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ईश्वर एक है । वह सर्वव्यापक है । चेतन पदार्थ है , अर्थात सारे संसार को देखता सुनता समझता जानता है। सब विद्याओं का भंडार है, आनंद का सागर है । चेतन होने के कारण, वह सब जीवात्माओं के कर्मों को देखता है । वह पूर्ण न्यायकारी है । कभी किसी पर अन्याय नहीं करता। हम सबका जीवन, एक परीक्षा है ।
जैसे स्कूल की परीक्षा में विद्यार्थी उत्तर लिखने में स्वतंत्र होता है , परंतु परीक्षा पूरी होने के बाद अंक प्राप्त करने में वह स्वतंत्र नहीं होता , अंक तो परीक्षक अपनी व्यवस्था से ही देता है। इसी प्रकार से सभी जीवात्माएँ कर्म करने में स्वतंत्र हैं। वे सब परीक्षा दे रही हैं। ईश्वर हम सब जीवात्माओं का परीक्षाक है । वह जीवन भर परीक्षा लेता रहता है । मृत्यु के बाद वह अंक देता है । और जो जैसे कर्म करता है, उसको ईश्वर वैसा फल देता है । अगले जन्म में उसे मनुष्य पशु पक्षी इत्यादि कर्मफल के स्वरूप में योनि प्रदान करता है। (ईश्वर कुछ कर्मों का फल इस जन्म में भी देता है, तथा कुछ कर्मों का फल अगले जन्म में भी देता है।)
यदि आपको अगला जन्म अच्छा (मनुष्य का) चाहिए, तो आपको अच्छे कर्म करने पड़ेंगे ।
मृत्यु होने पर, यही सौगात लेकर हम और आप ईश्वर के घर जाएंगे। ईश्वर के घर जाएंगे , ऐसा कहने का अर्थ यह नहीं है कि ईश्वर किसी स्थान विशेष पर रहता है । यह अलंकारिक भाषा है । भाव यह है कि मृत्यु होने पर, जब ईश्वर के सामने हमारा हिसाब किताब होगा , तब हमारे कर्म अनुसार ही ईश्वर हमें फल देगा । यही तात्पर्य है ईश्वर के घर जाने का।
वैसे तो हम सब ईश्वर के ही घर में रहते हैं । ईश्वर से दूर नहीं हैं। फिर भी आश्चर्य की बात है , कि हम उसके घर में रहते हुए भी उसे जानते नहीं हैं ।
तो ईश्वर को जानें, उसे अपना परीक्षक मानें, अच्छे काम करें और सदा सुखी रहें। स्वामी विवेकानंद परिव्राजक

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