जाति वाद हटाओ
👇वर्ण व्यवस्था👇
(1) अहमेव स्वयमिदं वदामि जुषटं देवानामृत मानुषाणाम्!
यं कामये तंतमुगृं कृणोमि तं ब्राह्मणं तमृषि तं सुमेधाम्!! (अथर्ववेद 4/30/3)
अर्थ- मैं स्वयं यहाँ घोषणा करतीं हु कि देवो और मनुष्यों में से जिसे चाहु उसे क्षत्रिय बनाती हु और जिसे चाहु उसे ब्राह्मण और ऋषि मुनि बनाती हु !!
(2) शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राहाणशचैति शूद्रताम्!
क्षत्रियो याति विपृतवं विदादैशयं तथैव च!! (भविष्य पुराण ब्राहा,अध्याय 40श्लोक 46)
अर्थ- शूद्र ब्राहाण हो जाता है और ब्राह्मण शूद्र हो जाता है क्षत्रिय ब्राह्मण बन जाता है और वैसे ही वैश्य को समझ लेना चाहिए!!
(3) अथर्ववेद ( 31/11) को भी देखले
(वर्ण व्यवस्था की समीक्षा )
कर्म दो प्रकार के होते हैं एक मुख्य और दूसरा गौण! मुख्य कर्म वे होते हैं जिनके आधार पर किसी की जीवन यात्रा चलती हैं जिनके द्वारा वह अपना जीवन यापन करता है आजीविका कमाता है!! गौण धर्म वह कहलाते हैं जिन पर मनुष्य की आजीविका निर्भर नहीं होती हैं वह अपने जीवन को सुविधा पूर्वक व्यतीत करने के लिए करते हैं! जैसे मैं कपड़े धोता हु तो लोग मुझे धोबी नहीं कहेंगे यदि मैं आजीविका के लिए पारिश्रमिक लेकर लोगों के कपड़े धोने लगूं तो लोग मुझे धोबी कहने लग जाइगे कुछ लोगों के मन में शूद्र शब्द को लेके बहुत प्रकार के सबाल उठते हैं शूद्र कम दिमाग वाले या अनपढ को भी कह सकते हैं जब मनुष्य के पास दिमाग कम होगा तो वह वैसे ही कार्य कर सकता है जैसे किसी के घर में खाना बनाना खेती करना कपड़े धोना ऑफिस में सबकी सेवा का कार्य आदि आदि लेकीन कुछ मानसिक गुलामों ने गंदा साफ करनें वाले को ही शूद्र मानकर वैठे हैं जबकि शूद्र कम दिमाग वाले को कहा है ये तो आर्थिक आधार पर है
धार्मिक आधार पर शूद्र वह है जो चोरी मार काट मांसाहार भ्रष्ट मनुष्य को शूद्र कहा है जिसके पास कम दिमाग होगा वह दोनों में से किसी एक रास्ते पर जा सकता है आर्थिक आधार वाले शूद्र को उत्तम माना गया है वह जीवन यापन के लिए कार्य मात्र करता है !!
(जाति किसे कहते हैं)
वर्ण और जाति दोनों भिन्न भिन्न है जाति उसे कहते हैं जो रंग रूप देखकर दूसरों की अपेक्षा पृथक् पहचानी जाए जैसे – गाय भैंस बकरी घोड़ा ऊट हाथी मनुष्य आदि इनमे से प्रत्येक को उसकी आकृति देखकर दूसरों की अपेक्षा पृथक् पृथक् पहचानी जा सके इसलिए जैसे पशुओं में गाय भैंस आदि की अपनी-अपनी जातिया है इसी प्रकार मनुष्य भी एक ही जाति हैं जो मनुष्य मनुष्य से जातिवाद को मानता उसे धर्म ग्रंथ को भी मानना भी छोड़ देना चाहिए क्यो कि हमारे धर्म ग्रंथ में जातिवाद नहीं हैं वर्ण व्यवस्था है कम शब्दो में संका का समाधान करनें की कोशिश कर रहा हूँ जाति वाद हटाओ देश को विखरने से बचाओ