ इसे उन लोगों तक भी जरूर पहुंचायेगे जिनकी आपको फिक्र है
“पहला सुख निरोगी काया”

  • : अस्तित्व और सनातन धर्म :

नारायण ! भारतीय दर्शन यह मानता है कि विज्ञान मन के परे की सत्ता का अनुभव कर सकता है , लेकिन उसे तब उन समस्त अनुशासनों को भी अपनाना होगा जो अनुशासन मन की सत्ता के परे जाने के लिए निर्धारित किए गए हैं । इस सम्बन्ध में रजनीश ने अपने ग्रन्थ “अध्यात्म उपनिषद्” में स्पष्ट रूप से लिखा है कि “भारत की मौलिक खोज यही है कि अस्तित्व को मन के बिना भी जाना जा सकता है । धर्म और विज्ञान का यह अन्तर है कि विज्ञान कहता है कि जो भी जाना जा सकता है , वह मन से जाना जा सकता है ; जबकि धर्म कहता है कि मन से जो भी जाना जाता है , वह कामचलाऊ है । वह अधिक – से – अधिक लगभग सत्य है । मन के पार जो जाना जाता है , वही सत्य है और मन के पार ही वास्तविक जानना सम्भव होता है । “

नारायण ! हो सकता है कि विज्ञान को इसपर आपत्ति हो और वह कहे कि वास्तविक जानना तो वही है जो प्रयोगशाला में प्रमाणित किया जा सके । एक तरह से किसी भी वैज्ञानिक का यह चिन्तन गलत नहीं है , लेकिन अगर थोड़ी गहराई में वह उतरे तो प्रयोगशाला के जो उपकरण हैं या प्रयोगशाला की जो संरचना है , उसपर भी उसे विचार करना ही होगा । क्या किसी एक ही प्रकार की प्रयोगशाला में विज्ञान अपने सभी प्रयोग कर सकता है ? क्या रसायनशास्त्री की प्रयोगशाला में परमाणु का विखण्डन सम्भव है ? क्या स्पष्ट है कि किसी ज्ञान को प्राप्त करने के लिए उसके अनुकूल प्रयोगशाला का भी निर्माण करना होगा । शाश्वत सत्य जानने के लिए जिस प्रकार की प्रयोगशाला की आवश्यकता है , क्या वैसी प्रयोगशाला विज्ञान जुटाने में समर्थ है ? इस प्रयोगशाला को यदि कभी विज्ञान ने जुटा भी लिया तो वह प्रयोगशाला उस प्रयोगशाला से भिन्न होगी , जो मन के द्वारा सृजित होती है । मन द्वारा सृजित प्रयोगशाला , कामचलाऊ तरीके से विज्ञान के लिए सहयोगी तो बन सकती है , लेकिन अगर उसे सत्ता को जानना है तो चेतन के गहरे स्तरों तक उसे जाना ही होगा , और उसे अज्ञात में छलाँग लगाने के लिए साहस जुटाना ही होगा । वैसे भी विज्ञान ने जो भी खोज की है , वह अज्ञात में छलाँग लगा करके ही की है । अज्ञात में छलाँग लगाए बिना कोई नई खोज की ही नहीं जा सकती।

नारायण ! अनुभव सदैव नितांत व्यक्तिगत होते हैं और वैयक्तिक भी । अनुभव के बारे में यह भी कहा जा सकता है कि जो अनुभव एक बार होता है , ठीक वैसा ही अनुभव कभी भी किसी व्यक्ति को स्वयं भी दुबारा हो ही नहीं सकता । अर्थात् कोई भी अनुभव पूरे तौर पर दोहराया नहीं जा सकता। इसीलिए अनुभव या अनुभूति को शब्दों के माध्यम से तो कभी भी दूसरे व्यक्ति को तो पूरी तरह से दिया ही नहीं जा सकता । धर्म के क्षेत्र जो भी अनुभव हैं , वे नितान्त व्यक्तिगत और वैयक्तिक हैं । जो अनुभव और जो अनुभूति जिसस क्राइस्ट की रही होगी वही अनुभूति कभी भी जीसस क्राइस्ट के शिष्यों की नहीं रही होगी और न हो सकती है । जैसी अनुभूति धर्म की खोज करते समय , चरम सत्य को प्राप्त करने के उद्देश्य से मोहम्मद साहब ने प्राप्त की , वैसी अनुभूति और अनुभव उनके शिष्यों को कभी भी नहीं प्राप्त हो सकते । यही बात उन ऋषियों के अनुभवों के बारे में कही जा सकती है, जिनका निचोड़ हमें उपनिषद् में पढ़ने को मिलता है । उपनिषदों में जो चरम सत्ता की अनुभूतियाँ शब्दों में हैं , उनके पठन – पाठन से पाठक या साधक को उन अनुभूतियों का वास्तविक सत्य पता नहीं चल सकता । अगर कोई उपनिषद् के सत्य को वास्तव में जानना चाहता है , तो उसे स्वयं अपने आपको अनुभव व अनुभूति प्राप्त करने के लिए गहराई में उतरना होगा और उसी तरह खोना और डूबना होगा , जैसेकि हमारे स्वनामधन्य ऋषियों ने किया ।

नारायण ! अन्तर्मुखी चेतना की गहराई में जाकर जिस सत्य को जाना जाता है , वह कभी बँटता नहीं है ।

जिस प्रकार वैज्ञानिक की दृष्टि से कोई ठोस पदार्थ या स्थूल पदार्थ नहीं है , सभी प्रयोगशाला में परीक्षण के उपरांत मात्र एक विद्युत् ऊर्जा हैं , उसी प्रकार आध्यात्मिक क्षेत्र की जो प्रयोगशाला है , वहाँ आध्यात्मिक चेतना के अनुसार जगत् में जो कुछ भी दिखाई दे रहा है , वह परम चैतन्य है । अध्यात्म कहता है कि सभी कुछ इस चैतन्य का ही तो रूप है तथा चैतन्य से पृथक् कोई सत्ता है ही नहीं । चैतन्य की यह सत्ता जिसे चिद्सत्ता या ईशत्व कहा जाता है , वह सर्वव्यापी , सार्वकालिक , सनातन व अनन्त है और उसका अपना एक अनुशासन है । यह अनुशासन और कुछ नहीं , केवल उसका “स्वभाव” है , जो द्वैत भी है और द्वैताद्वैत भी । यह स्वभाव ही “परम अस्तित्व” की वास्तविक पहचान है और यही है परम चैतन्य का “धर्म” भी । यही है वास्तविक “सनातन धर्म” । चिद्सत्ता का जो भी धर्म है , उसकी सनातनता , सर्वज्ञता , सार्वकालिकता , पूर्णत्व एवं अखण्डता है तथा उसकी जो विराट्ता है उसे खण्डित नहीं किया जा सकता । अध्यात्म जिसे चैतन्य कहता है , विज्ञान उसे ऊर्जा या विद्युत कहता है । वैज्ञानिक कहते हैं कि समस्त पदार्थ ऊर्जा से निर्मित हैं और ऊर्जा को कभी खण्डित नहीं किया जा सकता। ऊर्जा अर्थात् विद्युत को खण्डित करने का कोई उपाय है ही नहीं । वह तो सतत प्रवाहित होती रहती है , भले ही उसका कोई अनुभव करे या न करे । ऊर्जा की यह जो सतत प्रवाहिता है , वही उसका सातत्व व स्वभाव है और इसी नाते उसका धर्म भी । विद्युत् ऊर्जा के इस धर्म में और चैतन्य के धर्म में कोई अन्तर नहीं है । सत्ता तो एक है , उसे चाहे विद्युत् ऊर्जा कहें या चैतन्य या चिद्सत्ता अथावा अस्तित्व या फिर उसका कोई और नाम दे दें । नाम से कुछ भी नहीं होता । नाम देने से चिद्सत्ता का जो मूल स्वभाव है, वह थोड़े ही बदल जाएगा । वैसे चैतन्य का कोई भी नाम नहीं हो सकता , लेकिन नाम हम इसलिए देते हैं , क्योंकि नाम के अभाव में , शब्द के अभाव में इस विषय पर चिन्तन करने में हमें कठिनाई होती है । वैसे इस विषय पर चिन्तन करते – करते , गहराई में उतरते – उतरते एक स्थिति ऐसी आती है , जब समस्त नामों का लोप हो जाता है , पर यह तो संसार से परे की – धर्म से भी परे की स्थिति है । धर्म और चिद्सत्ता की परिधि से बाहर क्या है , कोई नहीं जानता । तर्क की दृष्टि से अगर “कुछ है” तो “कुछ नहीं” भी होना चाहिए । अनन्त है तो अनन्त के परे भी कुछ होना चाहिए , पर यह तर्क और कुछ नहीं , वाक् – जाल ही अधिक प्रतीत होता है । यह तर्क भले ही कुतर्क न हो , पर इसे अति कर्त तो कहा ही जा सकता है । इति शम्

नारायण स्मृतिः

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